कर्नाटक विधानमंडल में भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

बेलगाम : 11.10.2012

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कर्नाटक विधानमंडल के इस प्रतिष्ठित निकाय को संबोधित करना मेरे लिए एक सम्मान और सौभाग्य है।

मैसूर के पूर्व शासकों ने काफी पहले 1881 में ही प्रतिनिधि सभा की शुरुआत कर दी थी। मैसूर के महाराजा परोपकार और जन-कल्याण कार्यों के लिए प्रसिद्ध थे। गांधी जी वोडेयारों के कार्य से प्रभावित थे और उन्होंने इस क्षेत्र की ‘मॉडल मैसूर’ के रूप की प्रशंसा की थी, जिसका अन्य रियासतों द्वारा अनुकरण किया जाना चाहिए।।

वर्तमान विधान सभा और विधान परिषद प्रतिनिधि सभा की परम्परा की वाहक हैं। कर्नाटक विधानमंडल ने विभिन्न प्रगतिशील कानून बनाकर उच्च मानदण्डों की एक परंपरा स्थापित की है। इसी महान निकाय को श्रेय जाता है कि इसके द्वारा लागू किए गए भूमि सुधार अधिनियम, व्यक्ति द्वारा मैला साफ करने की प्रथा की समाप्ति, पिछड़े वर्गों को शिक्षा और रोजगार में आरक्षण आदि जैसे कानून की बहुत से राज्यों और राष्ट्रीय सरकार द्वारा सराहना और अनुकरण किया गया है।

निर्वाचित संसद और विधानमंडल किसी भी सच्चे लोकतंत्र के सबसे प्रमुख घटक होते हैं। हमारी राजनीतिक प्रणाली में विधायक जन प्रतिनिधि होते हैं। उन्हें कानून बनाने, शासन और जनहित के मुद्दों पर विचार-विमर्श करने, जनता की आवाज के रूप में कार्य करने तथा वैधानिक मंच के माध्यम से उनकी शिकायतों का समाधान करने का दायित्व सौंपा गया है।

लोगों की आकांक्षाओं और हितों के अनुसार सरकार के कार्यों को सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी निर्वाचित प्रतिनिधियों की होती है। उनके कर्त्तव्य के प्रभावी निर्वहन के माध्यम से ही विधिक शासन हमारे समाज की सजीव वास्तविकता बन जाता है। विधायकों को सदैव याद रखना चाहिए कि उन्हें लोगों के न्यासी के रूप में कार्य करना है और उन्हें अच्छे आचरण और जिम्मेदारीपूर्ण व्यवहार का आदर्श मॉडल बनना चाहिए।

भारत के संविधान के भाग-VI, अध्याय 3 के अनुच्छेद 168 से 177 का संबंध राज्य विधानमंडलों को संचालित करने वाले सामान्य प्रावधानों से है। राज्य विधानमंडलों के स्वरूप और कामकाज में कुछ एकरूपता होती है लेकिन बड़े और छोटे राज्यों के बीच अन्तर पाया जाता है। आरम्भ में, कुछ बड़े राज्यों में द्विसदनीय विधानमंडल थे जिसमें विधान सभा और विधान परिषद शामिल हैं परंतु बाद में पश्चिम बंगाल जैसे कुछ राज्यों ने एक सदनीय विधानमंडल को अपनाया। आंध्र प्रदेश में शुरू में द्विसदन थे परंतु अस्सी के दशक के मध्य में, यहां एक सदनीय विधानमंडल हो गया और अभी हाल ही में दोबारा वहां वापस द्विसदनीय विधानमंडल हो गया। कर्नाटक में आरम्भ से ही विधानमंडल द्विसदनीय है। वास्तव में, महाराजाओं के समय से ही कर्नाटक में विधानसभा और विधान परिषद दोनों हैं। वर्तमान में, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश तथा जम्मू और कश्मीर में द्विसदनीय विधानमंडल हैं।

