भारत की माननीय राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का वर्ल्ड फूड इंडिया 2023 के समापन समारोह में संबोधन
नई दिल्ली : 05.11.2023
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वर्ल्ड फूड इंडिया (डब्ल्यूएफआई) के समापन सत्र में आपके बीच आकर मुझे खुशी हो रही है। मैं, भारत के सभी क्षेत्रों और विदेशों से आए सभी प्रतिनिधियों और प्रतिभागियों को अपनी शुभकामनाएं देती हूं।
2017 में पहले संस्करण के बाद डब्ल्यूएफआई के दूसरे संस्करण के आयोजन के लिए खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय की सराहना की जानी चाहिए। मंत्रालय का लक्ष्य, इसे देश का सबसे बड़ा प्रसंस्कृत खाद्य शो बनाना और इसका प्रतिवर्ष आयोजन करना है। मुझे लगता है कि डब्ल्यूएफआई समृद्ध भारतीय खाद्य संस्कृति का विश्व में प्रसार करने में बहुत मदद करेगा। यह, इस क्षेत्र में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों को बड़े घरेलू और वैश्विक उद्यमिओं के साथ बेहतर ढंग से जुडने का एक बड़ा मंच साबित होगा।
व्यापारिक दृष्टिकोण से, भारत एक रोमांचक अवसर प्रदान करता है। भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था एक बड़ा बाजार प्रदान करती है। इसके अलावा, कृषि और खाद्य प्रसंस्करण का इसका गहन ज्ञान का आधार हम सबके लिए लाभदायक है। मेरे मन में, मोटे अनाज का ख्याल आता है, जिसने पीढ़ियों-दर-पीढ़ी हमारा पोषण किया है, लेकिन शहरों में इसे भुला दिया गया और अब इसके बारे में फिर से जाना गया है। उनकी महान पोषण क्षमता को ध्यान में रखते हुए, संयुक्त राष्ट्र ने 2023 को मोटा अनाज वर्ष घोषित किया है।
मुझे बताया गया है कि डब्ल्यूएफआई के 2017 संस्करण में बड़ी संख्या में निवेश अवसर प्राप्त हुए और अब तक 22,711 करोड़ रुपये का निवेश पूरा हो चुका है। मुझे यकीन है कि इस संस्करण में भी निवेशकों को हमारे खाद्य प्रसंस्करण और संबद्ध क्षेत्रों में अनेक अवसर दिखाई दिए होंगे। डब्ल्यूएफआई में भारत को दुनिया के लिए रसोई-घर बनने में मदद करने की क्षमता है।
यह आयोजन भारत को कृषि और खाद्य वस्तुओं के सोर्सिंग केंद्र के रूप में स्थापित करने के लिए एक आदर्श मंच है। यह वैश्विक बाज़ार में भारतीय विक्रेताओं के लिए पर्याप्त अवसर पैदा कर सकता है।
नवप्रवर्तकों और उद्यमियों को यहां काफी अवसर मिले होंगे। वे भारत की महिलाओं से भी बहुत कुछ सीख सकते हैं। यहां की महिलाओं ने सदियों से विभिन्न प्रकार के जैम, अचार आदि की रेसिपी बनाकर खाद्य प्रसंस्करण में नवाचार किया है। वे घर से लघु-स्तरीय खाद्य-संबंधित उद्योग चलाकर मॉडल उद्यमी भी बनी हैं। मुझे यह जानकर खुशी हुई कि, इस आयोजन के उद्घाटन सत्र के दौरान, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी ने खाद्य प्रसंस्करण गतिविधियों में शामिल स्वयं सहायता समूहों के एक लाख से अधिक सदस्यों को प्रारंभिक पूंजी के रूप में सहायता प्रदान करने का प्रस्ताव रखा।
सभी संस्कृतियों में भोजन के विषय पर कई दिलचस्प बातें हैं। हमारे यहाँ कई कहावतें हैं, जिनका मूल भाव है, जैसा हम खाते हैं, वैसे हम बन जाते हैं। ऐसी स्थिति में, हम इस महत्वपूर्ण विषय पर जितना भी ध्यान दें वह कम है। हालाँकि, यह कार्यक्रम आज समाप्त हो रहा है, लेकिन मुझे विश्वास है कि आप यहां शुरू हुई बातचीत पर कार्य करेंगे। इन तीन दिनों की बातचीत से अवश्य ही सहयोग को बढ़ावा मिला होगा।
