कृषि-वानिकी पर विश्व कांग्रेस के उद्घाटन तथा कृषि कर्मण पुरस्कार प्रदान किए जाने के अवसर पर, भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

विज्ञान भवन, नई दिल्ली : 10.02.2014

डाउनलोड : भाषण कृषि-वानिकी पर विश्व कांग्रेस के उद्घाटन तथा कृषि कर्मण पुरस्कार प्रदान किए जाने के अवसर पर, भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण(हिन्दी, 243.12 किलोबाइट)

Speech by the President of India, Shri Pranab Mukherjee at the Inauguration of the World Congress on Agro-forestry and Presentation of Krishi Karman Awardsकृषि-वानिकी पर विश्व कांग्रेस का उद्घाटन करने के लिए आज यहां उपस्थित होना मेरे लिए सौभाग्य की बात है। प्रारंभ में, मैं विदेश से आए सभी विशिष्ट प्रतिनिधियों का अत्यंत हार्दिक स्वागत करता हूं। मैं दिल्ली में उनके सुखद प्रवास कामना करता हूं और उम्मीद करता हूं कि वे इसके फरवरी के स्वास्थ्यवर्धक मौसम का आनंद उठाएंगे।

2. मुझे, इस अवसर पर केंद्रीय कृषि मंत्रालय, भारत सरकार के कृषि कर्मण पुरस्कार प्रदान करने पर भी खुशी हो रही है।

3. मैं, इस विश्व कृषि-वानिकी कांग्रेस के संयुक्त आयोजन के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, विश्व कृषि-वानिकी केंद्र और भारतीय कृषि-वानिकी सोसायटी को बधाई देता हूं। पहली बार इसके एशिया प्रशांत क्षेत्र में आयोजित होने पर, मैं इस ऐतिहासिक अवसर का एक हिस्सा बनना महान सम्मान समझता हूं। बढ़ते पर्यावरणीय हृस और प्रदूषण स्तर की पृष्ठभूमि में इस अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का विषय ‘वृक्ष जीवन के लिए : कृषि-वानिकी के प्रभाव में तेजी लाना’ वास्तव में प्रासंगिक है।

देवियो और सज्जनो,

4. वृक्ष, प्राचीन काल से ही भारतीय कृषि और भू-दृश्य का एक अभिन्न हिस्सा रहे हैं; वैदिक काल, जो भारतीय इतिहास में ईसा पूर्व 4500 और 1800 के बीच का काल है, के दौरान किसी गांव को घरों के आसपास जंगल के होने पर ही पूर्ण माना जाता था। दसवीं शताब्दी के एक प्राचीन भारतीय विद्वान सुरपाल ने पौधों के जीवन का विज्ञान, वृक्ष आयुर्वेद लिखा था। इस ग्रंथ में अरबोरी-संस्कृति का उल्लेख है, जो एक-एक वृक्ष, झाड़ी, लता और काष्ठयुक्त पौधों की खेती, प्रबंधन और अध्ययन से सम्बन्धित विज्ञान और व्यावहारिक प्रयोग है। सुरपाल की इस कृति में वृक्षों, झाड़ियों और औषधियों की 170 प्रजातियों का उल्लेख है। इसमें बीजों और रोपण सामग्री का शोधन; भूमि का चुनाव, जल प्रबंधन, पौधों का पोषण तथा पौधों की विकृतियों का नियंत्रण; उद्यान और बगीचे का विन्यास तथा दुर्लभ वृक्षों के पोषण का विस्तृत ब्योरा भी दिया गया है। सुरपाल के ब्योरे से बहुत पहले ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में शासन करने वाले सम्राट अशोक ने अरबोरी-बागवानी की प्रणाली को प्रोत्साहित किया।

5. औषधीय और सौंदर्यवादी गुणों के कारण, भारत में अनेक वृक्षों और झाड़ियों को पवित्र माना जाता है। पीपल जैसे कुछ वृक्षों का उल्लेख प्रचीन धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। पुराणों में वृक्षारोपण के गुणों की महिमा है; ‘‘दश-कूपा-सम वापी, दश-वापी-समो हृद: दश-हृद-सम: पुत्रो, दश-पुत्र-समो द्रुम:’’ जिसका अर्थ है एक तालाब दस कुओं के समान है, एक जलाशय दस तालाबों के समान है; एक पुत्र दस जलाशयों के समान है, और एक वृक्ष दस पुत्रों के समान है।

