जॉर्डन विश्वविद्यालय द्वारा मानद डाक्टरेट की उपाधि प्रदान करते समय भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण
Amman, Jordan : 11-10-2015
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उच्चतर शिक्षा और वैज्ञानिक अनुसंधान के महामहिम श्री लबीब अल खदरा,
जार्डन विश्वविद्यालय के अध्यक्ष महामहिम डॉ. एक्ल़िफ,
संकाय के सदस्यो और शैक्षिक समुदाय के विशिष्ट सदस्यो,
देवियो और सज्जनो,
मैं विख्यात जॉर्डन विश्वविद्यालय की इस विशिष्ट जनसभा को संबोधित करते हुए सम्मानित महसूस कर रहा हूं,जो विश्व के सबसे पुराने और सबसे प्रशंसनीय शिक्षा केंद्रों में से एक है। मैं महामहिम प्रो. तारवनेह को उनके उदार शब्दों के लिए और विश्वविद्यालय को मुझे मानद डाक्टरेट की डिग्री प्रदान करने के लिए धन्यवाद देते हुए अपनी शुरुआत करना चाहूंगा। मैं इस भावाभिव्यक्ति से अभिभूत हूं। मैं इसे जॉर्डन की जनता की ओर से मुझे और मेरे देश के प्रति के समान समझता हूं। मैं लंबे समय से जॉर्डन विश्वविद्यालय की शानदार कीर्ति से परिचित हूं। मैंने इस देश में एक ज्ञानवान समाज के निर्माण में इसके योगदान के बारे में सुना है। मौलिक मानवीय मूल्यों, शैक्षिक स्वतंत्रता,शिक्षा और नवाचार के संवर्धन में इसकी भूमिका किसी से कम नहीं है। आज,अपने संबोधन के लिए, और जॉर्डन की जनता के माध्यम से मैं महसूस कर रहा हूं कि मैं इस प्रतिष्ठित संस्थान से बेहतर अन्य स्थान नहीं चुन सकता था।
देवियो और सज्जनो,
2. भारत जॉर्डन के साथ अपनी मैत्री को अत्यंत महत्त्व देता है। मैं अपने साझे इतिहास से प्रेरित होकर यहां आया हूं और हमारे पारस्परिक सौहार्द से मेरा उत्साह बढ़ा है। जिससे हमारे युगों पुराने संबंधों में नए अध्याय खुल सकेंगे। 1950 से हमारे दोनों के स्वतंत्र राष्ट्र होने से हमारे राजनयिक संबंध स्थापित हो गए थे,साझे हितों के विभिन्न क्षेत्रों में हमारा सहयोग बढ़ा है। भारत उन देशों में से है जिन्होंने अक्तूबर, 1994में जॉर्डन साम्राज्य की इज़राइल के साथ वादी अरबा समझौते का स्वागत किया था। वर्षों से हमारे देशों ने संस्थागत तंत्र स्थापित करके और नियमित उच्च स्तरीय आदान-प्रदान से हमारी साझेदारी को मजबूत किया है। जॉर्डन और भारत में सौहार्द और समझ बनाने के लिए भारत महामहिम स्वर्गीय नरेश हुसैन बिन तलाल (भगवान उनकी आत्मा को शांति दे) और महामहिम नरेश अब्दुल्लाह और रानी रानिया को उनके निजी योगदान के लिए महत्त्व देता है। यह पारस्परिक भावना कुछ उन अनोखी घटनाओं के द्वारा मजबूत हुई है जो हमारे द्विपक्षीय संबंधों के इतिहास में युगांतकारी सिद्ध हुई हैं। भारत शुक्रिया अदा करते हुए जॉर्डन की महत्त्वपूर्ण सहायता के उस समय को भी याद करता है जब वर्ष1991 में खाड़ी संकट के समय 1,50,000भारतीयों को आपात स्थिति में कुवैत और इराक से खाली करना पड़ा था और दोबारा वर्ष2004 में जब इराक में हमारे लोगों को सिविल लड़ाई से पलायन करना पड़ा था। वर्षों से,क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर हमारी सरकारों के बीच अच्छी समझ और संयुक्त राष्ट्र सहित बहुपक्षीय मंचों पर एक दूसरे को समर्थन के द्वारा हमारे संबंधों में बेहतर संवर्धन हुआ है। फिलीस्तीन,मध्य पूर्व शांति प्रक्रिया, सीरिया, इराक और आज इस क्षेत्र में सामने खड़ी चुनौतियों में और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में शीघ्र सुधार की आवश्यकता पर हमारी सहमति इन महत्त्वपूर्ण विषयों पर हमारे साझे दृष्टिकोण को दर्शाती है।
