नालसर विधि विश्वविद्यालय के बारहवें वार्षिक दीक्षांत समारोह में भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

शमीरपेट, तेलंगाना : 02.08.2014

डाउनलोड : भाषण नालसर विधि विश्वविद्यालय के बारहवें वार्षिक दीक्षांत समारोह में भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण(हिन्दी, 465.17 किलोबाइट)

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1.मुझे नालसर विधि विश्वविद्यालय,जो सोलह वर्ष की संक्षिप्त अवधि में हमारे देश की विधिक शिक्षा के एक अग्रणी केंद्र के रूप में उभरा है,के बारहवें दीक्षांत समारोह के लिए आज की शाम यहां उपस्थित होकर प्रसन्नता हुई है। इसके स्नातकों ने विधिक पेशे के लगभग सभी आयामों पर अपनी छाप छोड़ी है। उन्होंने अभियोजन,न्यायिक सेवाओं,अध्यापन,शोध,सामाजिक वकालत,अंतरराष्ट्रीय संगठनों तथा कारोबारी वकालत के क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है।

2.नालसर उन राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालयों में एक प्रसिद्ध नाम है जो भारत की विधिक शिक्षा में क्रांतिकारी बदलाव लाए हैं तथा विधिक पेशे की प्रतिष्ठा को बढ़ाने में मदद की है। परिणामस्वरूप,आज विधिक पेशे में उसी प्रकार सर्वोत्तम और प्रतिभावान लोग आकर्षित हो रहे हैं जिस प्रकार पहले चिकित्सा और इंजीनियरी के पेशे में होते थे। यह वास्तव में एक स्वागत योग्य परिवर्तन है क्योंकि एक लोकतांत्रिक देश में विधिक पेशे का अत्यधिक महत्त्व से इन्कार नहीं किया जा सकता।

3.अधिवक्ता,जनता की न्याय तक पहुंच सुनिश्चित करने तथा हमारे संविधान को एक जीती-जागती हकीकत बनाने में अहम भूमिका निभाते हैं। जिस समाज में कानून का शासन मौजूद होता है,वहां विधिक पेशे को एक नेक पेशा माना जाता है तथा भारत के कुछ अत्यंत प्रमुख नेता अधिवक्ता रहे हैं। महात्मा गांधी और पं. जवाहरलाल नेहरू की अधिवक्ता थे।

4.यह समझना आवश्यक है कि हमारे नेताओं द्वारा भारत और विदेश दोनों में अधिवक्ताओं के तौर पर प्राप्त प्रशिक्षण ने हमारे अनोखे राष्ट्रीय आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभाई। हमारे स्वतंत्रता संघर्ष ने तर्क,दलील तथा नैतिक साहस का प्रयोग करते हुए,औपनिवेशिक सत्ता से शांतिपूर्ण और अहिंसक तरीके से मूल अधिकारों और लोकतंत्र को हासिल किया।

मित्रो,

5.विधिक शिक्षा में पिछले दो दशकों के दौरान बड़ा बदलाव आया है। तथापि,ऐसे बहुत से क्षेत्र हैं जिन्हें और सुदृढ़ करने की जरूरत है। विधिक शिक्षा प्रदान करने वाले हमारे शैक्षिक संस्थानों को सैद्धांतिक अवधारणाओं और व्यावहारिक अनुप्रयोगों के बीच के अंतर को समाप्त करना होगा। उन्हें कौतूहल जाग्रत करना होगा तथा जिज्ञासा को प्रोत्साहित करना होगा।

6.विधिक प्रणाली का अध्ययन,वृहत सामाजिक-आर्थिक वास्तविकताओं से अलग हटकर नहीं किया जा सकता है। जैसे-जैसे विधि के विद्यार्थी विधायी कानूनों की व्याख्या करने तथा न्यायिक अभिमतों का अध्ययन करने में अधिक निपुण होते जा रहे हैं,उन्हें यह कार्य उदारवादी दायरे में करना चाहिए।

7.नियमों को लागू करने तथा विवादों के अधिनिर्णय के संबंध में हमारे औपनिवेशिक अतीत की छायाएं प्रबल भूमिका निभाती हैं। न्याय प्रशासन को और अधिक प्रतिनिधित्वकारी तथा नागरिकों के लिए प्रतिसंवेदी बनाने के लिए अंतर्निहित सिद्धांतों का पुन: निर्धारण जरूरी है। चाहे कानून बनाने में अपने विचारों की प्रस्तुति हो,मुकदमे दायर करना हो तथा सामाजिक वकालत या शोध कार्य हो,अधिवक्ता इस परिवर्तनकारी भूमिका को निभाने की विशिष्ट स्थिति में हैं।

