वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से उच्च शिक्षा संस्थानों के विद्यार्थियों और शिक्षकों तथा सिविल सेवा अकादमियों के अधिकारी प्रशिक्षणार्थियों को भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का संबोधन
राष्ट्रपति भवन : 10.01.2017
डाउनलोड : भाषण (हिन्दी, 384.42 किलोबाइट)
केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपतियो,
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानो, राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानो,
भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थानों तथा अन्य शिक्षण संस्थाओं के निदेशको,
विभिन्न सिविल सेवा अकादमियों के अध्यक्षो,
संकाय सदस्यो,
सिविल सेवा के अधिकारी प्रशिक्षणार्थियो,
मेरे प्यारे विद्यार्थियो,
सबसे पहले मैं आपको सुखमय,स्वस्थ और समृद्ध नववर्ष की शुभकामनाएं देता हूं। इस वर्ष आपके स्वप्न और आकांक्षाएं पूर्ण हों। यह वर्ष हमारे प्यारे देश के लिए शांति,समृद्धि और सौहार्द से भरपूर रहे।
मित्रो, जनवरी, 2014 में वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से आपको संबोधित करने के बाद से मुझे छः बार इस मंच से आपके साथ बातचीत करने का अवसर मिला है। मैं,इस संवाद में सहायता के लिए राष्ट्रीय सूचना केंद्र तथा राष्ट्रीय ज्ञान नेटवर्क की टीम को धन्यवाद देता हूं। पहले भी मैंने लोकतंत्र और शासन,संसद और नीति निर्माण, उच्च शिक्षा संस्थाओं के सशक्तीकरण,युवा और राष्ट्र निर्माण तथा नवान्वेषण को एक जीवनशैली बनाने जैसे अनेक विषयों पर बात की है। मुझे आपसे बात करने में उतना ही आनंद आया है जितना शिक्षकों और विद्यार्थियों को सुनकर आता है। आज की बातचीत के लिए मैंने एक खुशहाल समाज का निर्माण विषय चुना है।
आप मुझसे पूछ सकते हैं कि मैंने किस प्रकार के भावात्मक विषय पर आपसे बात करना क्यों पसंद किया है। मैं पिछले 65 वर्ष में भारत द्वारा की गई प्रगति पर गौर कर रहा था। 1951 में हमारी जनसंख्या 360 मिलियन थी। आज हम 1.3 बिलियन वाले मजबूत राष्ट्र हैं। इन 6.5 दशकों में हमारी प्रति व्यक्ति आय 7500 से बढ़कर 77,000 हो गई, सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि दर 2.3 प्रतिशत से बढ़कर 2015-16 में 7.6 प्रतिशत हो गई। गरीबी अनुपात 60 प्रतिशत से घटकर 25 प्रतिशत से भी कम हो गया। औसत आयु प्रत्याशा 31.4 से बढ़कर 68.4 वर्ष हो गई है। साक्षरता दर 18 से बढ़कर 74 प्रतिशत हो गया है। खाद्यान उत्पादन 45 मिलियन से बढ़कर 2015-16 में 252 मिलियन टन हो गया है। अपनी जनसंख्या के लिए आयात पर निर्भर एक राष्ट्र से बदलकर हम अतिरिक्त खाद्यान वाले देश और खाद्य वस्तुओं के प्रमुख निर्यातक बन गए हैं।
आज हम विश्व की सबसे तेजी से बढ़ रही प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हैं। हम वैज्ञानिक और तकनीकी जनशक्ति के दूसरे सबसे बड़े भंडार,तीसरी सैन्य शक्ति, परमाणु क्ल्ब के छठे सदस्य,अंतरिक्ष की दौड़ में छठे और दसवीं औद्योगिक शक्ति हैं।
इसके विपरीत 2015 की विश्व प्रसन्नता रिपोर्ट की प्रसन्नता वरीयता में हम158 देशों में 117वें स्थान हैं। जब हम अपनी सभ्यतागत विरासत को देखते हैं तो हमें यह और भी विस्मयकारी लगता है। हमारे राष्ट्र में उत्सव मनाए जाते हैं,जीवन का उत्सव हमारे स्वभाव का अंग है। बहुजन सुखाय,बहुजन हिताय और सर्वे भवन्तु सुखिनः विचार हमारी सभ्यता जितने पुराने हैं। हमारी प्रार्थनाएं ब्रह्मांड,पृथ्वी, वृक्ष और वन इत्यादि की शांति के बिना पूरी नहीं होती है। ऋषियों ने समय-समय पर हमें शिक्षा दी है कि मात्र भौतिक उपलब्धि से हमारी सभी आवश्यकताएं पूरी नहीं हो सकती। शांति,सुख और कल्याण की हमारी खोज बहुत आगे की है।
मानव जीवन के लिए प्रसन्नता मूल तत्व है। जब से भूटान के प्रधानमंत्री ने2011 में संयुक्त राष्ट्र आम सभा के समक्ष लोगों की प्रसन्नता को नापने और सार्वजनिक नीतियों के मार्गदर्शन के लिए इसके प्रयोग हेतु सदस्य राष्ट्र को आमंत्रित करते हुए एक प्रस्ताव रखा है तब से यह विषय नीति निर्माताओं के मन में गहराई से बस गया है। आज बहुत बड़ी संख्या में देश सार्वजनिक नीति के आधार पर प्रसन्नता और कल्याण पर गौर कर रहे हैं।
इन तथ्यों ने मुझे विचार करने के लिए विवश कर दिया है। हम प्रसन्नता और कल्याण को अपनी शिक्षा प्रणाली का आधार क्यों नहीं बना सकते?और नव वर्ष की शुरुआत में मेरे समक्ष मेधावी,शिक्षित, उर्जावान और प्रतिभाशाली श्रोताओं के समक्ष बात करने से बेहतर क्या हो सकता है?
