द्वितीय दक्षिण एशिया इम्प्लाँट सम्मेलन—इम्प्लाँट एस्थेटिक्स-2013 के उद्घाटन के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

अशोक होटल, नई दिल्ली : 23.02.2013

डाउनलोड : भाषण द्वितीय दक्षिण एशिया इम्प्लाँट सम्मेलन—इम्प्लाँट एस्थेटिक्स-2013 के उद्घाटन के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण(हिन्दी, 224.58 किलोबाइट)

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इस उद्घाटन समारोह के मौके पर यहां आकर मुझे प्रसन्नता हो रही है। मैं इन्टरनेशनल कांग्रेस ऑफ ओरल इम्प्लाँटोलोजिस्ट को ‘इम्प्लाँट एस्थेटिक्स’ पर द्वितीय दक्षिण एशिया इम्प्लाँट संगोष्ठी आयोजित करने में उनकी पहल के लिए बधाई देता हूं। मुझे यह देखकर वास्तव में खुशी हो रही है कि इस संगोष्ठी के प्रतिभागियों में हमारे निकट के पड़ोसी भी शामिल हैं- जिन्हें इस क्षेत्र में हमारी प्रगति से सीधा लाभ प्राप्त होगा। मैं समुद्र पार से आए कोरिया, ताइवान, वेस्टइंडीज, खाडी, ईरान तथा यू.के जैसे उन देशों से आए प्रतिभागियों की उपस्थिति की प्रशंसा करता हूं जो कि हमारे निकट के साझीदार और सहयोगी हैं।

विशिष्ट देवियो और सज्जनो, यह अच्छी बात है कि दंत स्वास्थ्य ने विज्ञान के रूप में लोकप्रियता हासिल की है तथा आज हमारे देश में दंत विज्ञान के बारे में एक पेशे के रूप में अधिक जागरूकता है। मुझे इस बात की विशेष खुशी है कि इस सम्मेलन से ऐसे समय पर जागरूकता पैदा होगी जबकि भारत के बहुत से शहरों और नगरों में दंत स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी बनी हुई है। इस सम्मेलन में केरल से लेकर कर्नाटक तक तथा उत्तर प्रदेश तथा गुजरात के दूरदराज के छोटे-छोटे गांवों से दंत चिकित्सकों और पेशेवरों की उपस्थिति एक अच्छा संकेत है और यह इस बात का प्रतीक है कि न केवल शहरी जनता बल्कि भारत के आंतरिक हिस्सों में बसे हुए समाज भी अपने लोगों तक दंत स्वास्थ्य सुविधाओं की बेहतर प्राप्ति के लिए मिल-जुलकर प्रयास कर रहे हैं।

इस प्रसंग में, डेंटल इंप्लाँट एक विशेष श्रेणी है जिसका विकल्प अभी तक कुछ ही ऐसे विशिष्ट लोगों को प्राप्त था जो इसे वहन कर सकते थे। जहां सिंधु घाटी की सभ्यता में बो ड्रिल का प्रयोग 7000 वर्ष पूर्व हुआ था तथा मिश्र के लोग 2500 ई०पू० में दंत सर्जरी करते थे, वहीं बताया जाता है कि माया सभ्यता में लगभग 600 ई. में अब तक के सबसे पहले हड्डी निर्मित इंप्लाँट के ज्ञात उदाहरण का प्रयोग किया गया था। यह पाया गया था कि वे दांत के आकार के सीपियों का प्रयोग करते थे। जब 1952 में पहले आधुनिक इंप्लाँट का प्रयोग हुआ था, तबसे आधुनिक चिकित्साशास्त्र में बहुत तेजी से विकास हुआ है और अब इंप्लाँट के लिए ‘रूट’ के रूप में काम के लिए ‘पोस्ट’ बनाने के लिए टाइटेनियम का प्रयोग होता है। अब दांतों के इंप्लाँट की सफलता की दर 75 प्रतिशत बताई जाती है और तकनीकों और प्रौद्योगिकियों का नित्य उन्नयन हो रहा है।

