डॉ. एम. वीरप्पा मोइली को वर्ष 2014 के लिए सरस्वती सम्मान प्रदान करने के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

नई दिल्ली : 10.08.2015

डाउनलोड : भाषण डॉ. एम. वीरप्पा मोइली को वर्ष 2014 के लिए सरस्वती सम्मान प्रदान करने के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण(हिन्दी, 439.55 किलोबाइट)

sp24वां सरस्वती सम्मान प्रदान करने के अवसर पर आज यहां उपस्थित होना मेरे लिए बहुत प्रसन्नता की बात है। इस प्रतिष्ठित पुरस्कार को मेरे साथी सांसद तथा कई दशक पुराने मित्र माननीय डॉ. एम. वीरप्पा मोइली को प्रदान करने का सौभाग्य मिलने पर मुझे विशेष प्रसन्नता हो रही है। मैं डॉ. मोईली से सफल राजनीतिक जीवन के साथ-साथ प्रचुर लेखन के द्वारा साहित्य के योगदान के लिए बधाई देता हूं।

देवियो और सज्जनो,

दो महान महाकाव्यों, वाल्मीकि की रामायण तथा व्यास की महाभारत ने अधिकांश भारतीयों में संस्कार तथा भावनाओं के विकास में प्रमुख भूमिका निभाई है। मुश्किल से ही ऐसा कोई भारतीय होगा,चाहे वह किसी भी धर्म, जाति अथवा वर्ग का हो,जो इन महान कृतियों से परिचित न हो। जहां महाभारतने हमारे अंदर सहनशीलता, दयालुता तथा पारिवारिक मूल्यों का समावेश किया है वहीं रामायण ने हमें एक ऐसी दुनिया में वात्सल्य,दाम्पत्य तथा भ्रातृत्व प्रेम का दर्शन कराया है जिसमें मानव जाति के कल्याण को महत्त्वपूर्ण माना जाता है। यह राजनीतिक दर्शन तथा अध्यात्मिक संवाद का एक दुर्लभ संयोजन है जो उच्च नैतिकता को दैनिक जीवन की व्यावहारिक परिस्थितियों तक लेकर आता है। इस प्रकार मोइली जी ने आज के भारत के सामाजिक तथा राजनीतिक जीवन के प्राय: सभी पहलुओं पर चिंतन भी किया है। वाल्मीकि जी के मूल महाकाव्य से प्रेरित 43000 पंक्तियों की अपनी विशाल रचना में मोइली जी ने समसामयिक परिस्थितियों के बारे में अपनी अनोखी अंतदृष्टि से प्रकाश डाला है। इसके बाद उन्होंने उन पर सुशासन,उच्च नैतिकता तथा सदाचार जैसे शाश्वत सिद्धांतों की दृष्टि से विचार किया है। निसंदेह,इसमें उन्होंने राजनीतिक नेता तथा प्रशासक के रूप में अपने विभिन्न प्रकार के अनुभवों से लाभ उठाया है। उन्होंने अपना यह विश्वास व्यक्त किया है कि आज के भारत को रामायण से बहुत कुछ सीखना है—खासकर यह कि हमारे राष्ट्र निर्माण के प्रयासों का आधार सहिष्णुता, बहुलता तथा समावेशिता की मजबूत आधारशिला होना चाहिए। अपने महत्त्वपूर्ण संदेश को प्रेषित करने के लिए कविता का कारगर माध्यम तथा रामायण का शाश्वत विषय चुनने पर मैं मोइल जी की सराहना करता हूं। मैं,उन्हें अपने सशक्त पद्य के माध्यम से हमें यह याद दिलाने के लिए भी बधाई देता हूं कि हमारा समाज जिन चुनौतियों का आज सामना कर रहा है उनका समाधान हमारे प्राचीन मूल्य प्रणालियों को अपनाकर किया जा सकता है।

मैं गांधी जी के ‘रामराज्य’ के स्वप्न का स्मरण करना चाहूंगा जिसमें उन्होंने एक ऐसे आदर्श समाज की परिकल्पना की थी—जिसमें न्याय,समानता, आदर्श,वैराग्य तथा त्याग को व्यवहार में लाया जाता हो। उनका रामराज्य एक ऐसा राष्ट्र है जिसमें अमन,समृद्धि तथा शांति का बोलबाला हो। गांधी जी ने एक बार कहा था कि उनके सपनों के रामराज्य से उनका तात्पर्य, ‘‘विशुद्ध नैतिक बल पर आधारित जनता की संप्रभुता’’से है। जैसे रामायण में बुराई पर अच्छाई की जीत होती है—और गांधी जी के शब्द‘सत्यमेव जयते’ हमें यह याद दिलाते हैं कि अंतत: सत्य की ही जीत होती है,उसी प्रकार मोइली जी का महाकाव्य हमारे समक्ष अपने विचारों और कार्यों में करुणा,आत्मशुद्धि तथा अनुशासन के शाश्वत मूल्यों को प्रस्तुत करता है। मुझे उनके संदेश में अपने खुद के विचारों की प्रतिध्वनि सुनाई देती है कि हमारा लोकतंत्र तभी फल-फूल सकता है जब संसद सक्रिय हो,जनता के प्रतिनिधियों की परिकल्पना सुस्पष्ट हो और उनके प्रयासों को मेहनती सरकार तथा स्वतंत्र न्यायपालिका का सहयोग मिले। इसके अलावा,यह व्यवस्था जिम्मेदार मीडिया तथा सतर्क समाज पर निर्भर है।

इस प्रकार, हमारे लोकतांत्रिक अधिकार जिम्मेदारियों के साथ आते हैं। हम,भारत के लोगों का यह दायित्व है कि हम अपने समाज के निर्माण के लिए मिलकर प्रयास करें तथा अपने देश की आर्थिक प्रगति और समावेशी विकास में ईमानदारी से योगदान दें। गांधी जी ने कहा था कि हमारा यह प्रयास होना चाहिए कि हम सात महापापों,अर्थात् ‘सिद्धांतविहीन राजनीति, श्रमविहीन धन, विवेकविहीन आनंद, चरित्रविहीन ज्ञान,नैतिकताविहीन वाणिज्य, मानवीयताविहीन विज्ञान तथा त्यागविहीन पूजा’से बचें। मुझे इसमें कोई संदेह नहीं कि मोइली जी अपनी शानदार कृति श्री रामायण महान्वेषणम् के द्वारा इन मूल्यों के प्रति अधिक संवेदनशीलता की रचना करने में सहायता देंगे।

यह कृति न केवल भारतीय साहित्य में वरन् रामायण की परंपरा में सही मायने में एक मील का पत्थर कही जा सकती है।

मुझे बहुत प्रसन्नता है कि यह काव्य हिंदी, तेलुगु,तमिल तथा अंग्रेजी में अनूदित हो चुका है तथा इस प्रकार बड़ी संख्या में पाठकों तक पहुंचा है।

मैं, के.के. बिरला फाउंडेशन को सरस्वती सम्मान की स्थापना करने तथा हमारी विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में सृजनात्मक साहित्य को प्रोत्साहित करने के लिए बधाई देता हूं।

मुझे यह सम्मान प्रदान करने के लिए मैं उन्हें धन्यवाद देता हूं तथा फाउंडेशन के अन्य प्रयासों में सफलता की कामना करता हूं।

इन्हीं शब्दों के साथ, मैं एक बार फिर से माननीय डॉ. वीरप्पा मोइली को बधाई देता हूं।

मैं आप सभी को धन्यवाद देता हूं।

जय हिंद!

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