मेरे युवा मित्रो,
आज युवा आशा और आकांक्षाओं से भरे हुए हैं। वे अपने उन लक्ष्यों को प्राप्त करने का प्रयास कर रहे हैं जिनसे वे एकाग्रता के साथ ख्याति,सफलता और प्रसन्नता प्राप्त करने की आशा करते हैं। वे प्रसन्नता को अपना अस्तित्व संबंधी उद्देश्य मानते हैं जिसे समझा जा सकता है। वे दिन प्रतिदिन के भावों के उतार चढ़ावों में प्रभावी प्रसन्नता तथा अपने निर्धारित उद्देश्यों की पूर्ति में मूल्यांकन योग्य प्रसन्नता की खोज करते हैं। व्यक्तिगत स्तर पर प्रसन्नता एक मनोस्थिति है। सामाजिक स्तर पर प्रसन्नता एक जटिल मनोभाव है क्योंकि यह समाज और इसके सदस्यों के बीच सौहार्द और उनके लक्ष्य की पूर्ति के साथ गहराई से जुड़ी हुई है।
प्रसन्नता,गैर आर्थिक और आर्थिक मानदंडों का परिणाम है। प्रसन्नता की खोज सतत विकास की खोज के साथ बारीकी से जुड़ी हुई है जो मानव बेहतरी,सामाजिक समावेशन और पर्यावरणीय सततता का मिश्रण है। इसलिए हमारा बल निर्धनता उन्मूलन,पर्यावरणीय, सततता सुनिश्चित करने,सामाजिक समावेशन की दिशा में कार्य करने,और सतत विकास के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए सुशासन प्रदान करने पर होना चाहिए। निर्धनता उन्मूलन से प्रसन्नता में तेजी आएगी। सतत पर्यावरण से पृथ्वी के संसाधनों और भावी पीढि़यों को होने वाली अपूरणीय क्षति रुकेगी। सामाजिक समावेशन से प्रगति के फल सभी तक पहुंचेंगे। सुशासन का अर्थ है पारदर्शी और जवाबदेह प्रतिभागितापूर्ण राजनीतिक संस्थाओं के माध्यम से जीवन को सवांरने के लिए लोगों को सक्षम बनाना।
विस्तृत शोध ने बताया है कि प्रसन्नता और कल्याण के कुछ प्रमुख पहलू होते हैं। विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में प्रसन्नता के स्तर को भिन्न बनाने वाले कारक हैं;प्रति व्यक्ति आय,जीवन प्रत्याशा के स्वस्थ वर्ष,सामाजिक सहयोग, विश्वास का स्तर,जीवन निर्णय करने की स्वतंत्रता और उदारता। अधिक आय निःसंदेह आवश्यक है। परंतु तन और मन का बेहतर संतुलन और समाज में विश्वास का होना उतना ही महत्वपूर्ण है। भौतिक संपत्ति से आराम तो मिल सकता है परंतु प्रसन्नता मिलना जरूरी नहीं है।
मित्रो, वृहदारण्यक उपनिषद् में याज्ञवल्क्य ऋषि अपनी पत्नी मैत्रयी को बताते हैं कि जो भी हम करते हैं अपनी प्रसन्नता के लिए करते हैं। और प्रसन्नता हमारे अधूरेपन को दूर करने की आशा से प्राप्त होता है। यदि मैं इस विचार को अपने दैनिक कार्य में डाल दूं तो मैं कह सकता हूं कि अपना कर्तव्य को पूरा करने से मुझे आनंद प्राप्त हुआ,मुझे प्रसन्नता प्राप्त हुई।
