देव संस्कृति विश्वविद्यालय के चतुर्थ दीक्षांत समारोह के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण
हरिद्वार, उत्तराखण्ड : 09.12.2012
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मुझे आज देव संस्कृति विश्वविद्यालय के चौथे दीक्षांत समारोह के अवसर पर यहां उपस्थित होकर आप लोगों से विचारों का आदान-प्रदान करके बहुत खुशी हो रही है। पवित्र गंगा तथा महान हिमालय के इस शांत परिवेश में मैं भावविह्वल हूं जहां पर आपका यह संस्थान स्थित है। मैं उन विद्यार्थियों को बधाई देता हूं जिन्हें आज उपलब्धियां, पुरस्कार तथा मेडल प्राप्त हुए हैं।
मैं इस अवसर पर, विश्वविद्यालय द्वारा एक दशक की छोटी-सी अवधि में प्राप्त महत्त्वपूर्ण प्रगति की भी सराहना करना चाहूंगा। व्यक्तित्व का समग्र विकास करने के लिए आधुनिक शिक्षा को आध्यात्मिक प्रशिक्षण के साथ एकीकृत करने का इसका मिशन प्रशंसनीय है क्योंकि यह आज के विश्व के लिए प्रासंगिक है। शिक्षा व्यक्ति में मूल्यों का समावेश करती है तथा शिक्षा आधारित शिक्षा हमें अपने समाज के लिए सार्थक रूप से योगदान देने के लिए तैयार करती है।
आज के युग में, खोए हुए मूल्यों तथा परंपराओं को फिर से प्राप्त करने के लिए शैक्षणिक उत्कृष्टता के साथ-साथ आध्यात्मिक विकास के लिए प्रयास, एक सटीक दृष्टिकोण है। शांति कुंज, एक सामाजिक सेवा संगठन है जिसने देव संस्कृति विश्वविद्यालय की स्थापना की है और उसने इन सामाजिक उद्देश्यों को बढ़ावा देने के लिए इस संस्थान को स्थापित करके महान सेवा की है।
मुझे खुशी है कि आपके संस्थान में प्रत्येक विद्यार्थी को जीवन-प्रबंधन पर एक पाठ्यक्रम पूर्ण करना होता है ताकि उनमें इन्टर्नशिप कार्यक्रमों के जरिए सामाजिक जिम्मेदारी का समावेश किया जा सके। अकादमिक पाठ्यचर्या के माध्यम से संस्थागत रूप में जीवन-आधारित ज्ञान तथा अभ्यास शामिल करना ऐसा कार्य है जिसका अनुकरण होना चाहिए। विद्यार्थियों को जीवन के विभिन्न परिप्रेक्ष्यों का ज्ञान देकर यह विश्वविद्यालय उन्हें आधुनिकता की गहन विश्व-दृष्टि प्रदान करने का प्रयास कर रहा है। इस विश्वविद्यालय द्वारा प्रदान किए जा रहे नवान्वेषी विचारों तथा सर्वांगीण शिक्षा के कारण ही यह एक ऐसा उत्कृष्टता केंद्र बन गया है जहां भारत और विदेशों से विद्यार्थी खिंचे चले आते हैं, जिनमें रूस, ईरान, जर्मनी, नेपाल, श्रीलंका, जापान, स्पेन, चेक गणराज्य, चीन तथा दक्षिण कोरिया शामिल हैं।
आज जब मैंने मेधावी युवकों एवं युवतियों को अपनी उपाधियां प्राप्त करते हुए देखा तो मुझे महात्मा गांधी जी की एक उक्ति का स्मरण हो आया। उन्होंने कहा था, ‘‘जीवन ऐसे जीओ मानो कल ही तुम्हारी मृत्यु होने वाली है। ज्ञान ऐसे प्राप्त करो जैसे तुम्हें सदैव यहीं रहना है।’’ मैं चाहता हूं कि अब जब आप दुनिया की वास्तविकताओं का सामना करने के लिए तैयारी कर रहे हैं, आप अपने साथ इन्हीं विवेकपूर्ण शब्दों की सीख लेकर जाएं। आप इन्हीं मूल्यों पर अपने व्यक्तित्व का विकास करें जिन्हें इस महान विश्वविद्यालय द्वारा इतने शानदार ढंग से मूर्त रूप दिया गया है तथा उनको अपनाया जा रहा है।
मैं पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य के प्रति भी अपना सम्मान प्रकट करना चाहूंगा जिनके दार्शनिक उपदेशों और असाधारण दूरदृष्टि इस संस्थान की स्थापना की प्रेरणा रही है। गुरु के प्रति श्रद्धा ने शिक्षा के साथ आध्यात्मिकता के एकीकरण के इस सुंदर प्रयोग का सूत्रपात किया है। पंडित आचार्य ने आध्यात्मिक पुनर्जागरण के द्वारा लोगों में उच्च सामाजिक तथा नैतिक मूल्यों का समावेश करने का प्रयास किया और जनता के मस्तिष्क में एक अमिट छाप छोड़ी।
