केंद्रीय सतर्कता आयोग के स्वर्ण जयंती समारोह के अवसर पर आयोजित संगोष्ठी के उद्घाटन के अवसर पर, भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण
विज्ञान भवन, नई दिल्ली : 11.02.2014
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मुझे केंद्रीय सतर्कता आयोग के स्वर्ण जयंती समारोह के अवसर पर आयोजित इस संगोष्ठी का उद्घाटन करके प्रसन्नता हो रही है। मैं, वर्षों के दौरान केंद्रीय सतर्कता आयोग के लिए कार्य करने वाले सभी पूर्व और वर्तमान सतर्कता आयुक्तों तथा कार्मिकों को राष्ट्र के प्रति उनकी सराहनीय सेवा के लिए बधाई देता हूं। यह उपयुक्त है कि डाक विभाग ने इस महत्त्वपूर्ण अवसर पर एक डाक टिकट जारी करने का निर्णय किया है। मैं, इस अवसर पर एक कॉफी टेबल बुक प्रकाशित करने के लिए भी केंद्रीय सतर्कता आयोग की सराहना करता हूं।
2. केन्द्रीय सतर्कता आयोग का पहली बार गठन भारत सरकार ने जून 1962 में संसद में परिचर्चा के बाद वर्ष 1964 में एक संकल्प के माध्यम से किया था। संसद सदस्यों द्वारा लोक प्रशासन में भ्रष्टाचार पर चिंता व्यक्त की गई थी तथा उपचारी उपाय करने का आग्रह किया गया था। तदोपरांत, तत्कालीन गृह मंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री ने संसद सदस्य, श्री के. संथानम की अध्यक्षता में इस मामले पर गौर करने के लिए एक समिति स्थापित की।
3. संथानम समिति ने भ्रष्टाचार के चार प्रमुख कारणों की पहचान की। वे इस प्रकार थे :
(i) प्रशासनिक विलंब,
(ii) सरकार द्वारा विनियामक कार्यों के रूप में इतने कामों की जिम्मेदारी लेना जितना वह निभा नहीं सकती।
(iii) सरकारी कर्मचारियों के विभिन्न वर्गों में निहित शक्तियों के प्रयोग में व्यक्तिगत विवेक की गुंजायश, तथा
(iv) नागरिकों के लिए दैनिक महत्त्व के कार्यों से सम्बन्धित विभिन्न मामलों पर कार्रवाई की भारी-भरकम प्रक्रिया।
खेदजनक सच्चाई यह है कि इनमें से कोई भी समस्या समाप्त नहीं हुई है। पचास वर्षों के बाद भी इनसे हमारा शासन तंत्र त्रस्त है।
4. केंद्रीय सतर्कता आयोग का गठन संथानम समिति की उस सिफारिश का परिणाम था कि सरकार के सतर्कता प्रशासन पर सामान्य अधीक्षण के प्रयोग के लिए एक उच्च निकाय स्थापित किया जाए। वर्षों के दौरान, प्रत्येक नई सरकार ने केंद्रीय जांच ब्यूरो, प्रवर्तन निदेशालय, राज्य भ्रष्टाचार रोधी एजेंसियों और लोकायुक्तों की स्थापना द्वारा भ्रष्टाचार के उन्मूलन के लिए संस्थागत ढांचे को उत्तरोत्तर मजबूत किया है। भारतीय दंड संहिता तथा आपराधिक प्रक्रिया संहिता को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988, धन-शोधन निवारण अधिनियम, 2002 आदि के द्वारा अनुपूरित करके भी विधिक ढांचे का विस्तार किया गया था। इसके अलावा, भर्ती और पदोन्नति की पारदर्शी नीतियां बनाई गईं। जन-सेवाओं में ईमानदारी को बढ़ावा देने के लिए आचरण के व्यापक नियम भी बनाए गए हैं। उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों ने भी भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई में जनहित याचिका के जरिए योगदान दिया है। जैसा कि प्रधानमंत्री ने उल्लेख किया है, विनीत नारायण मामला इस संबंध में एक ऐतिहासिक निर्णय था।
