भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान के स्थापना दिवस समारोह में सम्बोधन
नई दिल्ली : 09.10.2024
यह प्राचीन विज्ञान का एक आधुनिक संस्थान है। यहां आकर मुझे हार्दिक प्रसन्नता हो रही है। इस संस्थान ने आठ वर्षों की अल्प-अवधि में ही आयुर्वेदिक चिकित्सा, शिक्षा, अनुसंधान और समग्र स्वास्थ्य सेवा में अपना महत्वपूर्ण स्थान बना लिया है। मैं इस उपलब्धि के लिए आयुष मंत्रालय और संस्थान से जुड़े सभी लोगों को बधाई देती हूं।
देवियो और सज्जनो,
भगवान धन्वंतरि को जहां आयुर्वेद का जनक माना जाता है वहीं चरक को औषधि-शास्त्र एवं सुश्रुत को शल्य-चिकित्सा का प्रवर्तक माना जाता है। आयुर्वेद, दुनिया की प्राचीनतम चिकित्सा प्रणालियों में से एक है। यह विश्व को भारत की अमूल्य देन है। आयुर्वेद एक ऐसी चिकित्सा पद्धति है जिसमें मन, शरीर और आत्मा के बीच संतुलन बनाए रखते हुए समग्र स्वास्थ्य प्रबंधन पर बल दिया जाता है।
आयुर्वेद का हमारे जीवन में हमेशा महत्वपूर्ण स्थान रहा है। आस-पास के पेड़- पौधों की औषधीय महत्ता से हम सदैव अवगत रहे हैं और उनका उपयोग करते रहे हैं। नीम, तुलसी, हल्दी, लहसुन, अश्वगंधा का हम सब ने कभी न कभी औषधि के रूप में उपयोग किया ही होगा। आदिवासी समाज में तो जड़ी-बूटियों और वन-औषधियों के ज्ञान की परंपरा और भी समृद्ध रही है। लेकिन जैसे-जैसे समाज में आधुनिकता बढ़ती गई और हम प्रकृति से दूर होते गए, इस पारंपरिक ज्ञान का उपयोग करना हम छोड़ते गए। हमें डॉक्टर से दवा लेना घरेलू चिकित्सा से आसान लगने लगा। लेकिन अब लोगों में जागरूकता बढ़ रही है। आज, Integrative System of Medicine अर्थात् समेकित चिकित्सा पद्धति का विचार पूरी दुनिया में लोकप्रिय हो रहा है। अलग-अलग चिकित्सा पद्धतियां एक दूसरे की पूरक प्रणाली के रूप में लोगों को आरोग्य प्रदान करने में सहायक हो रही हैं।
आयुर्वेद के प्रति हमारा पीढ़ी दर पीढ़ी का अटूट विश्वास है। इसी विश्वास का लाभ उठा कर कुछ लोग भोली-भाली जनता का नुकसान करते हैं। भ्रामक प्रचार और झूठे दावे करते हैं। ये लोग न केवल जनता के पैसे और स्वास्थ्य का नुकसान करते हैं बल्कि आयुर्वेद को भी बदनाम करते हैं। ऐसे लोगों के प्रति कठोर कदम उठाए जाने की आवश्यकता है। साथ ही, बड़ी संख्या में चिकित्सकों की आवश्यकता है जिससे सामान्य लोगों को अशिक्षित चिकित्सकों के पास न जाना पड़े। इस संदर्भ में ‘आयुष्मान आरोग्य मंदिर’ एक महत्वपूर्ण पहल है। पिछले कुछ वर्षों में देश में आयुर्वेद कॉलेजों और उनमें पढ़ने वाले विद्यार्थियों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। मुझे विश्वास है कि आने वाले समय में योग्य आयुर्वेदिक चिकित्सकों की उपलब्धता और बढ़ेगी।
अच्छे चिकित्सकों के साथ-साथ गुणवत्तापूर्ण औषधियों का उपलब्ध होना भी महत्वपूर्ण है। इस क्षेत्र में उद्यम स्थापित करने के लिए युवाओं को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। मुझे बताया गया है कि यह संस्थान Incubation Centre for Innovation and Entrepreneurship के माध्यम से युवा Innovators और Entrepreneurs के capacity building पर कार्यरत है। मुझे यह भी बताया गया है कि अब तक इस संस्थान ने 50 से ज्यादा start-ups को सहयोग दिया है। ऐसे सभी प्रयास गुणवतापूर्ण औषधियों की उपलब्धता बढ़ाने में महत्वपूर्ण सिद्ध होंगे। औषधीय जड़ी-बूटियों एवं वनस्पतियों की मांग में वृद्धि से किसानों और वनवासियों की आय भी बढ़ेगी।
देवियो और सज्जनो,
