भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का शिक्षक दिवस के अवसर पर सम्बोधन
नई दिल्ली : 05.09.2024
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आज महान विचारक एवं शिक्षाविद तथा भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर राधाकृष्णन की जयंती है। वे चाहते थे कि लोग उन्हें एक शिक्षक के रूप में याद करें। शिक्षक दिवस के इस अवसर पर, मैं सभी देशवासियों की ओर से उनकी स्मृति को नमन करती हूं।
आज स्कूली शिक्षा, उच्च शिक्षा तथा कौशल विकास के प्रशिक्षण में उत्कृष्ट योगदान के आधार पर पुरस्कार पाने वाले सभी शिक्षकों को मैं हार्दिक बधाई देती हूं। आपने अपनी प्रतिबद्धता के बल पर विद्यार्थियों को शिक्षा प्रदान करने में सराहनीय भूमिका निभाई है।
आज पुरस्कृत हुए शिक्षकों के योगदान पर लघु-फिल्में बनाकर इस समारोह के आयोजकों ने बहुत अच्छा काम किया है। इन लघु-फिल्मों को विषय-वस्तु प्रदान करने वाले शिक्षकों की जितनी भी प्रशंसा की जाए वह कम है। शिक्षकों ने बच्चों में अध्ययन के प्रति रूचि बढ़ाने के अद्भुत प्रयास किए हैं। उन्होंने पढ़ाने के नए-नए और रोचक तरीके निकाले हैं, नई technology का प्रयोग किया है, शिक्षा को समावेशी बनाने में योगदान दिया है। पूरे देश में, अनगिनत शिक्षक- गण निष्ठा के साथ कार्यरत हैं। सबको पुरस्कार देना संभव नहीं हो पाता है। मैं सभी देशवासियों की ओर से शिक्षक-समुदाय को उनके असाधारण प्रयासों के लिए धन्यवाद देती हूं।
प्रिय शिक्षक-गण,
गुरु, आचार्य और शिक्षक को हमारी परंपरा में बहुत आदर दिया जाता है। ‘गुरु’ शब्द, आध्यात्मिक ज्ञान देने वाले के लिए प्रयुक्त होता है। ‘आचार्य’ एवं ‘शिक्षक’ शब्दों का प्रयोग बौद्धिक और व्यावहारिक विद्या प्रदान करने वाले teachers के लिए होता है। आम बोलचाल में विद्यार्थियों द्वारा शिक्षकों को गुरुजी कहने की परंपरा रही है। खगोल शास्त्र के प्राचीन विद्वानों ने हमारे सौर-मण्डल के सबसे बड़े ग्रह को देवगुरु बृहस्पति का नाम दिया। यह Indian cosmology पर सामाजिक मूल्यों के प्रभाव का उदाहरण है। सप्ताह के एक दिन को बृहस्पतिवार या गुरुवार कहा जाता है। आज संयोग से गुरुवार है। हमारी परंपरा के अनुसार, प्रत्येक सप्ताह की तरह, आज का दिन आप सभी शिक्षकों-गुरुजनों को समर्पित है।
आज के दिन मुझे अपना वह समय याद आता है जब मैं ओडिशा के रायरंगपुर में श्री ऑरोबिंदो इंटीग्रल स्कूल में पढ़ाती थी। मुझे वहां बच्चों से न केवल अपार स्नेह मिला, बल्कि बहुत कुछ सीखने को भी मिला। आज भी जब मैं बच्चों या शिक्षकों के बीच होती हूं, मेरे अंदर का शिक्षक फिर से जीवंत हो जाता है। शिक्षा ही जीवन-निर्माण का सबसे प्रभावी माध्यम है। अपने जीवन के महत्वपूर्ण क्षणों में मुझे सहज ही स्कूल और शिक्षक याद आते हैं। इस वर्ष 25 जुलाई को राष्ट्रपति के मेरे कार्यकाल का दूसरा वर्ष सम्पन्न हुआ। मैंने निर्णय लिया कि उस दिन मैं राष्ट्रपति भवन परिसर में स्थित विद्यालय में बच्चों के साथ क्लास रूम में समय बिताऊँगी। बच्चों के साथ प्रकृति और पर्यावरण के विषय में बातचीत करके मुझे बहुत संतोष का अनुभव हुआ।
प्रिय शिक्षक-गण,
जीवन में आगे बढ़ना सफलता है लेकिन जीवन की सार्थकता इस बात में निहित है कि हम दूसरों की भलाई के लिए कार्य करें। हमारे अंदर करुणा-भाव हो। हमारा आचरण नैतिक हो। असल में सार्थक जीवन ही वास्तव में सफल जीवन है। यह बात विद्यार्थियों को समझाना आप सभी शिक्षकों का कर्तव्य है। आपको ऐसे नागरिक तैयार करने हैं जो शिक्षित होने के साथ-साथ संवेदनशील, ईमानदार एवं उद्यमी भी हों।
एक शिक्षक अपने आचरण एवं विचारों से विद्यार्थियों के जीवन में अमिट छाप छोड़ सकता है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का एक कथन इस संदर्भ में अत्यंत प्रासंगिक है। गांधीजी ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि उनके शिक्षकों ने पुस्तकों की मदद से उन्हें जो सिखाया था, वह उन्हें बहुत ही कम याद रहा है। पर पुस्तकों से अलग हट कर शिक्षकों ने स्वयं जो कुछ सिखाया था, उसका स्मरण बाद तक भी बना रहा। गांधीजी के कथन का भाव यह है कि बच्चे देखकर-सुनकर बहुत सारे मूल्य सीखते हैं और अपनाते हैं। इसलिए कक्षा के अंदर और बाहर आपका आचरण उत्कृष्ट होना चाहिए।