5. ऐतिहासिक, सूचना का अधिकार अधिनियम-2005 ने शासन में पारदर्शिता और जवाबदेही के एक नए युग की शुरुआत की। इसके अलावा, लोकपाल अधिनियम-2013 का अधिनियम भ्रष्टाचार उन्मूलन के संस्थागत ढांचे को सुदृढ़ बनाने की दिशा में एक प्रमुख कदम है। हमारे प्रधानमंत्री ने संसद के समक्ष लंबित अनेक दूसरे कानूनों का भी जिक्र किया है। अधिनियमित होने के बाद, इनसे भ्रष्टाचार उन्मूलन के महत्त्ववपूर्ण उपायों में बढ़ोतरी होगी।
6. मित्रो, यद्यपि भ्रष्टाचार उन्मूलन के हमारे राष्ट्रीय प्रयासों में हमने कोई ढील नहीं दी हैं परंतु इस संबंध में हमें अपनी सीमित सफलता को स्वीकार करना होगा। भ्रष्टाचार हमारे राष्ट्र की प्रगति में एक प्रमुख बाधा बना हुआ है। इसने कार्य लागत बढ़ा दी है, सार्वजनिक सेवाओं की कुशलता कम कर दी है, निर्णय प्रक्रिया को बिगाड़ दिया है तथा हमारे समाज के नैतिक ताने बाने को छिन्न-भिन्न कर दिया है। भ्रष्टाचार ने असमानता को बढ़ा दिया है तथा सामान्य जन, विशेषकर गरीबों की जन सेवाओं तक पहुंच को कम कर दिया है।
देवियो और सज्जनो,
7. हम सभी ने पिछले दिनों भ्रष्टाचार पर विशाल जनाक्रोश को देखा है। माहौल में हताशा और निराशा भरी हुई है। हमारी शासन प्रणाली में लोगों के विश्वास तथा हमारी संस्थाओं के प्रति विश्वसनीयता बहाल करना अत्यंत जरूरी है। केंद्रीय सतर्कता आयोग की स्थापना के प्रस्ताव को संसद में प्रस्तुत करते हुए श्री लाल बहादुर शास्त्री ने कहा था, ‘‘भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ना बहुत मुश्किल काम है, परंतु मैं पूर्ण गंभीरता से कहता हूं कि यदि हमने इस पर गंभीरता और संकल्प के साथ कार्रवाई नहीं की तो हम अपने दायित्वों में विफल हो जाएंगे।’’ इस सच्चाई के बावजूद कि भ्रष्टाचार दु:साध्य सिद्ध हो रहा है, हमें इस समस्या के समाधान की अपनी योग्यता के प्रति विश्वास को नहीं खोना चाहिए। जैसा कि शास्त्री जी ने कहा था, यह हमारा कर्तव्य है और हमें इस चुनौती का सीधे मुकाबला करना होगा। आइए, हम अपने प्रयासों को दुगुना करें तथा युद्ध स्तर पर भ्रष्टाचार को मिटाने का प्रयास करें। केंद्रीय सतर्कता आयोग को इसमें एक अहम भूमिका निभानी है।
8. केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम, 2003 में केन्द्रीय सतर्कता आयोग को अभियोजन की मंजूरी के लिए सक्षम प्राधिकारियों के पास लम्बित प्रार्थना पत्रों की प्रगति की समीक्षा करने तथा केंद्रीय सरकार के अनेक मंत्रालयों, विभागों और संगठनों के सतर्कता प्रशासन पर अधीक्षण सहित केंद्रीय सतर्कता आयोग को व्यापक शक्तियां प्रदान की गई हैं। केंद्रीय सतर्कता आयोग को जनहित प्रकटन संकल्प, 2004 के अंतर्गत ‘खुलासा करने वाले’ की सुरक्षा का अधिकार प्राप्त है। केंद्रीय सतर्कता आयोग, सतर्कता प्रशासन से सम्बन्धित सभी मामलों पर सरकार का प्रधान सलाहकार है तथा उसे संगठनों की विभिन्न प्रणालियों और प्रक्रियाओं की सतर्कता लेखापरीक्षा करने तथा प्रभावी आंतरिक नियंत्रण प्रणालियों तथा प्रक्रियाओं की स्थापना करने में प्रबंधन की मदद करनी होती है। केन्द्रीय सतर्कता आयोग को स्वयं को पुन: ऊर्जस्वित करना चाहिए तथा भ्रष्टाचार के विरुद्ध सीधी लड़ाई का नेतृत्व करना चाहिए।