सज्जनो,
3. भारत अरब जगत के साथ सतत् और बढ़ते संबंधों के प्रति दृढ़ संकल्प है। हमारे संबंध प्राचीन और सभ्यतात्मक हैं। पश्चिम एशिया भारत के फैले हुए पड़ोस का प्रमुख भाग है और लाखों भारतीय यहां रहते हैं और काम करते हैं। हम इस क्षेत्र में शांति बनाए रखने के लिए जॉर्डन के सक्रिय और अथक प्रयासों की सराहना करते हैं। भारत ने क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर सभी संबंधितों के साथ फिलीस्तीन-इज़राइल मसलों को उचित समाधान ढूंढ़ने में महामहिम स्वगी्रय नरेश हुसैन (भगवान उनकी आत्मा को शांति दे) और महामहिम नरेश अब्दुल्लाह के दृष्टिकोण की सदैव प्रशंसा की है। जॉर्डन की तरह,फिलीस्तीन के लिए भारत का पारंपरिक समर्थन स्थायी है और स्थिर है जबकि हमारे इज़राइल के साथ मजबूत संबंध हैं। इज़राइल के साथ हमारे संबंध फिलीस्तीन के साथ हमारे संबंधों से इत्तर हैं। भारत एक शांतिपूर्ण समाधान का समर्थन करता है जिसके परिणामस्वरूप एक संप्रभु, स्वतंत्र,व्यवहार्य और संयुक्त फिलीस्तीन राज्य बन सके जिसकी राजधानी पूर्वी येरुसलम हो और जो सुरक्षित और चिह्नित सीमा के भीतर हो। हम फिलीस्तीन के इज़राइल की तरह शांति से रहने की आकांक्षा करते हैं जैसा कि क्वार्टेट रोडमैप और संबद्ध यूएनएससी संकल्प में निहित है। भारत ने सभी बहुपक्षीय मोर्चों पर इस हेतु समर्थन एकत्र करने में अत्यंत सक्रिय भूमिका निभायी है। हमने दोनों पक्षों से संयम बरतने और फिलीस्तीन मसलों का बहुग्राही समाधान निकालने की दिशा में कार्य करने का आग्रह किया है। हमें फिलीस्तीन को बजटीय,आर्थिक और विकासात्मक सहायता पहुंचाने में खुशी रही है। मैं महात्मा गांधी के शब्दों,जिन्हें महामहिम रानी नूर ने भी अपनी अद्यतन पुस्तक में उद्धृत किया था,की याद दिलाना चाहूंगा जो इस प्रकार से है, ‘विश्वास का लंघन’और मैं उद्धृत करता हूं ‘फिलीस्तीन अरब से उसी प्रकार संबंधित है जैसे इंग्लैंड अंग्रेजी से और फ्रांस फ्रांसीसी से’। भारत इस दीर्घ समस्या के सौहार्दपूर्ण समाधान के लिए सभी सम विचारक देशों के साथ कार्य करने के लिए तैयार है।
4. भारत सीरिया में चल रही हिंसा के लिए भी बहुत चिंतित है। हम मृतकों को त्रासदीपूर्ण जान-हानि और निर्दोष महिलाओं और बच्चों सहित विस्थापित किए गए उन लाखों नागरिकों के दु:ख से दुखी हुए हैं। हम जॉर्डन की उनकी घरेलू बाधाओं के बावजूद मानवीय सहायता और 1.4 लाख शरणर्थियों को शरण देने की प्रशंसा करते हैं और हमें विश्वास है कि इस प्रकार की मानव त्रासदी की पहले कभी नहीं हुई। भारत सिरियायी संकट से सभी पक्षों से निरंतर हिंसा त्यागने का आग्रह कर रहा है ताकि एक समावेशी राजनीतिक वार्ता का वातावरण तैयार हो सके। हम इसे सौहार्दपूर्ण,स्थायी, राजनीतिक समाधान के रूप में देखते हैं क्योंकि इस समस्या का कोई सैन्य समाधान नहीं है। हम कहते आ रहे हैं कि इस प्रकार की वार्ता में सीरिया के लोगों की उचित आकांक्षा का ध्यान रखा जाना चाहिए। भारत का विश्वास है कि पश्चिम एशिया में शांति और स्थिरता लाने में सीरिया की प्रमुख और मौलिक भूमिका है। सीरिया में लंबे समय से चले आ रहे संकट ने पहले से ही इस क्षेत्र और इससे परे भी गंभीर प्रभाव डालने शुरू कर दिए हैं।
