मुंबई विश्वविद्यालय के विशेष दीक्षांत समारोह तथा डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन को मानद डी.लिट प्रदान किए जाने के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण
मुंबई : 17.03.2017
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1. मुझे मुंबई विश्वविद्यालय,जो भारत में स्थापित प्रथम तीन विश्वविद्यालयों में से एक हैं,के विशेष दीक्षांत समारोह के लिए यहां उपस्थित होकर प्रसन्नता हो रही है। यह ऐतिहासिक संस्थान ज्ञान और विद्वता का प्रकाश स्तंभ है। इसने सभी क्षेत्रों में विख्यात व्यक्ति तैयार किए हैं। इसके पूर्व विद्यार्थियों में महात्मा गांधी सहित हमारे स्वतंत्रता आंदोलन के अनेक महान नेता, सुधारक,वैज्ञानिक, शिक्षाविद्,उद्योगपति, विधि विशेषज्ञ,कलाकार और लोक सेवक शामिल है। इस विश्वविद्यालय के विद्यार्थी उत्कृष्टता की इस निरंतर विरासत का निर्माण और योगदान करते हैं। इस संस्थान से उपाधि एक सौभाग्य है,जिसे मेधावी और प्रतिभावान अपने परिश्रम और बुद्धिमता द्वारा प्राप्त करते हैं।
देवियो और सज्जनो,
2. इस विश्वविद्यालय ने डी.लिट की मानद उपाधि प्रदान करके सदैव ऐसे अग्रणियों को सम्मानित किया है जिन्होंने अनेक क्षेत्रों में एक परिवर्तनकारी भूमिका निभाई है। इनमें सर आर.जी. भंडारकर,दादा भाई नौरोजी, सर सी.वी. रमन और सर विश्वेश्वरैया जैसे प्रख्यात समाजसुधारक शामिल हैं। मेरे लिए आज यह एक गौरवशाली क्षण है जब मैं भारत के एक महानतम वैज्ञानिक डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन को डी. लिट की मानद उपाधि प्रदान कर रहा हूं। मैं डॉ. स्वामीनाथन को जानता हूं और पिछले पांच दशकों के दौरान अनेक अवसरों पर मेरी उनसे राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर गहरी बातचीत हुई है। उनके कार्य ने हमारे राष्ट्र में एक प्रमुख बदलाव पैदा किया है। उनके अग्रणी प्रयासों के कारण हमारा देश जीवन निर्वाह की स्थिति से निकलकर विश्व का एक अग्रणी खाद्यान उत्पादक और निर्यातक बन गया है।
65 वर्षों के दौरान डॉ. स्वामीनाथन ने मौलिक और अनुप्रयुक्त प्लांट जैनेटिक और कृषि अनुसंधान और विकास की व्यापक समस्याओं पर वैज्ञानिकों और नीति निर्माताओं के साथ मिलकर कार्य किया है। उनके महत्वपूर्ण योगदानों में प्लांट जैनेटिक संसाधनों और जैव विविधता का संरक्षण, अधिक उपज की बाधाओं की पहचान,फसलों की गुणवत्ता और स्थिरता की सुधार के लिए जीन परिवर्तन,अविकिरण खाद्य सामग्री के साइटोटॉक्सिक कारकों की पहचान तथा विकिरण के अप्रत्यक्ष प्रभावों का प्रत्यक्षण,प्रयोगशाला से खेत कार्यक्रम की व्यवस्था तथा सूखे का प्रबंधन शामिल है। उन्होंने सदैव उत्कृष्ट विश्व वैज्ञानिक के रूप में सराहना प्राप्त की है क्योंकि उन्होंने भारत और विकासशील विश्व में खाद्य उत्पादन के संबंध में अमिट छाप छोड़ी है। निरंतर हरित क्रांति वाली सतत कृषि को उनके समर्थन ने उन्हें सतत खाद्य सुरक्षा के क्षेत्र में एक विश्व अग्रणी बना दिया है। अपने संकल्पनात्मक कार्य से डॉ. स्वामीनाथन को महत्वपूर्ण राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुए हैं।
देवियो और सज्जनो,
