हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के दूसरे दीक्षांत समारोह मेंभारत के राष्ट्रपति,श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

शाहपुर, हिमाचल प्रदेश : 12.02.2014

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1. मुझे, हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के द्वितीय दीक्षांत समारोह में आपको संबोधित करने का अवसर प्राप्त करके प्रसन्नता हो रही है। सुरम्य स्थान, रमणीय परिवेश और नीरव वातावरण से यह विश्वविद्यालय शिक्षा और सर्जनात्मक अध्ययन का एक आदर्श स्थान बन गया है।

2. इस प्रसन्नता के अवसर पर मैं, सबसे पहले डॉक्टरेट की मानद उपाधि प्रदान किए जाने पर प्रसिद्ध अर्थशास्त्री और प्रशासक डॉ. विजय केलकर को बधाई देता हूं। मैं, इस अनुभवी विश्वविद्यालय से स्नातक करने वाले विद्यार्थियों के दूसरे बैच को भी बधाई देता हूं। आप सभी को अपनी उपलब्धि पर खुश होते देखकर देखकर मुझे प्रसन्नता हो रही है। याद रखें कि यहां आपकी देखभाल की गई है तथा आपका ध्यान रखा गया है। आपने यहां समुचित प्रेरणा, सुरक्षा और समृद्धि को महसूस किया है। आज अपनी शैक्षिक दुनिया से बाहर निकलने पर, आश्वस्त रहें कि आपकी शिक्षा सदैव आपके काम आएगी; आप जहां भी जाएंगे उन्नति करेंगे और जो भी कार्य करेंगे नाम कमाएंगे।

3. इस के बाद, मैं आप सभी को याद दिलाना चाहूंगा कि आप पर अपने आसपास की दुनिया का कुछ न कुछ ऋण है। लोगों को आपसे उम्मीदें और अपेक्षाएं हैं। शिक्षित व्यक्ति पर विशेष जिम्मेदारी होती है। अपने कम भाग्यशाली देशवासियों का उत्थान एक पुण्य कार्य है जिसे आप जैसे विलक्षण लोगों को करके दिखाना होगा। अपने देश के प्रति अपने इस दायित्व को आपको हमेशा याद रखना होगा। यह एक ऐसा बंधन है जिसे आपको तोड़ना नहीं है। इसलिए आगे बढ़ें; अपने सपने पूरे करें। इसी के साथ, अपने देश और देशवासियों के सपने भी पूरे करें।

मित्रो,

4. शिक्षा जिस तरह मानव जीवन को उन्नत बना सकती है, उस तरह अन्य कोई नहीं कर सकता। खासकर, उच्च शिक्षा समाज को बहुत लाभ प्रदान कर सकती है; ऐसे लाभ जिनकी शिक्षा की पूर्ण भूमिका के बिना कल्पना भी नहीं की जा सकती। इस बात को समझते हुए, पिछले कुछ वर्षों के दौरान उच्च शिक्षा पर बहुत ध्यान दिया गया है। ग्यारहवीं योजना अवधि के दौरान, बहुत से विश्वविद्यालयों और तकनीकी संस्थानों की स्थापना हुई है। 21 केंद्रीय विश्वविद्यालय, 08 भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, 7 भारतीय प्रबंधन संस्थान और 10 राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान आरंभ किए गए हैं। गोवा को छोड़कर, आज प्रत्येक राज्य में एक केन्द्रीय विश्वविद्यालय है। नए उच्च शिक्षा संस्थानों के निर्माण तथा वर्तमान संस्थानों की क्षमता बढ़ाकर, हमने उच्च अध्ययन के इच्छुक विद्यार्थियों की बढ़ती संख्या को सुविधा प्रदान करने का प्रयास किया है। नए विश्वविद्यालयों और संस्थानों की उपयुक्त अवस्थिति ने दूर-दराज के मेधावी विद्यार्थियों की पहुंच बढ़ाने में मदद की है।

