निर्यात श्री एवं निर्यात बंधु पुरस्कार वितरण समारोह के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण
नई दिल्ली : 05.10.2012
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देवियो और सज्जनो,
मुझे आज, भारतीय निर्यात संगठनों के परिसंघ द्वारा, निर्यात में विशिष्ट उपलब्धि के लिए स्थापित ‘निर्यात श्री’ एवं ‘निर्यात बंधु’ पुरस्कार प्रदान करते हुए बहुत प्रसन्नता हो रही है। मुझे विश्वास है कि इन पुरस्कारों से अर्थव्यवस्था के इस महत्त्वपूर्ण सेक्टर में कार्यरत अन्य उद्यमियों को भी देश के आर्थिक विकास में और अधिक जोर-शोर से योगदान देने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा। मैं समझता हूं कि उद्यमियों के अलावा, निर्यात के विकास के लिए सहायक सेवाएं प्रदान करने वाली निर्यात कंपनियों, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों तथा निर्यात संवर्धन परिषद को भी पुरस्कार प्रदान किए गए हैं। मैं उन सबको भी बधाई देता हूं।
2. हमारे देश की आर्थिक प्रगति में निर्यातों को एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी है। रोजगार प्रदान करने में इस सेक्टर द्वारा जो योगदान दिया जा रहा है, वह समतापूर्ण तथा समावेशी विकास की हमारी परिकल्पना के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। निर्यात सेक्टर इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह भारत को विदेशी बाजारों में एक ऐसे स्रोत के रूप में प्रदर्शित कर सकता है जहां गुणवत्तायुक्त उत्पाद प्राप्त हो सकते हैं। इसलिए निर्यातकों को यह ध्यान रखना होगा कि उनके उत्पादों को न केवल उनकी कंपनी अथवा उनके ब्रांडों से जाना जाए वरन् उससे महत्त्वपूर्ण यह है कि उनसे भारत की छवि उच्च गुणवत्ता वाले उत्पादों के स्रोत के रूप में उभरे। इसलिए हमें मूल्य शृंखला की हर कड़ी में गुणवत्ता, जागरूकता, सेवा आपूर्ति में पेशेवराना नजरिया तथा अपने व्यापारिक साझीदारों के साथ व्यापार करते हुए पूरी तरह पारदर्शिता तथा ईमानदारी के मंत्रों का समावेश करना होगा।
3. भारत का विदेशी व्यापार अर्थात सामान का निर्यात और आयात जो पिछली सदी के अंत में 20 प्रतिशत था, सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात के लिहाज से दो गुना होकर हाल ही के वर्षों में बढ़कर 45 प्रतिशत तक पहुंच गया है। विश्व के साथ देश का वित्तीय एकीकरण उसके व्यापारिक वैश्वीकरण के समान ही बहुत तेजी से हुआ है। वैश्वीकरण के मोटे आकलन के तौर पर कुल बाहरी लेन-देन का अनुपात अर्थात सकल चालू खाता प्रवाह और सकल घरेलू उत्पाद के सकल पूंजी प्रवाह इसी अवधि के दौरान दो गुना से अधिक बढ़कर 50 प्रतिशत से 120 प्रतिशत हो गए हैं। घरेलू बचत दर में काफी बढ़ोत्तरी होने के बावजूद, हमारी अर्थव्यवस्था की, विदेशी पूंजी के आगमन पर काफी निर्भरता रही है। इसने दीर्घकालिक तथा जोखिम पूंजी की बढ़ती जरूरत को पूरा करने तथा भारतीय उद्योग के लिए प्रौद्योगिकी के लिए संसाधनों के अंतरसमंजन में योगदान दिया है।
4. यह संतोष की बात है कि भारत के निर्यात में पिछले दशक में पांच गुणा वृद्धि दर्ज हुई है और यह वर्ष 2000-01 में 44.6 बिलियन अमरीकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2010-11 में 251.1 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गई है। भारत के निर्यातों की वार्षिक वृद्धि दर जो 1990 के दशक के दौरान 8.2 प्रतिशत थी, 2000-01 से 2008-09 की अवधि में बढ़कर 19.5 प्रतिशत तक पहुंच गई। भारत का विश्व निर्यात में हिस्सा भी वर्ष 2000 में 0.7 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2010 में 1.5 प्रतिशत तक पहुंच गया। अग्रणी निर्यातकों की सूची में इसका नाम वर्ष 2000 में 31वें स्थान से ऊपर उठकर वर्ष 2010 में 20वें स्थान पर आ गया।
