भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का जनजातीय समागम में सम्बोधन (HINDI)
शहडोल : 15.11.2022
आज 15 नवंबर के दिन, पूरे देश में मनाए जा रहे ‘जनजातीय गौरव दिवस’ पर, मैं सभी देशवासियों को हार्दिक बधाई देती हूं।
आज यहां आने से पहले, धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा के गांव उलिहातू में जाने और उनकी प्रतिमा को पुष्पांजलि अर्पित करने का सौभाग्य मुझे मिला है। भगवान बिरसा की जयंती के दिन, उनकी प्रतिमा का दर्शन करके, मैं स्वयं को धन्य महसूस कर रही हूं, और आज का यह मंगलवार का दिन मेरे लिए पूरी तरह मंगलमय हो गया है।
देवियो और सज्जनो,
राष्ट्रपति के रूप में, मध्य प्रदेश की अपनी पहली यात्रा में, मुझे इतनी बड़ी संख्या में यहां उपस्थित भाई-बहनों के बीच आकर, बहुत प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है। मुझे बताया गया है कि यहां उपस्थित भाई-बहनों में अधिक संख्या में हमारे जनजातीय भाई-बहन आए हुए हैं। यहां गोंड, बैगा, भील, भिलाला, कोरकू, सहरिया, भारिया, कोल तथा अन्य सभी जनजातीय समुदायों के भाई-बहनों का उपस्थित होना, मेरे प्रति उनके विशेष स्नेह और उत्साह का परिचय देता है। मुझे यह भी बताया गया है कि अनेक देशवासी इस कार्यक्रम से live-telecast तथा web-cast के जरिए जुड़े हुए हैं। इस समागम के साथ, इतने व्यापक स्तर पर, लोगों को जोड़ना, एक उपयोगी पहल है। जनजातीय राजाओं के राज्य काल में, प्रभावशाली समृद्धि से भरपूर रह चुका यह क्षेत्र, एक बार फिर, आधुनिक विकास की उतनी ही प्रभावशाली गाथाएं लिखेगा, यह मेरी शुभकामना भी है, और मेरा दृढ़ विश्वास भी है।
हमारे देश में जनजातीय समुदाय की कुल आबादी लगभग दस करोड़ है। इसमें डेढ़ करोड़ से अधिक की आबादी मध्य प्रदेश में है, जो किसी भी राज्य में जनजातियों की सबसे बड़ी आबादी है। इसलिए मध्य प्रदेश के इस क्षेत्र में जनजातीय समागम का आयोजन सर्वथा प्रासंगिक है। इस आयोजन के लिए मैं राज्य सरकार को, विशेष रूप से, राज्यपाल महोदय और मुख्यमंत्री महोदय को धन्यवाद देती हूं।
मध्य प्रदेश के चंबल, मालवा, बुंदेलखंड, बघेलखंड और महाकोशल, इन सभी क्षेत्रों की सांस्कृतिक विरासत को समृद्ध बनाने में, जनजातीय समुदायों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
आज जनजातीय विभूतियों पर केन्द्रित प्रदर्शनी का अवलोकन करके मुझ में एक विशेष प्रेरणा का संचार हुआ है। जनजातीय विकास गाथा पर केन्द्रित प्रदर्शनी को देखकर मुझे प्रसन्नता हुई है। जनजातीय समुदायों में स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों के संदर्भ में आज ‘सम्पूर्ण स्वास्थ्य कार्यक्रम’ का शुभारंभ करना अत्यंत सराहनीय पहल है। Engineering, Medicine तथा Law के क्षेत्रों में प्रवेश हेतु आयोजित कठिन चयन परीक्षाओं में सफलता प्राप्त करने वाले जो विद्यार्थी आज सम्मानित हुए हैं, उन्हें देखकर, देश के उज्ज्वल भविष्य के बारे में, मेरा विश्वास और अधिक दृढ़ हुआ है। मैं उन सभी विद्यार्थियों को बधाई और आशीर्वाद देती हूं। ‘भगवान बिरसा मुंडा स्व-रोजगार योजना’ तथा ‘टंट्या मामा आर्थिक कल्याण योजना’ जैसे प्रकल्पों से जनजातीय समाज के लोगों की प्रगति को शक्ति मिलेगी। मैं आज स्वीकृति पत्र प्राप्त करने वाले जनजातीय भाई-बहनों को बधाई देती हूं। आज महिला उद्यमियों का सम्मान किया गया है। मैं इसकी सराहना करती हूं। मध्य प्रदेश में पंचायत संबंधी नियमों के अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार से जुड़ी नियम पुस्तिका का विमोचन प्रसन्नता का विषय है। मुझे विश्वास है कि जनजातीय क्षेत्रों के सशक्तीकरण के लिए इन नियमों का प्रभावी उपयोग किया जाएगा।
