भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में सम्बोधन (HINDI)

नई दिल्ली : 10.03.2023

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आज Ph.D. की उपाधि प्राप्त करने वाले सभी विद्यार्थियों को मैं हार्दिक बधाई देती हूं। यह उपलब्धि आप सबके गहरे अध्ययन और शोध का परिणाम है। इसके लिए मैं आप सबकी, और सभी Research Supervisors की सराहना करती हूं।

आज लगभग 948 विद्यार्थियों को डॉक्टरेट की उपाधि प्रदान की गई। मुझे बताया गया है कि यह एक प्रकार का राष्ट्रीय कीर्तिमान है। इसके लिए भी मैं JNU परिवार को बधाई देती हूं। लेकिन, इससे भी अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि JNU के अध्ययन-अध्यापन और शोध कार्य में गुणवत्ता होती है। यह गुणवत्ता विशेष रूप से उल्लेखनीय भी है और सराहनीय भी।

मुझे यह भी बताया गया है कि भारत सरकार द्वारा वर्ष 2022 के National Institutional Ranking Framework के तहत JNU को देश के विश्वविद्यालयों में द्वितीय स्थान प्राप्त हुआ है। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि इस Ranking के तहत वर्ष 2017 से JNU लगातार द्वितीय स्थान पर बना हुआ है। इस निरंतर उपलब्धि के लिए मैं JNU की टीम के सभी वर्तमान तथा पूर्ववर्ती सदस्यों को बधाई देती हूं।

Ladies and gentlemen,

JNU is a relatively young university. I look at it as a meaningful historical coincidence that JNU began to function in the year of Mahatma Gandhi’s centenary celebrations in 1969. It is pertinent to remember the statement of Nehruji, on the emergence of Bapu, on the stage of our freedom struggle. He had said, and I quote, "… And then Gandhi came … He did not descend from the top: he seemed to emerge from the millions of India, speaking their language and incessantly drawing attention to them and their appalling condition.” [Unquote].

Nehruji also mentioned the ideals of Janaka and Yajnavalkya while describing Gandhiji’s approach. It is important to focus on the Indianness of Bapu’s approach. Universalism and humanism have been integral to the Indian ethos. Let us take pride in the genius of India.

JNU is situated on the beautiful Aravali Hills. Students from all over India study in the University. They live together on the campus. That helps widen their perspective about India and the world. The University presents a lively reflection of the cultural unity of India amid the diversities. Students from many other countries also study in the University. Thus, JNU’s attraction as a centre of learning goes beyond India.

प्यारे विद्यार्थियो,

सामाजिक संवेदनशीलता तथा समावेश, और महिला सशक्तीकरण के संदर्भ में, JNU अपनी प्रगतिशील प्रणालियों और समृद्ध योगदान के लिए विख्यात है। मुझे बताया गया है कि विश्वविद्यालय में एक Equal Opportunity Office है। ऐसी व्यवस्था और उसका प्रभावी उपयोग सराहना करने योग्य है।

यह प्रसन्नता का विषय है कि आज के दीक्षांत समारोह में उपाधि प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों में, महिलाओं की संख्या पुरुषों से अधिक है। यह सामाजिक बदलाव का एक प्रमुख पक्ष है। महिलाओं की सुरक्षा के लिए JNU Campus की सराहना होती है। मुझे बताया गया है कि लड़कियां निडर होकर देर रात भी पुस्तकालयों में अथवा अपनी इच्छानुसार अन्य स्थानों पर जा सकती हैं।

JNU के कुलपतियों, आचार्यों और विद्यार्थियों ने शिक्षा और शोध, राजनीति, सिविल सेवा, diplomacy, सामाजिक कार्य, science & technology, मीडिया, साहित्य, कला और संस्कृति सहित विभिन्न क्षेत्रों में देश-विदेश में प्रभावशाली योगदान दिया है। मेरे प्रख्यात पूर्ववर्तियों में से एक, श्री के. आर. नारायणन ने विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में सेवा प्रदान की थी। JNU के दो विशिष्ट पूर्व छात्र, श्रीमती निर्मला सीतारमण और डॉक्टर एस. जयशंकर, केंद्रीय मंत्रिमंडल की सुरक्षा समिति के सदस्य हैं, जो अपने आपमें एक प्रतिमान है। JNU के पूर्व छात्रों की सूची अत्यंत प्रभावशाली है। इस विश्वविद्यालय का इतिहास लगभग पांच दशकों का ही है, यह देखते हुए इस संस्थान का योगदान और भी अधिक प्रशंसनीय है।

