भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का मध्‍य प्रदेश उच्च न्यायालय के नए भवन के शिलान्यास कार्यक्रम में संबोधन (HINDI)

जबलपुर : 27.09.2023
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आज मां नर्मदा की पावन धरती, जबलपुर में, मध्‍य प्रदेश उच्च न्यायालय के नए भवन के शिलान्यास कार्यक्रम में आप सब के बीच उपस्थित होकर मुझे अत्यंत प्रसन्‍नता हो रही है। इस उच्च न्यायालय का भवन 134 वर्ष पुराना है। न्यायाधीशों, अधिवक्ताओं और वादकारियों की संख्या में लगातार वृद्धि तथा इस न्यायालय को तकनीकी रूप से और अधिक सक्षम बनाने के लिए एक नया state-of-the-art भवन समय की मांग है। मुझे बताया गया है कि नया भवन अत्याधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित होगा जिसमें मुख्य न्यायाधीश और अन्य न्यायाधीशों के लिए court rooms, meeting halls के साथ-साथ conference hall, bar rooms, data centre जैसी सुविधाएं उपलब्ध होंगी। मुझे यह जानकर अत्यंत प्रसन्नता हो रही है कि इस भवन में महिला अधिवक्ताओं के लिए एक अलग Bar Room प्रस्तावित है। मुझे विश्वास है कि यह व्यवस्था न केवल महिला अधिवक्ताओं के लिए, बल्कि महिला वादकारियों के लिए भी सुविधाजनक होगी।

महिलाओं का सशक्तीकरण एक समावेशी भारत के लिए अत्यंत आवश्यक है। पिछले सप्ताह ही संसद में महिलाओं के लिए केंद्र और राज्यों के सदनों में 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने का अधिनियम पारित हुआ है। मुझे विश्वास है कि महिलाओं के राजनीतिक सशक्तीकरण की यह पहल अत्यंत क्रांतिकारी होगी।

मुझे बताया गया है कि उच्चतम न्यायालय में करीब नौ प्रतिशत और उच्च न्यायालयों में लगभग चौदह प्रतिशत महिला न्यायाधीश हैं। न्यायपालिका भी समाज का ही एक हिस्सा है। इसलिए मुझे लगता है कि यहां भी महिलाओं की समुचित भागीदारी होनी चाहिए। मेरा मानना है कि महिलाओं में न्याय करने का नैसर्गिक भाव होता है। इसीलिए कहा जाता है कि एक मां अपने बच्चों के बीच भेद-भाव नहीं करती है। न्याय देने की प्रक्रिया किसी एक गणितीय सूत्र पर आधारित नहीं है। न्याय-प्रशासन में पुस्तकीय ज्ञान के साथ-साथ व्यवहार-बुद्धि का प्रयोग भी अपेक्षित होता है। इस प्रक्रिया में भावनाएं, परिस्थितियाँ और संवेदनशीलता जैसे अन्य आयाम भी महत्वपूर्ण होते हैं। इसलिए न्याय-व्यवस्था में महिलाओं की अधिक से अधिक भागीदारी न्यायपालिका के भी हित में होगी।

न्यायपालिका द्वारा स्वयं में सुधार का दृष्टिकोण जब सामने आता है तब जबलपुर का नाम स्वतः ही स्मरण हो आता है। जैसा कि न्यायपालिका से जुड़े लोग जानते हैं कि ADM Jabalpur vs. Shivkant Shukla केस में जबलपुर उच्च न्यायालय द्वारा Protection of Life and Personal Liberty के पक्ष में दिया गया निर्णय उच्चतम न्यायालय द्वारा वर्ष 1976 में over-rule किया गया था। अंततः 42 साल के बाद वर्ष 2017 में उच्चतम न्यायालय ने अपने निर्णय को बदला। मौलिक अधिकारों के पक्ष में जबलपुर उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए तत्कालीन निर्णय के मूलभूत सिद्धांतों की ही उच्चतम न्यायालय द्वारा पुनः स्थापना की गई है। इस प्रकार भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में जबलपुर का नाम न्याय प्रणाली की प्रगतिशील यात्रा का प्रतीक बन गया है।

देवियो और सज्जनो,

न्यायपालिका से जुड़े प्रत्येक व्यक्ति का आम जनता को सरल, सुलभ और त्वरित न्याय उपलब्ध कराने का लक्ष्य होना चाहिए। आज न्यायपालिका के समक्ष बड़ी संख्या में लंबित मामले, under-trial कैदियों की भारी संख्या, अदालतों में infrastructure में improvement जैसी चुनौतियाँ हैं। एक अनुमान के अनुसार, देशभर की निचली अदालतों में करीब साढ़े चार करोड़ case लंबित हैं। जिनमें से कई वाद तो 20 से 30 सालों से लंबित हैं। मुझे यह जानकर हार्दिक प्रसन्नता हुई है कि मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने जिला अदालतों में दशकों से लंबित cases के निपटारे के लिए ‘25 DEBT’ नाम से एक विशेष अभियान शुरू किया है। इसके अंतर्गत जिला न्यायपालिका के प्रत्येक न्यायाधीश को अपने न्यायालय में 25 सबसे पुराने मामलों को नियमित आधार पर निपटाने के निर्देश दिए गए हैं। मुझे बताया गया है कि इस अभियान के माध्यम से, वर्ष 2022 के अंत तक 97 हजार से अधिक मामलों का निपटारा किया जा चुका है। मैं इस उपलब्धि के लिए मध्य प्रदेश न्यायपालिका से जुड़े सभी व्यक्तियों की सराहना करती हूं और आशा करती हूं कि वे इस प्रक्रिया को और भी आगे बढ़ाएँगे।