राज्य विधानमंडल का प्रमुख दायित्व राज्य के सुशासन और प्रशासन के लिए आवश्यक कानून बनाना है। सातवीं अनुसूची की सूची-2 में राज्य प्रशासन और विधान की 66 मद शामिल हैं। वर्तमान में, शासन एवं विधान दोनों में प्रशासन की बढ़ती पेचीदगी के कारण, विधायकों को कानून पारित करने के दौरान सावधानी बरतनी चाहिए। इसमें समिति स्तर और सदन में चर्चा दोनों के दौरान काफी समय लगता है। आजकल जो प्रवृति दिखाई देती है और जो लोकतंत्र के लिए सही नहीं है, वह यह है कि विधायकों द्वारा कानून निर्माण के लिए दिया जाने वाला समय धीरे-धीरे कम होता जा रहा है। विधायकों को सदैव याद रखना चाहिए कि जन प्रतिनिधि और जनहित संरक्षक के रूप में उन्हें विधान, धन और वित्त संबंधी मामलों में अत्यंत सतर्क रहना होगा। विशेषकर विधान सभाओं के निर्वाचित जन प्रतिनिधियों का धन और वित्त पर पूर्ण नियंत्रण होता है। विधानमंडल के अनुमोदन के बिना कार्यपालिका द्वारा कोई व्यय नहीं किया जा सकता, विधानमंडल द्वारा पारित कानून के बिना कोई कर नहीं लगाया जा सकता तथा विधानमंडल के अनुमोदन के बिना राज्य के समेकित कोष में से कोई धनराशि नहीं निकाली जा सकती। विधानमंडल बजट और अन्य धन विधेयकों के माध्यम से इस शक्ति का प्रयोग करता है। संविधान के अनुसार, धन विधेयक को संविधान [संसद के लिए अनुच्छेद 110, विधान सभा के लिए अनुच्छेद 198 व 199(3) एवं (4)] में निहित प्रावधानों के अनुसार, स्पीकर द्वारा प्रमाणित किया जा सकता है और विधान सभा में ही प्रस्तुत और पारित किया जा सकता है।

विधानमंडल, विशेषकर विधान सभा इस लिहाज से कार्यपालिका की स्वामी है कि मंत्रिपरिषद सहित मुख्य मंत्री सामूहिक रूप से और पृथक रूप से विधानसभा के प्रति उत्तरदायी होता है। राज्य विधानसभा में साधारण बहुमत द्वारा अविश्वास प्रस्ताव पारित करके कार्यपालिका को किसी भी समय पद्च्युत किया जा सकता है। शासन के बहुत से दस्तावेज विधानमंडल द्वारा पारित उपयुक्त कानूनों के द्वारा कार्यान्वित किए जाते हैं। इसलिए कार्यपालिका विधानमंडल पर पूरी तरह निर्भर है। हमारे लोकतांत्रिक कामकाज को सुचारू बनाए रखने के लिए विधानमंडल को संविधान द्वारा सौंपे गए इस बृहत कार्य के प्रति जिम्मेदार और जागरूक होना चाहिए।

इस दायित्व को निभाने के लिए, विधानमंडल को जल्दी-जल्दी अधिवेशन बुलाने चाहिए। समितियों के माध्यम से किया गया कोई भी कार्य उसी स्तर पर किया जाना चाहिए और विधानमंडल का मुख्य कामकाज नियमित अधिवेशनों के द्वारा निपटाया जाना चाहिए। इसलिए, विधानमंडल का अधिवेशन और शीघ्र होने चाहिए और वर्ष में कम से कम 20 से 25 सप्ताह के लिए अधिवेशन बुलाए जाने चाहिए। वर्तमान प्रवृत्ति को देखते हुए, यह, एक दुखद स्थिति है कि सत्र के कम दिनों के कारण विधायी निकायों का वैध कामकाज खतरे में पड़ जाता है।

आजकल एक और दिखाई देने वाली खराब प्रवृत्ति सदन की कार्यवाई में निरंतर व्यवधान है। ऐसे मौके भी आ सकते हैं जब सदन का सामान्य कामकाज उस महत्त्वपूर्ण मुद्दे के कारण निलम्बित कर दिया जाए जिस पर अधिसंख्य सदस्य चिंताग्रस्त हों। परंतु ऐसे अवसर बहुत कम और कभी-कभार होने चाहिए। प्रत्येक विधानमंडल की कार्यप्रणाली के नियमों में, सदन के मंच पर उपयुक्त तरीके से आवश्यक जनहित के मुद्दे उठाने के पर्याप्त प्रावधान होते हैं। सदस्य अपनी रुचि के मुद्दे उठाने के लिए उन प्रावधानों का प्रयोग कर सकते हैं परंतु बार-बार स्थगन द्वारा कार्रवाई में रुकावट को सही नहीं ठहराया जा सकता। संसदीय व्यवस्था के प्रभावी कामकाज का प्रमुख सिद्धांत है, बहुमत शासन करता है तथा अल्पमत विरोध और संभव हुआ तो सरकार भी गिरा सकता है। परंतु यह कार्य विधानमंडल द्वारा निर्मित नियमों के दायरे के अंतर्गत होना चाहिए। व्यवधान को कारगर संसदीय प्रक्रिया के रूप में अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

