पुस्तकालय पर राष्ट्रीय मिशन के शुभारंभ के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण
राष्ट्रपति भवन सभागार, नई दिल्ली : 03.02.2014
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देवियो और सज्जनो,
1. पुस्तकालय पर राष्ट्रीय मिशन तथा भारत सरकार की योजना : ‘जनता को सेवा प्रदान कर रहे पुस्तकालयों का उन्नयन’ के शुभारंभ के अवसर पर आपके बीच उपस्थित होना मेरे लिए प्रसन्नता की बात है। मै इस पहल पर संस्कृति मंत्रालय और सभी भागीदारों की सराहना करता हूं जो एक ज्ञान सम्पन्न समाज के निर्माण के हमारे लक्ष्य की दिशा में एक और महत्त्वपूर्ण कदम है।
2. पुस्तकालय ऐसी सामाजिक संस्थाएं हैं जो ज्ञान और सूचना का कोष हैं। इनका लक्ष्य है व्यक्ति को खुद को तथा इस विश्व को समझने में सहायता देकर उस समाज में सुधार लाना, जिसका वह हिस्सा है। पुस्तकालय सभी को ज्ञान तक आसानी से पहुंचाने में सहायता देते हैं। सार्वजनिक पुस्तकालय को प्राय: ‘जनता का विश्वविद्यालय’ कहा जाता है क्योंकि यह उम्र, लिंग अथवा कौशल स्तर में भेदभाव किए बिना समाज के सभी वर्गों को उपलब्ध होता है। इस प्रकार, ज्ञान तक पहुंच के लोकतंत्रीकरण द्वारा, पुस्तकालय लोगों के समावेशी और सतत् विकास को बढ़ावा देने में योगदान देते हैं।
देवियो और सज्जनो,
3. मौजूदा और उभरती चुनौतियों को पूरा करने के लिए अब पुस्तकालय और सूचना सेवा क्षेत्र में सुधार की आवश्यकता को भी अब व्यापक रूप से स्वीकार किया जा रहा है। मुझे खुशी है कि इस संबंध में, संस्कृति मंत्रालय, पुस्तकालय पर राष्ट्रीय मिशन की परिकल्पना और प्रोत्साहन द्वारा पुस्तकालय और सूचना सेवा के पुनर्निर्माण, पुन:सशक्तीकरण और पुन:अभिमुख करने के लिए कदम उठाए हैं। राष्ट्रीय ज्ञान आयोग की सिफारिशों के अनुसरण में स्थापित यह सभी के लिए ज्ञान को सुगम बनाने के उद्देश्य की दिशा में एक अहम कदम है, जो हमारी एक राष्ट्रीय प्राथमिकता है।
4. भारत के राष्ट्रीय वर्चुअल पुस्तकालय का निर्माण, पुस्तकालय पर राष्ट्रीय मिशन की एक प्रमुख संघटक योजना है। यह वास्तव में सही दिशा में एक कदम है। ज्ञान संसाधनों तक समान और सभी की पहुंच बनाने के लक्ष्य से, भारत का राष्ट्रीय वर्चुअल पुस्तकालय विभिन्न भाषाओं में प्रासंगिक अध्ययन सामग्री को डिजीटाइज करके डिजीटल संसाधन उपलब्ध करवाएगा, जिसका सभी स्तर पर आदान-प्रदान किया जाएगा। मैं समझता हूं कि यह विभिन्न सरकारी विभागों और अन्य गैर-सरकारी संगठनों से उपलब्ध डिजीटाइज्ड सूचना प्राप्त करेगा, इस सूचना के लिए एक व्यापक आंकड़ा आधार निर्मित करेगा तथा बहुभाषी सेवाओं सहित प्रयोक्ता सहायक सेवा के रूप में प्रस्तुत करेगा। मुझे यह जानकर खुशी हुई है कि भारत के राष्ट्रीय वर्चुअल पुस्तकालय के लक्ष्य प्रयोक्ता न केवल विद्यार्थी, शोधकर्ता, डॉक्टर और पेशेवर बल्कि शैक्षिक, सामाजिक, आर्थिक और शारीरिक रूप से पिछड़े समूह भी होंगे। इस प्रकार, यह एक ज्ञान संपन्न समाज की रचना के लिए सूचना के द्वारा लोगों को सबल बनाएगा तथा भावी पीढ़ी के लिए डिजीटल विषयवस्तु का संरक्षण भी सुनिश्चित करेगा।
