प्रोफेसर शंख घोष को 52वां ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किए जाने के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण
जीएमसी बालयोगी सभागार, संसद भवन, नई दिल्ली : 27.04.2017
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मुझे बंगाली भाषा के छठे पुरस्कार प्राप्तकर्ता प्रोफेसर शंखघोष को52वां ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान करके अपार प्रसन्नता हुई है।
2. यह संतोष का विषय है कि ज्ञानपीठ पुरस्कार जिसकी स्थापना में प्रथम राष्ट्रपति,डॉ. राजेन्द्र प्रसाद घनिष्ठता से शामिल थे,अपने 52वें संस्करण पड़ाव तक पहुंच गया है। तदनंतर,इसने भारतीय साहित्य को अभूतपूर्व ढंग से प्रोत्साहित और संवर्धित किया है।
3. कन्नड के लिए डॉ. चंद्रशेखर कंबर,ओडि़या के लिए डॉ. प्रतिभा राय,हिंदी के लिए डॉ. केदारनाथ सिंह तथा गुजराती के लिए डॉ. रघुवीर चौधरी के बाद मेरी अपनी मातृभाषा बंगाली के लिए शंखघोष को52वां ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान करना मेरे लिए प्रसन्नता और सम्मान है।
4. एक कवि और उत्कृष्ट आलोचक,एक प्रतिष्ठित अध्यापक, 1977में साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता,पद्म भूषण विजेता प्रो. शंख घोष वास्तव में इस पुरस्कार के सबसे अधिक योग्य प्राप्तकर्ता हैं।
5. बंगाली के एक प्रोफेसर तथा गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर की कृतियों के एक विशेषज्ञ शंखघोष उस प्रतिभा का प्रतिनिधित्व करते हैं जो भारत के बहुआयामी साहित्यिक कौशल को निरूपित करती है। यह उनके दक्षलेखन का एक उदाहरण है कि एक लेखक जिसने शैक्षिक रूप से बंगाली में प्रवीण होने का प्रयास किया,संभवतः काव्य की सबसे कठिन साहित्यिक शैली में अभिव्यक्त किया।
6. प्रो. शंखघोष को पुरस्कार प्रदान करते हुए चयन समिति ने उल्लेख किया कि विभिन्न काव्य रूपों के साथ उनकी काव्यत्मकता मुहावरे और प्रयोग एक रचनात्मक प्रतिभा के रूप में उनकी महानता को प्रकट करते हैं। उसने यह भी विचार व्यक्त किए कि संदेश संप्रेषित करते समय घोष का काव्य विवाद से मुक्त बना रहता है। उनकी कृतियों चाहे आदिमलता-गुलमोमे,मूर्खो बारो सामाजिक नोये हो या बाबोरेर प्रार्थना आदि हो,को देखने पर किसी को भी यह संदेह नहीं रहेगा कि चयन समिति द्वारा उल्लिखित विचारों का प्रत्येक शब्द सही और सटीक है।
7. बंगाली काव्य के एक प्रबल लेखक के रूप में उनकी साहित्यिक कृतियों में एक विरल काव्य शैली प्रतिबिंबित होती है जिसमें ना केवल गीति शैली बल्कि सामाजिक परिवेश की एक गहरी छाया भी समाहित है। उनका काव्य प्रायः हमारे समाज के पाखंड पर चोट करता है तथा यह वास्तव में समसामयिक मुद्दों पर एक सुस्पष्ट टिप्पणी है। मुझे विश्वास है कि एक अध्यापक के रूप में उन्होंने अपने विद्यार्थियों के संवेदनशील मन को निश्चित रूप से उतना ही प्रभावित किया होगा जितना अपनी साहित्यिक कृतियों के पाठकों को ज्ञान प्रदान किया है।
