भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का FESTIVAL OF LIBRARIES के उद्घाटन समारोह में सम्बोधन (HINDI)

नई दिल्ली : 05.08.2023
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भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का FESTIVAL OF LIBRARIES के उद्घाटन समारोह में सम्बोधन (HINDI)

पुस्तकों और पुस्तकालयों से जुड़े लोगों के इस समागम में आकर मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही है। मैं सभी आयोजकों और प्रतिभागियों की सराहना करती हूं। आप सब अत्यंत महत्वपूर्ण उद्देश्यों को प्राप्त करने के संकल्प के साथ यहां उपस्थित हुए हैं।

इस Festival of Libraries की जिस तरह बहुआयामी संकल्पना की गई है और उसे कार्यरूप दिया गया है उससे मैं बहुत प्रभावित हुई हूं। इस आयोजन के सभी आयामों में सुविचार, सुरुचि और सदुद्देश्य की झलक दिखाई देती है। सुप्रतिष्ठित पुस्तकालयों से लेकर aspirational districts तथा ग्रामीण समुदायों के पुस्तकालयों तक, पाण्डुलिपियों से लेकर digitization तक, गंभीर विचार- मंथन से लेकर मनोरंजक quiz तक, library science के विशेषज्ञों से लेकर बच्चों तक, अनेक विषयों और प्रतिभागियों को इस उत्सव में शामिल किया गया है। इस inclusive vision के लिए मैं आप सबकी विशेष सराहना करती हूं। जिन प्रयासों का आज शुभारंभ किया गया है वे सभी अत्यंत उपयोगी सिद्ध होंगे, यह मेरा विश्वास है। इस festival के आयोजन से जुड़ी पूरी टीम को मैं साधुवाद देती हूं, बधाई देती हूं, शुभकामना देती हूं।

देवियो और सज्जनो,

पुस्तकालयों का विकास, समाज और संस्कृति के विकास से जुड़ा होता है। यह सभ्यताओं और संस्कृतियों की उन्नति का पैमाना भी होता है। ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ मनाने तथा ‘अमृत-काल’ में भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के प्रयासों में ‘culture of reading’ यानी ‘स्वाध्याय की संस्कृति’ को प्रोत्साहित करने का यह प्रयास बहुत उपयोगी सिद्ध होगा।

इतिहास ऐसे उल्लेखों से भरा हुआ है जिनमें आक्रान्ताओं ने पुस्तकालयों को नष्ट करना अनिवार्य समझा। युद्ध में पराजित क्षेत्रों के लोगों का मनोबल और अधिक गिराने के लिए पुस्तकालयों का विध्वंस विश्व में कई स्थानों पर किया गया था। इससे यह स्पष्ट होता है कि पुस्तकालयों को किसी देश या समाज की सामूहिक चेतना और प्रतिभा का प्रतीक माना जाता रहा है।

विश्व में जहां-जहां सभ्यताएं फल-फूल रही थी वहां के लोग अन्य सुसंस्कृत देशों से पुस्तकें अपने देश में ले जाते थे। इस तरह पुस्तकालय, विकसित सभ्यताओं के बीच सेतु का काम करते थे। पुस्तकालय से जुड़े निर्माण और ध्वंस, दोनों तरह के उदाहरण हमारे देश के प्राचीन शिक्षा केंद्र नालंदा में देखे गए हैं।

नालंदा विश्वविद्यालय कई सदियों तक शिक्षा का विश्व प्रसिद्ध केंद्र बना रहा। सातवीं शताब्दी में चीन के ह्वेन सांग की भारत यात्रा और उसके वृत्तान्तों का इतिहास में विशेष महत्व है। ह्वेन सांग भारत से, विशेषकर नालंदा से, बहुत बड़ी संख्या में पुस्तकें लेकर चीन लौटे थे। प्राचीन तथा मध्य-कालीन भारत से अनेक अन्य देशों के लोग भी पुस्तकें लेकर गए, उनका अनुवाद करवाया और भारत में उत्पन्न हुई ज्ञानराशि का पूरी दुनिया में प्रसार हुआ। ऐसे अच्छे प्रयासों के मूल में यह सोच होती है कि पुस्तकें और पुस्तकालय पूरी मानवता की साझा विरासत और धरोहर होते हैं। इसी सोच के साथ आप सब आगे बढ़ रहे हैं। मैं चाहूंगी कि देश में सभी महत्वपूर्ण पुस्तकालयों का network बनाने के साथ-साथ आप सब अन्य देशों के पुस्तकालयों से भी आदान-प्रदान को बढ़ावा दें।

ह्वेन सांग की भारत यात्रा के लगभग 550 वर्षों के बाद यानी 12वीं शताब्दी के अंत में आक्रांताओं द्वारा नालंदा विश्वविद्यालय के पुस्तकालय को नष्ट कर दिया गया। इतिहासकार बताते हैं कि उस पुस्तकालय को नष्ट करने में बहुत समय लगा था क्योंकि पाण्डुलिपियों और पुस्तकों का बहुत विशाल भंडार वहां संचित था। वैसी अमूल्य ज्ञानराशि से विश्व समुदाय को सदा के लिए वंचित कर दिया गया। ऐसी दुखद घटनाएं आधुनिक युग में नहीं होती हैं लेकिन हमारे देश में उपलब्ध दुर्लभ पाण्डुलिपियों तथा पुस्तकों के गायब हो जाने की घटनाएं सुनने में आती हैं। ऐसी पुस्तकें या पाण्डुलिपियां Collectors’ Item के रूप में अत्यंत धनाढ्य लोगों के निजी संग्रह की शोभा बढ़ाती हैं अथवा auctions में नीलाम की जाती हैं। हाल के वर्षों में भारत सरकार ने विशेष प्रयास करके, गलत तरीके से विदेश ले जाए गए अनेक art objects का पता लगवाकर उन्हें वापस मंगवाया है। ऐसा ही प्रयास दुर्लभ पुस्तकों और पाण्डुलिपियों को वापस लाने के लिए भी किया जा सकता है।