प्यारे मित्रों,
भोजन, जैसा कि आप जानते हैं, मानव जाति में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। हज़ारों साल पहले, जब मनुष्य एक अनोखी प्रजाति के रूप में विकसित होने लगा, तो भाषा और भोजन ऐसे कारक थे जिनसे मनुष्य अन्य जतियों से अलग बना। चारागाह से कृषि और कच्चे भोजन से पके भोजन को अपनाने से सभ्यता की शुरुआत हुई। भोजन निश्चित रूप से किसी भी संस्कृति का महत्वपूर्ण पक्ष है। भारत में, हम अपनी विशाल विविधता पर गर्व करते हैं और यह विविधता हमारी खाने की प्लेटों में भी देखी जा सकती है।
इसके अलावा, जिस तरह भोजन अनजानों के बीच संबंध बनाने में मदद करता है, उसी तरह भोजन से ही इतिहास की विभिन्न संस्कृतियों में निकटता बनी है। पहले दुनिया के किसी एक हिस्से में सबसे उगाए जाने वाले फल और सब्जियाँ आज दुनिया के अन्य सभी हिस्सों उगाए जाते हैं। मसालों के व्यापार से राष्ट्रों और वैश्वीकरण के बीच व्यापार को गति मिली है।
देवियो और सज्जनो,
भोजन प्रत्येक मनुष्य के लिए जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं में से एक है। यह सोचकर भी कष्ट होता है कि दुनिया के अनेक हिस्सों में बड़ी संख्या में लोगों को खाली पेट सोना पड़ता है। इससे मानव जाति द्वारा हासिल की गई महान आर्थिक और तकनीकी प्रगति पर सवाल उठते हैं। तब अलग बात थी, जब दुनिया में सभी को खिलाने के लिए पर्याप्त उत्पादन नहीं हो रहा था। विज्ञान के कारण पैदावार बढ़ी है और इसके बढ़ने की और अधिक संभावना है। बड़े पैमाने पर भुखमरी, उत्पादन की कमी के कारण नहीं, बल्कि वितरण की कमी के कारण है।
क्या यह समानुभूति की कमी के कारण भी हो रहा है? मैं ऐसा नहीं समझती. महामारी के दौरान, जब बहुत से लोग परिवार का भरण-पोषण करने के लिए कमाई नहीं कर सके, तो नागरिक समाज और धार्मिक संगठनों ने सामूहिक रसोई चलाई। और यहाँ मैं, गरीबों को सब्सिडी वाले अनाज के अलावा लगातार मुफ्त अनाज उपलब्ध कराने की भारत सरकार की पहल का भी जिक्र करना चाहूंगी। वास्तव में यह अपनी तरह का सबसे बड़ा अभियान था।
मैं, यह भी कहना चाहूंगी कि हम जो खाते हैं उसकी पर्यावरणीय लागत पर हमें अवश्य विचार करना चाहिए। पिछली पीढ़ियों तक तो ठीक था, किन्तु अब समय आ गया है जब हमें अपना मेनू इस तरह चुनना होगा कि प्रकृति को किसी भी तरह का नुकसान न पहुंचे। हमें उन खाद्य पदार्थों को छोड़ने लिए निर्णय लेना होगा जो जलवायु परिवर्तन की समस्या को बढ़ाते हैं और उन खाद्य पदार्थों अपनाना होगा जो न केवल हमारे स्वास्थ्य के लिए बल्कि इस धरती के लिए भी अच्छे हैं।
प्यारे मित्रों,
वास्तव में, मुंह में पानी ला देने वाले इस कार्यक्रम के समापन पर, मैं आप सबके लिए डेसर्ट जैसा कुछ पेश करना चाहती हूँ, और यहां मैं एक भारतीय मेजबान की तरह, आपको और भी अधिक भोजन की पेशकश करती हूं – वैचारिक भोजन। हमारे यहां अपने मेहमानों को उनकी वापसी यात्रा के लिए पैक किया हुआ भोजन देने की भी परंपरा है, और मैंने उसी भावना से भोजन पर अपने विचार आपके सामने प्रस्तुत किए हैं।
मैं, एक बार फिर आयोजकों, प्रतिभागियों और डब्ल्यूएफआई पुरस्कारों के विजेताओं को बधाई देते हुए अपनी बात को विराम देती हूं। मेरी शुभकामनाएँ आप सबके साथ हैं।
धन्यवाद,
जय हिन्द!
जय भारत