जामिया मिलिया इस्लामिया के वार्षिक दीक्षांत समारोह में भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

नई दिल्ली : 17.11.2014

डाउनलोड : भाषण जामिया मिलिया इस्लामिया के वार्षिक दीक्षांत समारोह में भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण(हिन्दी, 451.26 किलोबाइट)

sp1. देश के उच्च शिक्षण के उत्कृष्ट केंद्रों में से एक जामिया मिलिया इस्लामिया के वार्षिक दीक्षांत समारोह में आज यहां उपस्थित होना मेरे लिए खुशी का अवसर है। सबसे पहले मैं इस सम्माननीय अवसर का हिस्सा बनने के लिए निमंत्रण देने हेतु विश्वविद्यालय को धन्यवाद देता हूं।

2. इस ऐतिहासिक संस्थान की स्थापना 1920में मौलाना मोहम्मद अली जौहर, मौलाना महमूद हसन, ह़कीम अजमल खां, ए.एम. ख्वाजा,डॉ. मुख्तार अहमद अंसारी तथा डॉ. ज़ाकिर हुसैन जैसी शख्सियतों ने की थी। 1925 में, इसका परिसर अलीगढ़ से दिल्ली स्थानांतरित कर दिया गया। 1962 में, जामिया को सम-विश्वविद्यालय का दर्जा प्रदान किया गया तथा 1988 में, यह केंद्रीय विश्वविद्यालय बन गया।

3. जामिया ने अपनी स्थापना के बाद से ही इस्लाम की सांस्कृतिक परंपराओं सहित भारत के समृद्ध इतिहास और संस्कृति के प्रति समझ को प्रोत्साहित किया। अपने शैक्षिक कार्यक्रमों के माध्यम से, इसने विद्यार्थियों में एक राष्ट्रीय नजरिया पैदा किया है। जामिया का एक व्यापक शैक्षिक स्वरूप है। यह स्नातक से लेकर पी-एच.डी. तक अनेक स्तरों पर विभिन्न विधाओं में शिक्षण प्रदान करता है। यह जानकर प्रसन्नता हो रही है कि यहां शांति और संघर्ष समाधान, महिला अध्ययन, मीडिया और शासन, पूर्वोत्तर अध्ययन, दलित और अल्पसंख्यक अध्ययन तथा तुलनात्मक धर्म और सभ्यता जैसे क्षेत्रों में अनुसंधान के प्रति समर्पित तीस से ज्यादा केंद्र हैं।

4. जामिया लैंगिक और सामाजिक समानता का समर्थक रहा है। पिछड़े लोगों के शैक्षिक आकांक्षाओं में सहयोग के लिए, यह संप्रेषणात्मक अंग्रेजी तथा आत्मसमृद्धि कार्यक्रम जैसे विशेष पाठ्यक्रम संचालित करता है। जामिया, गांधी जी के नई तालीम के सिद्धांत—एक शैक्षिक पाठ्यक्रम जो पढ़ाई और काम के बीच अंतर नहीं करता है—का भी अनुकरण करता रहा है। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि जामिया अपने शिक्षण मॉडल के तहत व्यावसायिक प्रशिक्षण उपलब्ध करवाता है।

5. मैं आप सभी को विशिष्ट उपलब्धि हासिल करने पर बधाई देता हूं। अपनी उपाधि प्राप्त करने के लिए कड़ा परिश्रम करने पर, आपका गर्व और संतोष महसूस करना उचित है। यह आपके लिए गौरव का क्षण है। इसी के साथ, यह अपने जीवन की प्राथमिकताओं के बारे में चिंतन करने का भी अवसर है। आप कार्य के लिए जो भी क्षेत्र चुनें,समाज में अपना योगदान दें। हमारे राष्ट्र के प्रतिभावान युवा होने के नाते, हमारी सामने मौजूद समस्याओं को कम करने में मदद करें। हम पेय जल, स्वच्छता, बुनियादी सुविधाओं, स्वास्थ्य, अपराध और लैंगिक पक्षपात जैसे मुद्दों से जूझ रहे हैं, इसलिए आपकी अनुभूतिजन्य अंतदृष्टि और पहल से उन पर विजय प्राप्त करने में सहायता मिल सकती है। आपको अपनी शिक्षा तभी उपयोगी लगेगी जब आप स्वयं को समाज के लिए उपयोगी बनाएंगे। असफलताओं से कभी हार न मानें। महात्मा गांधी ने कहा है, ‘‘असफलता का मौसम सफलता के बीज बोने का सर्वोत्तम समय होता है।’’ भावी रास्ता आसान नहीं है। परंतु आपकी मातृ-संस्था द्वारा प्रदत्त ज्ञान और अनुभव से, आप तूफानी लहरों पर भी विजय पाएंगे यह मेरा दृढ़ विश्वास है।