9. जहां भ्रष्टाचार एक वैश्विक परिघटना है, भारत जैसे तेजी से प्रगति कर रहे विकासशील देश विशेष तौर से इस मुश्किल चुनौती का सामना कर रहे हैं। सतत् विकास सुनिश्चित करना, गरीबी मिटाना, जीवन स्तर बढ़ाना, औद्योगिकीकरण को प्रोत्साहित करना, नौकरियां प्रदान करना आदि के लिए कार्यपालिका को तेजी से निर्णय करने की जरूरत है। यदि कार्यपालिका को परिणाम देने हैं तथा कुशल शासन दिखाना है तो इसके पास समुचित वित्तीय शक्तियां होनी चाहिए। इसी के साथ, शासन में ऐसी वित्तीय शक्तियों और प्रशासनिक विवेक के प्रावधान से भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार के अवसर पैदा होते हैं।
10. केंद्रीय सतर्कता आयोग को बिना भय और पक्षपात के भ्रष्टाचार के सभी आरोपों की तेजी से जांच करनी चाहिए। परंतु इसी के साथ इसे यह सुनिश्चित करना चाहिए कि भ्रष्टाचार के नाम पर प्रतिष्ठा और आजीविका को क्षति पहुंचाने के लिए दुष्प्रचार अभियान नहीं चलाए जाने चाहिए। केंद्रीय सतर्कता आयोग को शासन का सहयोगी बनना चाहिए तथा देश हित में तीव्र, उत्तरदायित्वपूर्ण और साहसिक निर्णय में मदद करनी चाहिए। केंद्रीय सतर्कता आयोग के सदस्यों तथा कर्मचारियों को अपने कामकाज के निर्वहन में ईमानदारी का उच्चतम स्तर कायम रखकर एक उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए।
11. मैं, आज के सेमिनार का विषय ‘उत्तरदायित्व सुनिश्चित करने वाली संस्थाओं, जांच एजेंसियों, नागरिक संगठनों एवं मीडिया की भूमिका’ चुनने के लिए केंद्रीय सतर्कता आयोग को बधाई देता हूं। जैसा कि हाल के समय में देखा गया है, नागरिक समाज और मीडिया, विशेषकर ‘नया मीडिया’ सकारात्मक बदलाव के पहलकर्ता तथा शक्ति बढ़ाने वाले बन सकते हैं।
12. केन्द्रीय सतर्कता आयोग ने पूर्व में ई-प्रापण, प्रौद्योगिकी का लाभ उठाते हुए विलोम नीलामी, सत्यनिष्ठा संधि, स्वतंत्र बाहरी निगरानी आदि अनेक नवान्वेषणों की शुरुआत की है। उम्मीद है कि यह संगोष्ठी भ्रष्टाचार के विरुद्ध हमारी लड़ाई में ऐसे और साधनों को विकसित करने तथा नए आयाम खोजने में केंद्रीय सतर्कता आयोग की मदद करेगी।
13. जैसा कि मैंने पहले दूसरी जगह जिक्र किया है, भ्रष्टाचार एक कैंसर है, जो हमारे लोकतंत्र का हृस करता है तथा हमारे राष्ट्र की नींव को कमजोर करता है। बड़ी संख्या में रायशुमारी और सर्वेक्षण से जाहिर होता है कि भ्रष्टाचार हमारे नागरिकों की एक प्रमुख चिंता है। हमें यह गंभीर अंत:विश्लेषण करना चाहिए कि हम जनता को व्यापक रूप से प्रभावित करने वाले ‘छोटे’ भ्रष्टाचार तथा सरकार के उच्च पदों पर मौजूद ‘बड़े’ भ्रष्टाचार दोनों को कैसे मिटा सकते हैं।
14. मैं, केंद्रीय सतर्कता आयोग से हमारी सरकार को स्वच्छ बनाने के लिए आगे आने तथा सरकारी कर्मचारियों के प्रति लोगों की हताशा के परिवेश में बदलाव में योगदान करने का आह़वान करता हूं। मुझे विश्वास है कि केंद्रीय सतर्कता आयोग शासन में ईमानदारी बढ़ाने तथा भ्रष्टाचार और कुप्रशासन की रोकथाम में उपयोगी योगदान करते हुए, एक सुदृढ़ और प्रभावी संस्था के तौर पर काम करता रहेगा।
15. मैं इस संगोष्ठी तथा केंद्रीय सतर्कता आयोग की अन्य भावी गतिविधियों की सफलता के लिए शुभकामनाएं देता हूं।
धन्यवाद,
जय हिंद!