मालती ज्ञान पीठ पुरस्कार 2016 प्रदान किए जाने के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

राष्ट्रपति भवन, नई दिल्ली : 29.05.2016

डाउनलोड : भाषण मालती ज्ञान पीठ पुरस्कार 2016 प्रदान किए जाने के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण(हिन्दी, 440.49 किलोबाइट)

sp1. मुझे मालती ज्ञानपीठ पुरस्कार 2016 प्रदान करने के लिए इस समारोह में उपस्थित होने पर प्रसन्नता हुई है। आज का पुरस्कार समारोह मालती जी के95वें जन्मदिवस पर मनाया जा रहा है। इस विशेष दिन उन्हें मेरी शुभकामनाएं। ईश्वर उन्हें शिक्षा कार्य के प्रति अपनी सात दशक की समर्पित सेवा जारी रखने की शक्ति प्रदान करे। मैं श्री मनोज सिंघल,मोहिंदर सिंह स्यांग्ले शिक्षा और अनुसंधान सोसायटी के अध्यक्ष को यह पुरस्कार आरंभ करने की पहल तथा ग्रामीण इलाकों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के विस्तार के उनके उत्साह के लिए सराहना करता हूं। मैं चयन प्रक्रिया को मान्यता देने तथा सहयोग के लिए पंजाब सरकार के प्रयासों की भी प्रशंसा करता हूं।

देवियो और सज्जनो,

2. शिक्षा एक ऐसा मानव प्रयास है जिसके लाभ ठोस और दीर्घकालिक होते हैं। शिक्षा विद्यार्थियों के मन को समृद्ध करती है,उनकी मानसिकता का विस्तार करती है तथा नए विचार खोजने के लिए उनमें एक स्थायी पिपासा पैदा करती है। एक प्रगतिशील समाज जो विचारशीलता और ज्ञान के सम्बन्ध में उन्नत हो गया है,उसके मूल में एक मजबूत शैक्षिक प्रणाली होती है। श्रेष्ठ शिक्षा को प्रत्येक व्यक्ति में देश तथा सामाजिक-आर्थिक मुद्दों की गहरी जानकारी पैदा करनी चाहिए। इसे नागरिकों में समाज अपने आसपास के लोगों तथा देश के प्रति अपने दायित्वों और कर्तव्यों के बारे में विचार करने की क्षमता विकसित करनी होगी।

3. एक सशक्त शिक्षा प्रणाली सतत विकास का आधार है जिससे समाज में स्थायी शांति और सौहार्द पैदा होता है। शिक्षित व्यक्ति में जानकारी का विश्लेषण करने तथा गलत में से सही को चुनने की क्षमता होती है।

देवियो और सज्जनो,

4. विकास का एक प्रमुख आयाम लोगों की सौम्य शक्ति,सकारात्मक रवैया पैदा करने की क्षमता बढ़ाना है। यह मूल्यों का अनुपालन तथा अपने आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत के प्रति निष्ठा का परम अनुपालन है। एक समग्र शिक्षा प्रणाली से हम मूल्यों को स्कूलों और कॉलेजों में शैक्षिक उद्यम की अग्रणी पंक्ति में स्थापित कर सकते हैं। ऐसी प्रणाली समाज के आदर्श विकास के लिए अनुकूल है। मैं इस प्रयास में अध्यापकों की प्रमुख भूमिका की उम्मीद करता हूं।