5. महत्वपूर्ण ढांचागत सुविधाएं विकसित करना शिक्षा की सततता का एक भाग है। हमारे सामने अपने विद्यार्थियों के बौद्धिक मूल्यों को उन्नत करने की चुनौती है। यह चिंता की बात है कि हमारे बहुत से संस्थानों में शिक्षा का स्तर मानदंडों से बहुत नीचे है। विश्व में सर्वोत्तम 200 विश्वविद्यालयों की सूची में भारत का एक भी संस्थान नहीं है। हमारे बहुत से विश्वविद्यालय तथा इंजीनियरी संस्थान इस सूची में काफी ऊंचा स्थान पाने के लिए सक्षम हैं। हमें न केवल रैंकिंग एजेंसियों द्वारा अपनाए जा रहे मापदंडों और प्रक्रिया की गहरी जानकारी प्राप्त करने की बल्कि अपनी उपलब्धियों को और कारगर ढंग से प्रस्तुत करने के लिए कार्यनीति विकसित करने की दिशा में ठोस कार्य करने की जरूरत है। हमारे नए विश्वविद्यालय भले ही अभी इस श्रेणी में नहीं आ पाएंगे तथापि, शुरूआत से ही एक समन्वित प्रयास से उनके शैक्षिक कामकाज में ठोस प्रगति हो सकती है।

मित्रो,

6. राष्ट्रपति भवन में केंद्रीय विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के वार्षिक सम्मेलन से हमारे उच्च शिक्षा क्षेत्र में परिवर्तन की प्रक्रिया को तेज करने के तरीके और साधनों पर चर्चा करने का अवसर प्राप्त होता है। इस वर्ष का सम्मेलन पिछले सप्ताह आयोजित किया गया था और मुझे यह उल्लेख करते हुए प्रसन्नता हो रही है कि कुलपतियों ने दूसरे स्टेकधारकों तथा विभिन्न क्षेत्रों के उन विशेषज्ञों के साथ लाभदायक विचार-विमर्श किया, जिन्हें हमने खासतौर से आमंत्रित किया था। मुझे विश्वास है कि समय-सीमा के भीतर निष्कर्षों को अमल में लाया जाएगा। याद रखें कि केन्द्रीय विश्वविद्यालयों को भारत के उच्च शिक्षा क्षेत्र में परिवर्तन का पथ-प्रदर्शक बनना है।

7. संकाय विकास समग्र शैक्षिक प्रबंधन का एक महत्वपूर्ण पहलू है। प्रत्येक विधा के संकल्पनात्मक ज्ञान और सैद्धांतिक आधार में तीव्र बदलाव आ रहा है। शिक्षकों को अद्यतन संरचनाओं के संपर्क में रहना होगा। उच्च शिक्षा संस्थानों में शिक्षण पदों पर प्रतिभावान लोगों की लगातार कमी रही है। विशेषकर इस क्षेत्र को सशक्त बनाने के हमारे अभियान के संदर्भ में, बड़ी संख्या में रिक्तियां चिंताजनक हैं। हमें लचीले और नवान्वेषी समाधानों के जरिए रिक्त संकाय पदों पर भर्ती के लिए प्रतिभाओं को आकर्षित करना होगा। विदेशी विशेषज्ञों को भी नए विचार प्रस्तुत करने के लिए हमारी शिक्षा प्रणाली में शामिल किया जाना चाहिए।

8. प्रौद्योगिकी में, दूरियां समाप्त करने तथा अन्य बाधाओं को दूर करने की असीम शक्ति है। ज्ञान नेटवर्कों के प्रयोग के जरिए अकादमिक संस्थान भौतिक बाधाओं को पार कर सकते हैं तथा धारणाओं, विचारों और ज्ञान के सार्थक सहयोग के अंतर्गत एक दूसरे तक पहुंच सकते हैं। पाठ्यक्रम सामग्री तथा महत्वपूर्ण व्याख्यानों के आदान-प्रदान से किसी विशेष क्षेत्र की विशेषज्ञता की कमी दूर हो सकती है। हमारे देश के शैक्षिक संस्थानों में समान मानक स्थापित करने में भी मदद मिल सकती है। इस वर्ष 450 से ज्यादा संस्थानों को अपना नववर्ष संदेश देने के साथ ही मैंने वीडियो कॉन्फे्रंसिंग का प्रयोग आरंभ कर दिया है। मैं, आपसे और अधिक संपर्क रखना चाहूंगा। मुझे आपसे अपेक्षा है कि आप अपने कैम्पस से बाहर की दुनिया के साथ सामान्य शैक्षिक और बौद्धिक संवाद करने में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी नेटवर्क को ज्यादा अपनाएंगे।

