भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का आदि गौरव सम्मान समारोह में सम्बोधन
मानगढ़ धाम - बांसवाड़ा : 04.10.2024
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आज ‘आदि गौरव सम्मान’ प्राप्त करने वाले सभी व्यक्तियों और संस्थाओं को मैं बहुत-बहुत बधाई देती हूं। व्यक्तिगत सम्मान प्राप्त करने वाले लोगों में महिलाओं की संख्या अधिक है। यह आदिवासी समाज के लिए, राजस्थान के लिए और पूरे देश के लिए गौरव की बात है। यह मैं इसलिए कह रही हूं कि महिलाओं का विकास, किसी भी समाज के विकास का आईना है। इस सम्मान समारोह से यह भी सिद्ध हुआ है कि जनजाति समुदाय के लोगों में बहुमुखी क्षमता है और उन्होंने अनेक क्षेत्रों में अमूल्य योगदान दिया है।
हमारे जनजातीय शिल्पकार भाई-बहन अपने हाथों से बहुत सुंदर चीजें बनाते हैं। यहां के ‘बनफूल’ स्टुडियो का जितना सुंदर नाम है, उतना ही सुंदर काम है। ट्राइफेड तथा अन्य संस्थानों द्वारा जनजातीय भाई-बहनों द्वारा बनाए हुए उत्पादों को बाजार तक पहुंचाने के प्रयासों की मैं सराहना करती हूं।
जनजाति-बहुल गांवों में, बच्चों को अनौपचारिक शिक्षा और पोषण प्रदान करने के लिए स्थापित मां-बाड़ी समूहों की स्नेही माताओं और प्यारे बच्चों से मिलकर मुझे बहुत खुशी हुई है। जनजातीय समुदाय में लोकप्रिय खेलों, तीरंदाजी और लैक्रोस के बारे में खिलाड़ियों से बात करके मुझे बहुत प्रसन्नता हुई है। मुझे यह जानकर बेहद खुशी हुई है कि राजस्थान की आदिवासी बेटी सुनीता मीना, देश की लैक्रोस टीम की कप्तान चुनी गई हैं। राजस्थान के जनजातीय समाज के बेटे और बेटियां खेलकूद की राष्ट्रीय और अंतर-राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में आदिवासी समाज का, राज्य का और देश का गौरव बढ़ा रहे हैं। उनमें से कई खिलाड़ी यहां उपस्थित हैं। राज्य के सभी खिलाड़ियों को मैं शाबाशी देती हूं।
यहां स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी, राजीविका सखियां बड़ी संख्या में मौजूद हैं। उनके अमूल्य योगदान के लिए मैं उनकी विशेष सराहना करती हूं। इस कार्यक्रम में, राजीविका सखियों की प्रतिनिधि बहनों को चेक प्रदान करके मुझे बहुत प्रसन्नता हुई है।
जनजातीय नृत्यों में सहजता और ऊर्जा होती है। आज प्रस्तुत किए गए नृत्यों को देखकर मैं अभिभूत हुई हूं। मैं सभी कलाकारों की प्रशंसा करती हूं। राज्य सरकार के कृषि विभाग की योजनाओं से आर्थिक रूप से लाभान्वित होने वाले हजारों लाभार्थियों को मैं बधाई देती हूं।
जनजातीय समुदायों, किसानों और महिलाओं सहित वंचित वर्गों के कल्याण और विकास हेतु अनेक क्षेत्रों में सक्रियता के लिए मैं मुख्यमंत्री श्री भजन लाल शर्मा जी तथा राज्य सरकार की उनकी पूरी टीम को साधुवाद देती हूं। दो दिन पहले ही, गांधी जयंती के दिन, प्रधानमंत्री जी के द्वारा, राष्ट्रीय स्तर पर ‘धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान’ का शुभारंभ किया गया है। इस अभियान द्वारा पांच करोड़ से अधिक जनजातीय समाज के लोगों को लाभान्वित करने का लक्ष्य तय किया गया है। मुझे विश्वास है कि यह अभियान आदिवासी समाज के गौरव को बढ़ाने का सशक्त माध्यम बनेगा।
आज मुझे जन-सेवा की अपनी यात्रा की शुरुआत का वह समय भी याद आ रहा है जब मैं Tribes Advisory Council की सदस्य थी जिसे राजस्थान में ‘अनुसूचित जनजाति परामर्श-दात्री परिषद’ कहा जाता है।
देवियो और सज्जनो,
लगभग 450 साल पहले, राजस्थान में, महाराणा प्रताप के साथ कंधे से कंधा मिलाकर जन्म-भूमि के गौरव के लिए मर-मिटने वाले आदिवासी वीरों को पूरा देश याद करता है। हल्दी-घाटी से लेकर मानगढ़ के नरसंहार तक, असंख्य आदिवासी वीरों के बलिदान की साक्षी रही इस पावन भूमि को मैं प्रणाम करती हूं।
कुछ देर पहले मुझे, पवित्र मानगढ़ धाम में, पूज्य गोविंद गुरु की अलौकिक ज्योति की प्रतीक, धुणी का दर्शन करने का अवसर मिला। उसके बाद मैंने ‘मानगढ़ धाम स्मारक स्थल’ पर अपने प्राणों की आहुति देने वाले शहीदों के सम्मान में पुष्पांजलि अर्पित की। वह स्मारक देश-प्रेमियों के लिए एक तीर्थ-स्थल है। मैं पूज्य गोविंद गुरु और उनके अनुयायी आदिवासी वीरों की स्मृति को सादर नमन करती हूं।
आने वाले 30 अक्तूबर के दिन, हर साल की तरह, हम सब गोविंद गुरु जी की पुण्य तिथि मनाएंगे। उसके बाद, भगवान बिरसा मुंडा की जयंती के दिन, 15 नवंबर को, सभी देशवासी ‘जनजातीय गौरव दिवस’ मनाएंगे। पिछले कुछ वर्षों में जनजातीय गौरव के बारे में देश भर में एक नई चेतना का संचार हुआ है।
हमारे देश में, गुलामी की मानसिकता को समाप्त करने का राष्ट्रीय लक्ष्य तय किया गया है। यह उल्लेखनीय है कि जनजातीय समाज के लोग गुलामी की मानसिकता से हमेशा मुक्त रहे हैं।
इस पावन धरती पर, मानगढ़ आंदोलन से जुड़ा, आत्म-सम्मान से भरा हुआ, भील समुदाय का यह गीत याद आता है:
भूरेटिया, नई मानूं रे नई मानूं...