समाज के सभी वर्गों के लिए उपलब्ध, आर्थिक रूप से व्यवहार्य, वहनीय तथा सुगम्य तथा दंत इंप्लॉट की संकल्पना वास्तव में एक उल्लेखनीय उपलब्धि है। इस लक्ष्य की ओर प्रयासरत इन्डिया डेंटल एसोसियेशन हमारे समाज के लिए एक महत्त्वपूर्ण योगदान कर रही है। मैं समझता हूं कि दंत इंप्लॉट आज सबसे बड़े और विकासशील दंत विशेषता का क्षेत्र है। यह विशेषज्ञता का एक महत्त्वपूर्ण तथा लोकप्रिय विषय माना जाता है तथा इंप्लाँटोलोजी विज्ञान को दंत शिक्षा में शामिल किए जाने तथा पूरे देश में दंत संस्थानों के पाठ्यक्रमों में उचित प्राथमिकता दिए जाने का पूर्ण औचित्य है।

मुझे बताया गया है कि आर्मी डेंटल कोर, रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन के साथ मिलकर इस समय एक स्वदेशी प्रौद्योगिकी विकसित कर रही है जो इंप्लॉटों के लिए और हमारी रक्षा सेनाओं और नागरिकों के लिए अधिक कारगर तथा सुलभ बना सकती है।

मैं यह भी समझता हूं कि दंत पर्यटन की संकल्पना विदेशी पर्यटकों को पसंद आ रही है तथा वे उच्च गुणवत्ता की इंप्लाँट सेवाओं और संबंद्ध उपचारों का लाभ उठाना चाहंगे, जो कि भारत में अधिक किफायती है।

मुझे यह जानकर खुशी हो रही है कि डेंटल कांउसिल ऑफ इन्डिया द्वारा डेंटल कैरीज, पीरियोडोंटल रोगों तथा ओरल कैंसर सहित विभिन्न दंत रोगों की एपिडेमियोलॉजी का अध्ययन शुरू करने का प्रस्ताव है। मैं निश्चित रूप से इस राय से सहमत हूं कि निवारक उपाय भी उतने ही महत्त्वपूर्ण हैं जितने नैदानिक उपचार।

देवियो और सज्जनो, यद्यपि दंत स्वास्थ्य को सदैव सामान्य स्वास्थ्य देखभाल का अभिन्न अंग माना जाना चाहिए परंतु भारत में आधुनिक दंत विज्ञान का धीरे-धीरे उद्विकास हुआ है। इसलिए यदि चिकित्सा और दंत चिकित्सा बिरादरी, समुदाय की बदलती प्राथमिकताओं के बारे में अपने आकलन के आधार पर तथा उपलब्ध प्रौद्योगिकी और समाधानों को ध्यान में रखते हुए सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यक्रम आयोजित करें तो यह एक अमूल्य सेवा होगी।

हमारे संस्थानों को खुद-ब-खुद नैतिक, सामाजिक-आर्थिक तथा विभिन्न प्रभावों के नियमित आकलन पर ध्यान देना चाहिए और उन्हें अपने द्वारा प्रयोग किए जाने वाले स्वास्थ्य देखभाल संबंधी उपायों के प्रति जवाबदेह होना चाहिए। अनिवार्य परीक्षणों तथा जाँचों से सफल होकर निकलने वाली हर नयी पद्धति का, अंतत: तथा हर एक मामले में, सफलता की एक और कहानी के रूप में, हमारी वैज्ञानिक बिरादरी द्वारा उठाए गए अगले कदम के रूप में स्वागत होना चाहिए।

मुझे विश्वास है कि इस संगोष्ठी के दूरगामी परिणाम निकलेंगे तथा यह दंत इंप्लाँटेशन के क्षेत्र के प्रतिभागी छात्रों तथा पेशेवरों के बीच सहयोग बढ़ाने में सफल रहेगी।

मैं डेंटल काउंसिल ऑफ इन्डिया तथा उनके सहयोगियों को तथा आज के सम्मेलन के सभी प्रतिभागियों को शुभकामनाएं देता हूं तथा उनके व्यक्तिगत तथा सामूहिक प्रयासों और भावी पहलों की सफलता की कामना करता हूं।

धन्यवाद।

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