5. डिजीटल पुस्तकालय बहुआयामों में पूर्णत: खोज तथा अवलोकन योग्य अधिक लचीले और सुसंगत मल्टीमीडिया संग्रहों की संभावना खोलेंगे। जैसे-जैसे प्रत्येक पीढ़ी इंटरनेट के ज्यादा नजदीक आ रही है तेजी से और सरलता से सूचना प्राप्त करने की आकांक्षा बढ़ गई है। सामान्यत: इंटरनेट पर खोज कर सूचना प्राप्त करना पूरी पुस्तक पढ़ने से कहीं अधिक सरल और तेज माना जाता है। मुझे विश्वास है कि पुस्तकालय पर राष्ट्रीय मिशन की यह पहल पुस्तकालय संसाधनों का अधिकतम प्रयोग करने में इंटरनेट कुशल लोगों को काफी मदद करेगी।
6. मुझे विश्वास है कि मॉडल पुस्तकालयों की स्थापना की दिशा में पुस्तकालय पर राष्ट्रीय मिशन का यह प्रयास पुस्तकालयों के विकास का एक मानदंड स्थापित करेगा। मैं समझता हूं कि इन मॉडल पुस्तकालयों में राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र द्वारा विकसित वेब वीपीएन सेवाओं के माध्यम से ई-जनरल/ई-बुक सेवा प्राप्त करने की सुविधा होगी। इन्हें स्थानीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अध्ययन संसाधन भी मुहैया करवाए जाएंगे। यह सराहनीय है कि वरिष्ठ नागरिकों विशिष्ट रूप से योग्य व्यक्तियों और बच्चों की जरूरतों को पूरा करने के लिए उपयुक्त सुविधाएं निर्मित की जाएंगी।
देवियो और सज्जनो,
7. एक वास्तविक ज्ञान संपन्न समाज के सृजन के लिए, नागरिकों को कुशल ज्ञान सेवाओं को उपलब्ध करवाना अत्यावश्यक है। प्रभावी ज्ञान सृजन और ज्ञान प्रसार से सामाजिक परिवर्तन और धन सृजन किया जा सकता है। सूचना और ज्ञान का न केवल कुशल और किफायती तरीके से बल्कि इस रूप में प्रसार करना चाहिए कि वे लोगों के लिए सुगम्य हो। इससे समाज की पिछड़ी आबादी के जीवन स्तर में सुधार आएगा। डिजीटल अंतर को दूर करना आवश्यक है तथा सूचना और संचार प्रौद्योगिकी का प्रयोग इसमें माध्यम बन सकते हैं। हमें विकेंद्रीकृत शासन तथा खासतौर से शिक्षा से जुड़े लोगों को बेहतर सेवा सुपुर्दगी करने में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी की पूरी क्षमता का प्रयोग करना चाहिए।
8. मैं समझता हूं कि पुस्तकालय पर राष्ट्रीय मिशन का इरादा, उपलब्ध सामग्रियों तथा पुस्तकालय और सूचना विज्ञान क्षेत्र में मानव संसाधनों के पूर्ण विश्लेषण के जरिए कुशल और प्रभावी पुस्तकालय सेवाएं प्रदान करने के लिए, पुस्तकालयों का मात्रात्मक और गुणवत्तापूर्ण सर्वेक्षण करना है। मुझे यह जानकर प्रसन्नता है कि सार्वजनिक और अन्य पुस्तकालयों के विवरणात्मक आंकड़े हासिल किए जाएंगे तथा लोगों के जीवन की गुणवत्ता और आर्थिक लाभों पर पुस्तकालयों के प्रभाव का अध्ययन किया जाएगा।