5. पुरस्कृत अध्यापक उन अध्यापकों का प्रतिनिधित्व करते हैं जो देश के हजारों विद्यार्थियों को शिक्षा प्रदान कर रहे हैं तथा शिक्षण अवसर उपलब्ध करवा रहे हैं। वैदिक युग से वर्तमान तक,हमारे यहां गुरु-शिष्य परंपरा रही है तथा हमारे गुरुओं ने लोगों के मस्तिष्क और बुद्धि को पुष्ट किया। आज भी ऐसे अध्यापक हैं। मैं उन्हें प्रेरित अध्यापक कहता हूं। वे विद्यार्थियों को जिज्ञासु बनने तथा ज्ञान और समझ की सीमाएं खोजने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। प्रेरित अध्यापक को अपने विषयगत क्षेत्रों का गहरा ज्ञान होता है। वे विभिन्न परिप्रेक्ष्यों में विषय को समझने और मूल्यांकन करने में विद्यार्थियों की मदद करते हैं और वास्तव में,नूतन ज्ञान के निर्माण में सहायता करते हैं।

6. प्रेरित अध्यापक का महत्त्व ज्ञान संबंधी अंतरण के सहायक से अधिक है। वे अपने आचरण और जीवन उदाहरण के जरिए अपने विद्यार्थियों में श्रेष्ठ मूल्यों के अंकुर पैदा करते हैं। आज हमारे संस्थानों में उत्कृष्ट अध्यापक हैं जो ऐसी शिक्षा प्रदान करते हैं जो विषयवस्तु के मामले में विश्वस्तरीय होती है तथा मूल्यों के सम्बन्ध में समृद्ध होती है।

देवियो और सज्जनो,

7. विद्यालयों का वैज्ञानिकों,इंजीनियरों, डॉक्टरों,नीति निर्माताओं, शिक्षाविदों तथा सिविल सेवकों की अगली पीढ़ी की बुनियाद रखने का विशाल कार्य है। एक ठोस विद्यालय प्रणाली अपने कार्य के प्रति निष्ठावान श्रेष्ठ गुणवत्ता वाले अध्यापकों के द्वारा ही संभव है। अध्यापकों को यह सुनिश्चित करना होगा कि अब शैक्षिक प्रक्रियाएं कक्षा आधारित शिक्षा तक सीमित नहीं रही है। उन्हें बाल मन को सीखने,खोजने तथा समाज में योगदान के लिए नवान्वेषी तरीकों और अध्ययन सहायक सामग्री के जरिए अपने विद्यार्थियों के शिक्षण अनुभवों का सृजन करना होगा। इनके लिए क्षमता निर्माण के माध्यम से हमारे अध्यापकों के संवर्ग को सशक्त बनाना होगा।

8. योग्य और प्रेरित अध्यापकों का समूह अपने सामूहिक प्रयासों से सुदृढ़ मन और साहसी हृदय वाले समाज की रचना कर सकता है। मैंने पहले यह उल्लेख किया था कि शिक्षा एक ऐसा वास्तविक तत्त्व है जो भारत को अगले स्वर्ण युग में ले जा सकता है। इस आकांक्षा को पूरा करने के लिए हमें इस ध्येय वाक्य पर चलकर अग्रसर होना चाहिए :सभी ज्ञान के लिए,और ज्ञान सभी के लिए।

9. भारत में,हमने बच्चे की 14 वर्ष की आयु तक अनिवार्य शिक्षा का अधिकार प्रदान करते हुए कानून लागू किए हैं। तथापि,कम भाग्यशाली बच्चों को शामिल करने तथा उनकी शिक्षा के लिए सही प्रकार की ढांचागत सुविधाएं निर्मित करने के लिए धरातल पर अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। इस शिक्षा प्रणाली में बदलाव लाने के लिए केवल सरकारी प्रयास पर्याप्त नहीं हैं। इसके साथ निजी क्षेत्र और स्वैच्छिक संगठनों की पहल को भी जोड़ना होगा। मैं प्रशंसनीय रूप से गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने तथा ग्रामीण युवाओं में कौशल पैदा करने के लिए मोहिंदर सिंह स्यांगले शिक्षा और अनुसंधान सोसायटी की सराहना करता हूं।

10. मैं एक बार पुन: पुरस्कार विजेताओं को बधाई देता हूं तथा उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूं। सभी को मेरी शुभकामनाएं।

धन्यवाद,

जय हिंद!

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