किसी भी चिकित्सा पद्धति के प्रासंगिक बने रहने के लिए निरंतर research और innovation आवश्यक है। हम सब जानते हैं कि आयुर्वेद में सदियों तक निरंतर नए-नए प्रयोग होते रहे हैं। औषधियां प्राय: पेड़-पौधों और पशु-उत्पाद से बनती थीं। रसशास्त्र के विज्ञान की सहायता से खनिजों से भी औषधियां बनने लगीं। आज समय की मांग है कि आयुर्वेदिक उत्पाद अंतर्राष्ट्रीय मानको के अनुरूप हों जिससे उनका निर्यात बिना किसी बाधा के किया जा सके। हम आयुर्वेद के अपने ज्ञान के भंडार को evidence-based और scientific approach के साथ विश्व-स्तर पर मान्यता दिला सकते हैं।
मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान, विभिन्न संस्थानों के साथ मिलकर आयुर्वेद को ‘साक्ष्य-आधारित विज्ञान’ के रूप में मजबूत स्थिति प्रदान करने के लिए अनेक एकीकृत अनुसंधान परियोजनाएं संचालित कर रहा है। इस संस्थान के शिक्षकों और विद्यार्थियों ने अनेक शोध पत्र प्रकाशित किए हैं।
देवियो और सज्जनो,
हम सब जानते हैं कि आयुर्वेदिक दवाओं के मुख्य स्रोत जड़ी-बूटी और वनस्पति होते हैं। इसलिए आयुर्वेद का विकास न केवल मनुष्य के लिए बल्कि जीव- जंतुओं और पर्यावरण के लिए भी हितकारी होगा। कई पेड़-पौधे इसलिए विलुप्त होते जा रहे हैं क्योंकि हम उनकी उपयोगिता के बारे में नही जानते हैं। जब हम उनकी महत्ता को जानेंगे तब हम उनका संरक्षण भी करेंगे। मुझे यह जानकर खुशी हुई है कि National Medicinal Plants Board औषधीय पौधों, विशेषकर हिमालय में मिलने वाली वनस्पतियों के संरक्षण, विकास और सतत प्रबंधन का कार्य कर रहा है।
खान-पान की गड़बड़ी, असंतुलित जीवन-शैली, पर्यावरण प्रदूषण आदि के कारण नये-नये रोग पैदा हो रहे हैं। इन बीमारियों के प्रति जागरूकता तथा उनके रोक- थाम में वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियां महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। पूरे विश्व में यह मान्यता बढ़ रही है कि स्वस्थ होने के लिए मन और शरीर दोनों का ही स्वस्थ होना आवश्यक है। आयुर्वेद और योग के बारे में जानने की इच्छा दुनियाभर के लोगों को भारत की ओर खींच रही है। हमें इस अवसर का लाभ उठाना चाहिए। यह खुशी की बात है कि इस संस्थान का गोवा स्थित satellite center पर्यटकों को समग्र आयुर्वेदिक स्वास्थ्य देखभाल प्रदान कर रहा है। ऐसे प्रयास निरंतर होते रहने चाहिए।
देवियो और सज्जनो,
अलग-अलग चिकित्सा प्रणाली से जुड़े लोग प्राय: यह दावा करते हैं कि उनकी प्रणाली सबसे अच्छी है। आपस में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा होना अच्छी बात है लेकिन एक-दूसरे की आलोचना करने का प्रयास नहीं होना चाहिए। चिकित्सा की सभी विधाओं के लोगों में सहयोग का भाव होना चाहिए। सब का उद्देश्य रोगियों को स्वस्थ करते हुए मानवता का कल्याण करना ही तो है। ‘सर्वे सन्तु निरामया:’ अर्थात सभी रोगमुक्त हों, यह प्रार्थना हम सब करते हैं।
आयुर्वेद की प्रासंगिकता बनी रहे इसके लिए हमें अनुसंधान में निवेश, औषधियों की गुणवत्ता में लगातार सुधार तथा आयुर्वेद के अध्ययन से जुड़े शिक्षा संस्थानों के सशक्तीकरण पर ध्यान देना होगा। मुझे खुशी है कि ‘अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान’ द्वारा आधुनिक तकनीक के साथ पारंपरिक शिक्षा का समन्वय किया जा रहा है। मैं इसकी सराहना करती हूं। साथ ही यह संस्थान post-graduation और doctorate courses के माध्यम से आयुर्वेद के प्रचार- प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। मेरा आपसे अनुरोध है कि आयुर्वेद का शीर्षस्थ संस्थान होने के नाते आप पूरे देश के आयुर्वेदिक संस्थानों के हित में, ज्ञान-संवर्धन और ज्ञान के पारस्परिक आदान-प्रदान हेतु, प्रयास करते रहें। मैं चाहूंगी कि आप सब इसी तरह आयुर्वेद के क्षेत्र में अपना योगदान देते रहें एवं स्वस्थ और सबल भारत के ध्येय के प्रति समर्पित रहें। आप सब को मैं हार्दिक शुभकामनाएं देती हूं।
धन्यवाद,
जय हिन्द!
जय भारत!