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पापुआ न्यू गिनिया विश्वविद्यालय में भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का संबोधन

पोर्ट मोर्शबी, पापुआ न्यूगिनिया : 29-04-2016

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पापुआ न्यू गिनिया विश्वविद्यालय में भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का संबोधन

संकाय के विशिष्ट सदस्यगण, प्रिय विद्यार्थियो और सज्जनो,

आज प्रात: आपके बीच उपस्थित होकर मुझे अत्यंत प्रसन्नता हो रही है। इस सुन्दर देश में अपने आगमन के बाद से मुझे और मेरे शिष्टमंडल को प्रदान किए हार्दिक आतिथ्य सत्कार से मैं अभिभूत हूं। मैं आपके लिए भारत की जनता की शुभकामनाएं लेकर आया हूं।

इस ऐतिहासिक यात्रा पर, जो पापुआ न्यू गिनिया की किसी भी भारत के राष्ट्रपति की प्रथम राजकीय यात्रा है,मेरे साथ केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री,डॉ. संजीव कुमार बालियान तथा भारत के विभिन्न राजनीतिक दलों और प्रदेशों का प्रतिनिधित्व करने वाले भारतीय संसद के वरिष्ठ सदस्य हैं।

इस सभागार में प्रवेश से पहले, मुझे1997 में पापुआ न्यू गिनिया के तत्कालीन प्रधान मंत्री स्वर्गीय माननीय बिल स्टेक द्वारा स्थापित महात्मा गांधी की प्रतिमा पर श्रद्धांजलि अर्पित करने का अवसर प्राप्त हुआ। भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का आज भी पूरे विश्व में शांति के प्रकाश स्तंभ तथा अहिंसा के दूत के रूप में सम्मान किया जाता रहा है। उनकी संकल्पना और शिक्षाएं मानवता को सौहार्दपूर्ण सह-अस्तित्व तथा परस्पर सम्मान के सच्चे मूल्यों तथा सभी व्यक्तियों की समानता और स्वतंत्रता के लिए मिलकर कार्य करने की आवश्यकता का स्मरण करवाती हैं। असहिष्णुता और अतिवाद से निरंतर पीड़ित इस विश्व में इस महापुरुष का जीवन और संदेश सत्य तथा वैश्विक भाईचारे की शक्ति का एक प्रेरक उदाहरण बना हुआ है।

महामहिमगण, देवियो और सज्जनो,

मुझे इस विश्वविद्यालय की अपनी यात्रा की स्मृति में एक वटवृक्ष का पौधा लगाने का सम्मान प्राप्त हुआ है। वटवृक्ष का चयन अत्यंत प्रतीकात्मक है क्योंकि वटवृक्ष भारत गणराज्य का एक राष्ट्रीय वृक्ष है तथा हमारे लोगों द्वारा पवित्र और शाश्वत जीवन का प्रतीक माना जाता है। मुझे विश्वस है कि इसकी शाखाओं के बढ़ने और इसके विस्तार के साथ,यह वृक्ष भारत और पापुआ न्यू गिनिया की जनता के बीच स्थायी मैत्री को प्रकट करेगा।

गांधीजी शिक्षा को चहुमुखी व्यक्तित्व विकास के एक समेकित दृष्टिकोण के रूप में देखा करते थे। वह शिक्षण और वास्तविक शिक्षा,ज्ञान और वास्तविक प्रज्ञा तथा साक्षरता और जीवन के के बीच सच्ची शिक्षा पर बल दिया करते थे। हम भारतीयों ने इन सिद्धांतों का पालन करने का प्रयास किया है क्योंकि हमने अपने राष्ट्रीय नियोजन तथा मानव संसाधन विकास कार्यक्रम के माध्यम से शिक्षा क्षेत्र के अपने लक्ष्यों को प्राप्त करते हैं।

सफलता के बाद, भारत को अन्य विकासशील देशों के साथ अपनी तकनीकी विशेषज्ञता को बांटने में खुशी होती है। पिछले वर्ष अगस्त में दिल्ली और जयपुर में भारत-प्रशांत द्वीप समूह सहयोग मंच के द्वितीय शिखर सम्मेलन में, हमने अपने भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग कार्यक्रम के अंतर्गत प्रशांत द्वीप समूह देशों के विद्यार्थियों के लिए निर्धारित छात्रवृत्तियों की संख्या को दुगुना करने की घोषणा की थी। मैं पापुआ न्यू गिनिया के और अधिक विद्यार्थियों को इन योजनाओं का लाभ उठाने तथा हमारे उच्च शिक्षा संस्थानों और उत्कृष्टता केन्द्रों में भाग लेने के लिए आमंत्रित करता हूं।

अतीत में भारतीय उच्च शिक्षा प्रणाली सम्पूर्ण विश्व में प्रसिद्ध थी। नालंदा,तक्षशिला, विक्रमशिला,वल्लभी, सोमपुरा और ओदांतपुरी जैसी कुछ उच्च शिक्षा पीठों का ईसा पूर्व छठी शताब्दी के आरंभ से12वीं ईसवी तक लगभग अठारह सौ वर्ष तक विश्व की उच्च शिक्षा प्रणाली पर आधिपत्य था। उन्होंने सुदूर भागों के विद्वानों को आकर्षित किया। तक्षशिला विश्वविद्यालय चार सभ्यताओं का संगम था। तथापि हम उस प्रतिष्ठा का दावा वर्तमान में नहीं कर सकते। इसलिए अब हम भारत के विभिन्न हिस्सों में उच्च शिक्षण संस्थाएं तथा प्रौद्योगिक संस्थान स्थापित करके शिक्षा की गुणवत्ता पर जोर दे रहे हैं। हमारे यहां730 विश्वविद्यालय, 13500कॉलेज, 16 भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान तथा30 राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान हैं। दो भारतीय संस्थानों को,विश्व वरीयता प्रणाली के तहत 200 सर्वोच्च विश्वविद्यालयों में स्थान दिया गया है। दो अन्य को विश्व के20 सर्वोच्च लघु विश्वविद्यालयों में स्थान दिया गया है।