समाज के वंचित वर्गों के सशक्तीकरण के इन प्रयासों के लिए मैं राज्यपाल, श्री मंगुभाई पटेल जी, मुख्यमंत्री, श्री शिवराज सिंह चौहान जी तथा राज्य सरकार की पूरी टीम को साधुवाद देती हूं। राष्ट्रीय स्तर पर चलाए जा रहे विकास तथा कल्याण कार्यों के लिए केंद्र सरकार में जनजातीय कार्य मंत्री श्री अर्जुन मुंडा जी की भी मैं सराहना करती हूं। मैं मानती हूं कि आदिवासी समाज का विकास, पूरे देश के विकास से जुड़ा हुआ है। इसलिए, आज जिन प्रकल्पों का आरंभ किया गया है, वे सभी राष्ट्रीय महत्व के हैं।
देवियो और सज्जनो,
मध्य प्रदेश के ही एक सपूत ने, अखिल भारतीय स्तर पर, जनजातीय समाज के कल्याण के लिए,ऐतिहासिक योगदान दिया है। मध्य प्रदेश में पले-बढ़े, पूर्व प्रधानमंत्री, श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी जी जब प्रधानमंत्री थे तब उन्होंने जनजातीय कार्य मंत्रालय का गठन किया था। इस मंत्रालय के गठन से जनजातीय कल्याण के कार्यों को समग्रता के साथ राष्ट्रीय स्तर पर आगे बढ़ाने का मार्ग प्रशस्त हुआ। मुझे प्रसन्नता है कि अटल जी की सोच को आगे बढ़ाते हुए जनजातीय कार्य मंत्रालय, अनेक विकास एवं कल्याण योजनाओं को कार्यरूप दे रहा है।
देवियो और सज्जनो,
अधिकांश जनजातीय क्षेत्र वन एवं खनिज सम्पदा से समृद्ध रहे हैं। हमारे आदिवासी भाई बहन प्रकृति पर आधारित जीवन यापन करते हैं और सम्मानपूर्वक प्रकृति की रक्षा भी करते हैं। ब्रिटिश हुकूमत के दौरान प्राकृतिक संपदा को शोषण से बचाने के लिए जनजातीय समुदाय के लोगों ने भीषण संघर्ष किए थे और अनगिनत लोग शहीद भी हुए थे। उनके बलिदान से ही वन संपदा का संरक्षण, काफी हद तक, संभव हो पाया था। आज के समय में climate change और global warming की चुनौतियों को देखते हुए, जनजातीय समाज की जीवन शैली तथा वन-संरक्षण के प्रति उनकी दृढ़ता से सभी को शिक्षा लेने की जरूरत है।
जनजातीय समाज द्वारा मानव समुदाय, वनस्पतियों तथा जीव-जंतुओं को समान महत्व दिया जाता है। आदिवासी समाज में व्यक्ति के स्थान पर समूह को,प्रतिस्पर्धा की जगह सहकारिता को और विशिष्टता की जगह समानता को अधिक महत्त्व दिया जाता है। स्त्री-पुरुष के बीच की समानता भी आदिवासी समाज की विशेषता है। जनजातीय समाज में जेंडर-रेशियो, सामान्य आबादी की तुलना में बेहतर है। जनजातीय समाज की ये विशेषताएं सभी देशवासियों के लिए अनुकरणीय हैं।
देवियो और सज्जनो,
न्याय के हित में सर्वस्व बलिदान करने की भावना, जनजातीय समाज की विशेषता रही है। रानी दुर्गावती ने सोलहवीं सदी में अपने प्राणों की आहुति देते हुए आत्म-गौरव की रक्षा की थी। उनके बलिदान के लगभग 300 वर्ष बाद उनके ही वंश के राजा शंकर शाह को अंग्रेजों का विरोध करने के कारण मृत्युदंड दिया गया था। मध्य प्रदेश प्रशासन द्वारा इन महान विभूतियों की स्मृति को बनाए रखने और भावी पीढि़यों को उनकी गाथाओं से परिचित कराने के प्रयासों की मैं सराहना करती हूं।
