भारत की राष्ट्रपति माननीया श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आयोजित संविधान दिवस समापन समारोह में सम्बोधन

नई दिल्ली : 26.11.2022

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मुझे आज संविधान दिवस के ऐतिहासिक अवसर पर यहां आकर प्रसन्नता हो रही है। 73 साल पहले इसी दिन संविधान सभा ने हम सबके भविष्य के लिए इस दस्तावेज को अंगीकार किया था। आज हम उस संविधान को अंगीकार करने को स्मरण कर रहे हैं जिसने न केवल दशकों से हमारे गणतंत्र की यात्रा का मार्गदर्शन किया है, बल्कि कई अन्य देशों को भी अपने संविधान तैयार करने के लिए प्रेरित किया है।

संविधान सभा, राष्ट्र के सभी क्षेत्रों और समुदायों का प्रतिनिधित्व करने वाले निर्वाचित सदस्य से बनी थी । इन सदस्‍यों में हमारे स्वतंत्रता आंदोलन की बड़ी हस्तियां शामिल थी। इस प्रकार, उनके द्वारा की गई चर्चाएं और उनके द्वारा तैयार किए गए दस्तावेज़, उन मूल्यों को दर्शाते हैं जिन्होंने स्वतंत्रता की लड़ाई का मार्गदर्शन किया।

जब हम संविधान सभा के सदस्यों के नाम पढ़ते हैं तो हमारे मन में गर्व की लहर दौड़ जाती है। स्वाधीनता से पहले के दशक में असाधारण हस्तियों की बहुत बड़ी संख्या रही है। मुझे मानना है कि किसी अन्य स्थान और किसी अन्य काल में उनके जैसी हस्तियाँ नहीं रही हैं। इस भारत राष्ट्र के बारे में उनके अपने सपने और विचार थे, फिर भी वे भारत को बंधनों से मुक्त देखने की इच्छा के कारण एक थे। उन सभी ने यह सुनिश्चित करने के लिए महान बलिदान दिया कि आने वाली पीढ़ियां एक स्वतंत्र राष्ट्र में जीएंगी।

उनमें सर्वप्रथम स्थान राष्ट्रपिता का है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के दूरदर्शी नेतृत्व में महान नेताओं की एक पीढ़ी तैयार हुई। गांधीवादी सिद्धांतों की, संविधान पर अमिट छाप है। इसी तरह, संविधान सभा के अध्यक्ष और प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद और प्रारूपण समिति के अध्यक्ष डॉ. बी.आर. अम्बेडकर ने एक बड़े विजन को शब्दों में ढाला।

मुझे इस बात पर विशेष रूप से गर्व है कि संविधान सभा के 389 सदस्यों में 15 महिलाएं भी शामिल थीं। जब पश्चिम के कुछ प्रमुख राष्ट्र महिलाओं के अधिकारों पर बहस कर रहे थे, भारत की महिलाएं संविधान निर्माण में भाग ले रही थीं। उनमें से एक महिला हंसाबेन मेहता ने Universal Declaration of Human Rights को तैयार करने में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। सरोजिनी नायडू, सुचेता कृपलानी, दुर्गाबाई देशमुख और अन्य महिला सदस्य पहले से ही अनुभवी स्वाधीनता की प्रचारक थीं, जिन्होंने स्वयं को स्वतंत्रता आंदोलन के लिए समर्पित कर दिया था।

महिलाओं के बारे में, मैं कहना चाहूंगी कि आजादी के बाद सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की भागीदारी में बढ़ोतरी हुई है, लेकिन हमें यहीं संतुष्ट नहीं हो जाना है। मैं मानती हूं कि न्यायपालिका भी जेंडर बैलेंस बढ़ाने का प्रयास कर रही है।

देवियो और सज्जनों,

संविधान की प्रस्तावना इसकी आधारशिला है। इसका एकमात्र लक्ष्य सामाजिक कल्याण को बढ़ाना है। यह पूरी इमारत न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व पर टिकी है। मैं यहां यह नोट करना चाहूंगा कि हमारे संविधान में निहित ये चार तारकीय मूल्य हमारी अपनी कालातीत विरासत का हिस्सा रहे हैं।

