एशिया प्रशांत नेत्र-विज्ञान अकादमी की28वीं कांग्रेस के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण
हैदराबाद : 17.01.2013
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मुझे, आज एशिया प्रशांत नेत्र-विज्ञान अकादमी की 28वीं कांग्रेस के उद्घाटन समारोह में उपस्थित होकर प्रसन्नता हो रही है। मैं अकादमी और अखिल भारतीय नेत्र-विज्ञान सोसायटी को धन्यवाद देता हूं कि उन्होंने मुझे पूरे विश्व से यहां एकत्रित नेत्र रोग विशेषज्ञों के साथ अपने विचारों का आदान-प्रदान करने के लिए आमंत्रित किया।
यह सम्मेलन, लगभग 28 वर्ष के अंतराल के बाद, दूसरी बार भारत में आयोजित किया जा रहा है। भारत में इसका आयोजन अखिल भारतीय नेत्र-विज्ञान सोसायटी के निष्ठावान प्रयासों का परिणाम है जो ए पी आई ओ के साथ मिलकर कार्य कर रही है। मैं उन्हें इस प्रयास के लिए बधाई देता हूं।
नेत्र-रोग विशेषज्ञ समाज में एक विशेष प्रतिष्ठा और महत्त्व रखते हैं। आप मानवोचित कार्य और श्रेष्ठ जीवन जीने के लिए जरूरी हमारे महत्त्वपूर्ण मानव अंग, नेत्रों के चिकित्सक के रूप में ऐसा करते हैं। प्राचीन भारतीय ग्रंथ, वेदों के अनुसार, नेत्र हमारे शरीर की इन्द्रियों में सबसे महत्त्वपूर्ण हैं। इस महत्त्व को जानते हुए, जैसा कि आप में से अधिकतर को ज्ञात है, भारत इस विज्ञान के एक सबसे पहले योगदानकर्ता में से रहा है।
भारतीय शल्य चिकित्सा के जनक सुश्रुत, जिन्होंने 600 ईसा पूर्व में सुश्रुत संहिता अथवा उपचारों का संकलन रचा, ने 51 शल्य चिकित्सा और अनेक नेत्र रोग शल्यचिकित्सा यंत्रों और तकनीकों सहित 76 नेत्र सम्बंधी रोगों का वर्णन किया था।
लेखबद्ध मानव इतिहास के आरंभ से ही नेत्र देखभाल पर बहुत ध्यान दिया गया है क्योंकि अंधता का व्यक्ति और उसके परिवार, उसकी आर्थिक हालत, समाज और राष्ट्र की समृद्धि पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इसका, विशेषकर कम विकसित देशों में, निर्धनता के साथ बहुत घनिष्ठ संबंध है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने विज़न 2020 में, 1975 के विश्व आंकड़ों के द्वारा यह अनुमान लगाया कि 1996 में 45 मिलियन दृष्टिहीन और 135 मिलियन दृष्टिबाधित लोग रहे होंगे। आंकड़ों से और जानकारी निकाली गई और अब यह अनुमान लगाया गया है कि 2020 तक 76 मिलियन दृष्टिहीन लोग होंगे और बताया गया है कि 1990-2020 की अवधि में दृष्टिबाधिता दुगुनी हो जाएगी।
यह भी स्थापित किया गया है कि दृष्टिबाधित लोगों का एक बड़ा हिस्सा विकासशील देशों में रहता है। निर्धनता किसी व्यक्ति को दृष्टिहीनता की ओर ले जाती है और रोजगार के अवसर कम होने और इलाज में संसाधनों को लगाने से आर्थिक भार बढ़ जाता है। शोध आंकड़ों से पता चलता है कि कम आय से न केवल दृष्टिहीनता की घटनाएं बढ़ती हैं बल्कि 64 प्रतिशत अशक्त, दृष्टिबाधिता के बाद गरीबी में फंस जाते हैं।