दिल्ली मा मारी गादी है
बेणेश्वर मारो लेखो है
मानगढ़ मारो झगड़ो है
... नई मानूं रे नई मानूं
अर्थात
अंग्रेज! तेरी बात मैं नहीं मानूं, नहीं मानूं
दिल्ली में मेरा आसन है
बेणेश्वर मेरा ग्रंथ है
मानगढ़ मेरा ऐलान है
अंग्रेज! तेरी बात मैं नहीं मानूं, नहीं मानूं।
यह गीत, स्वाधीनता संग्राम के दौरान, एक बहुत बड़े क्षेत्र में, जनजातीय समाज के आत्म-विश्वास का उद्घोष रहा है।
17 नवंबर, 1913, हमारे स्वाधीनता संग्राम तथा जनजातीय आंदोलनों की एक अत्यंत दुखद तारीख है। उस दिन, इसी मानगढ़ धाम में, अंग्रेजों ने, भील समुदाय के 1500 से अधिक बहादुरों की निर्मम हत्या कर दी थी। उस गौरवशाली बलिदान के बारे में पूरे देश के लोगों को, विशेषकर युवाओं को जानकारी होनी चाहिए। शौर्य गाथाएं, शिक्षा का अभिन्न अंग होती हैं।
देवियो और सज्जनो,
मुझे यह जानकर बहुत प्रसन्नता हुई है कि बांसवाड़ा जिले में जनजातीय छात्र-छात्राओं के लिए छह तथा पूरे राज्य में 30 एकलव्य मॉडल रेजीडेंशियल स्कूल संचालित किए जा रहे हैं। राजस्थान सरकार के जनजातीय क्षेत्रीय विकास विभाग द्वारा लगभग 425 आश्रम छात्रावास संचालित किए जा रहे हैं। उन छात्रावासों में निशुल्क आवास, भोजन, कपड़े तथा अन्य सुविधाएं दी जा रही हैं। इसके अलावा राज्य सरकार द्वारा अनेक आदर्श विद्यालय, छात्रावास तथा स्पोर्ट्स हॉस्टल भी संचालित किए जा रहे हैं। मुझे बताया गया है कि उन छात्रावासों से हजारों विद्यार्थी लाभान्वित हो रहे हैं।
छात्रावासों का उल्लेख करते हुए मुझे अपने विद्यार्थी जीवन की याद आ रही है। कक्षा सात तक अपने गांव में पढ़ाई करने के बाद, मैंने भुवनेश्वर जाकर आगे की पढ़ाई पूरी की थी। यदि छात्रावास की सुविधा नहीं मिली होती तो शायद मेरी आगे की पढ़ाई मुश्किल से हुई होती या उसमें रुकावट भी आ सकती थी। आज मैं आपके सामने खड़ी हूं तो केवल शिक्षा के बल पर। मैं आप सबसे अनुरोध करती हूं कि अपने बेटे-बेटियों को जरूर पढ़ाइए। उन्हें अच्छी से अच्छी पढ़ाई करने का अवसर दीजिए और उनका उत्साह बढ़ाते रहिए।
बांसवाड़ा में स्थित गोविंद गुरु जनजातीय विश्वविद्यालय की स्थापना से यहां के जनजातीय युवाओं को उच्च शिक्षण की सुविधा स्थानीय स्तर पर उपलब्ध हो रही है। यह सुविधा उनके लिए विकास के बहुत से रास्ते तैयार करेगी।
मैं आशा करती हूं कि जनजातीय समुदाय सहित, राजस्थान के लोग, विकास के नए प्रतिमान स्थापित करेंगे। मैं राजस्थान के सभी निवासियों के स्वर्णिम भविष्य की मंगल-कामना करती हूं।
धन्यवाद,
जय हिन्द!
जय भारत!