जब हम न्याय की बात करते हैं, तो हम मानकर चलते हैं कि यह एक आदर्श है और इसे प्राप्त करने में बाधाएँ आएंगी। मैं, अपने पूर्व राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविंद का उल्लेख करना चाहूंगी, जिन्होंने अक्सर न्याय की लागत पर जोर दिया। हम सब की यह ज़िम्मेदारी है कि न्याय सबकी पहुँच में हो। मैं इस दिशा में न्यायपालिका द्वारा किए जा रहे प्रयासों की सराहना करती हूं। legal aid society और इसी तरह अन्य कार्य प्रशंसा के पात्र हैं, और इसी तरह मुफ्त में कानूनी सलाह प्रदान करने के लिए कि जाने वाली व्यक्तिगत पहल भी प्रशंसा की पात्र हैं।

न्याय तक पहुंच सुलभ करना, अक्सर लागत से अधिक हो जाता है। भारत का सर्वोच्च न्यायालय और कई अन्य न्यायालय अब कई भारतीय भाषाओं में निर्णय उपलब्ध करवा रहे हैं। इस प्रशंसनीय कदम से एक औसत नागरिक इस प्रक्रिया का हितधारक बन जाता है। इससे उनकी जागरूकता और सार्वजनिक चर्चा की गुणवत्ता में बढ़ोतरी होगी। अबभी, कानूनी भाषा, इसकी जटिल अभिव्यक्तियाँ और शब्दजाल अधिकांश लोगों की समझ में आना कठिन है। मैं समझती हूं कि इस मामले पर न्यायपालिका में भी बहस हुई है। हमें आशा करनी चाहिए कि वह दिन दूर नहीं जब legal fraternity के साथ-साथ अधिक से अधिक लोग भी महत्वपूर्ण निर्णयों को पढ़ने में सक्षम होंगे। सर्वोच्च न्यायालय और कई अन्य अदालतों ने अपनी कार्यवाही का सीधा प्रसारण शुरू किया है, यह भी न्याय के वितरण में नागरिकों को प्रभावी हितधारक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

देवियो और सज्जनों,

संविधान, सुशासन की रूपरेखा तैयार करता है। इसकी सबसे महत्वपूर्ण विशेषता राज्य के तीन अंगों, अर्थात् कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के कार्यों और शक्तियों को अलग करने का सिद्धांत है। हमारे गणतंत्र की यह पहचान रही है कि तीनों अंगों ने संविधान द्वारा निर्धारित सीमाओं का सम्मान किया है। तीनों का उद्देश्य जनता की सेवा करना है। यह समझ में आता है कि नागरिकों के हितों का संरक्षण करने के उत्साह में, तीन अंगों में से कोई भी अंग दूसरे से आगे बढ़ने का उत्साह दिखा सकता है। फिर भी, हम संतोष और गर्व के साथ कह सकते हैं कि तीनों ने हमेशा लोगों की सेवा में काम करने की कोशिश करते हुए सीमाओं को ध्यान में रखा है।

इस संबंध में, मैं कहना चाहूंगी कि सर्वोच्च न्यायालय ने अपने उच्च मानकों और उच्च आदर्शों से प्रतिष्ठा अर्जित की है। इसने पूर्ण अनुकरणीय तरीके से संविधान के व्याख्याकार के रूप में अपनी भूमिका निभाई है। इस न्यायालय द्वारा पारित ऐतिहासिक निर्णयों ने हमारे देश के कानूनी और संवैधानिक ढांचे को मजबूत किया है।

सर्वोच्च न्यायालय की बेंच और बार को उनकी कानूनी विद्वता के लिए जाना जाता है। सर्वोच्च न्यायालय में ऐसे न्यायमूर्तियों ने सेवा दी है, जिन्होंने इसे विश्व स्तरीय संस्थान बनाने के लिए आवश्यक बौद्धिक गहराई, जोश और ऊर्जा प्रदान की है।

मुझे विश्वास है कि सर्वोच्च न्यायालय हमेशा न्याय का प्रहरी बना रहेगा। मैं मुख्य न्यायाधीश और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को भविष्य के लिए शुभकामनाएं देती हूं।

संविधान दिवस, संवैधानिक आदर्शों के प्रतिदृढ़ता को दोहरने का दिन है, क्योंकि ये ऐसे आदर्श हैं जिन्होंने देश को प्रगति के पथ पर बढ़ाने में सहायता की है। मैं, इस समारोह के आयोजन के लिए भारत के उच्चतम न्यायालय को बधाई देती हूं। मुझे, आज यहां आपके बीच आने का अवसर देने के लिए मैं, भारत के मुख्य न्यायाधीश का आभार व्यक्त करती हूं।

धन्यवाद! 
जय हिन्द! 

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