कलकत्ता विश्वविद्यालय के वार्षिक दीक्षांत समारोह में भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

कोलकाता : 28.02.2014

डाउनलोड : भाषण कलकत्ता विश्वविद्यालय के वार्षिक दीक्षांत समारोह में भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण(हिन्दी, 456.22 किलोबाइट)

sp1. मैं, कलकत्ता विश्वविद्यालय, एक ऐसा संस्थान जिसकी शुरुआत लगभग भारत की आधुनिक शिक्षा के साथ हुई थी, के वार्षिक दीक्षांत समारोह के लिए इस अपराह्न आपके बीच उपस्थित होना अपना सौभाग्य मानता हूं।1854 में ईस्ट इंडिया कंपनी के कोर्ट ऑफ डायरेक्टर द्वारा प्रेषित एजुकेशन डिस्पैच,जिसे वुड्स डिस्पैच भी कहा जाता था, ने कलकत्ता,बॉम्बे और मद्रास में विश्वविद्यालयों की स्थापना का सुझाव दिया था। यह विश्वविद्यालय तब अस्तित्व में आया जब24 जनवरी, 1857 को इसका सांविधिक ढांचा—विश्वविद्यालय अधिनियम पारित किया गया।

2. औपनिवेशिक शासकों ने इस संस्थान को भारत के कुलीन वर्ग तथा उच्च वर्ग की शैक्षणिक जरूरतों को पूरा करने के लिए स्थापित किया था। परंतु कलकत्ता विश्वविद्यालय धीरे-धीरे क्रांतिकारी विचारों और राष्ट्रवादी कार्यों का मार्गदर्शक बन गया। जनवरी, 1957 में इस विश्वविद्यालय के शताब्दी समारोहों के अवसर पर डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने कहा था, ‘कलकत्ता विश्वविद्यालय इसके पूर्व छात्रों के माध्यम से भारतीय पुनर्जागरण तथा राष्ट्रवाद के जागरण से जुड़ा हुआ था... मैं कह सकता हूं कि इस राष्ट्रवाद का स्रोत मुख्यत: इस विश्वविद्यालय के छात्रों द्वारा खोला गया था।’

3. इस अवसर पर, मैं इस ऐतिहासिक विश्वविद्यालय के साथ अपने सम्बंधों के बारे में बताना चाहता हूं। सूरी विद्यासागर कॉलेज,जहां मैंने शिक्षा प्राप्त की, उस समय इस विश्वविद्यालय से संबद्ध था। मैंने विधि विभाग से कानून की उपाधि तथा बाह्य विद्यार्थी के रूप में आधुनिक इतिहास तथा राजनीति विज्ञान में दो स्नातकोत्तर उपाधियों के लिए भी अध्ययन किया था। मेरा सौभाग्य था कि मुझे इस प्रतिष्ठित संस्थान के साथ उस समय जुड़ने का मौका मिला जब एक नवोदित,स्वतंत्र भारत राष्ट्रीय विकास की दिशा में तेजी से प्रगति कर रहा था। आज जब आप मुझे मानद उपाधि प्रदान कर रहे हैं,मैं कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करता हूं।

4. मैं आशुतोष मुखर्जी स्मृति पदक,जिसे भारतीय शिक्षा के इस शिखर पुरुष की150वीं जयंती की स्मृति में एक वर्ष पूर्व आरंभ किया गया था,मुझे प्रदान करने के भी विश्वविद्यालय का धन्यवाद करता हूं। सर आशुतोष मुखर्जी महान बुद्धिमत्ता,साहस और असाधारण प्रशासनिक योग्यता वाले व्यक्ति थे। कलकत्ता विश्वविद्यालय,जिसकी अध्यक्षता उन्होंने पांच द्वि-वर्षीय कार्यकालों तक की,के कुलपति के रूप में अपने प्रबंधन में उन्होंने इस संस्थान को शिक्षा और अनुसंधान के महत्त्वपूर्ण केंद्र में बदल दिया। उनके नाम पर स्थापित अलंकरण प्राप्त करना वास्तव में एक महान सम्मान की बात है।

प्रिय स्नातक विद्यार्थियो,

5. आपकी सफलता और उपलब्धि पर मैं आप सभी को बधाई देता हूं। आप हार्दिक प्रशंसा और सराहना के हकदार हैं। दीक्षांत समारोह औपचारिक शिक्षा के उस चरण की परिणति का प्रतीक है जिसे आपने परिश्रम,संकल्प और निष्ठा के द्वारा प्राप्त किया है। यह एक नई यात्रा की भी प्रतीक है जिसमें, आपने जो ज्ञान अर्जित किया है और जो कौशल आपने प्राप्त किए हैं,उनकी कड़ी परीक्षा होगी। आप सफलता प्राप्त करेंगे परंतु कभी-कभी आपको मुश्किलों का सामना भी करना पड़ेगा। उन विषम परिस्थितियों पर विजय पाने में आपको अपनी क्षमता दर्शानी होगी। आपका अनुशासन,समर्पण और संकल्प मुश्किल हालात से गुजरने में आपकी मदद करेगा।

6. याद रखें, इस शैक्षिक जगत को छोड़ने का अर्थ आगे ज्ञान प्राप्त करने का अवसर छोड़ना नहीं है,क्योंकि ज्ञान भविष्य में कहीं भी,कभी भी प्राप्त किया जा सकता है। जीवन में उन्हें ही कामयाबी मिलती है जो जीवन भर सीखते रहते हैं।