वे परिवार जो गरीबी से प्रभावित भी नहीं हैं, उनके भी अप्रभावित परिवारों की तुलना में बाधिता की शुरुआत के प्रथम वर्ष में गरीब होने की तीन गुना संभावना होती है। अशक्तता से प्रभावित परिवारों के चिकित्सीय उपचार में व्यय के बढ़ने के कारण गरीबी के चंगुल से बचने की संभावना कम होती है। इसलिए जहां गरीबी अशक्तता का कारण है, अशक्तता भी गरीबी का कारण बन सकती है। परिणामस्वरूप व्यक्ति, या उनके परिवारों तथा देश पर इसका समग्र प्रभाव बहुत अधिक होता है। 1996 में प्रकाशित एक अध्ययन में अनुमान लगाया था कि दृष्टिहीनता के कारण वार्षिक विश्वव्यापी उत्पादन लागत 168 बिलियन अमरीकी डॉलर थी।
दृष्टिबाधित व्यक्ति बहुत सी सामाजिक कठिनाइयों का सामना करता है। यह बताया गया है कि निर्धन देशों के 50 प्रतिशत से अधिक नेत्रहीन लोग यह महसूस करते थे कि उनकी सामाजिक हैसियत और निर्णयकारी क्षमताएं दृष्टिबाधिता की वजह से कम हो गई। महिलाओं के मामले में स्थिति और खराब हो जाती है जब दृष्टिबाधिता के कारण उनमें से तकरीबन 80 प्रतिशत महिलाओं का परिवार में प्रभाव समाप्त हो गया।
बच्चों पर प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष प्रभाव के कारण दृष्टिहीनता के और खराब प्रभाव पड़ते हैं। यद्यपि आंकड़ों में अंतर हो सकता है परंतु यह अनुमान लगाया है विश्व में लगभग 1.4 मिलियन दृष्टिहीन बच्चे हैं और उनमें से 1 मिलियन बच्चे एशिया और अफ्रीका के हैं। आश्चर्य की बात यह है कि 60 प्रतिशत बच्चों की दृष्टिहीनता के प्रथम वर्ष में मृत्यु हो जाती है।
यह एक अन्य दुखद सच्चाई है कि विश्व में प्रत्येक मिनट में एक बच्चा दृष्टिहीन हो जाता है। इसके अलावा, विकासशील देशों में व्यस्कों के दृष्टिहीन हो जाने पर, अक्सर बच्चों पर उनकी देखभाल का दायित्व आ जाता है। परिणामस्वरूप, ऐसे बच्चों को स्कूल जाने में कठिनाई आती है, जिससे उनके शैक्षिक रोजगार के अवसर समाप्त हो जाते हैं।
कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, सेन फ्रांसिस्को का निष्कर्ष विशेष रूप से परेशान करने वाला है कि विश्व में लगभग 85 प्रतिशत सभी प्रकार के दृष्टिविकार और 75 प्रतिशत अंधता या तो रोकी जा सकती है या उनका इलाज हो सकता है। यह कम विकसित देशों के लिए खास तौर से प्रासंगिक है क्योंकि दुनिया के 90 प्रतिशत दृष्टिहीन विकासशील देशों में रहते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के विजन 2020 के अनुसार, अंधता की समस्या का निवारण केवल अधिक राजनीतिक प्रतिबद्धता, पेशेवर प्रतिबद्धता, उच्च गुणवत्तायुक्त नेत्र देखभाल की व्यवस्था, अधिक जन जागरूकता तथा गैर सरकारी संगठनों और निजी सेक्टर के सहयोग से ही संभव है।