8.विद्यार्थियों और अधिवक्ताओं द्वारा विधिक शिक्षा को आजीविका के साधन से कहीं अधिक माना जाना चाहिए। उन्हें निरंतर यह चिंतन करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए कि उनके कार्य जनसाधारण को कैसे प्रभावित करेंगे। तर्क-वितर्क,शोध और लेखन के पारंपरिक पहचान वाले कौशल में प्रवीण होने के साथ-साथ विद्यार्थियों को,सामाजिक न्याय को बेझिझक सहयोग सहित समानता,स्वतंत्रता,भाईचारे जैसे स्थायी सिद्धांतों को परम महत्त्व देने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।

9.हमारे संविधान निर्माताओं ने हमें एक ऐसा समृद्ध और विविधतापूर्ण प्रारूप दिया जिसमें इन आदर्शों को उल्लेख है। उन्होंने राष्ट्र की सामाजिक,आर्थिक तथा राजनीतिक समस्याओं के समाधान के लिए संविधान में अनेक प्रावधानों को शामिल किया। छुआछूत की समाप्ति,वंशानुगत पदवियों पर प्रतिबंध तथा मूल अधिकारों की गारंटी ऐसे कुछ उल्लेखनीय उदाहरण हैं। हमारे भरसक प्रयासों के बावजूद,इनमें से कुछ सामाजिक बुराइयां अभी भी व्याप्त हैं। संविधान निर्माताओं तथा विधिक पेशे से जुड़े लोगों को इसकी ओर तत्काल ध्यान देना चाहिए।

10.संविधान निर्माताओं ने कुछ और स्थायी सिद्धांत हमें प्रदान किए जिससे हमारे चिंतन को दिशा मिलती है। भारतीय संविधान के प्रख्यात इतिहासकार स्व. ग्रेनविले ऑस्टिन ने इसे एक ऐसा‘‘अबाध संजाल’’बताया है जिसमें राष्ट्रीय अखंडता,लोकतंत्र का निर्माण तथा सामाजिक क्रांति की शुरुआत जैसे तीन विशिष्ट सूत्रों को बुना गया है। संवैधानिक विधि के गंभीर विद्यार्थियों के रूप में,मैं आग्रह करना चाहूंगा कि इस विषय का सार्थक अध्ययन तभी संभव है जब कोई व्यक्ति इन सूत्रों के सच्चे अर्थ के बारे में नैतिक तर्कशीलता और बहस का सहारा ले।

मित्रो,

11.मुझे उम्मीद है कि हमारे अग्रणी विधि विद्यालय अपने विद्यार्थियों को न केवल विधि की विषय-वस्तु को सीखने बल्कि उनकी तर्कसंगतता,उनके कार्यान्वयन के परिणामों तथा उनमें सुधार के रचनात्मक सुझावों का मूल्यांकन करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए आमतौर पर मानकीकरण की दिशा में प्रयास किया जाता है। तथापि उच्च शिक्षा में प्रयोगधर्मिता की जरूरत है। अक्सर बदलाव के लिए कुछ लोगों की विश्वास से भरी हुई छलांग लगाने की दिशा में तत्परता की जरूरत होती है।

12.मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि नालसर ने विगत दो वर्षों में और अधिक वैकल्पिक पाठ्यक्रम प्रस्तुत करके,विद्यार्थियों को अधिक से अधिक शैक्षिक लचीलापन प्रदान करके अपने पाठ्यक्रम को विविधतापूर्ण बनाने के सुविचारित प्रयास किए हैं। नालसर देश का अपनी तरह का एक विधि विश्वविद्यालय है जहां सही मायने में विकल्प आधारित अंक नीति है।

13.यह विश्वविद्यालय विभिन्न विधाओं में प्रशिक्षण सहित विद्यार्थियों को आकर्षित करने के लिए स्नातकोत्तर कार्यक्रमों पर भी ध्यान दे रहा है। नालसर ने उड्डयन और दूरसंचार विधि में स्नातकोत्तर डिग्री प्रदान करने के अलावा,न्यायालय प्रबंधन तथा नवान्वेषण और सततता प्रबंधन में विशिष्ट एमबीए कार्यक्रम आरंभ किए हैं।

14.मुझे यह भी ज्ञात हुआ है कि नालसर एक नया त्रिवर्षीय एलएलबी पाठ्यक्रम आरंभ करने की योजना बना रहा है। इससे आगे बढ़ते हुए,इस संस्थान के समक्ष ऐसे उच्च गुणवत्तापूर्ण शोध पत्र तैयार करने की चुनौती होगी जिन्हें अंतरराष्ट्रीय रूप से मान्यता प्राप्त समकक्षों द्वारा समीक्षा किए जाने वाले जर्नलों में प्रकाशन हेतु स्वीकार किया जाए। शोध का उद्देश्य ज्ञान के सृजन और संरक्षण तथा नए विचारों का विकास करना है। ऐसे प्रयासों के लिए शोधकर्ताओं का दृढ़ प्रयास तथा प्रशासकों तथा शासी निकायों का निरंतर सहयोग जरूरी है।