यदि एक शिक्षा संस्थान किसी विद्यार्थी में पूर्ण होने की भावना जगा दे तो इससे विद्यार्थी के मन में प्रसन्नता आ जाएगी और शिक्षा उसके लिए आनंदकारी हो जाएगी। श्रेष्ठ ढांचे,प्रेरित अध्यापक, प्रकृति से संसर्ग सभी बेहतरी की भावना को बढ़ावा देने में योगदान करेंगे। विद्यार्थी शिक्षा पर गौर करेंगे तो शिक्षा माहौल का अंग बन जाएंगे। उच्च शिक्षा संस्थाएं;इसके शैक्षिक प्रमुखों, अध्यापकों,विद्यार्थियों और पूर्व विद्यार्थियों को उस माहौल के निर्माण करने के लिए एकजुट होकर कार्य करना पड़ता है जहां शिक्षा एक आनंदपूर्ण अनुभव बन जाती है,जहां से शिक्षा ज्ञान व प्रज्ञा प्राप्त होती है और प्रसन्नता का भाव पैदा होता है। हमारी शिक्षा संस्थाओं,शिक्षा के मंदिरों को उन लोगों में प्रसन्नता जगानी चाहिए जो एक प्रसन्न भारत का निर्माण करेंगे। जो प्रसन्न होते हैं,वही प्रसन्नता फैला सकते हैं। भारत की जनसंख्या में युवा 65 प्रतिशत से अधिक हैं। यदि हमारे युवा प्रसन्न होंगे तो वे समाज में प्रसन्नता के लिए कार्य कर सकेंगे। अब यह प्रश्न उठता है कि प्रसन्नता का कौन सा पथ है?मैं एक उपाय बताता हूं जिसे आप प्रयोग करना पसंद करेंगे।
क. प्रसन्नता आनंद व गौरव,मुस्कान और हंसी, अच्छे स्वास्थ्य और संतुष्टि,रचनात्मकता और नवान्वेषण, सुरक्षा की भावना और अन्य सकारात्मक कार्यों से जुड़ी है। आप सदैव मुस्कुराकर,जीवन पर हँसकर, प्रकृति से जुड़कर और समुदाय से जुड़कर प्रसन्नता बढ़ा सकते हैं। खेलों में रुचि लें और एक स्वस्थ शरीर बनाएं। भोजन का ध्यान रखें। आवश्यकता और लालच के बीच अंतर जानिए। वंचितों और उपेक्षितों के चेहरे पर मुस्कान लाएं। जिससे वास्तव में सुखद अनुभव प्राप्त होगा। कविगुरु रविंद्र नाथ टैगोर ने कहा था,मैं सोया और स्वप्न लिया कि जीवन आनंद है,मैं जागा और देखा कि जीवन सेवा है। मैंने कार्य किया और गौर किया कि सेवा आनंद है। आप ऐसा कर सकते हैं।
ख. अप्रसन्नता क्रोध,उदासी, चिंता,अवसाद, दबाव और पीड़ा से होती है। हम अपने आस-पास इसका बाहुल्य देखते हैं। महिलाओं के विरुद्ध हिंसा,सड़क पर आपा खो देने, मादक पदार्थों का दुरुपयोग और आत्महत्याएं की घटनाएं इस अप्रसन्नता की अभिव्यक्तियां हैं। सकारात्मक भाव पैदा करके तथा नकारात्मक भावों को दूर भगा कर इससे निपटा जा सकता है। जरूरत पड़ने पर सहायता मांगे। योग और ध्यान करें। प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में कभी न कभी अप्रसन्नता से जुड़ी नकारात्मक भावनाओं से पीडि़त होता है। सकारात्मक विचारों को बढ़ाकर ऐसी भावनाओं को कम किया जा सकता है। आप सामाजिक व्यवहार,सहानुभूति और परोपकार द्वारा बुरे अनुभव को पीछे छोड़ सकते हैं। प्रसन्नता के लिए अंतर्मन में झांकें।
ख. पुस्तकों को अपना सर्वोत्तम मित्र बनाएं। पुस्तकों के प्रति प्रेम जाग्रत करें और अध्ययन की आदत डालें। कला व संस्कृति के प्रति रुचि जगाएं। अपने परिवेश और माहौल के उत्सुक प्रेक्षक बनें। आजीवन सीखने की आदत बनाएं। समस्याओं और उनके समाधानों पर विचार करें। याद रखें कि हमारी प्रसन्नता अटूट है। यदि हम दूसरों का ध्यान रखेंगे तो हम उनके साथ अपना ज्ञान और अन्य संसाधनों को भी बांटेंगे। तब प्रसन्नता मानव प्रयास का अनिवार्य अंग बन जाती है।
मैं आपको इस उपाय को प्रयोग करने के लिए आमंत्रित करता हूं। मैं सच्ची प्रसन्नता का भाव प्राप्त करने में सफल होने के लिए आपको शुभकामनाएं देता हूं।
धन्यवाद,
जयहिंद।