8. एक लेखक के रूप में जिसने अपनी कृतियों में अस्तित्ववाद की खोज की है उसने मानव जीवन के सक्रिय पक्ष का विश्लेषण किया तथा प्रतिबिंबों और प्रतीकों के माध्यम से अपने पद्य में अपने विचारों को गहराई से अभिव्यक्त किया,प्रो. शंख घोष ने अपने पूर्ववर्ती पुरस्कार विजेताओं के देदीप्यमान नक्षत्र समूह में शामिल होना उपयुक्त है।
9. इस नक्षत्रसमूह के तारों को देखने पर हमें भारत की प्राचीन कलागत और भाषाई एकता की विरासत में निहित भाषाई विविधता का एक आलोकित दृश्य देखने को मिलता है। इस सूची के प्रत्येक लेखक ने इस विविधता को भलि-भांति गौरवान्वित किया है और साथ-साथ मूलभूत सांस्कृतिक एकता को मजबूत किया है।
10. यह अवसर हमें साहू शांति प्रसाद जैन और स्वर्गीय श्रीमती रमा जैन के योगदान का स्मरण करने का मौका भी देता है जिनके भारतीय भाषाओं और साहित्य के प्रोत्साहन तथा भारतीय ज्ञानपीठ स्थापना के प्रयास अनुकरणीय बने हुए हैं। मैंने पहले भी कहा है और मैं दोबारा कहता हूं कि केवल कला और साहित्य के संरक्षण,उन्नयन और प्रचार-प्रसार में सरकार के प्रयास ही पर्याप्त नहीं हो सकते हैं। पूरे समाज को इस कार्य के लिए आगे आना होगा तथा परोपकारी और कॉरपोरेट क्षेत्र द्वारा ऐसा करने में अग्रणी भूमिका निभाना तर्कसंगत होगा। ऐसे प्रयास वास्तव में कॉरपोरेट सामाजिक दायित्व का भाग है और मैं उद्योग प्रमुखों से साहित्यिक समर्थन के इस पहलू में गहरी रुचि लेने का आग्रह करता हूं।
11. फ्रेंच,रूसी, चीनी,जापानी और स्पेनिश ने निःसंदेह प्रमाणित किया है कि गैर स्वदेशी भाषाओं के आधिपत्य में समाज कभी भी महानता प्राप्त नहीं कर सकता। हमारा राष्ट्र इस विषय में कई स्थान ऊपर है क्योंकि इसमें शताब्दियों के दौरान ना केवल कायम रहने बल्कि विदेशी को स्वदेशी में आत्मसात् करने की क्षमता विद्यमान है।
12. इसलिए आवश्यक है कि हम अपने हृदय को सभी भाषायी प्रभावों के प्रति खुला रखते हुए,अपनी स्वदेशी भाषाई और साहित्यिक विरासत के प्रोत्साहन और सततता के लिए प्रयास करते रहें।
13. गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगेर की गीतांजलि ने विश्व को विस्मित कर दिया। भारतीय भाषाओं की रचनाशील प्रतिभाओं को विश्व दर्शकों तक ले जाने की आवश्यकता है। ऐसा विशाल अंतरराष्ट्रीय दर्शकसमूह मौजूद है जो हमारे देशी साहित्य की जानकारी प्राप्त करने के लिए प्रतिक्षारत है और उनकी हमें उत्सुकता का प्रत्युत्तर देना चाहिए।
14. मैं आशान्वित हूं कि हम कोई और कसर नहीं छोड़ेगे तथा भारतीय ज्ञानपीठ इसे प्राप्त करने में एक अग्रणी भूमिका निभाएगा।
15. मैं एक बार पुनः इस अवसर पर प्रो. शंखघोष को बधाई देता हूं और उन्हें अनेक वर्ष तक अच्छे स्वास्थ्य और साहित्यिक अभिव्यक्ति के लिए शुभकामनाएं देता हूं। मुझे आशा है कि आज प्राप्त वाग्देवी की प्रतिमा देवी सरस्वती उनके विचारों और कलम का सदैव पथ प्रदर्शन करती रहेगी।