विदेशों के साथ मैत्री हेतु सांस्कृतिक और शैक्षिक व्यक्तियों/श्रेष्ठ व्यक्तियों के लिए चाइनीज पीपल्स एसोसिएशन और भारत के राजदूतावास द्वारा संयुक्त रूप से स्वागत समारोह पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

गुवांग्झू, चीन : 25.05.2016

डाउनलोड : भाषण विदेशों के साथ मैत्री हेतु सांस्कृतिक और शैक्षिक व्यक्तियों/श्रेष्ठ व्यक्तियों के लिए चाइनीज पीपल्स एसोसिएशन और भारत के राजदूतावास द्वारा संयुक्त रूप से स्वागत समारोह पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण(हिन्दी, 204.25 किलोबाइट)

sp1.मैं चीन के विशिष्ट सांस्कृतिक और अग्रणी शैक्षिक व्यक्तियों के एकत्रित समूह को संबोधित करने में अपने आप को सम्मानित महसूस कर रहा हूं।

2.मैं महामहिम श्री लि युवानचाउ,चीन के पीपल्स गणराज्य के राष्ट्रपति की विशेष रूप से सराहना करता हूं। उनका यहां उपस्थित होना इस महत्व को साक्ष्य प्रदान करता है कि चीन भी हमारी दोनों प्राचीन सभ्यताओं के बीच लंबे समय से चले आ रहे सांस्कृतिक आदान-प्रदान को महत्व देता है।

मित्रो,

3.आपमें से अनेक भारत के पुराने मित्र हैं;आपने हम दोनों देशों के बीच पारस्परिक समझ और मैत्री को मजबूत करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। आपके उत्साहपूर्ण कार्य और उपलब्धियों के द्वारा इस महत्वपूर्ण संबंध के भविष्य के लिए रास्ता दर्शाया है।

4.मैं दूसरे देशों के साथ मित्रता हेतु और मुझे यहां आमंत्रित करने के लिए चाइनिज पीपल्स एसोसिएशन का धन्यवाद करता हूं। आरंभ में मैं इस एसोसिएश्न के कीमती योगदान की भी सराहना करता हूं। मैं पिछले छह दशकों से हमारे दोनों देशों के बीच नियमित आदान-प्रदान बनाए रखने के लिए एसोसिएश्न का धन्यवाद करता हूं।

देवियो और सज्जनो,

5.चीन के साथ मेरा जुड़ाव पिछले कुछेक दशकों से है। मैं उनमें से हूं जो पूर्ण रूप से यह विश्वास करते हैं कि21वीं शताब्दी में हमारी साझेदारी एक परिभाषित साझीदारी है। जैसा कि प्रोफसेर तान युनशान जो भारत के एक परम मित्र और विद्वान रहे हैं ने उल्लेख किया है, ‘चीन-भारत के संबंध बहुत महत्वपूर्ण में भी बहुत महत्वपूर्ण हैं।’

6.मैं यह भी विश्वास करता हूं कि हमारे प्राचीन संपर्कों को परिभाषित करने वाले संपन्न शैक्षिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान हमारी साझीदारी के मूलभूत घटक के रूप में बने रहेंगे।

7.जैसा कि हम जानते हैं हमारे प्रथम संपर्क संभवतः समेकित थे और हमारे दोनों देशों के विद्वान भिक्षुओं,जिनमें कुमारजीवा, बौद्धि धर्म,जुआन जैंग और फाहियान शामिल हैं,के बीच बौद्धिक आदान-प्रदान द्वारा रिकॉर्ड किए गए थे। अग्रणी विद्वानों जैसे प्रफुल्ल चंद्रा बागची,प्रो. पी.वी.बापत,प्रो. जी जियान लिन और प्रो. वू जियाओलिंग ने हमारे समृद्ध और विभिन्न सांस्कृतिक संपर्कों के साक्ष्य को प्रस्तुत किया है। यह स्पष्ट करना महत्वपूर्ण है कि ये प्राचीन आदान-प्रदान केवल बौद्धवाद पर केंद्रित नहीं है अथवा केवल भिक्षुओं द्वारा नहीं बढ़ाए गए थे। वास्तव में भारत में गुप्ता स्वर्णयुग के दौरान तानवंश के समय में ज्ञान और संस्कृतिक के आदान-प्रदान के लिए बुद्धवाद वाहन था,परंतु हाल ही में किए गए अनुसंधान ने और अधिक क्षेत्रों वाले ऐतिहासिक समयबद्ध संपर्कों से आवरण हटाया है। समयबद्ध क्षेत्रों को शामिल किए गए एक लंबे ऐतिहासिक समयबद्ध संपर्कों से आग्रह हटाया है। हम देखते हैं कि दक्षिणी भारत के चालुक्य और पल्लव राजाओं के बीच तानवंश में राजदूतों का आदान-प्रदान किया जाता था,और यहां तक कि 15वीं शताब्दी के प्रथम तिमाही में मिंग सम्राट योंगले का बंगाल के गयासुद्दीन मुस्लिम सुल्तान के साथ भी आदान प्रदान होता था। सुई से सॉंग वंश के हजार वर्ष की अवधि तक तमिलनाडु में चीनी सिक्के का समय रहा; कुआंग्झू में मंदिरों के अवशेष इन सदियों पुराने संपर्कों के साक्ष्य के रूप में हैं।