देवियो और सज्जनो, हमारा देश तेजी से एक महान आर्थिक शक्ति बन रहा है। खरीद शक्ति की समानता के आधार पर हम विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हैं। विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में हमारी विकास दर, केवल चीन के बाद दूसरे स्थान पर है। पिछले नौ में से छह वर्षों के दौरान हमने 8 प्रतिशत से अधिक की विकास दर प्राप्त की है। हालांकि वैश्विक आर्थिक मंदी के कारण 2010-11 के बाद विकास दर में मामूली कमी आई है परंतु भारत ने इस संकट से बच निकलने में सफल रहा तथा उसने प्रशंसनीय लचीलापन दिखाया है। भारत में शिक्षा का विकास भारत के लचीलेपन के लिए उत्तरदायी कारक रहा है। इसलिए इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि शिक्षा, जिसके द्वारा हम बौद्धिक पूंजी का निर्माण करते हैं, किसी भी व्यक्ति, समाज अथवा देश के लिए विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण होती है। यह कुशल कार्मिकों को सीधे राष्ट्रीय उत्पाद में योगदान देने में सहायता देती है। अनुसंधान शिक्षा का एक बेहतरीन उत्पाद है जिससे नवान्वेषण, प्रौद्योगिकीय उन्नति तथा प्रक्रिया में सटीकता आती है जो कि उत्पादन की सरहदों में बदलाव तथा भविष्य के लिए और अधिक क्षमता निर्माण के लिए उत्तरदायी होती है। इस प्रकार शिक्षा के महत्त्व का जितना वर्णन किया जाए उतना कम है।
उच्च शिक्षा के क्षेत्र में, भारत में उपाधि प्रदान करने वाले 659 संस्थान तथा 33,023 कॉलेज मौजूद हैं। ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना अवधि के अंत में ऐसे 172 केंद्रीय संस्थान थे जो उपाधि प्रदान करते थे। वर्ष 2007 से 2012 की पंचवर्षीय योजना अवधि के दौरान इस तरह के 65 संस्थानों की वृद्धि हुई इससे हमारी श्रम-शक्ति की उत्पादकता को बढ़ाने में सहयोग मिला।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों तथा भारतीय प्रबंध संस्थानों ने देश में तकनीकी तथा प्रबंध शिक्षा के क्षेत्र में मापदंड स्थापित किए हैं तथा उन्हें पूरी दुनिया में उच्च सम्मान दिया जाता है। इसलिए यह जानकर खुशी होती है कि भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों की संख्या जो 2006-07 में 7 थी, 2011-12 में बढ़कर 15 हो गई और इसी अवधि के दौरान भारतीय प्रबंध संस्थानों की संख्या 6 से बढ़कर 13 हो गयी। ग्यारह पंचवर्षीय के बाद केंद्रीय, राज्य तथा निजी क्षेत्र के कुल 272 संस्थानों की वृद्धि हुई है। यह स्पष्ट है कि देश में उच्च शिक्षा के संस्थानों में भर्ती विद्यार्थियों की संख्या भी बढ़ी है और यह 2006-07 में 1.39 करोड़ से बढ़कर ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के अंतिम वर्ष 2011-12 में 2.18 करोड़ तक पहुंच गई।
हमारी उपलब्धियों के बावजूद हमें उच्च शिक्षा के स्तर को उठाना होगा। देश में अनुसंधान और नवान्वेषण में पिछड़ा हुआ है। भारतीयों द्वारा 2010 में केवल छह हजार आवेदन पेटेंट के लिए प्रस्तुत किए गए थे जो कि चीनियों द्वारा प्रस्तुत 3 लाख जर्मनों द्वारा प्रस्तुत 1.7 लाख, जापानियों द्वारा प्रस्तुत 4.64 लाख तथा अमरीकियों द्वारा प्रस्तुत 4.2 लाख आवेदनों के मुकाबले मामूली हैं। भारतीयों द्वारा प्रस्तुत आवेदन विश्व में प्रस्तुत कुल आवेदनों के केवल 0.30 प्रतिशत है।
देश में शिक्षा की पहुंच में बढ़ोत्तरी के लिए मुक्त तथा सुदूर शिक्षा जैसे लचीले मॉडलों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। हालांकि इस तरह के कार्यक्रमों में भर्ती बढ़ी है और यह 2006-07 में 27 लाख के मुकाबले 2011-12 में 42 लाख हो गयी परंतु इस दिशा में और प्रयास की जरूरत है। सूचना प्रौद्योगिकी तथा नवान्वेषी पद्धति से नए अवसर खुल सकते हैं तथा इससे ऐसे लोगों, जो कि लचीला अध्ययन विकल्प अपनाना चाहते हैं, को भी शिक्षा के अधिक अवसर प्राप्त होंगे।
मेरा यह मानना है कि बड़े स्तर पर शिक्षा से राष्ट्र निर्माण को प्रोत्साहन मिलता है तथा छोटे स्तर पर यह चरित्र निर्माण को बढ़ावा देती है। मुझे अपनी सभ्यता के दर्शन तथा संस्कृति पर बहुत विश्वास है। मेरा यह भी मानना है कि इस तरह के मूल्यों का समावेश करके प्रगति का मार्ग सशक्त किया जा सकता है। इसलिए मैं देव संस्कृति विश्वविद्यालय द्वारा प्रदान की जा रही शिक्षा के मॉडल से अत्यधिक आश्वस्त हुआ हूं।
मैं एक बार फिर से उन सभी विद्यार्थियों को बधाई देता हूं जिन्हें आज उपाधियां प्राप्त हुई हैं। अब आपके सामने वास्तविक दुनिया है। आप हतोत्साहित न हों। आप में इस विश्वविद्यालय द्वारा जो हुनर, ज्ञान तथा विश्वास भरा गया है, वह आपको अच्छे स्थान पर पहुंचाएगा। ये सबसे अच्छे साधन हैं तथा पूरी दुनिया आपकी है।
धन्यवाद,
जय हिंद!