देवियो और सज्जनो,

6. विश्व के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में वृक्ष आधारित उत्पादन प्रणालियों की प्रचुरता है। परंतु फिर भी शहरीकरण, औद्योगिकीकरण और खाद्य उत्पादन के अंधाधुंध मानवीय दोहन के कारण प्राकृतिक संरक्षण पर ध्यान नहीं दिया गया है। इस पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव भी पड़ा है, जिसकी ओर अब विश्व का ध्यान गया है। 2014, कृषि पर जलवायु परिवर्तन के भीषण प्रभाव से लड़ने की वृक्ष आधारित उत्पादन प्रणालियां विकसित करने के लिए निर्णायक क्षण हो सकता है।

7. हाल ही में किसानों के सामने संकट पैदा करने वाले पर्यावरणीय प्रदूषण के उदाहरण सामने आए हैं। उत्पादकता में निरंतर वृद्धि के लिए आवश्यक मिट्टी, जल, जैव-विविधता तथा वन की पारिस्थितिकीय बुनियाद आज गंभीर संकट में हैं। विकासशील दुनिया में लगभग 500 मिलियन छोटे खेतों वाले किसान हैं जिनसे करीब 2 बिलियन लोगों को आजीविका में मदद मिल रही है। ये छोटे किसान जो पारिवारिक खेती का कार्य करते हैं, आर्थिक रूप से कमजोर हैं। पारिवारिक खेती को विभिन्न देशों की राष्ट्रीय कार्यसूची के कृषि, पर्यावरणीय और सामाजिक नीतियों के केंद्र में स्थापित करने की आवश्यकता को पहचानते हुए, संयुक्त राष्ट्र ने 2014 को अंतरराष्टीय पारिवारिक कृषि वर्ष घोषित किया है। पर्यावरणीय सुरक्षा के सिद्धांत पर आधारित सतत् कृषि उत्पादन प्रणालियों का भूख को समाप्त करने तथा ग्रामीण निर्धनता को मिटाने पर एक निर्णायक प्रभाव पड़ सकता है।

देवियो और सज्जनो,

8. कृषि-वानिकी से खेती की सतत्ता के बारे में प्राथमिकताओं के पुनर्निर्धारण का महत्त्वपूर्ण अवसर उपलब्ध होता है। यह पर्यावरणीय रूप से सतत् खाद्य उत्पादन प्रणालियों में प्रमुख क्षेत्र बनकर उभर रहा है। कृषि-वानिकी से खाद्य, ईंधन तथा रेशों का उत्पादन होता है; खाद्य तथा पोषाहार सुरक्षा में सहयोग मिलता है; आजीविका चलती है; वनों का क्षय रोकने में सहायता मिलती है; जैव विविधता बढ़ती है; जल संसाधनों का संरक्षण होता है तथा उनका क्षरण रुकता है। कृषि-वानिकी खेतों से कार्बन को अलग करना, इनमें अधिक से अधिक निवेश को न्यायसंगत ठहराते हुए, जलवायु परिवर्तन को कम करने का एक सरल उपाय है। कृषि-वानिकी, वनाच्छादित क्षेत्र को वर्तमान 25 से कम प्रतिशत से 33 प्रतिशत बढ़ाने के लक्ष्य को पूरा करना भी एक महत्त्वपूर्ण विकल्प है।

9. भारत में कुल भौगोलिक क्षेत्र का 43 प्रतिशत से अधिक हिस्सा कृषि भूमि का है। लगभग 23 प्रतिशत क्षेत्र में जंगल है। कृषि भूमि में लकड़ी के स्रोत के रूप में प्रयोग करने की विशाल संभावना मौजूद है। यह अनुमान लगाया गया है कि भारत की लकड़ी की लगभग 64 प्रतिशत आवश्यकता कृषि भूमि में उगाए गए वृक्षों से पूरी होती है। कृषि-वानिकी से देश की 201 मिलियन टन ईंधन लकड़ी की कुल मांग की लगभग आधी जरूरत भी पूरी होती है। कृषि-वानिकी वार्षिक रूप से कृषि उत्पादकता या आय को बाधित किए बिना प्रति हेक्टेयर 450 श्रम दिन सृजित करती है।

10. यद्यपि, हरित क्रांति ने खाद्यान्न उत्पादन में भारत को आत्मनिर्भर बनाने में मदद की है, परंतु उर्वरकों और कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग तथा गलत भूमि प्रयोग प्रबंधन से व्यापक पर्यावरणीय हृस हुआ जिसके परिणामस्वरूप फसल पैदावार पर प्रभाव पड़ा है। भूमि प्रयोग के एक विकल्प के रूप में कृषि-वानिकी आकर्षक है। कृषि और वन फसलों के समेकन से न केवल भूमि का आगे हृस रुकता है बल्कि ग्रामीण जनसंख्या को लकड़ी और ईंधन की लकड़ी की उपलब्धता भी सुनिश्चित होती है।