मित्रो,

6. मानव की प्रकृति हमेशा प्रगति की दिशा में रही है। और शिक्षा ही एक माध्यम है जिससे अंतर पैदा होता है। शिक्षा से मानव जीवन समृद्ध होता है, मानव की विचारशीलता उन्नत होती है,नए विचारों का प्रसार होता है तथा मानव क्षमता में वृद्धि होती है।

7. शिक्षा, समजिक उद्धार और आर्थिक पुनरुत्थान का एक सशक्त माध्यम है। भविष्य में, आर्थिक विकास संसाधनों के कुशल प्रयोग तथा बेहतर प्रौद्योगिकी और प्रक्रियाओं के उपयोग पर अधिक निर्भर करेगा। आने वाले वर्षों में अर्थव्यवस्थाएं ज्ञान और शिक्षा के द्वारा अधिक संचालित होंगी। इसलिए यह महत्त्वपूर्ण है कि हमारा शिक्षा क्षेत्र विशेषकर उच्च शिक्षा, इन चुनौतियों का मुकाबला करने में सक्षम बने।

मित्रो

8. हमने अपने उच्च शिक्षा के बुनियादी ढांचे को उन्नत करने में तीव्र प्रगति की है। हमारे देश में 723 विश्वविद्यालय तथा 37000 से ज्यादा कॉलेज हैं। तथापि,हमारे बहुत से संस्थानों में गुणवत्ता की कमी है जिससे विद्यार्थी विश्वस्तरीय शिक्षा से वंचित रहते हैं। बहुत से मेधावी विद्यार्थी विदेशों में शिक्षा ग्रहण करने के लिए देश छोड़ जाते हैं। हम अपनी प्रतिभा को नहीं खो सकते और इसके लिए हमें अपने शैक्षिक मानदंडों को उन्नत बनाना होगा। नामी सर्वेक्षणों के अनुसार, एक भी भारतीय संस्थान, विश्व के सर्वोच्च 200 विश्वविद्यालयों में शामिल नहीं है। मैं मानता हूं कि हमारे कुछ संस्थान वरीयताक्रमों में दर्शाए गए आंकड़ों से बेहतर हैं। हमारे प्रमुख संस्थानों को अधिक व्यवस्थित और सक्रिय तरीके से वरीयता प्रक्रिया पर कार्य करना चाहिए। तथापि यह भी सच है कि हमारी शैक्षिक प्रणाली को पुन: सशक्त बनाने के भरसक प्रयास भी समय की जरूरत है। कुछ तात्कालिक उपायों में कक्षाओं सहित ढांचागत सुविधाओं में सुधार, शिक्षकों के रिक्त पदों को भरना,विदेश से प्रतिभाओं को आकर्षित करना पाठ्यचर्या में बदलाव लाते हुए उसे बहुविधा तथा उद्योग उन्मुख बनाना तथा प्रमुख क्षमताओं की पहचान करते हुए उत्कृष्टता केंद्रों को बढ़ावा देना शामिल है।

9. शिक्षकों की कमी तथा प्रमुख क्षेत्रों में योग्यता के अभाव जैसी बाधाओं को दूर करने के लिए प्रौद्योगिकी का प्रयोग करना होगा। राष्ट्रीय ज्ञान नेटवर्क तथा सूचना और संचार प्रौद्यागिकी में शिक्षा पर राष्ट्रीय मिशन शिक्षा के क्षेत्र में मुख्य प्रौद्योगिकी पहल हैं। इनसे पाठ्यक्रम सामग्री, व्याख्यानों और उम्दा तरीकों के आदान-प्रदान के अवसर खुल गए हैं। इनसे दूरियां समाप्त हो सकती हैं तथा भौगोलिक आधार पर बिखरे विशेषज्ञों के बीच संबंध स्थापित हो सकते हैं तथा शिक्षा को कम खर्चीला एवं अधिक सुविधाजनक भी बना सकते हैं। हमारे संस्थानों को अधिक प्रभावी ढंग से इन प्रौद्योगिकी समाधानों का प्रयोग करने की विशेषज्ञता बढ़ानी होगी।