मित्रो,

7. शिक्षा को मानवीय अस्तित्व के दो मूलभूत उद्देश्यों में सहयोगी होना चाहिए : ज्ञान का प्रसार और चरित्र का निर्माण। उच्च शिक्षा को हमारे उन भावी पथप्रदर्शकों को तैयार करने में विशिष्ट भूमिका निभानी है जो देश को वैश्विक शक्ति में ऊंचे दर्जे पर ले जाने के लिए चिकित्सा से इंजीनियरी, शिक्षण, प्रशासन, व्यवसाय, राजनीति तथा समाज सेवा जैसे विभिन्न क्षेत्रों में कार्य करेंगे। इसलिए,यह हमारे उच्च अध्ययन केंद्रों का दायित्व है कि वे नई पीढ़ी में देशभक्ति,ईमानदारी,उत्तरदायित्व, अनुशासन, बहुलवाद के प्रति सम्मान, महिलाओं का सम्मान तथा करुणा के बुनियादी मूल्यों का समावेश करते हुए उनको तैयार करें।

8. शैक्षिक संस्थानों को, उदाहरण प्रस्तुत करते हुए सामाजिक रूप से दायित्वपूर्ण आचरण के निर्माण के लिए आगे आना चाहिए। समाज की जरूरतों और आकांक्षाओं पर ध्यान देना उनका कर्तव्य है। वे व्यवहार्य कार्यक्रमों के जरिए सामाजिक विकास में सक्रिय भाग लेकर ऐसा कर सकते हैं। सरकार ने हाल ही में उन्नत सुविधाओं,अधिकारों और हकदारी तक पहुंच तथा व्यापक सामाजिक सक्रियता युक्त आदर्श गांव स्थापित करने के लिए सांसद आदर्श ग्राम योजना आरंभ की है। योजना में वित्तीय समावेशन,डिजीटल अवसंरचना की व्यवस्था तथा स्वच्छता अभियान की परिकल्पना की गई है। मैंने केंद्रीय उच्च स्तरीय संस्थानों से आग्रह किया है कि उनमें से प्रत्येक पांच-पांच गांव गोद ले तथा उपलब्ध संसाधन,व्यक्ति और विशेषज्ञता का प्रयोग करते हुए समस्याओं का समाधान मुहैया करवाते हुए उन्हें आदर्श गांव में तब्दील करें। मैं,इस विश्वविद्यालय से अपने आसपास के इलाकों में इस अभियान में अग्रणी बनने का आग्रह करता हूं।

मित्रो,

9. उच्च शिक्षा का स्तर किसी राष्ट्र के विकास तथा उसके नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता के स्तर को तय करता है। यद्यपि,हमारे उच्च शिक्षा क्षेत्र में विगत कुछ वर्षों के दौरान तेजी से विस्तार हुआ है परंतु हमारे पास अपने संस्थानों की गुणवत्ता के बारे में कहने के लिए कुछ खास नहीं है। हमारा एक भी संस्थान प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय सर्वेक्षणों में सर्वोच्च दो सौ संस्थानों में शामिल नहीं है। यद्यपि मैं यह मानता हूं कि कुछ विख्यात भारतीय संस्थान थोड़े से व्यवस्थित ढंग से कार्य करते हुए बेहतर स्थान प्राप्त कर सकते हैं,परंतु हमारे अधिकतर विश्वविद्यालय औसत दर्जे पर अटके हुए हैं।

10. यदि हम अपने अतीत पर गौर करें तो हमें नालंदा, तक्षशिला, विक्रमशिला,वल्लभी,सोमपुरा और ओदांतपुरी उच्च शिक्षा की उन पीठों की जानकारी मिलेगी जिनका ईसापूर्व छठी शताब्दी से अठारह सौ वर्षों तक विश्व पर आधिपत्य रहा। विश्वभर के विद्वान बड़ी संख्या में इन ज्ञान केंद्रों में आते थे। आज एक अलग परिदृश्य दिखाई देता है। बहुत से मेधावी भारतीय विद्यार्थी विदेशी विश्वविद्यालयों में उच्च अध्ययन करते हैं। नोबेल विजेता हरगोबिंद खुराना,सुब्रमणियम चन्द्रशेखर,डॉ. अमर्त्य सेन,जिन्होंने प्रेजीडेंसी कॉलेज में पढ़ाई की और वेंकटरमन रामकृष्णन ने उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाने से पूर्व भारतीय विश्वविद्यालयों में स्नातक अथवा स्नातकोत्तर की पढ़ाई की थी।

11. यह विडंबना है कि हमारी उच्च शिक्षा प्रणाली को, जो विश्वस्तरीय विद्वानों को पैदा करने में सक्षम है, इन विद्यार्थियों को विदेशी विश्वविद्यालयों के लिए छोड़ना पड़ रहा है।

12. हमें भौतिक ढांचे के उन्नयन के अलावा, शिक्षकों की गुणवत्ता और विद्यार्थियों की शिक्षण क्षमता को सुधारने की आवश्यकता है। सार्वजनिक जीवन में आने से पहले मैं एक अध्यापक था। मैं जानता हूं कि एक अध्यापक के रूप में,विद्यार्थियों को सीखने का आनंद प्रदान करना, उन्हें विचारों को समझने,चिंतन करने तथा उनमें अंतर करने के योग्य बनाना कितना संतुष्टिपूर्ण होता है।

13. मैं इस विश्वविद्यालय से जुड़े सभी लोगों को भविष्य के लिए शुभकामनाएं देता हूं। मैं विद्यार्थियों के अपने प्रयास में सफल होने की भी कामना करता हूं।

धन्यवाद, 
जय हिंद!

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