9. संगठनात्मक उत्कृष्टता हासिल करने की दिशा में कर्मिकों की कार्यक्षमता, विशेषज्ञता और दक्षता बढ़ाने के मामले में क्षमता विकास लोगों, संगठनों और सेवाओं के लिए आवश्यक निवेश है। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि पुस्तकालय पर राष्ट्रीय मिशन क्षमता विकास के जरिए पुस्तकालय पेशेवरों के लिए एक सर्वांगीण कार्यकुशल और व्यक्तिगत विकास कार्यक्रम आरंभ करेगा। क्षमता विकास का उद्देश्य पुस्तकालयों के लिए ऑनलाइन प्रशिक्षण मॉड्यूल, शैक्षिक और ई-मिशन मॉड्यूल निर्मित करना और पुस्तकालय कर्मियों के समग्र विकास में योगदान करना है। इसके दायरे में पुस्तकालय कर्मियों के प्रबंधकीय और संचार कौशल की वृद्धि से संबंधित सूचना और संचार प्रौद्योगिकी आधारित मूलभूत और उन्न्त स्तर के पुस्तकालय अनुप्रयोग शामिल होंगे। एक विश्वस्तरीय राष्ट्रीय संसाधन आधार के निर्माण के प्रति सर्मिपित, पुस्तकालय पर राष्ट्रीय मिशन, प्रकाशित विरासत के जरिए अपने देश और हमें स्वयं को बेहतर ढंग से जानने में सक्षम बनाता है तथा सूचना के राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संसाधनों का एक प्रभावी स्रोत भी उपलब्ध करवाता है।
10. यद्यपि, हमें यह याद रखना चाहिए कि शिक्षा का सच्चा अर्थ केवल जानकारी और ज्ञान प्राप्त करना ही नहीं बल्कि आत्मसुधार की ओर उन्मुख करने वाला समग्र दृष्टिकोण तथा राष्ट्र सेवा की आकांक्षा पैदा करना भी है। स्वामी विवेकानंद ने एक बार कहा था ‘विश्व को अभी तक समस्त ज्ञान मस्तिष्क से प्राप्त हुआ है; ब्रहमाण्ड का असीम पुस्तकालय हमारे मस्तिष्क में है’। ज्ञान मानव सशक्तीकरण का वास्तविक साधन है। यह हमें अज्ञानता की बेड़ियों से मुक्त कर सकता है तथा जाति, पंथ और क्षेत्र के संकीर्ण विचारों से ऊपर उठने में मदद कर सकता है। ज्ञान के आदान-प्रदान से समाज को जागरूकता की ओर ले जाने में सहायता मिलती है और यह राष्ट्रीय प्रगति, मानव सशक्तीकरण तथा सामाजिक बदलाव का एक महत्वपूर्ण साधन बन सकता है। मानवता की सेवा के लिए सामाजिक तत्परता की भावना पैदा करना आवश्यक है। सच्चे ज्ञान से एक सकारात्मक दृष्टिकोण पैदा होता है और व्यक्ति के दृढ़ चरित्र का विकास होता है।
देवियो और सज्जनो,
11. मुझे विश्वास है कि पुस्तकालयों पर राष्ट्रीय मिशन परियोजना लोगों के सामाजिक तथा आर्थिक विकास की रफ्तार तेज करने में काफी योगदान देगी। मैं इस परियोजना तथा ‘जनता को सेवा प्रदान कर रहे पुस्तकालयों का उन्नयन’ की नई स्कीम के कारगर कार्यान्वयन के लिए शुभकामनाएं देता हूं। मुझे उम्मीद है कि पुस्तकालयों पर राष्ट्रीय मिशन ज्ञान और सद्भावना को बढ़ावा देगा तथा जनता को राष्ट्र के क्रियाकलापों में सक्रिय भागीदारों के रूप में तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। ज्ञान का प्रकाश हमारे मन और आत्मा को मुक्त करे तथा हम, एक सुदृढ़ और आत्मनिर्भर राष्ट्र के रूप में गर्व के साथ भविष्य की ओर अग्रसर हों।
धन्यवाद,
जय हिंद!