भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का 8 th India Water Week - 2024 के उद्घाटन समारोह में सम्बोधन

New Delhi : 17.09.2024

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यह आयोजन, भारत सहित, पूरे विश्व-समुदाय के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। जल-संसाधन के क्षेत्र से जुड़े देश-विदेश के प्रतिभागियों को प्रभावी मंच प्रदान करने के लिए मैं जल-शक्ति मंत्रालय की पूरी टीम की सराहना करती हूं। आप सभी प्रतिभागियों ने पूरी मानवता से जुड़े एक अत्यंत महत्वपूर्ण विषय पर चिंतन-मंथन करने के लिए उत्साह दिखाया है। इसके लिए मैं आप सबकी प्रशंसा करती हूं। मुझे बताया गया है कि जल-संसाधन के विभिन्न आयामों से जुड़े नीति-निर्माता, विशेषज्ञ, प्रबुद्ध नागरिक, उपभोक्ता समूह और अन्य सभी हितधारक गहन विचार-विमर्श करेंगे तथा भविष्य के लिए व्यावहारिक सुझाव प्रस्तुत करेंगे।

इस ‘भारत जल सप्ताह-2024’ का लक्ष्य है - समावेशी जल-विकास और प्रबंधन। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आपने सही माध्यम चुना है। वह माध्यम है - साझेदारी और सहयोग।

समावेशी जल-विकास का अर्थ है – ‘जल-सर्वोदय’ - अर्थात प्रत्येक व्यक्ति के लिए जल की उपलब्धता सुनिश्चित हो। सबके लिए जल उपलब्ध कराने की व्यवस्था, प्राचीन काल से ही हमारे देश की प्राथमिकता रही है। आज से लगभग 23 सौ वर्ष पहले के ग्रन्थ ‘अर्थ-शास्त्र’ में कौटिल्य ने लिखा है कि 10 परिवारों के लिए एक सार्वजनिक कुआं उपलब्ध होना चाहिए। उस ग्रंथ में उल्लेख किया गया है कि पानी के बहाव की व्यवस्था कराना नगर के अधिकारियों की ज़िम्मेदारी है; यदि कोई व्यक्ति पानी के बहाव को रोकता है तो उस पर जुर्माना लगेगा। सदियों की विकास-यात्रा के बाद भी, आज के युग में हम देखते हैं कि water drainage पर निर्मित अवरोधों के कारण, बारिश होने पर, जगह-जगह जलभराव और बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है, जन- जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है।

चन्द्रगुप्त मौर्य और कौटिल्य से भी बहुत पहले ऋग्वेद में पानी के महत्व के बारे में अनेक उल्लेख मिलते हैं। हमारे समाज में जल-संसाधन को बहुत मूल्यवान माना जाता था। ऋग्वेद की एक ऋचा है:

अप्सु अन्तः अमृतम् 
अप्सु भेषजम्

अर्थात - जल में अमृत है, जल में औषधि है।

यानी जल जीवनदायी अमृत की तरह है - मानवता के लिए तथा सभी प्राणियों और वनस्पतियों के लिए।

आजादी का अमृत महोत्सव मनाने के दौरान देश में 60 हजार अमृत सरोवरो का विकास अथवा पुनरुद्धार किया गया। यह प्रयास जल-संचय की हमारी सांस्कृतिक परंपराओं से जुड़ा हुआ है। लद्दाख से लेकर केरल तक, हमारे देश में, जल-संचय और प्रबंधन की प्रभावी पद्धतियां विद्यमान थीं। ऐसी पद्धतियां अंग्रेजी शासन के दौरान धीरे-धीरे लुप्त होती गईं। हमारी पद्धतियां प्रकृति के साथ सामंजस्य पर आधारित थीं। प्रकृति पर नियंत्रण करने की सोच के आधार पर विकसित पद्धतियों के बारे में, पूरे विश्व में, अब फिर से विचार किया जा रहा है। प्रकृति के साथ सामंजस्य के मार्ग को बेहतर माना जा रहा है।