11. सतत् विकास में योगदान के लिए कृषि-वानिकी की क्षमता की अंतरराष्ट्रीय रूप में पहचान की गई है। उदाहरण के लिए, जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र रूपरेखा समझौता तथा जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल ने कृषि-वानिकी को जलवायु कुशल कृषि का एक महत्त्वपूर्ण संघटक माना है। संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण समाधान समझौता में कृषि-वानिकी को मरुस्थलीकरण नियंत्रण तथा पुनर्वास की एक प्रमुख संभावना के तौर पर स्वीकार किया है। जैविक विविधता पर समझौते में कृषि जैवविविधता के संरक्षण के अपने पारितंत्र दृष्टिकोण में कृषि-वानिकी को एक प्रमुख तत्व के रूप में विचार किया गया है। कृषि-वानिकी संभवत: अकेली ऐसी भूमि प्रयोग गतिविधि है जिसने इन तीन महत्त्वपूर्ण समझौतों द्वारा समर्थित दृष्टिकोण में अपनी एक प्रासंगिक भूमिका बनाई है।

देवियो और सज्जनो,

12. नि:संदेह, कृषि-वानिकी पर्यावरणीय तथा आर्थिक रूप से सतत् ढंग से भूमि की उत्पादकता बढ़ाने में सक्षम है। कृषि-वानिकी में अधिक अनुसंधान की जरूरत है, जिसमें ऐसी पर्यावरण सम्मत प्रौद्योगिकियों के सृजन पर जोर देना होगा जिसमें नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकी के साथ परंपरागत तकनीकी विवेक का समुचित मिश्रण हो।

13. भारत कृषि-वानिकी पर अनुसंधान में अग्रणी रहा है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने 1983 में एक नेटवर्क परियोजना-कृषि-वानिकी पर अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना आरंभ की है। इसने 1988 में राष्ट्रीय कृषि-वानिकी अनुसंधान केंद्र की स्थापना की थी। भारतीय वानिकी अनुसंधान शिक्षा परिषद ने हाल ही में कृषि-वानिकी पर एक अन्य नेटवर्क कार्यक्रम आरंभ करने की पहल की है। राज्य कृषि विश्वविद्यालय, जिनमें वानिकी या कृषि-वानिकी विभाग है, इन नेटवर्क गतिविधियों में साझीदार हैं। इन अग्रणी प्रयासों ने देश के कृषि-वानिकी के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण जन-शक्ति समूह तैयार किया है।

14. कृषि-वानिकी से मिलने वाले अन्य फायदों के बावजूद इसके विकास में नीति प्रोत्साहन की कमी, अपर्याप्त ज्ञान-प्रसार, कानूनी अड़चनों तथा इसके लाभार्थी सेक्टरों के बीच खराब समन्वय से अड़चन आ रही है। अपर्याप्त निवेश, उपयुक्त प्रसार कार्यनीतियों तथा कमजोर बाजार संबंधों से इस सेक्टर की समस्याएं बढ़ी हैं। कृषि-वानिकी परियोजनाओं पर लगने वाले लंबे समय से हतोत्साहित होने के बजाय हमें ऐसे नवान्वेषी मॉडलों की जरूरत है जो इस सेक्टर में निवेश को प्रोत्साहन दें।

15. एक संभावनापूर्ण क्षेत्र के रूप में, कृषि-वानिकी अब हमारे सीमित दृष्टिकोण तक सीमित नहीं रही है। मैं कृषि-वानिकी को हमारे नीति संवाद के एक व्यापक ढांचे तक उठाने के लिए किए जा रहे प्रयासों से प्रसन्न हूं। मुझे बताया गया है कि राष्ट्रीय कृषि-वानिकी का एक प्रारूप तैयार किया गया है, मुझे उम्मीद है कि शीघ्र ही इस पर अंतिम निर्णय हो जाएगा। कृषि-वानिकी पर एक राष्ट्रीय मिशन की भी योजना बनाई गई है जिससे इस क्षेत्र के कार्य कर रहे अनेक भागीदारों के बीच बेहतर समन्वय, संयोजन का प्रयास और सहकार्य सुनिश्चित होगा।

16. मुझे विश्वास है कि यह कांग्रेस कृषि-वानिकी क्षेत्र पर ठोस और सार्थक विचार विमर्श का एक मंच मुहैया करवाएगी। आदर्शवादी उपदेश देने का समय बीत चुका है। शक्ति को अब रोक कर नहीं रखा जा सकता। इसे इस्तेमाल करने का समय आ चुका है। इन्हीं शब्दों के साथ, मैं अपनी बात समाप्त करता हूं। मैं इस कांग्रेस की सफलता की कामना करता हूं।

धन्यवाद, 
जय हिंद!

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