पुस्तकालयों को आप सब Drawing Room of the Community के रूप में स्थापित करना चाहते हैं। यह बहुत अच्छी सोच है। इस सुंदर विचार में थोड़ा सा अपना विचार जोड़ते हुए मेरा सुझाव है कि पुस्तकालयों को drawing room and study of the community के रूप में लोकप्रिय बनाया जाए। पुस्तकालय, सामाजिक सम्मिलन का केंद्र भी बनें और स्वाध्याय तथा चिंतन का भी। Read, Research, Reflect – इन शब्दों में निहित इस festival का प्रमुख संदेश भी यही है।

मुझे बताया गया है कि संस्कृति मंत्रालय द्वारा readers to emerge as leaders तथा a country that reads is a country that leads की सोच के साथ पुस्तकालयों के विकास के राष्ट्रीय अभियान को आगे बढ़ाया जा रहा है। यह सर्वथा तर्क-सम्मत और इतिहास-सम्मत विचार भी है और अभियान भी।

हमारे स्वाधीनता संग्राम के महा-नायकों ने तमाम संघर्षों और संकटों के बावजूद पुस्तकों के पठन-पाठन और लेखन पर जोर दिया था। महात्मा गांधी ने अपनी आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ में एक अध्याय लिखा है जिसका शीर्षक है – ‘एक पुस्तक का जादूभरा असर’। आत्मकथा के उस अध्याय में गांधीजी ने John Ruskin की पुस्तक ‘Unto This Last’ को पढ़ने के बाद उनके जीवन में हुए रचनात्मक परिवर्तन का उल्लेख किया है। गांधीजी ने उस पुस्तक को ग्रंथ-रत्न कहा तथा ‘सर्वोदय’ के नाम से उसका अनुवाद भी किया। इस प्रकार Ruskin की एक छोटी सी पुस्तक ने महात्मा गांधी की जीवन-धारा को बदल दिया। उस बदलाव का दक्षिण अफ्रीका तथा भारत के इतिहास पर ही नहीं बल्कि विश्व इतिहास पर गहरा प्रभाव पड़ा। एक छोटी सी पुस्तक में विश्व-इतिहास की धारा को बदलने की क्षमता होती है।

पुस्तकों में जमीन की खुशबू होती है और आसमान का विस्तार होता है। लगभग डेढ़ सौ – दो सौ साल पहले हमारे देश के लोगों को दूर-सुदूर देशों में काम करने के लिए ले जाया गया। वे गिरमिटिया मजदूर कहलाए। वे लोग अपने साथ पुस्तकें और मसाले ले गए। उन पुस्तकों ने मातृभूमि भारत से उनको जोड़े रखा। इसी वर्ष जून में मुझे अपनी सूरीनाम यात्रा के दौरान प्रवासी भारतीय समुदाय के लोगों से मिलने का अवसर मिला। उनमें बहुत से लोग गिरमिटिया मजदूरों के वंशज हैं। उन्होंने भारत की संस्कृति को संजोकर रखा है। मैं समझती हूं कि पीढ़ी-दर-पीढ़ी उन्होंने भारतीय पुस्तकों की विरासत को आगे बढ़ाया है। उनके द्वारा मातृभूमि भारत की संस्कृति को जीवंत रखने में पुस्तकों की अहम भूमिका रही है।

देवियो और सज्जनो,

पुस्तकों और पुस्तकालयों के महत्व पर जितनी भी चर्चा की जाए वह कम है। पाण्डुलिपियों के संरक्षण तथा पुस्तकालयों के modernization और digitization के प्रयास बहुत महत्वपूर्ण हैं। Information और Communication Technology के उपयोग से पुस्तकालयों का स्वरूप बदल रहा है। Accessibility और सुगम हो गई है। National Virtual Library of India को विकसित किया जा रहा है ताकि ‘One Nation, One Digital Library’ के राष्ट्रीय लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके। मुझे बताया गया है कि दिव्यांग-जनों की विशेष आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर पुस्तकालयों में विशेष सुविधाएं प्रदान की जा रही हैं। इस संवेदनशील और समावेशी प्रयास की मैं भूरि-भूरि प्रशंसा करती हूं।

मेरी शुभकामना है कि आप सब मिलकर National Mission on Libraries के उद्देश्यों तथा अपने कार्य क्षेत्रों से जुड़े अन्य राष्ट्रीय लक्ष्यों को हासिल करने में सफलता प्राप्त करें। इससे देशवासियों में पुस्तकालयों से जुड़ने तथा पुस्तकें पढ़ने की संस्कृति मजबूत होगी। भारत को Global Knowledge Superpower बनाने के लक्ष्य में आप सब अमूल्य योगदान देंगे, यह विश्वास व्यक्त करते हुए मैं अपनी वाणी को विराम देती हूं।

धन्यवाद!  
जय हिन्द!  
जय भारत!

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