भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का गुरु घासीदास विश्वविद्यालय के 10वें दीक्षांत समारोह में सम्बोधन (HINDI)
बिलासपुर : 01.09.2023
आज उपाधियां प्राप्त करने वाले सभी विद्यार्थियों को मैं हार्दिक बधाई देती हूं। उनके माता-पिता और अभिभावकों को भी मैं बधाई देती हूं। विद्यार्थियों की सफलता में योगदान देने के लिए प्राध्यापकों तथा विश्वविद्यालय की टीम के सदस्यों की मैं सराहना करती हूं।
मुझे यह देखकर बहुत प्रसन्नता हुई है कि आज स्वर्ण पदक प्राप्त करने वाले 76 विद्यार्थियों में छात्राओं की संख्या 45 है, जो लगभग 60 प्रतिशत है। यह प्रदर्शन इस दृष्टि से और भी अधिक प्रभावशाली है कि कुल विद्यार्थियों में छात्राओं की संख्या लगभग 43 प्रतिशत है। छात्राओं के बेहतर प्रदर्शन के पीछे उनकी अपनी प्रतिभा और लगन के साथ-साथ उनके परिवारजनों तथा इस विश्वविद्यालय की टीम का योगदान भी है। मैं छात्राओं की स्वर्णिम सफलता के लिए उनको बधाई देती हूं।
शिक्षा के माध्यम से महिला सशक्तीकरण के इस परिवर्तनकारी अभियान में सब का सहयोग और अधिक होना चाहिए ताकि छात्राओं की कुल संख्या भी छात्रों के बराबर हो सके। ऐसी अपेक्षा मैं इसलिए भी व्यक्त कर रही हूं कि हमारे देश की कुल आबादी में महिलाओं की संख्या लगभग आधी है तथा हमारे केंद्रीय विश्वविद्यालयों में राष्ट्रीय मापदण्डों की स्थापना होनी चाहिए।
देवियो और सज्जनो,
मुझे बताया गया है कि विश्वविद्यालय द्वारा विद्यार्थियों की भागीदारी के साथ समाज सेवा के कार्यक्रम चलाए जाते हैं। मैं आशा करती हूं कि ऐसे कार्यक्रमों के अच्छे परिणाम सामने आएंगे और विश्वविद्यालय द्वारा उनकी जानकारी दी जाएगी। आपके विश्वविद्यालय के आस-पास के क्षेत्र में आदिवासी समुदाय के लोगों की काफी बड़ी संख्या है। राज्य की लगभग एक-तिहाई आबादी जनजातीय समुदायों की है। जनजातीय समुदाय की समृद्ध संस्कृतियों से प्रकृति के प्रति संवेदनशीलता, सामुदायिक जीवन में समानता का भाव तथा महिलाओं की भागीदारी जैसे जीवन-मूल्यों को सीखा जा सकता है। इस विश्वविद्यालय द्वारा भारतीय भाषाओं में पुस्तकें प्रकाशित करने में प्रभावशाली योगदान दिया जा रहा है। इसके लिए मैं विश्वविद्यालय की टीम की सराहना करती हूं।
आधुनिक विश्व में जो व्यक्ति, संस्थान और देश, विज्ञान और technology को अपनाने में तथा नवाचार या innovation में आगे रहेंगे, वे अधिक प्रगति करेंगे। विज्ञान और technology के विकास में समुचित सुविधाओं, वातावरण और प्रोत्साहन का योगदान होता है। मुझे यह बताया गया है कि इस विश्वविद्यालय में आधुनिक प्रयोगशालाएं स्थापित की गयी हैं। मुझे यहाँ स्थापित किए जा रहे Accelerator Based Research Centre के बारे में जानकर प्रसन्नता हुई है। मैं आशा करती हूँ कि यह Centre, उपयोगी अनुसंधान के माध्यम से अपनी पहचान बनाएगा।
देवियो और सज्जनो,
हाल ही में, भारत ने चंद्रयान-3 अभियान को सफलता-पूर्वक सम्पन्न किया और सभी देशवासियों में उत्साह की लहर दौड़ गई। उस सफलता के पीछे वर्षों के परिश्रम से अर्जित योग्यता तथा लक्ष्य के प्रति निष्ठा तो थी ही, मार्ग में आने वाली रुकावटों और असफलताओं से हतोत्साहित हुए बिना आगे बढ़ते रहने की भावना भी थी। व्यक्तिगत जीवन में आगे बढ़ने का भी यही मूल मंत्र है – निरंतर परिश्रम से अर्जित दक्षता, लक्ष्य के प्रति निष्ठा तथा तात्कालिक चुनौती या असफलता से सीख लेकर आगे बढ़ते रहने का जज्बा।
राष्ट्रीय और अंतर-राष्ट्रीय पृष्ठभूमि का उदाहरण देकर मैं व्यक्तिगत जीवन में उसकी सार्थकता को रेखांकित करना चाहूंगी। आज भारत अपने वैज्ञानिकों तथा इंजीनियरों के अथक परिश्रम तथा प्रतिभा के बल पर विश्व के Nuclear Club तथा Space Club का सम्मानित सदस्य है। Nuclear तथा Space के क्षेत्रों में जो भी अंतर-राष्ट्रीय निर्णय लिए जाएंगे उसमें भारत की भूमिका रहेगी। भारत द्वारा प्रस्तुत किए गए High Science at Low Cost के उदाहरण को देश-विदेश में सराहा जाता है। अन्तरिक्ष और परमाणु विज्ञान के क्षेत्रों में भारत को कभी-कभी अंतर-राष्ट्रीय स्तर पर असहयोग का सामना भी करना पड़ा है। लेकिन, तमाम चुनौतियों के बावजूद हमारे कर्मठ वैज्ञानिकों तथा इंजीनियरों ने भारत की साख मजबूत की है।