21वीं सदी के एशियाई शताब्दी होने की अपेक्षा की जाती है क्योंकि एशियाई देश चहुंमुखी विकास के माध्यम से विश्व में अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रहे हैं। एशियाई अर्थव्यवस्थाओं में80 के दशक के बाद का प्रदर्शन इस एशियाई पुनर्जागरण का प्रतीक है। इस यात्रा में शिक्षा और नूतन ज्ञान एक प्रमुख तत्व रहे हैं।
पारंपरिक विकास क्षेत्रों से परे जिन अर्थव्यवस्थाओं ने अच्छा प्रदर्शन किए हैं वे ज्ञानपूर्ण अर्थव्यवस्थाएं हैं। ज्ञान से ही आने वाले वर्षों में प्रगति और विकास होगा। इस परिदृश्य में उच्च शिक्षा संस्थाएं और विश्व के अन्य भागों के समकक्षों के साथ उनके संपर्क महत्वपूर्ण हैं। नालंदा और तक्षशिला जैसी शिक्षा की ऐतिहासिक पीठ वाला भारत न केवल श्रेष्ठ शिक्षा बल्कि विश्व सहयोग के लिए विख्यात है।
उच्च शिक्षा क्षेत्र की राष्ट्रीय विकास प्रयास में एक महत्वपूर्ण भूमिका है। पारंपरिक ज्ञान का भंडार और नये ज्ञान का स्थल होने के कारण उच्च शिक्षा प्रणाली अर्थव्यवस्था के विभिन्न विकास केंद्रों को प्रभावित करेगी।
देवियो और सज्जनो,
अर्थव्यवस्था का विकास महत्वपूर्ण रूप से उच्च शिक्षा पर निर्भर करता है। अर्थव्यवस्था द्वारा काम पर रखे गए विद्यार्थियों को प्रदत्त प्रशिक्षण की गुणवत्ता इसकी क्षमता के स्तर को तय करती है। श्रेष्ठ जनशक्ति को शामिल करना अर्थव्यवस्था में उच्च शिक्षा प्रणाली के साथ पहला संपर्क है। स्नातकों को घरेलू अर्थव्यवस्था की कौशल आवश्यकताओं को पूरा करना होगा। हमारे कैंपस के पाठ्यक्रम को उद्योग की आवश्यकताओं के साथ जोड़ना होगा। कॉरपोरेट विशेषज्ञ द्वारा पाठ्यक्रमों में औद्योगिक आवश्यकताओं के बारे में शिक्षा प्रबंधकों को सलाह देना लाभकारी होगा।
ज्ञान की विशाल मात्रा अनुसंधान के माध्यम से तृतीयक शिक्षा प्रणाली में सृजित की जाती है। इनका औद्योगिक और अन्य क्षेत्रों के माध्यम से समाज में प्रयोग किया जाता है। मेरे विचार से एक मजबूत औद्योगिक संपर्क उच्च शिक्षा प्रणाली से आर्थिक प्रणाली तक ज्ञान के अंतरण के लिए एक कुशल तंत्र उपलब्ध करवाता है।
देवियो और सज्जनो,
उद्योग-शिक्षा जगत सहयोग ने मुख्यतः सम्मलेनों,औद्योगिक कर्मचारियों के प्रशिक्षण,विद्यार्थियों की प्रशिक्षुता, उद्योग विशेषज्ञों के लिए संकाय पद जोड़ने और लाइसेंस के माध्यम से शैक्षिक रूप से सृजित बौद्धिक संपदा को कारोबार उद्यमों को अंतरित करने पर ध्यान दिया है। ये महत्वपूर्ण हैं परंतु उद्योग-शिक्षा जगत संयोजन के द्वारा अनुसंधान साझेदारियों,साझे पल्लवकों और अनुसंधान पार्कों जैसे सघन संपर्कों पर भी बल देना चाहिए। उन शिक्षा संस्थान और औद्योगिक उद्यम के बीच एक घनिष्ठ संबंध सहयोग के क्षेत्र में और अधिक विस्तार कर सकता है।
मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई कि मुंबई विश्वविद्यालय ने इस संबंध में एक समग्र दृष्टिकोण अपनाया है। इससे न केवल नये कार्यक्रम विकसित हो रहे हैं जो इसके विद्यार्थियों को बदलती अर्थव्यवस्था की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार करेंगे; इससे मौलिक अनुसंधान तथा नवान्वेषण को प्रोत्साहित करने के लिए एक अनुकूल वातावरण का निर्माण किया जा रहा है। विश्वविद्यालय के ढांचागत और अनुसंधान एवं विकास की प्रमुख योजना तैयार करने के लिए कुलपति डॉ. संजय देशमुख की संकल्पना उल्लेखनीय है। अपने 160वें वर्ष में विश्वविद्यालय द्वारा की गई पहल चाहे रेल अनुसंधान केंद्र की स्थापना हो,या फिल्म और मीडिया मनोरंजन प्रशिक्षण अकादमी हो या खेल प्रबंधन,उड्डयन नेतृत्व विकास या अग्निशमन जैसे कार्यक्रम हों या स्किल इंडिया,डिजिटल इंडिया, और मेक इन इंडिया जैसी सरकार की पहलों के साथ श्रम को सफलतापूर्वक जोड़ना हो,यह राष्ट्र के विकास प्रयासों में प्रभावी साझेदार बनने के लिए तत्पर है।