देवियो और सज्जनो,
5. इराक में कमजोर सुरक्षा भी गंभीर चिंता का विषय है। बढ़ती असहिष्णुता और सांप्रदायिक हिंसा इराक में राजनीतिक समाधान प्राप्त करने के लिए सौहार्दपूर्ण दृष्टिकोण के लिए आवश्यक है। हमारी ओर से भारत अन्य देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने के लिए प्रतिबद्ध है। तथापि,हम इस क्षेत्र में आतंक और संघर्ष से प्रत्यक्षत: प्रभावित हैं। हम इराक के मैत्रीपूर्ण लोगों के लिए स्थिरता और खुशहाली की गंभीर इच्छा रखते हैं जिनके साथ हमारे पुरातन और सभ्यतात्मक निकट संबंध हैं।
6. मुझे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के उपदेशात्मक शब्दों का स्मरण है जो मैं आपके साथ बांटना चाहूंगा क्योंकि वे पहले से कहीं अधिक आज के समय में प्रासंगिक हो गए हैं। मैं कहता हूं, ‘‘मृतकों,अनाथों और बेघरों को क्या फर्क पड़ता है,चाहे विनाश सर्वसत्तावाद या स्वतंत्रता और लोकतंत्र के पावन नाम पर हो...?’’
देवियो और सज्जनो,
7. अरब की उच्च शैक्षिक और सांस्कृतिक परम्परा से हम भारत में भली भांति परिचित ही नहीं हैं,बल्कि यह हमारी अपनी ही अपृथक परंपरा है। हम जानते हैं कि अरब के शिक्षकों ने यूनान,भारत और फारस से शिक्षा को अनुवाद किया और उसे संरक्षित किया,जिसने 12वीं शताब्दी में शिक्षा के क्षेत्र में जन आंदोलन को प्रेरित किया। इस पुनर्रुत्थान से महान अरब गणितज्ञ,वैज्ञानिक और विद्वान पैदा हुए। सिद्धांतों और अवधारणाओं के नियमित प्रसार से विचार,शोध और खोजें हुईं जिसने दुनिया को बदल दिया। हमने भारत में इन महत्त्वपूर्ण आदान-प्रदानों और सहयोगों को बनाए रखा जिससे हमारी शिक्षा,संस्कृति, धर्म,भाषा और जन-संपर्क समृद्ध हुआ। भिन्न-भिन्न कारकों से दशकों में इन संबंधों के कमजोर होने को निश्चित रूप से सुधारा जा सकता है। अरब और एशियायी विचारों और संस्कृति को पुन: जोड़ने से निस्संदेह मानवता एक बार दोबारा समृद्ध होगी। हमारे संबंधों को समृद्ध करने के लिए हमारे दोनों देशों में पर्याप्त जन समर्थन है। मेरी यात्रा जॉर्डन के साथ प्रत्येक क्षेत्र में हमारी साझेदारी को मजबूत करने में मेरी गहरी रुचि को दर्शाती है।
8. हम जॉर्डन के प्रयास की प्रशंसा करते हैं जिसने महामहिम नरेश अब्दुल्लाह के दृष्टिकोण से मार्गदर्शन पाकर जॉर्डन की सांस्कृतिक विरासत की सर्वसमृद्धि को संरक्षित करते हुए अपने शैक्षिक ढांचे को आधुनिक बनाया और अपने युवाओं में वैज्ञानिक प्रवृत्ति का विकास किया। यह इन मूल्यों में आपके निवेश का प्रमाण है कि आपने एक आधुनिक,समावेशी और बहुवादी राष्ट्र का निर्माण किया जबकि शेष क्षेत्र विवाद और अस्थिरता के निरंतर चक्र में फंसा हुआ है। इसलिए आपकी सफलता,इस क्षेत्र में भी उतनी ही महत्त्वूपर्ण है जितनी कि विश्व में भारत ने सदैव सामाजिक अधिकारिता और राष्ट्र की प्रगति में शिक्षा के महत्त्व को पहचाना है। इसकी इस समय बड़ी विशिष्टता और तात्कालिकता है,जब विश्व बेरोजगारी और अतिवाद