देवियो और सज्जनो, अखिल भारतीय नेत्र-विज्ञान सोसायटी और एशिया प्रशांत नेत्र-विज्ञान अकादमी दोनों नेत्र वैज्ञानिक संगठनों ने अंधता से लड़ने के लिए सराहनीय कार्य किया है। अलग-अलग और सामूहिक रूप से, उन्होंने भारत में बेहतर कार्य और भारत में नेत्र-विज्ञान अनुसंधान तथा जनशक्ति विकास को बढ़ावा दिया है। अंधता रोकने के लिए भारत में राष्ट्रीय अंधता निवारण कार्यक्रम जैसे अनेक कार्यक्रम शुरू किए गए हैं। इन कार्यक्रमों से सराहनीय परिणाम प्राप्त हुए हैं। परंतु सरकार अंधता से अकेले उतने प्रभावी रूप से नहीं लड़ सकती जितना दोनों के सहयोगात्मक उद्यमों या प्रयासों से लड़ा सकता है।
इसलिए निजी क्षेत्र की कंपनियों और सरकारी संस्थाओं को दृष्टिहीनता और दृष्टिबाधिता से लड़ने के लिए सहायता करनी चाहिए। निजी क्षेत्र की कंपनियों को इसे एक भार नहीं बल्कि अपने सामाजिक दायित्वों को निभाने का पूरा करने का साधन मानना चाहिए। निजी क्षेत्र अंधता और गरीबी की घटनाओं में कमी करके अपनी बिक्री और आय को बढ़ाने के लिए भी मदद कर सकता है, जिससे समाज में समृद्धि बढ़ेगी।
सहयोगात्मक प्रयास आवश्यक हैं क्योंकि तुलनात्मक रूप से सही समय पर छोटी सी एक पहल अंधता को रोकने में मददगार हो सकती है। उदाहरण के लिए, अपेक्षाकृत साधारण सर्जरी से मोतियाबिंद का उपचार किया जा सकता है। डॉक्टर महीने में एक या दो दिन निकालकर सामाजिक सेवा में योगदान कर सकते हैं। चिकित्सा दल, अन्य स्वैच्छिक संगठनों की मदद से सचल आपरेशन थियेटर द्वारा देश के अंदरूनी हिस्सों में जा सकते हैं। यदि इन्डियन मेडिकल एसोसियेशन जैसे स्थानीय चिकित्सा संघ नगरों व जिलों के गैर सरकारी संगठनों के साथ सहयोग से यह पहल करें, तो बहुत फर्क पड़ेगा।
देवियो और सज्जनो, आप सहमत होंगे कि व्यक्तिगत उत्कृष्टता और खुशहाली के लिए प्रयास करते हुए, किसी दृष्टिहीन को दृष्टि देने से अधिक संतोषजनक कुछ नहीं है। यह विशेष रूप से इसलिए सच है क्योंकि दुनिया में केवल 25 प्रतिशत अंधता और 15 प्रतिशत सभी प्रकार के दृष्टि विकार अनियंत्रित और लाइलाज हैं। इसलिए मैं आपसे आग्रह करता हूं कि आर्थिक समृद्धि को अपनी सफलता से नहीं बल्कि उन लोगों की संख्या से आंकें जिनकी आपने अंधापन रोकने और दृष्टिहीनों की दृष्टि देकर सहायता की है। इसलिए, मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि इस सराहनीय लक्ष्य को हासिल करने के लिए प्रत्येक जिलों, नगरों और शहरों में अपने पेशेवर संगठनों के जरिए कार्य करें।
मुझे विश्वास है कि यह कांग्रेस, जिसके बारे में मुझे बताया गया है कि इसमें पूरी दुनिया के 9000 से अधिक प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं, जरूरतमंदों को अपेक्षाकृत अधिक चिकित्सा सुविधा प्रदान करने के समाधान खोजेगी। मुझे यह भी उम्मीद है कि तकनीकी सत्रों से ज्ञान के आदान-प्रदान और सूचना प्रसार के लिए आवश्यक मंच प्राप्त होगा। मैं 28वीं कांग्रेस की सफलता की कामना करता हूं। मैं अखिल भारतीय नेत्र-विज्ञान सोसायटी और एशिया प्रशांत नेत्र-विज्ञान अकादमी को भी उनके भावी प्रयासों के सफल होने की शुभकामनाएं देता हूं।
जय हिंद!