भारत की राष्ट्र्पति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का दून विश्वविद्यालय के तीसरे दीक्षांत समारोह में संबोधन (HINDI)
भारतीय संस्कृति और सभ्यता की वाहिका और जीवनदायिनी गंगा व यमुना की उद्गम-स्थली देवभूमि उत्तराखंड को मैं सादर नमन करती हूं।
भारतीय संस्कृति और सभ्यता की वाहिका और जीवनदायिनी गंगा व यमुना की उद्गम-स्थली देवभूमि उत्तराखंड को मैं सादर नमन करती हूं।
भारत की सिविल सेवाओं के शीर्ष प्रशिक्षण संस्थान, लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी में आप सभी युवा अधिकारियों से मिलना और आपको संबोधित करना, मेरे लिए एक सुखद अनुभव है। अकादमी में अपना प्रशिक्षण सफलता-पूर्वक पूरा करने के लिए, आप सभी प्रशिक्षु अधिकारियों को बधाई और शुभकामनाएं। मैं यहां प्रशिक्षण ले रहे Royal Bhutan Civil Services के अधिकारियों को भी हार्दिक बधाई देती हूं।
देव-भूमि, तपोभूमि और वीर-भूमि उत्तराखंड में आना, मैं अपना सौभाग्य मानती हूं। हिमालय को महाकवि कालिदास ने ‘देवतात्मा’ कहा है। राष्ट्रपति के रूप में, हिमालय के आंगन, उत्तराखंड में, आप सब के अतिथि-सत्कार का उपहार प्राप्त करके, मैं स्वयं को कृतार्थ मानती हूं। इस अभिनंदन-समारोह के उत्साह-पूर्ण आयोजन के लिए, राज्यपाल, श्री गुरमीत सिंह जी, मुख्य मंत्री, श्री पुष्कर सिंह धामी जी, तथा उत्तराखंड के एक करोड़ से अधिक निवासियों को मैं धन्यवाद देती हूं।
राष्ट्रपति के रूप में आंध्र प्रदेश की अपनी पहली यात्रा के दौरान आपके आमंत्रण और स्नेहपूर्ण अतिथि-सत्कार के लिए आंध्र प्रदेश के राज्यपाल श्री बिस्वभूषण हरिचंदन जी, मुख्यमंत्री श्री वाई. एस. जगन मोहन रेड्डी जी और आंध्र प्रदेश के लगभग पांच करोड़ निवासियों को मैं धन्यवाद देती हूं।
आज अंतर्राष्ट्रीय दिव्यांगजन दिवस के अवसर पर, दिव्यांगजनों के सशक्तीकरण के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान देने हेतु राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान करने के लिए आपके बीच उपस्थित होकर मुझे बेहद प्रसन्नता हुई है।
आज हरियाणा के निवासियों ने जिस उत्साह के साथ मेरा स्वागत किया है उसके कारण, राष्ट्रपति के रूप में, आपके राज्य की मेरी पहली यात्रा मेरे लिए अविस्मरणीय रहेगी।
आज ही कुरुक्षेत्र में गीता-यज्ञ की पूर्णाहुति तथा ‘अंतरराष्ट्रीय गीता जयंती महोत्सव’ में भाग लेकर मुझे देश की प्राचीन और महान विरासत से जुड़ने का अवसर मिला। उसके बाद NIT कुरुक्षेत्र के दीक्षांत समारोह के दौरान आधुनिक technology को योगदान देने वाली नई पीढ़ी के साथ थोड़ा समय बिताने का अवसर भी मुझे मिला। आज के दोनों समारोह हरियाणा की समृद्ध आध्यात्मिक परंपरा और सराहनीय आधुनिक विकास के प्रतीक कहे जा सकते हैं।
आज आप सभी के बीच इस सुंदर कैम्पस में आकर मुझे बहुत ख़ुशी हुई है। शिक्षा से मेरा आत्मीय संबंध है। अपना सार्वजनिक जीवन शुरू करने से पहले मैंने एक विद्यालय में अध्यापन कार्य भी किया था। शिक्षा से जुड़े किसी भी कार्यक्रम में आकर मुझे विशेष प्रसन्नता होती है।
कुरुक्षेत्र में, अत्यंत पावन ब्रह्म-सरोवर के तट पर आयोजित, इस अंतरराष्ट्रीय गीता जयन्ती महोत्सव में शामिल होकर मुझे आध्यात्मिक आनंद की अनुभूति हो रही है। यह लोक-मान्यता मुझे रोमांचित करती है कि इसी क्षेत्र में, सरस्वती नदी के तट पर, वेदों और पुराणों को लिपिबद्ध किया गया था। इसे मैं भगवान श्री कृष्ण का वरदान मानती हूं कि राष्ट्रपति के रूप में, हरियाणा की अपनी पहली यात्रा को, मुझे इस धर्म-क्षेत्र से आरंभ करने का अवसर प्राप्त हुआ है। महाभारत के वन-पर्व में इस क्षेत्र की तुलना स्वर्ग से की गई है:
ये वसन्ति कुरुक्षेत्रे ते वसन्ति त्रिविष्टपे
मध्य प्रदेश में आयोजित इस महिला केन्द्रित सम्मेलन में आकर, यहां की महिला विभूतियों, वीरांगना दुर्गावती, अहिल्या बाई होल्कर, वीरांगना अवन्ती बाई और रानी कमलापति जैसी महान महिलाओं का स्मरण होना स्वाभाविक है। उनकी वीरता और उत्कृष्ट शासन की गाथाएं देश के इतिहास, विशेषकर मध्य प्रदेश के इतिहास के गौरवशाली अध्याय हैं। हमारे आधुनिक लोकतन्त्र को दिशा प्रदान करने वाली महिलाओं में मध्य प्रदेश की सुपुत्री श्रीमती सुमित्रा महाजन जी का नाम बहुत सम्मान के साथ लिया जाता है। भारत के और मध्य प्रदेश के विकास में, ऐसी असंख्य महिलाओं का अमूल्य योगदान रहा है। आज के इस महिला सम्मेलन के आरंभ में, मैं मध्य प्रदेश त