इसी प्रकार, उच्च स्तरीय व्यक्तिगत योग्यता प्राप्त करके आप सब समाज, राज्य और देश के महत्वपूर्ण निर्णयों में भागीदारी कर सकते हैं। लेकिन, ऐसी योग्यता प्राप्त करने की दिशा में अनेक चुनौतियां भी आएंगी। चुनौतियों के बीच अवसर उत्पन्न करना सफलता प्राप्त करने का प्रभावी तरीका है।
देवियो और सज्जनो,
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भारतीय परम्पराओं से जुड़े रहकर युवाओं द्वारा 21वीं सदी की चुनौतियों के अनुरूप विश्व-स्तरीय दक्षता प्राप्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। हमारे देश की परम्पराएं अत्यंत समृद्ध हैं और उन्हें बचाए रखने में अनेक विभूतियों के संघर्षों और प्रयासों का अमूल्य योगदान रहा है। इस विश्वविद्यालय के नाम का महत्व इसलिए और भी अधिक बढ़ जाता है कि इसी क्षेत्र में अवतरण करने वाले गुरु घासीदास जी ने ‘मनखे-मनखे एक समान’ अर्थात ‘सभी मनुष्य एक समान हैं’ का अमर और जीवंत संदेश प्रवाहित किया था। आज से लगभग 250 वर्ष पहले उन्होंने वंचितों, पिछड़ों और महिलाओं की समानता के लिए समाज सुधार का बीड़ा उठाया था। समानता और सामाजिक समरसता के उन आदर्शों पर चलकर ही आज के युवा संवेदनशीलता के साथ सबके हित के बारे में सोच सकते हैं और श्रेष्ठतर समाज का निर्माण कर सकते हैं।
प्यारे विद्यार्थियो,
रायपुर का हवाई अड्डा स्वामी विवेकानंद के गौरवशाली नाम से सुशोभित है। स्वामीजी लोगों को भय-मुक्त रहने की सलाह देते थे। उन्होंने खेल-कूद और शारीरिक स्वास्थ्य के महत्व को भी रेखांकित किया था। स्वामीजी आत्म-विश्वास की प्रतिमूर्ति थे। वर्ष 1893 के विश्व और तत्कालीन भारत के बारे में सोचिए। स्वामीजी ने उस वर्ष शिकागो में भारतीय संस्कृति की श्रेष्ठता का जयघोष किया था और विश्व समुदाय का सम्मान अर्जित किया था। उस समय भारत में गुलामी की मानसिकता अपने चरम पर थी, साम्राज्य-वाद तथा पश्चिमी देशों का सम्पूर्ण वर्चस्व था तथा एशिया के लोग हीनता की भावना से ग्रस्त थे। ऐसे वैश्विक वातावरण में स्वामी विवेकानंद ने विश्व समुदाय में भारत का गौरव बढ़ाया। आज की युवा-पीढ़ी को जिस वैश्विक परिवेश में आगे बढ़ना है, उसमें भारत की स्थिति बहुत मजबूत है तथा विश्व समुदाय के अग्रणी राष्ट्रों में हमारी गणना होती है। स्वामी विवेकानंद के अद्भुत उदाहरण से प्रेरणा लेकर आज की पीढ़ी को भारत का गौरव बढ़ाना है, देश को समावेशी समृद्धि की नई ऊंचाइयों तक ले जाना है।
देवियो और सज्जनो,
कुछ ही दिनों पहले, 15 अगस्त के दिन, स्वाधीनता दिवस का उत्सव मनाते हुए सभी देशवासियों ने ‘हर घर तिरंगा’ अभियान में उत्साहपूर्वक भागीदारी की। अब हमारा तिरंगा चाँद तक पहुँच गया है। चाँद की सतह पर भारत ने ‘शिव-शक्ति’ की ऊर्जा पहुंचाई है। विद्यार्थियों सहित आस-पास के लोगों की भागीदारी को प्रोत्साहित करते हुए इस ऐतिहासिक उपलब्धि के विषय पर विश्वविद्यालय द्वारा ज्ञान-वर्धक कार्यक्रम और प्रतियोगिताओं का आयोजन करना चाहिए। ऐसा करने से समाज में वैज्ञानिक दृष्टिकोण यानि scientific temper का विकास होता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास करना हमारे संविधान में बताए गए मूल कर्तव्यों में शामिल है।
हमारा देश अमृत काल के आरंभिक चरण में है। अमृत काल कर्तव्य काल है। यदि प्रत्येक नागरिक, विशेषकर हमारे युवा, संविधान में उल्लिखित मूल कर्तव्यों का पालन करेंगे तो हमारे देश के समग्र विकास को गति मिलेगी।
प्यारे विद्यार्थियो,
अपने जीवन के एक प्रमुख लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मैं आप सबको फिर एक बार बधाई देती हूं। मैं आप सबके स्वर्णिम भविष्य के लिए आशीर्वाद देती हूं।
धन्यवाद!
जय हिन्द!
जय भारत!