भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का कैवल्यधाम के शताब्दी वर्ष के उद्घाटन समारोह में सम्बोधन (HINDI)

लोनावला : 29.11.2023
Download : Speeches भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का कैवल्यधाम के शताब्दी वर्ष के उद्घाटन समारोह में सम्बोधन (HINDI)(133.37 KB)
sp29112023

अत्यंत सम्मानित स्वामी कुवलयानन्द जी द्वारा स्थापित ‘कैवल्य धाम’, लोनावला के शताब्दी समारोहों के शुभारंभ के इस अवसर पर आप सब के बीच उपस्थित होकर मुझे बहुत प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है। Integration of Yoga in School Education System के महत्वपूर्ण विषय पर राष्ट्रीय सम्मेलन के साथ शताब्दी समारोहों की शुरुआत करने के आप के संस्थान के निर्णय की मैं सराहना करती हूं।

भारत की योग विद्या, विश्व समुदाय को हमारी अमूल्य सौगात है। भारत की पहल पर संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 21 जून को ‘अंतर-राष्ट्रीय योग दिवस’ के रूप में मनाने का निर्णय लिया। सन 2015 से प्रतिवर्ष विश्व के अधिकांश देशों में उत्साह के साथ योग दिवस मनाया जाता है। अपने संकल्प में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने यह स्पष्ट किया था कि योग पद्धति स्वास्थ्य एवं कल्याण के लिए समग्र दृष्टिकोण प्रदान करती है और पूरे विश्व समुदाय के स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है।

हमारी यह अमूल्य विद्या हमारे बच्चों को और हमारी युवा पीढ़ी को लाभान्वित करे, इसी ध्येय के साथ राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भारतीय ज्ञान परंपरा में निहित योग विद्या को शिक्षण व्यवस्था में महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है।

देवियो और सज्जनो,

प्राचीन भारत में गुरुकुलों में शिक्षा प्राप्त करने वाले अंतेवासी यानी विद्यार्थी बौद्धिक ज्ञान के साथ-साथ आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने के मार्ग पर भी आगे बढ़ते थे। भारत की प्राचीन परंपराओं के उपयोगी तत्वों से हमारे विद्यार्थियों को जोड़ना हमारी राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का एक मुख्य पक्ष है।

योग पद्धति व्यक्ति के समग्र विकास का मार्ग है। शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, सामाजिक और आध्यात्मिक उत्कर्ष के माध्यम के रूप में योग प्रणाली को प्रभावी माना जाता है। योग के माध्यम से चित्तवृत्तियों का निरोध करके प्रज्ञा की स्थिति अर्थात समत्व की स्थिति प्राप्त की जा सकती है। योगस्थ व्यक्ति को आंतरिक शांति का अनुभव होता है। मुझे बताया गया है कि स्वामी कुवलयानन्द जी का अंतिम उपदेश था:

“One should accept whatever comes one’s way, without losing heart.”

अपने इन सारगर्भित शब्दों में, स्वामी जी ने महाभारत की इस अमर शिक्षा को अभिव्यक्ति प्रदान की थी:

प्राप्तम् अप्राप्तम् उपासीत 
हृदयेन अपराजित:

अर्थात हृदय से अपराजित रहते हुए जो कुछ मिला और जो कुछ नहीं मिला, उन सब का सम्मान करो।

देवियो और सज्जनो,

कैवल्य अर्थात मोक्ष को हमारी परंपरा में सर्वश्रेष्ठ पुरुषार्थ माना गया है। अर्थ, काम और धर्म के चरणों से गुजर कर व्यक्ति कैवल्य प्राप्त करना चाहता है। ईश उपनिषद में कहा गया है विद्ययाऽमृतमश्नुते। उस उपनिषद में यह समझाया गया है कि व्यावहारिक ज्ञान और आध्यात्मिक ज्ञान एक दूसरे के पूरक हैं। व्यावहारिक ज्ञान से अर्थ, धर्म और कामनाओं की प्राप्ति होती है। अध्यात्म से अमरता यानी मोक्ष अथवा कैवल्य की प्राप्ति होती है। समग्र शिक्षा में व्यावहारिक और आध्यात्मिक ज्ञान का संगम होता है।