प्रिय शिक्षक-गण,
एक मूर्तिकार, मिट्टी से मूर्ति बनाता है। एक ही तरह की मिट्टी से कोई मूर्तिकार बहुत कलापूर्ण प्रतिमा बनाता है तो कोई दूसरा मूर्तिकार सामान्य प्रतिमा बनाता है। मिट्टी वही है, प्रतिमाओं में अंतर है। यह अंतर मूर्तिकार की कला और निष्ठा के कारण होता है। कोई बच्चा यदि अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाता है तो इसमें शिक्षण व्यवस्था और शिक्षकों की ज्यादा बड़ी ज़िम्मेदारी बनती है। किसी भी शिक्षा प्रणाली की सफलता में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका शिक्षकों की होती है। शिक्षण कार्य केवल एक नौकरी नहीं है। यह मानव निर्माण का पवित्र अभियान है।
प्राय: शिक्षकगण केवल परीक्षा में अच्छा प्रदर्शन करने वाले विद्यार्थियों पर विशेष ध्यान देते हैं। लेकिन श्रेष्ठ शैक्षिक प्रदर्शन, उत्कृष्टता का मात्र एक आयाम है। कोई बच्चा बहुत अच्छा खिलाड़ी हो सकता है। किसी बच्चे में नेतृत्व क्षमता होती है। कोई बच्चा सामाजिक कल्याण के कार्यों में उत्साहित होकर भाग लेता है। ऐसे आयामों की भी प्रशंसा होनी चाहिए। शिक्षक को प्रत्येक बच्चे की नैसर्गिक प्रतिभा को पहचान कर उसे बाहर लाना है।
देवियो और सज्जनो,
मैं आज एक और महत्वपूर्ण बात आपके बीच रखना चाहती हूं। हम महिला सशक्तीकरण की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। किसी भी समाज के विकास का एक महत्वपूर्ण मानक वहां की स्त्रियों की स्थिति है। इसके लिए आवश्यक है सही शिक्षा। अभिभावकों के साथ-साथ शिक्षकों की यह जिम्मेदारी है कि वे बच्चों को ऐसी शिक्षा दें कि वे सदैव महिलाओं की गरिमा के अनुकूल आचरण करें। महिला सम्मान की बात केवल शब्दों में नहीं बल्कि व्यवहार-रूप में हो।
प्रिय शिक्षक-गण,
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में कौशल-विकास पर विशेष जोर दिया गया है। इस नीति में प्रत्येक विद्यार्थी के लिए vocational experience प्राप्त करने पर बल दिया गया है। इस अनुभव से बच्चों का सर्वांगीण विकास होता है। समग्र विकास में skill development और entrepreneurship का भी उतना ही महत्व है जितना academic learning का है। हमारी संस्कृति में विश्वकर्मा को देवता का दर्जा दिया जाता है। आज कौशल-विकास से जुड़े शिक्षकों को भी सम्मानित किया गया है। मैं उनको विशेष बधाई देती हूं। उत्कृष्ट शिक्षकों को सम्मानित करने के इस सुविचारित आयोजन हेतु मैं शिक्षा मंत्री श्री धर्मेंद्र प्रधान जी, कौशल विकास और उद्यमशीलता एवं शिक्षा राज्य मंत्री श्री जयंत चौधरी जी, शिक्षा राज्य मंत्री डॉक्टर सुकान्तो मजूमदार जी तथा उनकी टीम के सभी सदस्यों की मैं सराहना करती हूँ।
प्रिय शिक्षक-गण,
गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर ने अनेक क्षेत्रों के साथ-साथ शिक्षा के विकास में भी अभिनव योगदान दिया है। गुरुदेव का स्पष्ट विचार था कि एक अध्यापक यदि स्वयं विद्या का निरंतर अर्जन नहीं करता रहता है तो वह सही अर्थों में शिक्षण का कार्य कर ही नहीं सकता है। जिस दीपक की शिखा प्रज्वलित नहीं रहती है उससे दूसरे दीपकों को प्रज्वलित करना असंभव है। मैं आशा करती हूं कि गुरुदेव के विचारों के अनुसार, शिक्षक के तौर पर आप सभी अपने ज्ञानार्जन की प्रक्रिया को निरंतर बनाए रखेंगे। ऐसा करने से आपका अध्यापन, और अधिक प्रासंगिक एवं रूचिकर बना रहेगा।
आपके विद्यार्थियों की पीढ़ी ही विकसित भारत का नेतृत्व करेगी। मैं चाहूंगी कि हमारे शिक्षकों और विद्यार्थियों की सोच वैश्विक हो और उनकी दक्षता विश्व-स्तरीय हो। महान शिक्षक ही महान राष्ट्र का निर्माण करते हैं। विकसित मानसिकता वाले शिक्षक-गण ही विकसित राष्ट्र बनाने वाले नागरिकों का निर्माण कर सकते हैं। मैं आशा करती हूं कि हमारे शिक्षक-गण वर्ष 2047 तक विकसित भारत के निर्माण के राष्ट्रीय लक्ष्य को राष्ट्रीय शिक्षा नीति के साथ जोड़कर देखेंगे। मुझे विश्वास है कि विद्यार्थियों को प्रेरित करते हुए हमारे शिक्षक-गण, भारत को विश्व का ज्ञान-केंद्र बनाएंगे।
धन्यवाद,
जय हिन्द!
जय भारत!