कुलाध्यक्ष सम्मेलन के दूसरे दिन इम्प्रिंट इंडिया के शुभारंभ के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण
राष्ट्रपति भवन, नई दिल्ली : 05.11.2015
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Good Morning!
नमस्ते!
1. मैं उन सभी का स्वागत करता हूं जो प्रथम कुलाध्यक्ष सम्मेलन में भाग लेने के लिए यहां उपस्थित हुए हैं। विगत में, मुझे, राष्ट्रपति भवन में आयोजित विभिन्न सम्मेलनों तथा आपके संस्थानों के दीक्षांत समारोहों के दौरान आपमें से अनेक से मिलने का अवसर मिला है। यद्यपि, पहली बार कुलाध्यक्ष के रूप में मैं आप सभी से एक साथ मिल रहा हूं। मेरी सचिव के उल्लेख अनुसार, पिछले सम्मेलनों के निष्कर्षों से हमें यह विश्वास हो गया है कि उच्च शिक्षा संस्थान यदि एकजुट हो जाएं तो थोड़े समय में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में परिवर्तन ला सकते हैं। इसी साझे विश्वास के साथ हम आज यहां एकत्र हुए हैं।
2. मैं, माननीय प्रधानमंत्री,श्री नरेन्द्र मोदी की गरिमामयी उपस्थिति के लिए उनका धन्यवाद करता हूं। उनका मनमोहक अभिभाषण और प्रेरक शब्द, निस्संदेह सम्मेलन के दौरान विचार-विमर्श की गति निर्धारित करेंगे। मैं इस अवसर पर मानव संसाधन विकास मंत्री, श्रीमती स्मृति जुबिन इरानी की सराहना करता हूं। उन्होंने उद्देश्य और ऊर्जा के साथ विभिन्न पहलों को तेज करके शिक्षा क्षेत्र को आगे बढ़ाया है।
3. मैं प्रधानमंत्री और मानव संसाधन विकास मंत्री की अभी आरंभ की गई अखिल भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान तथा भारतीय विज्ञान संस्थान की एक पहल इम्प्रिंट कार्यक्रम के लिए सराहना करता हूं। समाज की तात्कालिक जरूरतों की पहचान करने वाले इस कार्यक्रम के दस विषय राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों के लिए, अनुसंधान खाका निर्धारित करेंगे। मैं जन नीति निर्माण से संबंधित विषयों पर अनुसंधान करने के लिए इम्प्रिंट इंडिया जैसी संयुक्त पहल तैयार करने के लिए सामाजिक और मानविकी क्षेत्र के संस्थानों के शैक्षिक प्रमुखों से आग्रह करता हूं।
4. विशिष्ट अतिथिगण, देवियो और सज्जनो, यह सच है कि विगत दस वर्षों के दौरान उच्च शिक्षा ढांचे का अत्यंत विस्तार हुआ है। तथापि भारत में कम सकल प्रवेश अनुपात विश्व की 27 प्रतिशत औसत के मुकाबले 21 प्रतिशत है, जो चिंता का विषय बनी हुई है। एक नई शिक्षा नीति तैयार की जा रही है। मुझे बताया गया है कि विचार-विमर्श की प्रक्रिया स्कूली शिक्षा के 13 विषयों तथा उच्च शिक्षा के20विषयों पर आरंभ की गई है। नई शिक्षा नीति से शिक्षा क्षेत्र की गतिशीलता बढ़नी चाहिए तथा इससे हमें 2020तक 30 प्रतिशत का सकल प्रवेश अनुपात लक्ष्य प्राप्त करने में मदद मिलेगी और उस लक्ष्य को हमें खोना नहीं चाहिए।
5. विस्तार की वेदी पर गुणवत्ता की बलि नहीं दी जानी चाहिए। संस्थानों की ज्यादा संख्या से सीटों की अधिक संख्या,सुलभ्यता में वृद्धि तथा उच्च शिक्षा में भागीदारी होगी। यद्यपि इससे पहुंच बनाम उत्कृष्टता, गुणवत्ता बनाम वहनीयता तथा जवाबदेही बनाम स्वायत्तता पर तीखी बहस आरंभ हो गई है। एक गंभीर आकलन से सभी भागीदार स्पष्टत: अवगत हो जाएंगे कि हमें पहुंच और उत्कृष्टता, गुणवत्ता और वहनीयता तथा जवाबदेही के साथ स्वायत्तता की आवश्यकता है।
6. डिजीटल समावेशन के माध्यम से उच्च शिक्षा की बढ़ती पहुंच अगला कदम है। हमें बिना विलम्ब के संशोधित ऑनलाइन विशाल मुक्त पाठ्यक्रम को माध्यमिक शिक्षा स्तर तक ले जाना चाहिए। भारत को कौशलयुक्त बनाने के लिए हमें ऐसे ऑनलाइन विशाल मुक्त पाठ्यक्रम तैयार करने चाहिए जो अन्तर्क्रियात्मक हो और व्यावसायिक अभ्यार्थियों को सीखने का अवसर प्रदान करें। इससे कौशल की जानकारी की उपलब्धता में क्रांति आ सकती है।