योग का अनुशासन कैवल्य प्राप्त करने में सहायक होता है यह तथ्य प्राचीन काल में हमारे ऋषि-मुनियों ने गहन अनुसंधान और परीक्षण के बाद प्रकाशित किया था। शताब्दियों पूर्व, महर्षि पतंजलि ने अपनी महान कृति योगसूत्र में तब तक उपलब्ध प्रामाणिक अनुसंधान का संकलन किया था। बीसवीं सदी में स्वामी कुवलयानन्द जैसी महान विभूतियों ने योग पद्धति की वैज्ञानिकता तथा उपयोगिता को नई ऊर्जा के साथ प्रचारित-प्रसारित किया। उन्होंने योग तथा अध्यात्म के आधार में स्थित आधुनिक विज्ञान की मान्यताओं को विश्व समुदाय के सम्मुख प्रस्तुत किया। हम सभी जानते हैं कि अन्तरिक्ष यात्रियों ने अपने अभियान के पहले योगाभ्यास करके अपने शरीर और मन को और अधिक सक्षम बनाया है।

स्वामी कुवलयानन्द जी से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी परामर्श लिया करते थे। बाबासाहब डॉक्टर भीमराव आंबेडकर भी स्वामी जी के संपर्क में रहते थे। महामना पंडित मदन मोहन मालवीय, तथा Bombay Presidency के प्रथम मुख्यमंत्री श्री बी.जी. खेर से लेकर श्री जे.आर.डी. टाटा तक, अनेक गणमान्य व्यक्तित्वों ने स्वामी जी के प्रयासों को शक्ति प्रदान की। देश की महानतम विभूतियों से लेकर जन-सामान्य तक के जीवन पर स्वामी जी के मार्गदर्शन का अच्छा प्रभाव पड़ा।

मुझे यह देखकर प्रसन्नता हो रही है कि स्वामी जी की शिष्य परंपरा द्वारा उनकी योग शिक्षा को आगे बढ़ाया जा रहा है। इस संस्थान के वर्तमान अध्यक्ष श्री ओ.पी. तिवारी जी 94 वर्ष की आयु में सक्रियतापूर्वक ऐसे महत्वपूर्ण संस्थान को नेतृत्व प्रदान करके एक आदर्श प्रस्तुत कर रहे हैं। मैं उनके लिए दीर्घायु होने और सक्रिय रहने की कामना करती हूं। 

यह कैवल्य धाम कुवलयानन्द मार्ग पर स्थित है। कुवलयानन्द मार्ग कैवल्य धाम का पता तो है ही, उनके द्वारा दिखाया गया मार्ग योग के माध्यम से कैवल्य तक पहुंचने का रास्ता भी है।

हमारे संविधान निर्माताओं ने, स्वाधीनता के बाद के भारत की जो परिकल्पना की थी उसमें राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सपनों के अनुरूप आध्यात्मिक आयामों को मूलभूत महत्व दिया गया था। मुझे यह जानकर तनिक भी आश्चर्य नहीं हुआ कि संविधान सभा में मध्य भारत और बेरार के प्रतिनिधि, डॉक्टर हरि विष्णु कामथ जैसे मनीषी जन-सेवक ने, अपने सम्बोधन में, स्वाधीन भारत की प्राथमिकताओं का उल्लेख करते हुए, महायोगी ऑरोबिंदो तथा कैवल्य धाम के इस संस्थान का सार्थक उल्लेख किया था। ओडिशा के रायरंगपुर स्थित Sri Aurobindo Integral Education Centre में अध्यापन करने का अवसर मुझे मिला था। आज मैं यहां कैवल्य धाम के शताब्दी समारोहों के शुभारंभ में भाग ले रही हूं। इस प्रकार, राष्ट्र-निर्माण से जुड़े इन दोनों संस्थानों से अपने संपर्क को मैं अपना सौभाग्य मानती हूं।

स्वामी कुवलयानन्द जी विद्यालयों में योग शिक्षा के प्रसार को बहुत महत्त्व दिया करते थे। मैं आशा करती हूँ कि कैवल्य धाम संस्थान द्वारा चलाए जा रहे कैवल्य विद्या निकेतन नामक विद्यालय से अन्य विद्यालयों को उदाहरण भी मिलेगा और प्रेरणा भी।

आप सब का यह ‘कैवल्य धाम’ संस्थान योग परंपरा और विज्ञान के प्रभावी संगम का निरंतर प्रवाह करता रहे और विश्व समुदाय को, विशेषकर युवाओं को समग्र विकास के मार्ग पर आगे बढ़ाता रहे, इसी मंगलकामना के साथ मैं अपनी वाणी को विराम देती हूं।

धन्यवाद! 
जय हिन्द! 
जय भारत!

Subscribe to Newsletter

Subscription Type
Select the newsletter(s) to which you want to subscribe.
The subscriber's email address.