की चुनौतियों से निपट रहा है। हमारा सर्वाधिक ध्यान मानव संसाधन विकास पर होना चाहिए। हमें छात्रों और व्यावसायिकों को प्रशिक्षित करने में जॉर्डन का साझेदार होने में खुशी है। मुझे बताया गया है कि विभिन्न भारतीय विश्वविद्यालयों में जॉर्डन के छात्र अब कुल 2500 हैं। हमारी शैक्षिक प्रणालियों का उन्नयन होना चाहिए और वे रोजगार के लिए हमारे युवाओं को बेहतर रूप से तैयार करें। ज्ञान अर्थव्यवस्था एक ऐसा क्षेत्र है जहां हमें कट्टर सहयोग प्राप्त है। मित्रो,भारत में 114 उच्चतर शिक्षा के114 संस्थाओं का कुलाध्यक्ष होने की हैसियत से,मैं शैक्षिक आदान-प्रदान बनाए रखने और विचारों के व्यापक प्रसार के लिए प्रतिबद्ध हूं। मेरे साथ सरकारी शिष्टमंडल में प्रमुख भारतीय विवश्विद्यालयों और शैक्षिक संस्थाओं के कुलपति शामिल हैं। मुझे खुशी है कि दिल्ली विश्वविद्यालय और गार्ड विश्वविद्यालय ने आज एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं। अनेक दूसरे भारतीय विश्वविद्यालयों और प्रीमियर संस्थाओं ने भी अपने जार्डियायी समकक्षों के साथ समझौते किए हैं। मुझे बताया गया है कि पेटरा विश्वविद्यालय और तलाल आबू गजलेह विश्वविद्यालय पहले से ही सफल साझेदार हैं। यदि आन लाइन शिक्षा प्रदान करने के लिए समान संबंधों को प्रोत्साहन दिया जाए तो लाभदायक सहयोग के लिए अनेक अवसर मिलेंगे।
9. भारत विश्व में सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के समान उभर रहा है। इसने पिछले दशकों में7 प्रतिशत से अधिक औसत वार्षिक दर का अनुभव किया है और वर्तमान में विश्व में तेजी से बढ़ते उभरते हुए बाजारों में से एक है। भारत बीमा,निर्माण-कार्य, रक्षा और रेलवे क्षेत्रों में विदेश प्रत्यक्ष निवेश का आधिक्य चाहता है। हमने नीतियों के द्वारा इन क्षेत्रों की शुरुआत की है जिससे निवेशकों को प्रोत्साहन मिलेगा। हमने इन क्षेत्रों की शुरुआत की है। जॉर्डन के साथ हमारे द्विपक्षीय व्यापार ने पिछले वर्ष 2बिलियन अमरीकी डॉलर को पार कर लिया है और हमने 2025तक 5 बिलियन अमरीकी डॉलर व्यापार लक्ष्य निर्धारित किया है। यदि हम अपने व्यापार बास्केट में वस्तुओं की शृंखला बढ़ा दें। उच्च प्रौद्योगिकी के शेयर और मूल्यवर्धन उत्पादों को बढ़ा दें और सेवा क्षेत्र में विनियमन और सहयोग में संवर्धन कर दें तो हम इस लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। स्वास्थ्य लाभ,सूचना प्रौद्योगिकी और सूचना प्रौद्योगिकी युक्त सेवाएं,वित्तीय सेवाएं परिवहन और संभार-तंत्र हमारी प्राथमिकताएं हैं।
देवियो और सज्जनो,
10. भारत अपने बाह्य और आंतरिक नीतियों में शांति संसाधन के प्रति प्रतिबद्ध है और रहेगा। हमारे पड़ोस में अस्थिरता हमारी सुरक्षा के लिए खतरा है और हमारी प्रगति में बाध्य है। ऐसे समय में जब समग्र विश्व आतंक के भय से प्रभावित है, यह जानना बहुत महत्त्वपूर्ण है कि भारत इस आशंका से चार दशकों से पहले ही अभिभूत रहा है। हमारे पड़ोस से बढ़ता आतंकवाद हमारी सुरक्षा के लिए बहुत बड़ा खतरा है। हमें विश्वास है कि इस चुनौती से निपटना अंतरराष्ट्रीय समुदाय की प्रमुख प्राथमिकता होनी चाहिए। भारत का विश्वास है कि वे देश,जो उग्रवाद को पहचानकर और उससे निपटने में चयन