5. वर्ष 2003-04 से लेकर वर्ष 2007-08 तक भारत में उच्च विकास दर की अवधि के दौरान इसकी निर्यात सामग्री तथा निर्यात गंतव्य में अमरीका और यूरोप के मुकाबले एशिया और अफ्रीका के देशों में अपेक्षाकृत अधिक बढ़ोतरी हुई। इस विविधिकरण से वर्ष 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद की अवधि में निर्यात में वृद्धि की गति बनाए रखने में सहायता मिली, यद्यपि इस दौरान विकसित देशों में भारतीय निर्यात की मांग को नुकसान पहुंचा था। वर्ष 2008-09 के दौरान निर्यात में 13.7 प्रतिशत की वृद्धि के बाद, वर्ष 2009-10 में यह वृद्धि नकारात्मक -3.5 प्रतिशत पर पहुंच गई और इसके बाद वर्ष 2010-11 और वर्ष 2011-12 में यह तेजी से बढ़कर क्रमश: 40 प्रतिशत और 21 प्रतिशत से अधिक तक पहुंच गई। तथापि, इसके बढ़ते लचीलेपन के बावजूद, पिछले कुछ महीनों के अनुभव बताते हैं कि जैसे-जैसे भारत का वैश्वीकरण बढ़ता जा रहा है, वह विश्व में चल रही गतिविधियों से अछूता नहीं रह सकता।
6. यूरो जोन संकट के धीरे-धीरे सामने आने से विकास में कमी, व्यापार की इच्छा में कमी, पूंजीगत अन्त:प्रवाह तथा विनिमय दर में कमी, स्टाक मार्किट के जोखिम में वृद्धि तथा निवेशकों के विश्वास में तद्नुरूप प्रभाव जैसे तत्त्वों से अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ा है। इसके अलावा, बाहरी मांग में कमी के कारण वर्ष 2011 से निर्यात में विकास में काफी कमी आई है और वर्ष 2012 के कैलेंडर वर्ष के पहले छह महीनों में से तीन महीनों के दौरान निर्यात दर नकारात्मक हो गई। विकसित अर्थव्यवस्थाओं में मांग के लौटने का इंतजार करते हुए भारत को अपनी व्यापार नीति का केंद्र, उभरते तथा विकासशील देशों में नए निर्यात बाजारों को बनाना होगा जहां मध्यकालिक नजरिए से विकास की संभावना विकसित देशों के मुकाबले कहीं बेहतर है।
7. वैश्विकृत दुनिया में, विश्व अर्थव्यवस्था की विकास संभावनाओं में तेजी लाने के लिए तथा पारदर्शिता, जवाबदेही तथा वित्तीय बाजारों के विनियमन के मुद्दों के समाधान के लिए राष्ट्रों के सामूहिक प्रयासों में समन्वय लाना होगा। विकास की वापसी के लिए तथा वित्तीय प्रणालियों में सुधार के लिए भारत इन प्रयासों में अंतरराष्ट्रीय समुदाय को नजदीक से सहयोग देता रहा है।
8. घरेलू विकास को बनाए रखने के लिए सरकार द्वारा वित्तीय तथा मौद्रिक उपाय किए जा रहे हैं। हमारी वित्तीय प्रणालियां मजबूत हंा तथा बाजार में काफी तरलता बढ़ाने के लिए कदम उठाए गए हैं। निर्यात प्रोत्साहन तथा ऋण सुविधाओं की व्यवस्था के भी उपाय किए गए हैं। मैं मानता हूं कि भारतीय निर्यातकों में विश्व के प्रतिस्पर्धात्मक परिवेश में कार्य कर सकने के लिए अपेक्षित प्रतिस्पर्धात्मकता तथा विविधिकरण मौजूद है। मुझे भारतीय अर्थव्यवस्था की संभावनाओं पर भरोसा है जो कि विश्व की एक तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बनी हुई है तथा हमारा निर्यात सेक्टर विकास की इस कहानी का एक हिस्सा रहेगा।
9. अपने निर्यातकों को बढ़ावा देने के लिए, भारतीय निर्यात संगठनों के परिसंघ तथा दूसरे व्यावसायिक संगठन सरकार के साथ मिलकर नए बाजार ढूंढ़ने में सहायता कर सकते हैं। इसके साथ ही, हमें उच्च निर्यात अपेक्षा वाले उत्पादों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए जिनका अभी विदेशी बाजारों में कम प्रचलन है। इस संबंध में निर्यात संवर्धन परिषदों से सुझाव मांगे जा सकते हैं। वैश्विक मंदी के इस माहौल में आपसी विचार-विमर्श तथा समन्वय खासकर जरूरी है।
10. अंत में, मैं एक बार फिर से सभी पुरस्कार प्राप्तकर्ताओं को बधाई देता हूं। मैं श्री आनंद शर्मा, वाणिज्य एवं उद्योग तथा कपड़ा मंत्री तथा उनके मंत्रालयों को हमारी अर्थव्यवस्था की निर्यात क्षमता के सतत् विकास के लिए, उनके निरंतर प्रयासों के लिए बधाई देता हूं। मुझे विश्वास है कि निर्यात सेक्टर द्वारा हमारे देश के संतुलित आर्थिक तथा सामाजिक विकास के लिए सहयोग दिया जाना जारी रहेगा। हम सभी को, भारत को और अधिक ऊंचाई की ओर ले जाने के लिए मिलजुलकर प्रयास करने होंगे। नवान्वेषण तथा ऊर्जा के साथ, मिलजुलकर काम करने से हम एक महान देश बनने के अपने सामूहिक स्वप्न को साकार कर सकते हैं।
धन्यवाद।