भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का हेमवती नंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय के 11वें दीक्षांत समारोह में सम्बोधन (HINDI)
श्रीनगर (गढ़वाल) : 08.11.2023
देवभूमि उत्तराखंड के शिक्षा केंद्र हेमवती नंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय में आकर मुझे अपार हर्ष की अनुभूति हो रही है। यह दिलचस्प तथ्य है कि इस विश्वविद्यालय की स्थापना में जन-आंदोलन की प्रमुख भूमिका थी। सत्तर के दशक में शिक्षा के लिए आंदोलन करना यहां की विकसित जनचेतना का प्रतीक है।
मुझे खुशी है कि वर्ष 1973 में स्थापित इस विश्वविद्यालय ने समय के साथ अपने-आप को ढ़ाला है। आज जब हम women-led development की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, तब इस दीक्षांत समारोह की विषय-वस्तु ‘सशक्त महिला, समृद्ध राष्ट्र’ हेमवती नंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय की प्रगतिशील सोच को परिलक्षित करती है। मुझे बताया गया है कि इस विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले कुल विद्यार्थियों में छात्राओं की संख्या छात्रों से अधिक है। आज जिन 44 विद्यार्थियों को स्वर्ण पदक प्राप्त हुआ है उनमें 30 बेटियाँ हैं। मैं आज डिग्री और पदक प्राप्त करने वाले सभी बेटे-बेटियों को हार्दिक बधाई देती हूँ।
देवियो और सज्जनो,
उत्तराखंड में शिक्षा को जीवन में सदैव महत्वपूर्ण स्थान दिया जाता रहा है। यहाँ के लोगों का शिक्षा से लगाव राज्य की साक्षरता दर में भी परिलक्षित होता है जो राष्ट्रीय औसत से बेहतर रहा है। इस क्षेत्र ने हिन्दी साहित्य को कई बड़ी प्रतिभाएं दी हैं। सुमित्रानन्दन पंत से लेकर मनोहर श्याम जोशी, शिवानी, हिमांशु जोशी तथा मंगलेश डबराल तक एक लंबी प्रेरणादायक परंपरा रही है। इस क्षेत्र के जन-मानस में देशप्रेम की भावना भी कूट-कूट कर भरी हुई है। उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री और बाद में केन्द्रीय गृह मंत्री रहे गोविंद बल्लभ पंत इसी क्षेत्र से थे। हेमवती नन्दन बहुगुणा, जिनके प्रयासों का प्रतिफल यह विश्वविद्यालय है, अपने समय के एक दिग्गज राजनीतिज्ञ थे जो केंद्र में मंत्री भी रहे और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी। भक्त दर्शन जिन्होंने भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान बदरीनाथ मन्दिर में राष्ट्रीय ध्वज फहराया था, एक अच्छे शिक्षाविद थे। उत्तर प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी इसी क्षेत्र से हैं। यह धरती ऐसे अनेक व्यक्तियों की जन्म-भूमि रही है। उनमें से कुछ का ही मैंने यहाँ उल्लेख किया है।
भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक यात्रा में उत्तराखंड का योगदान अतुलनीय है। जीवनदायिनी गंगा और यमुना का उद्गम स्थल यहीं है। बदरीनाथ, केदारनाथ और हेमकुंड साहिब जैसे तीर्थ-स्थल हैं। UNESCO की Intangible Cultural Heritage list में शामिल कुम्भ का मेला है। इस क्षेत्र की कन्दराओं और गुफाओं में भारत-भूमि के ऋषि-मुनियों के तप का बल है। यहां के वनों में जीवन का मंत्र है। इस राज्य से अनगिनत जल-स्रोत निकलकर मैदानी भागों में वनस्पतियों, जीव-जंतुओं और मानव को जीवन प्रदान करते हैं।
देवियो और सज्जनो,