प्यारे विद्यार्थियो,

भारत सहित, विश्व की सभी महान सभ्यताओं ने, अपनी धरती और भाव-भूमि से अपना पोषण ग्रहण किया है। साथ ही, ऐसी सभ्यताओं ने विश्व की अन्य विचार-धाराओं का भी यथोचित समावेश किया है। हमारी परंपरा में कहा गया है:

अति सर्वत्र वर्जयेत्

अर्थात

जीवन के सभी क्षेत्रों में, अतिवाद से बचना चाहिए।

विश्वविद्यालय ज्ञान के अर्जन और सृजन का केंद्र होते हैं। JNU के मेधावी विद्यार्थी ज्ञान के अर्जन और नवीन ज्ञान के सृजन के विश्‍वस्‍तरीय प्रतिमान स्‍थापित करते रहे है और भविष्‍य में भी करते रहेंगे, यह मेरा विश्‍वास है।

My dear students and faculty of the University,

The vision, mission and objectives of the University were articulated in its founding legislation. These basic ideals include national integration, social justice, secularism, democratic way  
of life, international understanding and scientific approach to the problems of society. The University community is to remain steadfast in its adherence to these foundational principles.

यह उल्लेखनीय है कि हमारे संवैधानिक लोकतन्त्र को सुरक्षित रखने के उद्देश्य से, बाबासाहब आंबेडकर ने सामाजिक और आर्थिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए संवैधानिक माध्यमों को अपनाने पर ज़ोर दिया था। उन्होंने असंवैधानिक तौर-तरीकों के परित्याग का आह्वान किया था।

प्यारे विद्यार्थियो,

शिक्षा का एक प्रमुख उद्देश्य चरित्र निर्माण भी होता है। तात्कालिक बहाव में आकर, चरित्र निर्माण के अमूल्य अवसर को कभी भी गंवाना नहीं चाहिए। युवा विद्यार्थियों में जिज्ञासा के साथ-साथ, प्रश्न करने और तर्क की कसौटी का उपयोग करने की सहज प्रवृत्ति होती है। इस प्रवृत्ति को सदैव प्रोत्साहित करना चाहिए। युवा पीढ़ी द्वारा अवैज्ञानिक रूढ़ियों के विरोध को भी प्रोत्साहित करना चाहिए। विचारों को खारिज करना या स्वीकार करना, वाद-विवाद और संवाद पर आधारित होना चाहिए।

विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों और शिक्षकों को पूरे विश्व समुदाय के बारे में चिंतन करना है। जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण, युद्ध और अशांति, आतंकवाद, महिलाओं की असुरक्षा तथा असमानता जैसी अनेक समस्याएं मानव समाज के समक्ष चुनौतियां प्रस्तुत कर रही हैं। इनके विषय में सचेत तथा सक्रिय रहना विश्वविद्यालयों का दायित्व है।

प्राचीन काल से लेकर आज तक दुनिया के प्रमुख विश्वविद्यालयों ने व्यक्ति और समाज की समस्याओं का समाधान खोजा है तथा मानव समाज के लक्ष्यों को प्राप्त करने में योगदान दिया है। प्राचीन भारत के एक काल-खंड में, गौतम बुद्ध ने करुणा, अहिंसा और समानता पर आधारित समाज के निर्माण का संदेश दिया था। नालंदा विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों और शिक्षकों ने बुद्ध के आदर्शों को मानवता के हित में प्रसारित किया। उसी प्रकार, आज के युग में, हमारे स्वाधीनता संग्राम के आदर्शों को बनाए रखने, संविधान के मूल्यों का संरक्षण करने, राष्ट्र-निर्माण के लक्ष्यों को प्राप्त करने एवं पूरी मानवता के हित में कार्य करने में JNU जैसे विश्वविद्यालय अपना प्रभावी योगदान देंगे, यही मेरी अपेक्षा है, और मेरा आग्रह भी है।

वर्ष 2047 के बाद जब विकसित भारत का इतिहास लिखा जाएगा तब JNU का योगदान स्वर्णाक्षरों में अंकित होगा, इसी कामना के साथ मैं अपनी वाणी को विराम देती हूं।

धन्यवाद,  
जय हिन्द!  
जय भारत!

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