8.अभी हाल ही में हमारे राष्ट्रीय आंदोलनकारी नेताओं ने एक दूसरे को प्रेरित किया और समर्थन दिया। चीन में बहुत कम लोग यह जानते हैं कि19वीं शताब्दी के मध्य में केशबचंद्र सेन और रोमेश चंद्र दत्त सहित बंगाल के बुद्धिजीवियों ने चीन में ब्रिटेन के अफीम व्यापार के प्रति कट्टर और आलोचक रुख अपनाया। बहुत से भारतीय नहीं जानते हैं कि प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान सुन याट सेन ने ब्रिटिश द्वारा गिरफ्तारी से बचने के लिए भारतीय क्रांतिकारी रास बिहारी बोस की सहायता की थी।

9.संस्कृतिक के अन्य क्षेत्रों- जैसे कि नृत्य,कला और संगीत में भी हमारी परंपराएं समान हैं। दुन हुआंग और अजन्ता उदाहरण हैं। आधुनिक चीनी कलाकार जैसे ज्यूबी हॉग और जांगदा क्वान1930 में भारत की यात्रा से प्रेरित हुए। टैगोर स्वयं चीन में उनके अनुभवों से प्रेरित हुए जिसकी झलक उनके कार्यों में मिलती है।1950 में चीन में भारतीय फिल्में लोकप्रिय थीं, ‘आवारा’फिल्म के गीत चीन में आज भी लोकप्रिय हैं। चीनी फिल्में भारतीय जनता में चीन की तरह से ही लोकप्रिय हैं।

10.इस प्रकार दो सभ्यताओं के दिल में समृद्ध संस्कृति जनता से जनता की मैत्री में भी उसी प्रकार विद्यमान है। मैं ऐसा क्यों कह रहा हूं,अध्ययन ने दर्शाया है कि जबकि हमारे बीच में ज्ञान का स्वतंत्र प्रवाह रहा है। परंतु यह साथ ही साथ दो देशों के जनता के द्वारा भी समृद्ध किया जाता रहा है। हमारे सांस्कृतिक क्रियाएं इतनी समरुप रही कि इन्होंने दक्षिण पूर्व एशिया और सेंट्रल एशिया में सहधर्मी संस्कृति को जन्म दिया जो ना पूरी तरह से भारतीय थे और ना चीनी बल्कि यह दोनों का एक रंगीन समागम था।

11.वास्तव में हमारे देशों के बीच सांस्कृतिक संपर्कों की प्रकृति की सभ्यागत संपर्कों के लिए मॉडल के रूप में और21वीं शताब्दी में शांत आदान-प्रदान के रूप में देखा जाना चाहिए।

महामहिम

12.जहां भारत एक आधुनिक भारत निर्माण,शांति पर केंद्रित, खुशहाली और स्थायी विकास के अपने प्राथमिक उद्देश्य की ओर बढ़ रहा है,हम समता और मैत्री की भावना से चीन के साथ जुड़ना चाहते हैं। हम हमारे परस्पर समझ को बढ़ाने के लिए परस्पर संपर्कों के सांचे के विकास और हमारे द्विपक्षीय संवाद को समृद्ध करना चाहते हैं। अकसर हम एक दूसरे को समझने के लिए उधार के चश्मे और अन्य स्रोतों का सहारा लेते हैं। हम प्रत्यक्ष आदान-प्रदान और एक दूसरे की प्रगति में निवेश करने के लिए दोनों पक्षोें के लोगों को योग्य बनाने के द्वारा इस पर विजय पा सकते हैं।

13.मुझे भारत चीन संबंधों के विकास और प्रगति के साथ अलग-अलग क्षमताओं में कई वर्षों तक जुड़े रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है।

महामहिम, देवियो और सज्जनो,

14.निकटतम सहयोग के लिए असीमित संभावनाएं हैं। हमारे संबंधों की पूर्ण क्षमता को महसूस करना एक साझी जिम्मेदारी है। हमारी सरकार की प्राथमिक भूमिका है परंतु सीविल सोसाइटी,शैक्षिक निकायों, विचारकों,सांस्कृतिक विभूतियों और कलाकारों के प्रयास भी समान रूप से महत्वपूर्ण हैं। वे हमारी परम मित्रता-जीवंत आत्मा के कहानीकार और व्याख्याता हैं जो इसे बनाए रखते हैं,समृद्ध करते हैं और मजबूत करते हैं। यहां पर उपस्थित कला और संस्कृतिक के विशिष्ट अग्रणियों से मैं कहना चाहूंगा- आप ही हैं जो हमारे संबंधों को बदल सकते हैं,आप ही हैं जो विषमताओं को कम करने को संभव बना सकते हैं,आप ही हैं जो भारत और चीन के बीच तालमेल को बढ़ा सकते हैं। ईश्वर करे आपका देश समृद्ध हो और प्रगति करे।

15.सारांश के रूप में मैं प्रो. जिज्यानलिन को उद्धृत करना चाहूंगा जिन्हें मुझे व्यक्तिगत रूप से भारत का उच्चतम सिविलियन पुस्कार पद्म भूषण देने का सौभाग्य प्राप्त हुआ थाः‘चीन और भारत एशियाई महाद्वीप में एक साथ खड़े हुए हैं। उनका पड़ोस स्वर्ग द्वारा सृजित किया गया है और पृथ्वी द्वारा निर्मित किया गया है।

धन्यवाद।

जय हिन्द।

समाचार प्राप्त करें

Subscription Type
Select the newsletter(s) to which you want to subscribe.
समाचार प्राप्त करें
The subscriber's email address.