मित्रो,

यद्यपि भारत समुद्री और महाद्वीपों के द्वारा इस क्षेत्र से अलग है परंतु हम भारत और प्रशांत महासागर के द्वीप देशों के बीच विद्यमान घनिष्ठ मैत्री को अत्यधिक महत्त्व देते हैं। हमारा संबंध शताब्दियों के दौरान हमारे सांस्कृतिक और आर्थिक आदान-प्रदान द्वारा निर्मित ऐतिहासिक संबंधों की सशक्त नींव पर टिका हुआ है। इन संबंधों ने,हमारी सरकारों और जनता के बीच परस्पर समझ बूझ में योगदान दिया है तथा ये हमारे साझे हित के क्षेत्रों में सहयोग की हमारी साझी आकांक्षा के मूल केंद्र में स्थित है।

संयुक्त राष्ट्र और अन्य बहुपक्षीय मंचों पर हमारे दोनों देशों के बीच सहयोग भी घनिष्ठ और सार्थक रहा है। भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट की भारतीय दावेदारी तथा द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद स्थापित इस विश्व संस्था के सुधार के लिए पापुआ न्यू गिनिया के दृढ़ समर्थन की सराहना करता है। वर्तमान में,संयुक्त राष्ट्र को बने हुए सात दशक हो चुके हैं,इसलिए हम 21वीं शताब्दी के अत्यंत बदले हुए विश्व में इसकी संस्थाओं को प्रासंगिक और प्रभावी बनाने की तात्कालिक जरूरत पर सहमत हैं। हम संयुक्त राष्ट्र तथा अन्य बहुपक्षीय मंचों पर पापुआ न्यू गिनिया के निरंतर सहयोग और सहायता को महत्त्वपूर्ण मानते हैं।

नवम्बर, 2014 में फिजी में आयोजित भारत-प्रशांत द्वीप समूह सहयोग मंच के प्रथम शिखर सम्मेलन के दौरान,भारत के माननीय प्रधान मंत्री, श्री नरेंद्र मोदी ने प्रशांत द्वीप देशों की मदद के लिए अनेक पहलों की घोषणा की। इनका उद्देश्य विकास लक्ष्यों और आकांक्षाओं की दिशा में उनके प्रयासों को सहयोग देना तथा जलवायु परिवर्तन और सतत विकास से संबंधित विशेष चिंताओं पर ध्यान देना था। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि मेरी सरकार ने वित्तीय सहायता,पापुआ न्यू गिनिया में भारतीय विशेषज्ञों की प्रतिनियुक्ति,भारत में आपके नागरिकों को प्रशिक्षण तथा वीजा प्रक्रिया के सरलीकरण के माध्यम से अपना वचन पूरा किया है जिसका कल मेरे सम्मान में आयोजित राजभोज में पापुआ न्यू गिनिया सरकार ने प्रत्युत्तर दिया है।

हम मानते हैं कि पापुआ न्यू गिनिया की भारत की विस्तारित ‘एक्ट ईस्ट’ नीति तमें प्रमुख भूमिका है और हम इस राष्ट्र को प्रशांत द्वीप देशों के साथ घनिष्ठ सहयोग के द्वार के रूप में देखते हैं। भारत नवीकरणीय ऊर्जा,सतत कृषि तथा खाद्य उत्पादकता को बढ़ाने के सर्वोत्तम तरीकों के क्षेत्र में ज्ञान और अनुभव को बांटने के लिए तैयार है। भारत और पापुआ न्यू गिनिया के बीच अनेक पूरकताएं हैं जिन जिन पर हमारे द्विपक्षीय सहयोग आधारित होने चाहिए। हम स्थानीय रूप से प्रासंगिक, कुशल और सफल रूप में सरलता से ढाली जाने वाली सहज और किफायती प्रौद्योगिकियों पर विशेष बल देते हुए,कौशल विकास और नवान्वेषण पर ध्यान दे रहे हैं। हमारे सार्वजनिक उद्यम और हमारे निजी क्षेत्र पापुआ न्यू गिनिया के साथ इसके खनिज,समुद्री और हाइड्रोकार्बन संसाधनों के प्रयोग में कार्य करने के लिए उत्सुक हैं। अपने संयुक्त प्रयासों पर जोर देने वाले क्षेत्रों की पहचान करते हुए,मैं कहना चाहूंगा कि इस क्षेत्र में सहयोग की सीमा नहीं है। हमें अपने सहयोग के लाभ अपनी जनता तक शीघ्र पहुंचाने चाहिए।

युवा विद्यार्थियों, समाप्ति से पूर्व,भावी प्रयासों में आपकी सफलता के लिए कुछ शब्द :

आपके सपने साकार तभी होंगे जब आप साहस के साथ उन्हें पूरा करेंगे;सकारात्मक परिवर्तन का माध्यम बनने में कभी ना हिचकें;अपनी सफलता को केवल व्यक्तिगत उपलब्धियों के रूप में नहीं,बल्कि अपने आसपास के लोगों के सौहार्द और उन्नति से परखें।

इन्हीं शब्दों के साथ, मैं आपको तथा आपकी ओर से पापुआ न्यू गिनिया की जनता को इस स्मरणीय यात्रा के लिए अपना हार्दिक धन्यवाद देता हूं। हमारे राष्ट्रों के बीच मैत्री अनवरत बढ़ती रहे!

धन्यवाद!

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