हमारे शासन तंत्र को नागरिक सम्मत, तीव्र और जवाबदेह होना चाहिए। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि कर्नाटक सरकार द्वारा नागरिक सेवा गारंटी अधिनियम के अंतर्गत लागू ‘सकाला’ कार्यक्रम सफल रहा है।

मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि कर्नाटक देश का ऐसा प्रथम राज्य है जिसने समग्र विकास के लिए ‘संकल्पना-2020’ आरम्भ की है। ऐसा दीर्घकालिक नियोजन यह सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है कि राज्य निरंतर प्रगति करे और वह भावी चुनौतियों से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार रहे। कर्नाटक मैसूर सिल्क, मैसूर जासमीन, मैसूर चन्दन तेल, नंजनगुड केलों, चन्नापटन्ना खिलौने, बिदरीवेयर, इल्कल और मोलाकलमूर साड़ी इत्यादि जैसे उत्पादों के भौगोलिक संकेतन वर्ग में अखिल भारतीय आधार पर 172 में से 31 रजिस्ट्रेशन के साथ देश में पहले स्थान पर है।

ई-शासन, पंचायती राज संस्थाओं के सशक्तीकरण तथा ग्रामीण विकास के क्षेत्रों में कर्नाटक की उन्नति की राष्ट्रीय स्तर पर सराहना हुई है। यह ऐसा राज्य है जहां बौद्धिक योग्यता समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के साथ विद्यमान है। भारतीय विज्ञान संस्थान, इसरो, रक्षा अनुसंधान और विकास संस्थान, हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड, वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद प्रयोगशालाएं, भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान तथा अनेक वैज्ञानिक, स्वास्थ्य और शैक्षिक संस्थान जैसे उच्च शिक्षण एवं अनुसंधान संस्थानों ने वर्षों के दौरान प्रतिभावान और कुशल जनशक्ति का भण्डार तैयार किया। सर एस विश्वेसरैया के समय से ही कर्नाटक का एक सुदृढ़ औद्योगिक आधार रहा है। आज इसे पूरे विश्व में भारत के सक्रिय सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग के केन्द्र के रूप में जाना जाता है। कर्नाटक के लोगों ने स्वयं को उत्कृष्ट उद्यमियों के रूप में साबित किया है तथा पूरे देश और विश्व की सर्वोत्तम प्रतिभा को भी राज्य की ओर आकर्षित किया है।

कर्नाटक राज्य में महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक और मानव संसाधन विद्यमान हैं। इसलिए राज्य के नेतृत्व पर यह सुनिश्चित करने का दायित्व आ जाता है कि इसकी पूर्ण क्षमता का उपयोग किया जाए। राज्य के सभी भागीदारों को एक दीर्घकालिक संकल्पना के बारे में एक सर्वसम्मति तैयार करनी चाहिए और उपयुक्त कार्यनीतियों के द्वारा इसे मजबूती प्रदान करनी चाहिए ताकि इसके लोगों के विकास के सपने साकार हो सकें। एक जीवंत और समृद्ध कर्नाटक एक लक्ष्य है जिसे शीघ्र ही पूरा किया जा सकता है और अन्य किसी संस्था से अधिक विधानमंडल ही इस उद्देश्य की दिशा में तीव्र प्रगति सुनिश्चित कर सकता है।

यदि सभी एकजुट हो जाएं और लोगों के प्रति अपने कर्तव्य एवं दायित्व निभाएं तथा एक शांतिपूर्ण और समृद्ध कर्नाटक के निर्माण कार्य में शामिल हो जाएं तो इस राज्य के विकास की राह कोई रुकावट नहीं आ सकती।

धन्यवाद, 
जय हिंद!

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