महान शिक्षा संस्थानों को श्रेष्ठ संकाय और प्रशासकों की आवश्यकता होती है। मुंबई विश्वविद्यालय ऐतिहासिक रूप से उत्कृष्ट अध्यापकों,विद्यार्थियों और कार्यबल को आकर्षित करने और उन्हें नियुक्त करने में सक्षम रहा है। इतने वर्षों तक व्यवस्थित रूप से नियोजित ज्ञान प्रदान करने की इसकी योग्यता,संकाय के रूप में अपने समय के अग्रणी विद्वानों और ऊर्जावान विद्यार्थी समुदाय की उपस्थिति के कारण बनी हुई है।
देवियो और सज्जनो,
प्राचीन भारत उच्च स्तरीय दार्शनिक परिचर्चा और विचार-विमर्श के लिए विख्यात था। भारत का न केवल एक भौगोलिक अस्तित्व था बल्कि यह एक विचार और संस्कृति को प्रतिबिंबित करता था। वार्ता और संवाद हमारी परंपरा और जीवन का अंग हैं। इन्हें समाप्त नहीं किया जा सकता है। विश्वविद्यालय और उच्च शिक्षा संस्थान उन्मुक्त विचार विनिमय के सर्वोत्तम मंच हैं। महात्मा गांधी ने कहा था‘मैं नहीं चाहता कि मेरा घर चारो तरफ से बंद हों और मेरी खिड़कियां सटी हुई हों। मैं चाहता हूं सभी देशों की संस्कृतियां मुक्त और संभव रूप से मेरे घर में बहकर आएं। परंतु मैं अपने पैरों को जमाए रखूंगा।’हमें संकीर्ण मानसिकता और विचारों को पीछे छोड़ते हुए मुक्त वार्ता और बहस को भी अपनाना चाहिए। एक आधुनिक भारतीय विश्वविद्यालय की शिक्षा यह सुनिश्चित करनी है कि यह महान परंपरा अपने आस-पास नया जीवन और ऊर्जा प्राप्त करे। हमारे शिक्षा संस्थानों में असहिष्णुता, संकीर्णता और घृणा के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए। उन्हें विविध मतों,विचारों और विचारधाराओं के सहअस्तित्व में अग्रणी के रूप में कार्य करना चाहिए।
देवियो और सज्जनो,
एक श्रेष्ठ शिक्षा प्रणाली वह है जो विद्यार्थियों में सामाजिक उत्तरदायित्व पैदा करने में मदद करे। विद्यार्थी को समाज के साथ जोड़ने के लिए शैक्षिक ढांचे के अंतर्गत उपाय किए जाने चाहिए। उदाहरण के लिए उच्च श्रेणी के विद्यार्थियों को नजदीकी सरकारी स्कूलों में पढ़ाने का कार्य दिया जा सकता है। विद्यार्थी को समुदाय आधारित परियोजनाओं में भी नियुक्त किया जा सकता है। वे समस्याओं की पहचान कर सकते हैं और समाधानों को ढूंढने के लिए अनुसंधान में शामिल हो सकते हैं। ऐसे उपायों से विद्यार्थी आत्मविश्वासी और उद्देश्यवान बनेंगे जिससे वे अपनी निष्ठा और उदाहरण से दूसरों को भी प्रेरित कर सकते हैं। मैं,निस्वार्थ सेवा और स्वयं से पहले सेवा को रखने के संस्कारों को आत्मसात करने और अपने संपर्क में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में उन्हें संचारित करने के लिए अध्यापकों और विद्यार्थियों से आग्रह करता हूं।
इन्हीं शब्दों के साथ,मैं अपनी बात समाप्त करता हूं। मैं मुंबई विश्वविद्यालय की मानद डी. लिट उपाधि को डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन को प्रदान करने का विरल अवसर प्रदान करने के लिए आभार व्यक्त करता हूं। आप सभी के प्रयासों के सफलता के लिए मेरी शुभकामनाएं।
धन्यवाद!
जय हिंद।