की नीति को अपना रहे हैं—विशेषकर वे जो अपनी भूमि पर इन तत्त्वों को पनपने दे रहे हैं—अंतत: इन कारकों द्वारा जोखिम में पड़ जाएंगे। भारत जॉर्डन के पाइलट,मुआथ अल-कसाबेह की दर्दनाक हत्या की निंदा करता है। हम जॉर्डन के उग्रवाद की आशंका से निपटने के प्रयास और इस दिशा में आपके क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रयास की सराहना करते हैं। भारत उग्रवाद के विरुद्ध अपनी अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को सक्रिय रूप से मजबूत कर रहा है। हमें सभी देशों द्वारा पूर्ण और सार्वभौमिक अनुपालन चाहिए,जो संयुक्त राष्ट्र, विशेषकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद संकल्प1373(2011) और 2006में अभिग्रहित सार्वभौमिक आतंकवादरोधी संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में आतंकवाद रोधी उपाय युक्त हों। भारत शीघ्र निष्कर्ष के तौर पर संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों के सामूहिक प्रयास और अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद पर वृहत अभिसमय की अपेक्षा करता है। यह दशकों से लंबित है। इस वृहत अभिसमय से आतंकवादी गतिविधियों के लिए सुविधा देने या अपनी भूमि पर उसे पनाह देने से राष्ट्रों को रोकने संबंधी मानव हित पूरा होगा। इससे राष्ट्र आतंकवाद का दमन करने और अपराधियों,दुस्साहक वित्तदाताओं, सुविधादाताओं और सहयोगियों को सजा दिलवाने में सहयोगी होंगे।
11. मित्रो,महामहिम नरेश अब्दुल्लाह के साथ बैठक में और जॉर्डन के यथातथ्य नेतृत्व में,मैंने इन विषयों और उद्देश्यों पर प्रकाश डाला। —विशेषकरइस क्षेत्र में शांति के उद्देश्य। मुझे विश्वास है कि महामहिम नरेश अब्दुल्लाह-II,के मार्गदर्शन में जॉर्डन अपने लोगों के विकास और प्रगति के लिए किए गए सभी प्रयासों से निश्चित ही सकारात्मक परिणाम निकाल पाएगा। पूरा विश्व भी इस क्षेत्र की बड़े समुदायों की बहाली और दु:ख से उबरने की उम्मीद करता है। मैं महामहिम और जॉर्डन की सरकार को इस प्रक्रिया में नेतृत्व के लिए सुदृढ़ता और पूर्ण सफलता की कामना करता हूं।
12. भारत और जॉर्डन के बीच द्विपक्षीय कार्यसूची पर,मैं पहले से अधिक विश्वस्त हूं कि हम उचित मार्ग पर आगे बढ़ रहे हैं। हम दोनों महसूस करते हैं कि हमें अपने परस्पर लाभ के लिए कार्य करने और सहयोगी होने के लिए इस अवसर का लाभ उठाना चाहिए। मेरी यात्रा के दौरान बनी समझ से नि:संदेह हमारे सहयोग को नए स्तर पर पहुंचाने के लिए परस्पर समझ में संवर्धन होगा।
13. अंतत: देवियो और सज्जनो,जैसा कि मैं आज अपने चारों ओर युवा पीढ़ी के युवा और सकारात्मक चेहरे देख रहा हूं। मैं इस ऊर्जा से प्रेरित हुआ हूं और सार्थक होने की उम्मीद करता हूं। मैं आपमें आपके ज्ञानवान पीढ़ी द्वारा निर्देशित भविष्य और एक बेहतर और प्रकाशित विश्व देखता हूं। मैं यहां पर एकत्रित सभी छात्रों के शैक्षिक भविष्य में उनकी प्रत्येक सफलता की कामना करता हूं। ईश्वर आपके शांति और राष्ट्र निर्माण के प्रयासों में आपको सफलता दे।
14. एक बार पुन:,मैं आप सबका धन्यवाद करता हूं और आपके द्वारा जॉर्डन की जनता को आपके महान देश की प्रगति और खुशहाली के लिए गहरी शुभकामनाएं भेजता हूं।
धन्यवाद।