9. हमारी शिक्षा संस्थाओं को औसत दर्जे से निकलने के लिए रूपांतकारी विचारों की जरूरत है। शासन के विभिन्न ढांचों को नवान्वेषी विचारों के प्रति सहयोगात्मक रहना चाहिए तथा तेजी से निर्णय लेने में सहयोग प्रदान करना चाहिए। ऐसे पूर्व छात्रों की दक्षता तथा अनुभव का भी कारगर विश्वविद्यालय प्रशासन के लिए सदुपयोग किया जाना चाहिए, जो सुस्थापित हैं। अध्ययनों ने दर्शाया है कि किस प्रकार विश्वविद्यालय संचालन में पूर्व-विद्यार्थियों की भागीदारी से शैक्षिक निष्पादन में सुधार आया है। विशेषकर, हमारे पुराने विश्वविद्यालयों को अपने कार्यकलापों में पूर्व विद्यार्थियों को शामिल करने की दिशा में कदम बढ़ाना चाहिए। मैं, इस विश्वविद्यालय से उम्मीद करता हूं कि वह भी पूर्व विद्यार्थियों को अपने शैक्षिक मामलों में सार्थक रूप से शामिल करेगा।

मित्रो,

10. विश्वविद्यालयी शिक्षा तथा उद्योग के बीच की दूरी समाप्त करनी होगी। अधिकाधिक सहयोग के लिए संस्थागत तंत्र स्थापित करना होगा। कुलपति सम्मेलन में, मैंने उद्योग संयोजन प्रकोष्ठ स्थापना को प्रत्येक केंदीय विश्वविद्यालय की आवश्यकता बताया है। ऐसी संस्था अनुसंधान पीठ और दायनिधि की स्थापना जैसी उद्योग पहलों को प्रेरित करने की दिशा में कार्य कर सकता है। मुझे उम्मीद है कि स्थानीय उद्योग, उद्योग संघ, पूर्व विद्यार्थियों तथा संकाय को शामिल करते हुए ऐसे प्रकोष्ठ शीघ्र ही प्रत्येक केन्द्रीय विश्वविद्यालय में स्थापित किए जाएंगे।

11. अनुसंधान हमारे उच्च शिक्षा ढांचे का एक उपेक्षित क्षेत्र है। सफल अनुसंधान कार्यक्रमों में लोगों के जीवन को बदलने की व्यापक संभावनाएं होती हैं। प्राकृतिक संसाधनों से वंचित देशों ने केवल गहन अनुसंधान द्वारा प्राप्त प्रौद्योगिकीय उन्नति की ताकत के आधार पर प्रगति की है। भारत जैसे विकासशील देश को नवीकरणीय ऊर्जा, जलवायु परिवर्तन, पेय जल तथा स्वच्छता की गंभीर चुनौतियों पर ध्यान देना होगा। इन क्षेत्रों में अनुसंधान से ऐसे परिणाम प्राप्त होंगे, जो जनसाधारण के लाभ के संबंध में अभी अकल्पनीय हैं। हमारे विश्वविद्यालय सर्जनात्मक प्रयासों के लिए ऊर्वर भूमि होने चाहिए। उन्हें अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी विकास के स्रोत बनना होगा। विभिन्न केंद्रीय विश्वविद्यालयों में नवान्वेषी क्लब खोलकर नूतनता तथा विचारों के आदान-प्रदान को बढ़ावा देने की दिशा में पहल की जा चुकी है। अगले कदम के रूप में, इन नवान्वेषी क्लबों को विभिन्न भारतीय प्रौद्योगिक संस्थानों अथवा राष्ट्रीय प्रौद्योगिक संस्थानों में मौजूद नवान्वेषी विकास केंद्रों के साथ मिलकर काम करना चाहिए, जिससे जमीनी नवान्वेषकों के नवीन, व्यवहार्य विचारों से उपयोगी उत्पाद तैयार करने के लिए आगे कार्य किया जा सके।

12. हमारे केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में प्रतिस्पर्धा तथा सहयोग की भावना भरने की जरूरत है। मैंने सर्वोत्तम विश्वविद्यालय, सर्वोत्तम नवान्वेषण तथा सर्वोत्तम अनुसंधान की तीन श्रेणियों में वार्षिक कुलाध्यक्ष पुरस्कार घोषित किए हैं। मैं चाहता हूं कि हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालयों सहित, सभी केंद्रीय विश्वविद्यालय, उनके संकाय सदस्य तथा विद्यार्थी इन पुरस्कारों के लिए सर्वोत्तम प्रयास करें।

13. अंत में, मैं आप सभी को शुभकामनाएं देता हूं। मैं अपने वार्षिक दीक्षांत समारोह में आमंत्रित करने के लिए आपको धन्यवाद देता हूं। हमेशा कन्फूसियस के ये शब्द याद रखें कि ‘शिक्षा से आत्मविश्वास पैदा होता है। आत्मविश्वास से उम्मीद पैदा होती है। उम्मीद से शांति पैदा होती है’।

धन्यवाद, 
जयहिन्द !

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