‘जोरास्ट्रियनिज्म इन द ट्वेंटिफर्स्ट सेंचुरी : नर्चरिंग ग्रोथ एंड एफर्मिंग आइडेंटी’ विषय पर 10वें विश्व पारसी सम्मेलन के उद्घाटन के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण
मुंबई, महाराष्ट्र : 27.12.2013
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मुझे इस सम्मेलन का उद्घाटन करने के लिए आज शाम यहां उपस्थित होकर प्रसन्नता हुई है। मैंने गौर किया है कि यह न केवल अपने महत्त्वपूर्ण विषय के कारण बल्कि 23 वर्ष के अंतराल के बाद मुंबई में आयोजित होने के कारण एक उल्लेखनीय बैठक है।
आज यहां उपस्थित विशिष्टजनों को देखकर, मुझे याद आता है कि मुंबई में पारसियों का सबसे विशाल और सबसे जीवंत समुदाय निवास करता है।
और इस खुशी के साथ मुझे इस सुविज्ञ तथ्य को दोहराते हुए बहुत खुशी हो रही है कि चाहे वह व्यवसाय हो या उद्योग की दुनिया हो, कला हो या साहित्य, चाहे हमारे रक्षा बलों का नेतृत्व करना हो या उन्नत विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में नई खोज हों, पारसी समुदाय ने सदैव अपनी सेवाएं प्रदान की हैं तथा वह सफलता और उपलब्धि के उच्चतम पायदान पर रहा है।
जहां अन्य विदेशी उपनिवेशवादी, भारत के समृद्ध संसाधनों और इसके लोगों का निरंतरत रूप से दोहन करते रहे, वहीं पारसी, जो नाम फारस से आने वाले प्रथम प्रवासियों को हमने दिया था, अपनी पहचान और संस्कृति कायम रखते हुए सदियों के दौरान भारत के सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक ताने-बाने में अनूठे रूप से रच-बस गए। उन्होंने मानव कार्यकलापों के प्रत्येक क्षेत्र में भारत के विकास और उपलब्धियों में उत्कृष्ट और बढ़-चढ़कर योगदान दिया।
देवियो और सज्जनो, पारसियों की ताकत इस महत्त्वपूर्ण दर्शन में निहित है कि मानव की रचना श्रेष्ठ विचारों, वचनों और श्रेष्ठ कर्मों के माध्यम से उत्पन्न सुविवेक के जरिए उत्कृष्टता की ओर अग्रसर होने के लिए हुई है। साइरस सिलेंडर को मानव अधिकारों का प्रथम घोषणा पत्र माना जाता है और पारसी धर्म पुरुष और महिला दोनों से जिम्मेदारी को बराबर बांटने के लिए कहता है। इसलिए इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि 8वीं शताब्दी में जब पहले पारसी प्रवासी भारत पहुंचे, तो हिंदू धर्म के दर्शन में अपनी मान्यताओं की समानता देखकर पारसियों ने हमारे लोगों की स्वीकृति प्राप्त कर ली। उनकी बाद की पीढ़ियों ने न केवल हमारे समाज में माधुर्य पैदा किया बल्कि इसे समृद्ध किया और वह इस ताने-बाने का एक हिस्सा भी बन गए।
हमारे स्वतंत्रता संग्राम के आरंभिक दिनों के दौरान, पारसी धर्म के बहुत से राष्ट्रीय नेता आगे आए और उपनिवेशवाद के विरुद्ध आंदोलन का नेतृत्व किया। 1907 में स्टटगार्ट में अंतरराष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन में, मादाम भीकाजी कामा ने निडर होकर वह ध्वज फहराया, जिसे वह ‘भारतीय स्वतंत्रता का ध्वज’ कहा करती थी। यूनाइटेड किंग्डम के हाऊस ऑफ कॉमन्स में निर्वाचित प्रथम एशियाई दादाभाई नौरोजी ने पहली बार सार्वजनिक रूप से भारत की स्वतंत्रता की मांग की। वह मानते थे कि, ‘‘चाहे मैं हिन्दू हूं, मुसिलम हूं, पारसी या ईसाई या किसी भी अन्य पंथ से हूं, परंतु सबसे पहले मैं भारतीय हूं। हमारा देश भारत है, हमारी राष्ट्रीयता भारतीय है’’।
हम सभी परमाणु ऊर्जा आयोग के प्रथम अध्यक्ष, डॉ. होमी भाभा के महत्त्वपूर्ण योगदान से परिचित हैं। हम अत्यंत सम्मान के साथ डॉ. होमी सेठना को याद करते हैं, जिनके नेतृत्व में भारत ने स्वदेशी असैनिक परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम का विकास किया, तथा जे आर डी टाटा को, जिन्होंने भारत की प्रथम वाणिज्यिक एयरलाइन की स्थापना की थी।
यह निश्चित रूप से पारसी समुदाय के लिए गौरव का विषय है कि उन्होंने भारत को अनेक शानदार सैन्य अधिकारी दिए। फील्ड मार्शल सैम मानेक शॉ न केवल 1971 के युद्ध के नायक थे बल्कि उन सैनिकों के भी प्रिय थे जिनका उन्होंने आगे रहकर नेतृत्व किया।