पहाड़ों पर जीवन संघर्षपूर्ण है। अभी पिछले महीने ही, 69वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह में, पलायन और यहाँ के संघर्षपूर्ण जीवन को दर्शाने वाली सृष्टि लखेरा द्वारा निर्देशित फिल्म ‘एक था गांव’ को best non-feature film का award मिला है। मुझे इस बात का संतोष है कि केंद्र और राज्य की सरकारें संतुलित विकास और स्थानीय रोजगार सृजन पर ध्यान दे रही हैं।
उत्तराखंड पर्यावरण की दृष्टि से अति-संवेदनशील राज्य है। यहाँ पर मैदानी और तटीय इलाकों की तरह बड़े उद्योग स्थापित करने की अपनी सीमा है। इसलिए Sustainable development और resources के optimal use के लिए research और नए-नए innovations की आवश्यकता है। स्थानीय आवश्यकताओं और बाध्यताओं को ध्यान में रखते हुए कैसे आर्थिक विकास किया जाए और रोजगार के अवसर पैदा किए जाएँ, यह आपके सामने चुनौती भी है और अवसर भी। इस राज्य का एकमात्र केन्द्रीय विश्वविद्यालय होने के कारण हेमवती नंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय की ज़िम्मेदारी और भी बढ़ जाती है। इस विश्वविद्यालय से जुड़े सभी लोगों से यह अपेक्षा की जाती है कि आप शिक्षा को समाज के साथ जोड़ें, उसे समाज की बेहतरी और कल्याण में लगाएँ।
मुझे यह जानकर खुशी हुई है कि इस विश्वविद्यालय के अंतर्गत High Altitude Plant Physiology Research Centre पर्वतीय पौधों के survival, adaptation and productivity पर शिक्षण, प्रशिक्षण और अनुसंधान कर रहा है। यह भी प्रसन्नता का विषय है कि Department of Environmental Science द्वारा उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्र के जैव-संसाधनों के संरक्षण पर अनुसंधान किया जा रहा है। जिस राज्य में पर्यावरण संरक्षण के लिए ‘चिपको आंदोलन’ जैसा आंदोलन हुआ हो उस राज्य में स्थित इस विश्वविद्यालय के द्वारा किए जा रहे ये प्रयास सर्वथा उपयुक्त हैं।
देवियो और सज्जनो,
यह बहुत ही प्रसन्नता की बात है कि यह विश्वविद्यालय आगामी 1 दिसम्बर को अपनी स्थापना के पचास वर्ष पूर्ण कर रहा है। इस दुर्गम इलाके में एक सामान्य शुरुआत करते हुए यह विश्वविद्यालय आज अपने तीन campuses और 11 schools के माध्यम से पूरे गढ़वाल में ज्ञान का प्रकाश फैला रहा है। इसके लिए मैं सभी पूर्व और वर्तमान शिक्षकों, प्रशासकों और विद्यार्थियों की सराहना करती हूँ। यह स्वर्णिम यात्रा आप सब के लिए गर्व करने का अवसर है, लेकिन साथ ही भविष्य की रूप-रेखा तय करने का अवसर भी है। आप वर्तमान और भविष्य की स्थानीय और वैश्विक चुनौतियों का सामना कैसे करेंगे, इसकी योजना तैयार करने और उसे सफल बनाने का संकल्प लेने का यह उचित अवसर है।
प्यारे विद्यार्थियों,
आज का दिन आपके जीवन में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रखता है। मुझे विश्वास है कि यहां अर्जित ज्ञान के बल पर आप सफलता की ऊंचाइयों को छुएंगे। इस अवसर पर मैं आप लोगों को तीन सलाह देना चाहूंगी। पहला, आप अपने जड़ों को न भूलें चाहे वह आपके दोस्त-परिजन हों या स्कूल-कॉलेज। दूसरा, अपने नैतिक मूल्यों जैसे सच्चाई, ईमानदारी और निष्पक्षता से कभी समझौता न करें। तीसरा, आपने जो शिक्षा प्राप्त की है इसमें समाज का भी अहम योगदान है इसलिए आप विकास यात्रा में पीछे छुट गए लोगों की भरसक मदद करें। मैं महान कवि सुमित्रानंदन पंत द्वारा लिखी चंद पंक्तियों के साथ अपनी वाणी को विराम देती हूँ।
साहस, दृढ संकल्प, शक्ति, श्रम
नवयुग जीवन का रच उपक्रम,
नव आशा से नव आस्था से
नए भविष्यत स्वप्न सजोवें।
धन्यवाद,
जय हिन्द!
जय भारत!