प्यारे विद्यार्थियो,

15.मैं आपकी उल्लेखनीय सफलता पर आप सभी को बधाई देता हूं। आप शीघ्र ही विधिक पेशे के कॉरपोरेट विधि,न्यायिक सेवा आदि जैसी विभिन्न शाखाओं को अपनाएंगे। इनमें से हर एक आपको अपने ढंग से फल प्रदान करेगा। परंतु याद रखिए,आप चाहे कोई भी विधिक शाखा चुनें आपकी सफलता की आधारशिला सभी के मौलिक अधिकारों की बेहिचक रक्षा,नागरिक स्वतंत्रता तथा पिछड़े हुए समुदायों के अधिकारों की प्राप्ति पर स्थापित होनी चाहिए। नि:स्वार्थ जन सेवा के उच्च आदर्शों के प्रति स्वयं को समर्पित कर दें। पेशेवर कौशल के सम्बन्ध में सर्वोच्च मानदंड हासिल करें तथा आर्थिक लाभ पर ध्यान किए बना अन्याय के खिलाफ साहस के साथ संघर्ष करें।

16.नालसर निरंतर सामाजिक रूप से जागरूक अधिवक्ता तैयार कर रहा है। आपको अपने विश्वविद्यालय के आदर्शों और लक्ष्यों पर खरा उतरना होगा। मुझे संयुक्त राज्य के उच्चतम न्यायालय के तीन न्यायाधीशों;जस्टिस ओ’कोनोर,स्कालिया जे. तथा रेनक्विस्ट सी.जे. का एक प्रसिद्ध वक्तव्य याद आता है, ‘‘किसी दूसरे पेशे से समान रूप से सम्मानजनक होने के बावजूद,किसी भी पेशे की एक खास विशेषता यह होती है कि इसकी सदस्यता के साथ ऐसे नैतिक दायित्व जुड़े होते हैं जो उन्हें अर्थ प्राप्ति के अपने निजी प्रयासों को,ऐसे आचरण संबंधी मापदंडों का पालन करते हुए जारी रखने के लिए बाध्य करते हैं जिन्हें न तो कानूनी आदर्शों अथवा बाजार के नियंत्रण द्वारा थोपा जा सकता है। ऐसे लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रयास करते रहने के ठोस कारण होते हैं जो पेशेवर जीवन के पारंपरिक नजरिए में निहित होता है। पेशे की सदस्यता से मिलने वाली विशेष सुविधाएं और आजीविका कमाने के जरूरी कार्य में इन सुविधाओं से मिलने वाले फायदे,दोनों ही उस लक्ष्य को प्राप्त करने के साधन हैं जो अंतत: धन की प्राप्ति में परिणत होता है।’’

17.वित्तीय सुरक्षा हासिल करना तथा अन्य दायित्वों को पूरा करना आवश्यक है। तथापि,अपने पेशेवर लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए कार्य करते हुए हमेशा उन मूल्यों को ध्यान में रखें जिन्हें आपने अपनी शिक्षा के दौरान हासिल किया था। भले ही आपने विधि की कोई भी शाखा चुनी हो,उसमें इन मूल्यों को अमल में लाएं। आपके कार्य उन लोगों के जीवन और भविष्य को तय करेंगे जो आपकी पेशेवर विशेषज्ञता पर निर्भर हैं।

18.संविधान का अच्छी तरह अध्ययन करें। हमारी राजनीतिक प्रणाली,इसकी संस्थाओं और प्रक्रियाओं को समझें। उन विकल्पों का विश्लेषण करें जिन्हें वर्तमान देश का निर्माण करने के लिए अपनाया था। यह समझिए कि इस देश को अपनी अधिकतम क्षमता प्राप्त करने में मदद करने के लिए बुद्धिमत्तापूर्ण विकल्पों को चुनना होगा तथा इन विकल्पों को चुनने में सहभागी बने और इसमें योगदान दें।

19.आज आपकी औपचारिक शिक्षा पूरी होने पर,आप उस दुनिया में कदम रखने रहे हैं जहां आपको और अधिक सीखने का जरूरत पड़ेगी। अपने पूरे पेशेवर जीवन के दौरान सीखते रहें तथा नए विचारों को अपनाएं। जस्टिस ओलीवर वेंडल होम्स ने कहा था, ‘‘हमारे ज्ञान का सर्वोत्तम हिस्सा वह है जो हमें यह सिखाता है कि कहां ज्ञान साथ छोड़ देता है और कहां अज्ञान साथ पकड़ लेता है।’’

20.मैं आप सभी को एक सफल जीविकोपार्जन और एक संतुष्टिपूर्ण भावी जीवन की शुभकामनाएं देता हूं।

धन्यवाद, 
जय हिंद!

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