मैं एडमिरल जाल कुरसेटजी का, जो नौसेना प्रमुख बने, एयर मार्शल ऐस्पी इंजीनियर जिन्होंने भारत की स्वतंत्रता के बाद दूसरे वायु सेना प्रमुख के रूप में कार्य किया और हाल ही में एयर मार्शल फाली एच. मेजर का उल्लेख करना चाहूंगा।
मुंबई में यह माना जाता है कि पारसी समुदाय ने इस जीवंत शहर को रूप देने वाले उद्योग और वाणिज्यिक तथा वित्तीय ढांचे की आधारशिला रखी। महान विभूतियों की छवि मन में उभर रही है और मैं राष्ट्र निर्माण में उनके समर्पण के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं। जमशेदजी टाटा उस औद्योगिकीकरण को आरम्भ करने का माध्यम थे, जिसने भारतीय इतिहास की धारा को बदल दिया।
इस महान दर्शन के साथ कि धन समाज की उन्नति के लिए प्रयोग किया जाना चाहिए, पारसी व्यापार घराने विज्ञान, चिकित्सा और संस्कृति संस्थानों के निर्माण में अग्रणी रहे हैं और उन्होंने सामाजिक विकास के लिए परोपकार और पहल में हमारे कार्पोरेट क्षेत्र का भी नेतृत्व किया है। महात्मा गांधी ने इस बात को स्वीकार करते हुए घोषणा की थी कि भारत का पारसी समुदाय धर्मार्थ और परोपकार में बेजोड़ और अद्वितीय है।
कुछ दिनों पहले, एक प्रमुख टेलीविजन चैनल ने अपनी सिल्वर जुबली मनाते हुए उन 25 भारतीयों का सम्मान करने का निर्णय किया कि जो अपने-अपने क्षेत्रों में अद्वितीय उपलब्धियों के कारण जीते-जागते उदाहरण हैं। यह उल्लेखनीय परंतु आश्चर्यजनक नहीं है कि इस अवसर पर चुने गए 25 महानतम भारतीयों में तीन श्री रतन टाटा, श्री फाली नरीमन और श्री जुबिन मेहता पारसी समुदाय के हैं। जब हम इस समुदाय की कम जनसंख्या को देखते हैं तो यह और भी सराहनीय लगता है।
परंतु ऐसा क्यों है कि आज यह समुदाय ऐसे दोराहे पर खड़ा हुआ है जहां यह समाप्ति के खतरे को महसूस कर रहा है? इस्लाम से पहले करोड़ों लोगों के इस पारसी धर्म में अब पूरी दुनिया में 140000 से भी कम अनुयायी हैं और इसकी एक तिहाई जनसंख्या 60 वर्ष की आयु से अधिक है। यह निश्चित रूप से एक ऐसी स्थिति है जिस पर व्यावहारिक और संवेदनशील ढंग से ध्यान देने की जरूरत है।
भारत सरकार ने अपनी 12वीं पंचवर्षीय योजना में भारत के पारसियों सहित अल्पसंख्यकों के हितों की सुरक्षा और हित के अनेक उपायों का प्रस्ताव किया है। जियो पारसी कार्यक्रम से हमें निश्चित ही अपेक्षित परिणाम प्राप्त होंगे।
मैं समझता हूं कि यूनेस्को ने ‘पारसी विरासत के संरक्षण’ के लिए ‘पारजोट परियोजना’ जैसी कुछ पहलें की हैं। 2010 में भारत और अन्य राष्ट्रों के समर्थन से संयुक्त राष्ट्र आम सभा ने 21 मार्च को अंतरराष्ट्रीय नवरोज दिवस के रूप में मान्यता प्रदान की है। सभी राष्ट्रों से कहा गया है कि वे शांति और सद्भावना को प्रोत्साहन देते हुए इस पर्व के महत्त्व का सम्मान करें। यह अच्छा है कि ‘नवरोज को मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत’ के तौर पर यूनेस्को की सूची में अधिकृत रूप से दर्ज किया गया है।
जहां जनससांख्यिकीय आंकड़े दर्शाते हैं कि भारत में पारसी समुदाय की जनसंख्या प्रति दशक 10 प्रतिशत की दर से घट रही है, मुझे आशा है कि इस हृस पर रोक लग सकती है। मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि जिस समुदाय में इतनी ऊंची साक्षरता, प्रतिभा तथा अनुशासन है, वह निश्चय ही उन्नति और विकास के मार्ग पर अपनी यात्रा पर आगे बढ़ता रहेगा।
मैं समझता हूं कि आगामी दिनों के दौरान आपकी बैठकों में आप पूरी दुनिया में पारसी समुदाय के समक्ष चुनौतियों पर चिंतन करेंगे और इसके भविष्य पर चर्चा करेंगे। मुझे विश्वास है कि इससे श्रेष्ठ पहलें होंगी जिनसे यह सुनिश्चित हो पाएगा कि इस सम्मानित समुदाय की संख्या बढ़े और यह फलता-फूलता रहे तथा मानव सभ्यता की प्रगति में योगदान देता रहे।
इन्हीं कुछ शब्दों के साथ, मैं विश्व पारसी सम्मेलन की सफलता के लिए शुभकामनाएं देता हूं। मैं, इस अवसर पर इस सम्मेलन और इसके जरिए भारत और विदश के पारसी समुदाय के सदस्यों को, आने वाले वर्षों में प्रगति और समृद्धि की शुभकामनाएं देता हूं।
जय हिन्द!