7. विशिष्ट प्रतिभागियों,उच्च शिक्षण संस्थान को शिक्षा, अनुसंधान और नवान्वेषण में उत्कृष्ट प्रदर्शन करके अपने वास्तविक महत्व के बारे में पता चलता है। इसके लिए संकाय विकास तथा सभी अध्यापन संसाधनों में वृद्धि की आवश्यकता होती है। इसके लिए प्रेरित अध्यापकों, सीखने के उत्सुक विद्यार्थियों तथा श्रेष्ठ भौतिक और अनुसंधान ढांचे की जरूरत है। इसके लिए एक विश्वसनीय और विस्तृत सूचना और संचार प्रौद्योगिकी नेटवर्क की भी आवश्यकता है। कुछ समय पूर्व की कुछ उत्साहजनक प्रगति, जो मुझे याद आ रही है, इस प्रकार है:-
(1) विदेशी संस्थानों के साथ औपचारिक व्यवस्थाओं के माध्यम से संकाय के आदान-प्रदान की गहनता: समझौता ज्ञापनों जिन पर विभिन्न उच्च शिक्षण संस्थानों द्वारा हस्ताक्षर किए गए होंगे, के अलावा विदेशी संस्थानों के साथ 80 से अधिक समझौता ज्ञापनों पर पिछले दो वर्षों के दौरान विदेशी यात्राओं के दौरान हस्ताक्षर किए गए। इससे अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के साथ सहयोग के प्रति रूचि और संभावना प्रदर्शित होती है।
(2) बाधाओं को दूर करना तथा संकाय पदों की भर्ती प्रक्रिया का सरलीकरण;
(3) सहायक संकाय की नियुक्ति और विदेशी विशेषज्ञों को कार्य पर रखना वैश्विक शैक्षिक नेटवर्क की पहल प्रतिभावान वैज्ञानिकों और उद्यमियों के वैश्विक समूह का प्रयोग करने के लक्ष्य से युक्त स्वागत योग्य कदम है। भारतीय संस्थानों के साथ जुड़ाव को प्रोत्साहित करके, हम अपने देश के शैक्षिक संसाधनों में वृद्धि कर सकते हैं।
8. विशिष्ट प्रतिभागियो,यह देखना अच्छा लगता है कि हमारे उच्च शिक्षण संस्थानों में अनुसंधान को अत्यंत महत्व दिया जा रहा है। इससे निकट भविष्य में श्रेष्ठ संकाय की आवश्यकता पूरी करने में मदद मिलेगी। एक नवीनतम उदाहरण, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान दिल्ली है जिसने इस वर्ष 221पीएचडी प्रदान की हैं जो अब तक एक वर्ष में सबसे अधिक है। इसने अगले कुछ वर्षों के दौरान इस संख्या को 400तक बढ़ाने का संकल्प किया है। ऐसी पहल से न केवल राष्ट्र की उच्च अनुसंधान उपलब्धि बढ़ेगी बल्कि संस्थानों की वरीयताओं में भी सुधार आएगा।
9. इससे पूर्व, एक भी भारतीय संस्थान अंतरराष्ट्रीय वरीयता के सर्वोच्च 200 संस्थानों में नहीं आया था। इससे प्रतीत होता है कि मेरे निरंतर प्रयास रंग लाए हैं। आपमें से अधिकांश ने मेरे आह्वान का प्रत्युत्तर दिया है। मैं इसके लिए आभारी हूं। अब हमारे संस्थान वरीयता प्रक्रिया को सक्रिय और व्यवस्थित ढंग से ले रहे हैं। 2015-16 की क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिग 2015-16 में भारतीय संस्थानों ने पहली बार सर्वोच्च 200 में प्रवेश किया है। मैं भारतीय विज्ञान संस्थान, बंगलौर जिसे 147वां तथा भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान दिल्ली जिसे 179वां स्थान हासिल किया है, की इस उपलब्धि के लिए सराहना करता हूं। यदि हम अगले 4-5 वर्षों तक सर्वोच्च 10-20 संस्थानों को पर्याप्त निधि मुहैया करवाएं तो हम उन्हें सर्वोच्च 100 में प्रवेश करते हुए देख सकते हैं।
10. भारत केंद्रित दृष्टिकोण के साथ मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा आरंभ किया गया राष्ट्रीय संस्थागत वरीयता ढांचा सही दिशा में एक कदम है। इस पहल से भारतीय उच्च शिक्षा संस्थान अपनी क्षमता साकार कर सकेंगे और वे विश्व स्तरीय संस्थानों के रूप में उभरेंगे।