Water Resource Management के विभिन्न प्रकार के अनेक प्राचीन उदाहरण पूरे देश में उपलब्ध हैं जो आज भी प्रासंगिक हैं। हमारी प्राचीन जल- प्रबंधन प्रणालियों पर शोध होना चाहिए और आधुनिक संदर्भ में उनका व्यावहारिक उपयोग होना चाहिए।

सरोवर, कुआं, तालाब, जल-कुंड और पोखरी, ऐसे सभी जल-निकाय, सदियों से हमारे समाज के लिए water-bank रहे हैं। आप bank में पैसा deposit करते हैं। उसके बाद ही आप bank से पैसा निकाल कर उसका उपयोग कर सकते हैं। यही बात पानी के विषय में लागू होती है। मानव समाज के लोग पहले जल- संचय करेंगे तभी वे जल का उपयोग कर पाएंगे। धन का दुरुपयोग करने वाले लोग संपन्नता से निर्धनता की स्थिति में चले जाते हैं। उसी तरह वर्षा से समृद्ध क्षेत्रों में भी जल का अभाव दिखाई देता है। सीमित आय का समझदारी से उपयोग करने वाले लोग अपने जीवन में आर्थिक संकट से बचे रहते हैं। उसी तरह कम वर्षा वाले क्षेत्रों में जल का संचय करने वाले ग्राम-समूह जल संकट से बचे रहते हैं। भारत में राजस्थान और गुजरात के कई क्षेत्रों में ग्रामवासियों ने अपने प्रयासों से, जल-संचय के प्रभावी तरीके अपनाकर, जल के अभाव से मुक्ति पाई है। आज दो बहनों ने अपने अनुभव साझा किए हैं कि कैसे उन्होंने अपने क्षेत्र में जल की असुविधा को दूर किया है। वे सही मायने में प्रशंसा की पात्र हैं। इसी तरह हम सब अपने क्षेत्र में प्रयास करेंगे तो जल के अभाव को दूर कर सकते हैं। हम जानते हैं कि जंगलों और पहाड़ों में जीवित झरना होता है जो कभी मरता नहीं हैं। झरने के इस पानी का हम संचय कर सकते हैं और सुबह से शाम तक के पानी की जरूरत के लिए उपयोग कर सकते हैं। आप सरकार को भी बता सकते हैं कि कहां झरना है और कहां पानी की आवश्यकता है। जैसे कि इन दो बहनों ने सरकार के सहयोग से, पानी की समस्या को दूर किया है।

जल-संचय के बारे में तो मैं यहां तक कहना चाहूंगी कि पानी की एक-एक बूंद मोती की तरह मूल्यवान होती है। उसे संचित करने का हर उपाय हमें करना है। हमारे यहां लोकप्रिय कहावत है कि बूंद-बूंद से सागर भरता है। बूंद-बूंद से सागर भरने के इस प्रयास में सभी देशवासियों की तथा जल-प्रबंधन से जुड़े सभी हितधारकों की भागीदारी आवश्यक है।

देवियो और सज्जनो,

यह प्रसन्नता की बात है कि ‘जल जीवन मिशन’ के तहत ग्रामीण घरों में नल से जल पहुंचाने के सरकार के प्रयासों से, बहुत कम समय में, बहुत बड़ा बदलाव आया है। मुझे बताया गया है कि पूरे देश में 78 प्रतिशत से अधिक ग्रामीण घरों तक नल का कनेक्शन पहुंचाया जा चुका है।