मित्रो,

10. अनुसंधान ज्ञान की सीमाओं के विस्तार का मूल मंत्र है। हमारे देश के पास अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी तथा सूचना और संचार प्रौद्योगिकी जैसे अनेक क्षेत्रों में क्षमताएं विद्यमान हैं। सफल मंगल परिक्रमा उपग्रह मिशन हमारी बढ़ते वैज्ञानिक कौशल का प्रमाण है। इसके बावजूद,सामान्य तौर से अनुसंधान एक उपेक्षित क्षेत्र है। विशेषकर, हमारे विश्वविद्यालयों में अनुसंधान गतिविधि पर कम बल दिया जा रहा है। जब तक हमारे संस्थानों में बड़े पैमाने पर अनुसंधान नहीं होते, हम एक समाज के रूप में, उस क्षमता को साकार करने में नाकाम हो जाएंगे जिसे हम प्राप्त कर सकते हैं। हमें अध्यापन और अनुसंधान को एक आकर्षक आजीविका का अवसर बनाना होगा। हमें विषयों और परियोजना कार्य के प्रति जिज्ञासा आधारित नजरिया अपनाकर स्नातक विद्यार्थियों में अनुसंधान को बढ़ावा देना होगा। हमें पी-एच.डी. करने के लिए मेधावी विद्यार्थियों को आर्कषत करना होगा। मौलिक अनुसंधान के लिए बहुविधात्मक दृष्टिकोण तथा विशेषज्ञता का तालमेल बनाने की आवश्यकता है। हमें विदेशी विश्वविद्यालयों के साथ अनुसंधान सहयोग करने की पहल करनी होगी। भारतीय विश्वविद्यालयों ने अनेक देशों के विश्वविद्यालयों के साथ कई समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए हैं। यह जानकर प्रसन्नता हो रही है कि जामिया ने फ्रांस,जर्मनी, यूनाइटेड किंग्डम, फिनलैंड, कनाडा, जापान और आस्ट्रेलिया के संस्थानों के साथ समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए हैं। इन समझौतों को अक्षरश: और गर्मजोशी के साथ अमल में लाने की जरूरत है।

11. प्रौद्योगिकी विकास तथा नवान्वेषण विचार जनसाधारण, समाज और राष्ट्र के जीवन को बदल सकते हैं। अधिक सामान्य फायदे के लिए नूतन विचारों का प्रयोग किया जा सकता है। हमारे उच्च शैक्षिक संस्थानों को एक ऐसा मंच प्रदान करना होगा जहां जमीनी नवान्वेषण को परामर्श दिया जा सकता है और ढाला जा सकता है। हमारे शिक्षण संस्थानों में रचनात्मक विचार और जिज्ञासा की भावना को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। वैज्ञानिक प्रवृत्ति तथा विश्लेषणात्मक दृढ़ता पैदा करनी होगी तथा शैक्षिक नज़रिए में बहुलवाद और मन की स्वतंत्रता को प्रोत्साहित करना होगा।

मित्रो,

12. समाज का एक अभिन्न हिस्सा होने के कारण विश्वविद्यालयों को समग्र विकास तथा हमारे सकल समाज से जुड़ी समस्याओं को कम करने के लिए और अधिक जिम्मेदारी लेनी होगी। सरकार ने हाल ही में वित्तीय समावेशन, आदर्श गांवों का निर्माण, स्वच्छ भारत तथा डिजीटल अवसंरचना की दिशा में महत्त्वपूर्ण पहलें की हैं। विश्वविद्यालयों को इन कार्यक्रमों में सक्रिय सहभागी बनना चाहिए तथा इनके सफल कार्यान्वयन के लिए पहुंच गतिविधियां चलानी चाहिए। और अधिक जरूरी यह है कि विश्वविद्यालयों को सामाजिक रूप से जागरूक ऐसे व्यक्ति तैयार करने चाहिए जिनमें देश प्रेम, करुणा, सहिष्णुता, ईमानदारी,अनुशासन तथा महिलाओं के प्रति सम्मान जैसे प्रमुख मूल्यों को समाविष्ट किए जा सके। मुझे विश्वास है कि आज अपनी उपाधि प्राप्त करने वाले विद्यार्थी सार्थक रूप से राष्ट्र निर्माण में भाग लेंगे।

13. इन्हीं शब्दों के साथ, मैं अपनी बात समाप्त करता हूं। मैं एक बार पुन: स्नातक की उपाधि प्राप्त कर रहे सभी विद्यार्थियों को बधाई देता हूं। मैं इस विश्वविद्यालय के प्रबंधन और संकाय को शुभकामनाएं देता हूं।

धन्यवाद, 
जय हिंद!

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