हमारे स्वाधीनता संग्राम में, भिन्न-भिन्न विचारधाराओं और गतिविधियों की भूमिका रही है। उस संग्राम के इतिहास में, जनजातीय समुदायों द्वारा किए गए विद्रोहों की अनेक धाराएं भी शामिल हैं। झारखंड क्षेत्र के भगवान बिरसा मुंडा और सिद्धू-कान्हू, मध्य प्रदेश के टंट्या भील तथा भीमा नायक, आंध्र प्रदेश के अल्लुरी सीताराम राजू, मणिपुर की रानी गाइडिनलियु तथा ओडिशा के शहीद लक्ष्मण नायक जैसे अनेक वीरों और वीरांगनाओं ने जनजातीय गौरव को बढ़ाया है तथा देश के गौरव को भी बढ़ाया है। मध्य प्रदेश के अनेक क्रांतिकारी योद्धाओं में किशोर सिंह, खाज्या नायक, रानी फूलकुंवर, सीताराम कंवर, महुआ कोल, शंकर शाह और रघुनाथ शाह जैसी अनेक विभूतियां शामिल हैं। ‘छिंदवाड़ा के गांधी’ के नाम से सम्मानित श्री बादल भोई ने स्वाधीनता संग्राम के लिए अहिंसा का मार्ग चुना था। ऐसे सभी स्वाधीनता सेनानियों को मैं सादर नमन करती हूं।
देवियो और सज्जनो,
इस क्षेत्र में रहने वाले बैगा समुदाय के लोग, जड़ी-बूटियों तथा परंपरागत चिकित्सा के बारे में अद्भुत जानकारी रखते हैं। बैगा समुदाय के चिकित्सकों द्वारा असाध्य रोगों का उपचार करने का विवरण प्राय: सुनने में आता है। बैगा भाई-बहनों का यह परंपरागत ज्ञान एक अनमोल विरासत है जो हम सभी के लिए बहुत उपयोगी भी है। इस ज्ञान को व्यवस्थित रूप से लिपिबद्ध करना, इसका प्रचार-प्रसार करना तथा विज्ञान-सम्मत उपचारों का जनहित में अधिक से अधिक उपयोग करना, लाभदायक सिद्ध होगा। इसी वर्ष सितंबर में आयोजित 68वें ‘राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह’ में, मुझे मध्य प्रदेश सरकार द्वारा, बैगा समुदाय के जीवन और सांस्कृतिक परंपरा के विषय पर निर्मित फिल्म, ‘मांदल के बोल’ को पुरस्कार प्रदान करने का अवसर मिला था। ऐसे कलात्मक प्रयासों से, लोगों में जनजातीय समाज के प्रति संवेदनशीलता बढ़ती है।
यह खुशी की बात है कि पिछले कुछ वर्षों से, केंद्र सरकार और राज्य सरकारों ने जनजातीय समुदायों के विकास के लिए विशेष कदम उठाए हैं। समग्र राष्ट्रीय विकास और जनजातीय समुदाय का विकास एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। इसलिए, ऐसे अनेक प्रयास किए जा रहे हैं जिनसे जनजातीय समुदायों की अस्मिता बनी रहे, उनमें आत्म-गौरव का भाव बढ़े और साथ ही वे आधुनिक विकास से लाभान्वित भी हों। समरसता के साथ जनजातीय विकास की यही मूल भावना सबके लिए लाभदायक है।
पिछले कुछ वर्षों से, जनजातीय समुदाय के प्रतिभाशाली लोगों द्वारा पर्यावरण-संरक्षण, समाज-सुधार, लोक-कला, लोक-संस्कृति, लोक-साहित्य, खेल-कूद, तथा अन्य क्षेत्रों में प्रभावशाली योगदान के लिए उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कारों, यानि पद्म पुरस्कारों से सम्मानित किया जा रहा है। इससे जनजातीय भाई-बहनों के आत्म-विश्वास और आत्म-गौरव में वृद्धि हो रही है तथा सभी देशवासी उनके योगदान से परिचित और प्रभावित हो रहे हैं।
देवियो और सज्जनो,
शिक्षा और जागरूकता ही, किसी भी समुदाय के विकास का, सबसे प्रभावी माध्यम होते हैं। अच्छी स्कूली शिक्षा के आधार पर ही अच्छी उच्च-शिक्षा संभव हो पाती है। मुझे यह देखकर प्रसन्नता होती है कि जनजातीय समुदाय के बच्चों के लिए स्थापित किए गए एकलव्य विद्यालयों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है तथा उन विद्यालयों में आधुनिक सुविधाएं भी प्रदान की जा रही हैं। मुझे पूरा विश्वास है कि ऐसे अच्छे विद्यालयों से शिक्षा प्राप्त करके निकलने वाले जनजातीय समुदाय के बच्चे देश के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान देंगे। वर्ष 2047 जब हमारे देशवासी स्वाधीनता की शताब्दी मनाएंगे तब आज के हमारे विद्यार्थी एक विकसित भारत के नागरिक के रूप में आत्म-गौरव का अनुभव करेंगे।
मैं एक बार फिर, इस जनजातीय समागम में उपस्थित आप सभी भाइयों और बहनों, तथा सभी देशवासियों को ‘जनजातीय गौरव दिवस’ की बधाई देती हूं।
धन्यवाद!
जय हिन्द!