केंद्र सरकार ने वर्ष 2021 में Catch the Rain – Where it Falls When it Falls के संदेश के साथ शहरी तथा ग्रामीण क्षेत्रों में ब्लॉक स्तर पर एक अभियान शुरू किया है। इस अभियान का उद्देश्य जल संरक्षण, वर्षा के जल का संचय तथा जल-प्रबंधन के अन्य महत्वपूर्ण लक्ष्यों को प्राप्त करना है। वन- संपदा को बढ़ाना भी जल-प्रबंधन में सहायक होता है। व्यापक स्तर पर वृक्षारोपण के द्वारा भूजल का स्तर ऊपर उठता है। मुझे विश्वास है कि सभी देशवासियों की भागीदारी से ‘एक पेड़ मां के नाम’ लगाने का अभियान बहुत प्रभावी सिद्ध होगा। जल संचय और प्रबंधन में बच्चों की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यहाँ बहुत सारे बच्चे आए हैं। वे देश का भविष्य हैं। हम पानी का उपयोग सुबह से शाम तक करते हैं। जल नहीं, तो जीवन नहीं। इसलिए बच्चों को भी जानकारी होनी चाहिए। वे अपने परिवार और पास-पड़ोस को जागरूक कर सकते हैं और खुद भी जल का समुचित उपयोग कर सकते हैं।

जन-शक्ति के बल पर ही जल-शक्ति का समुचित संग्रह और उपयोग किया जा सकता है। जल-शक्ति के समुचित संचय तथा उपयोग के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए हमें जन-भागीदारी से भी आगे जाना होगा; जल-शक्ति के प्रयासों को जन-आंदोलन का रूप देना होगा; सभी नागरिकों को जल-योद्धा की भूमिका निभानी होगी। जैसे कि हमारी बहनें जल योद्धा के रूप में कार्य कर रही हैं।

देवियो और सज्जनो,

विश्व समुदाय ने, संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा अपनाए गए Sustainable Development Goals के तहत, वर्ष 2030 तक, सभी के लिए जल की उपलब्धता तथा स्वच्छता को सुनिश्चित करने का लक्ष्य रखा है। इन लक्ष्यों में, महिलाओं और लड़कियों की जल तथा स्वच्छता संबंधी आवश्यकताओं का विशेष उल्लेख किया गया है। जल के अभाव से पीड़ित लोगों की संख्या कम करने का लक्ष्य, पूरी मानवता के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। Sustainable Development Goals के तहत, जल और स्वच्छता प्रबंधन में सुधार के लिए स्थानीय समुदायों की भागीदारी को समर्थन देने और मजबूत बनाने पर ज़ोर दिया गया है। इस आयोजन का विषय भी भागीदारी और सहयोग पर केन्द्रित है।

पृथ्वी पर उपलब्ध कुल पानी का 2.5 प्रतिशत ही fresh water या मीठा पानी होता है। उसमें भी एक प्रतिशत ही मानव समाज के उपयोग के लिए उपलब्ध हो पाता है। जल-संसाधन सीमित हैं। उनके सक्षम उपयोग से ही सबके लिए जल की आपूर्ति संभव है। विश्व के जल-संसाधन में भारत का हिस्सा चार प्रतिशत है। हमारे देश में उपलब्ध जल का लगभग 80 प्रतिशत कृषि-क्षेत्र के उपयोग में आता है। कृषि के अलावा विद्युत उत्पादन, उद्योग तथा घरेलू जरूरतों के लिए पानी की उपलब्धता अनिवार्य है। पानी के सक्षम उपयोग द्वारा ही संतुलित तरीके से विभिन्न क्षेत्रों की आवश्यकताओं को पूरा किया जा सकता है।

मैं आशा करती हूं कि इस आयोजन में होने वाले व्यापक विचार-विमर्श के आधार पर, सभी हितधारकों द्वारा, साझीदारी और सहयोग के प्रभावी तरीके तय किए जाएंगे। मैं चाहूंगी कि सभी प्रतिभागी सर्व समावेशी जल-प्रबंधन व्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए हर संभव प्रयास करें। आज हम सब जल- सर्वोदय का संकल्प लें। इस शुभ संकल्प को सिद्ध करने के मार्ग पर आप सब तेजी से आगे बढ़ें, इसी कामना के साथ मैं अपनी वाणी को विराम देती हूं।

धन्यवाद, 
जय हिन्द! 
जय भारत!

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