11. ॒देवियो और सज्जनो,ज्ञान अखंडनीय है। हमें ऐसा बहुविधात्मक नजरिया अपनाना चाहिए जिससे विद्यार्थी समग्र रूप से सीख सकेंगे तथा वे ज्ञान प्राप्त कर सकेंगे। हमें संस्थानों के विद्यार्थियों को शिक्षा प्रदान करनी होगी जिससे उनके ज्ञान में विस्तार होगा, उनका चरित्र निर्माण होगा,मातृभूमि के प्रति सेवा और प्रेम की भावना पैदा होगी। इससे वे वास्तविक जीवन के संघर्ष का सामना करने में सक्षम बनेंगे। इससे समाज के साथ विद्यार्थियों का संपर्क गहरा होगा। हमारे विद्यार्थियों में वैज्ञानिक प्रवृत्ति पैदा करना जरूरी है जिससे वे श्रेणियों और कक्षाओं के दायरे से बाहर कल्पना की उड़ान भरी जा सके। स्नातक स्तर पर अनुसंधान को बढ़ावा देने से इस उद्देश्य में सहायता मिलेगी।
12. विशिष्ट प्रतिभागियो,प्रगति और नवान्वेषण के बीच सीधा संबंध है। इतिहास में ऐसे बहुत से कम संसाधनों वाले राष्ट्र हैं जो केवल तीव्र प्रौद्योगिकी विकास की ताकत के बल पर उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के रूप में उभरे हैं। भारत आज अपने संस्थापकों के स्वप्नों को साकार करने के मुकाम पर है। भारतीय युवा उद्यमशीलता में किसी से कम नहीं हैं। भारत का विश्व में उद्यम आधार तीव्रतम रूप से बढ़ रहा है तथा अमरीका और यूके के बाद वह 4200 उद्यम आरंभ करने के मामले में तीसरे स्थान पर है। सरकार ने उद्यमिता उपक्रमों को प्रोत्साहन देने के लिए ‘स्टार्ट-अप इंडिया स्टैंड-अप इंडिया’ अभियान आरंभ किया है। उच्च शिक्षण संस्थानों के प्रमुखों के एक नवान्वेषण और अनुसंधान नेटवर्क के निर्माण के लिए कार्य करना होगा जिससे उद्यमी तैयार होंगे और नवान्वेषणों को बढ़ावा मिलेगा। विगत दो वर्षों के दौरान 60 से ऊपर केंद्रीय संस्थानों में नवान्वेषण क्लबों की स्थापना एक ऐसे मंच की श्रेष्ठ शुरुआत है जहां नूतन विचार प्रोत्साहित किए जा सकेंगे तथा परामर्श प्राप्त नवान्वेषक नए उत्पाद निर्मित कर सकेंगे।
13. 2014 में केंद्रीय विश्वविद्यालयों के कुलपति सम्मेलन में लिए गए निर्णयों के प्रत्युत्तर में, अनेक संस्थानों में उद्योग संयोजन प्रकोष्ठ स्थापित किए गए हैं। ये प्रकोष्ठ अब संयुक्त अनुसंधान, संकाय आदान-प्रदान तथा पीठ की स्थापना तथा वृत्तियों जैसे कार्यकलापों को ऊर्जा प्रदान कर रहे हैं। ये प्रकोष्ठ विचारों और अनुसंधान के वाणिज्यीकरण के लिए नवान्वेषण केंद्रों के साथ परस्पर कार्य कर सकते हैं। कल उद्योग के साथ हुए 45 समझौता ज्ञापन उद्योग और शैक्षिक समुदाय के बीच साझीदारी को अगले स्तर तक ले जाएंगे।
14. देवियो और सज्जनो, शैक्षिक संस्थान राष्ट्र के सामाजिक-आर्थिक विकास के महत्वपूर्ण हिस्सेदार हैं। मैंने इससे पहले उन्होंने केंद्रीय विश्वविद्यालयों और राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों से कम से कम पांच गांवों को गोद लेने और उन्हें आदर्श गांवों में बदलने के लिए कहा था। मैं अब सभी 114केंद्रीय संस्थानों से आग्रह करता हूं। गोद लिए गांवों की समस्याओं की पहचान के बाद उनका समाधान करने के लिए अपने पास मौजूद सभी शैक्षिक और तकनीकी संसाधनों को प्रयोग करना होगा,इससे हमारे देशवासियों की जीवन गुणवत्ता में वृद्धि होगी।
15. हमने इस सम्मेलन में विचार-विमर्श आरंभ कर दिया है, मैं आपको शिक्षा जगत की भावी रोमांचकारी यात्रा का विश्वास दिलाता हूं। रुकावटों, आलोचनाओं, विफलताओं और सफलताओं के लिए तैयार रहें परंतु ताजगी भरे और सकारात्मक मन के साथ कार्य जारी रखें। महात्मा गांधी ने जो कहा था उसे मन में बसा लें, ‘पहले वे आपको अनदेखा करेंगे, फिर आप पर हंसेंगे, उसके बाद वे आपसे लड़ेंगे,तदुपरांत आप विजयी होंगे।’ और आपकी जीत अवश्य होगी।
धन्यवाद!