अदालतों में लंबित cases की अधिकता के कारण विचाराधीन कैदियों की भारी संख्या जेलों में रहने को मजबूर है। मैंने पहले भी कई अवसरों पर कहा है कि ऐसे विचाराधीन कैदी जो छोटे-मोटे अपराधों के लिए जेलों में बंद हैं, उनके बारे में न्यायपालिका, सरकार और पुलिस प्रशासन को सोचना चाहिए और कोई समाधान निकालना चाहिए।

यह पंच-परमेश्वर का देश है। यहाँ न्याय की परिकल्पना ग्रामीण व्यवस्था में शुरू से थी। मेरा मानना है कि विवादों के वैकल्पिक समाधान की व्यवस्था को और मजबूत करना चाहिए। इससे एक ओर तो विवादों का समाधान सस्ता और सुलभ होगा, दूसरी ओर न्यायपालिका पर बोझ भी कम होगा। हाल ही में मैंने Mediation Act, 2023 को अनुमति प्रदान की है। यह अधिनियम निकट भविष्य में ही प्रभावी हो जाएगा। मैं आशा करती हूँ कि इस अधिनियम के प्रावधानों का उपयोग करने से mediation को व्यापक तथा संस्थागत स्वीकृति मिलेगी तथा litigation का बोझ कम होगा।

देवियो और सज्जनो,

न्याय देने की प्रक्रिया को सरल, सुगम और त्वरित बनाने में infrastructure की अहम भूमिका है। यह प्रसन्नता का विषय है कि राज्य सरकारें अदालतों के infrastructure को मजबूत बनाने पर ध्यान दे रही हैं। आज का शिलान्यास भी इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इसके लिए मैं मुख्यमंत्री, श्री शिवराज सिंह चौहान जी, मध्य प्रदेश सरकार और राज्य के उच्च न्यायालय को बधाई देती हूं।

Technology आज प्रत्येक क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। न्‍याय व्‍यवस्‍था में भी technology का प्रयोग बहुत तेजी से बढ़ा है। E-court, video conferencing, e-proceeding और e-filing की सहायता से जहां न्याय-प्रशासन की सुगमता बढ़ी है, वहीं कागज के प्रयोग में कमी आने से प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण भी संभव हुआ है। यह बहुत ही प्रसन्नता की बात है कि केंद्र सरकार ने हाल ही में ई-कोर्ट परियोजना के तीसरे चरण को मंजूरी दी है। मुझे विश्वास है कि इस चरण के सफल कार्यान्वयन से न्याय प्रणाली सभी stakeholders के लिए और अधिक सुलभ, किफायती, विश्वसनीय और पारदर्शी बन जाएगी।

अदालतों के निर्णयों को स्थानीय भाषा में उपलब्ध कराना न्याय प्रक्रिया को सरल और सुगम बनाने में अत्यंत महत्वपूर्ण है। मुझे प्रसन्नता है कि इस दिशा में निरंतर प्रयास हो रहे हैं। इस प्रक्रिया में भी technology का प्रयोग बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

देवियो और सज्जनो,

हम सब लोगों पर समाज का ऋण है। हम इस ऋण को विकास यात्रा में पीछे रह गए लोगों की मदद करके उतार सकते हैं। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व में एक सराहनीय पहल की है, जिसके अंतर्गत इस हाई कोर्ट के सभी जज प्रतिमाह एक निश्चित राशि गरीब और जरूरतमन्द व्यक्तियों की सहायता के लिए देंगे। इस पहल के साथ-साथ मेरी अपेक्षा होगी कि वंचित वर्ग को न्याय दिलाने में निशुल्क सहायता करने के लिए संस्थाएं और अधिवक्ताओं के समूह आगे आएं। इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि न्यायपालिका का न्याय इतना महंगा न हो जाए कि यह आम आदमी से दूर हो जाए। इसके लिए संस्थागत प्रयासों को मजबूती देने की जरूरत है।

इस विश्वास के साथ कि जब नया भवन बन कर तैयार होगा तब न्यायाधीशों, वकीलों और प्रशासनिक कर्मचारियों को और अधिक समर्पण, प्रतिबद्धता और दक्षता के साथ अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने के लिए एक नई ऊर्जा देगा, मैं अपनी वाणी को विराम देती हूं। मेरी शुभकामनायें आपके साथ हैं।

धन्यवाद,   
जय हिन्द! 
जय भारत!

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