भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ नीलम संजीव रेड्डी के शताब्दी समारोहों के समापन कार्यक्रम के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

अनंतपुरम, आंध्र प्रदेश : 23.12.2013

डाउनलोड : भाषण भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ नीलम संजीव रेड्डी के शताब्दी समारोहों के समापन कार्यक्रम के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण(हिन्दी, 239.56 किलोबाइट)

Speech by the President of India, Shri Pranab Mukherjee at the Concluding Function of the Centenary Celebrations of the Former President of India, Dr. Neelam Sanjeeva Reddy1. मुझे, भारत के पूर्व राष्ट्रपति, डॉ नीलम संजीव रेड्डी के शताब्दी समारोह के समापन कार्यक्रम में आज आपके बीच उपस्थित होकर अत्यंत प्रसन्नता हुई है। मैं अपने प्रख्यात पूर्ववर्ती को अत्यंत सम्मान के साथ श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं और उनके असाधारण नेतृत्व को मधुर स्मृति के साथ याद करता हूं।

2. डॉ रेड्डी सही मायने में अपनी अंतिम सांस तक धरती के सपूत और किसान बने रहे। उनका जन्म मई 1913 में इस अनंतपुरम जिले के इलुरू के एक कृषक समुदाय में हुआ, जो भारत के एक सबसे श्रद्धेय दार्शनिक और पूर्व राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की कर्मभूमि भी रही है।

3. डॉ. रेड्डी ऐसे व्यक्ति हैं जिनके नाम अनेक उपलब्धियां हैं। वह भारत के सबसे युवा राष्ट्रपति थे जो 1977 से 1982 तक इस पद पर रहे। वह अकेले ऐसे व्यक्ति हैं जो मुख्यमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, केन्द्रीय मंत्री और राष्ट्रपति रहे। डॉ रेड्डी संयुक्त आंध्र प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री थे और वह दो बार मुख्यमंत्री बने। वह दो बार लोकसभा के अध्यक्ष चुने गए। जिस वर्ष उन्होंने लोकसभा में प्रवेश किया, उसी वर्ष वह अध्यक्ष निर्वाचित हुए। वह पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने अध्यक्ष चुने जाते ही पार्टी से इस्तीफा दे दिया और ऐसा करके एक अहम और सराहनीय उदाहरण प्रस्तुत किया।

4. लोकसभा अध्यक्ष के रूप में पहली बार डॉ रेड्डी ने संसद के सदनों की संयुक्त बैठक को राष्ट्रपति के संबोधन के दिन ही चर्चा के लिए अविश्वास मत को मंजूरी दी। वह मानते थे कि परंपराओं और दृष्टांतों का सहारा लेकर जरूरी मामलों पर विलंब नहीं किया जाना चाहिए। अध्यक्ष के तौर पर, उनके कार्यकाल के दौरान लोकसभा के इतिहास में पहली बार एक व्यक्ति को दर्शक दीर्घा से नारे लगाने और सदन के मंच पर पर्चे फेंक कर अवमानना के लिए कारावास की सजा दी गई। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के कल्याण पर समिति की स्थापना डॉ. रेड्डी के अध्यक्षता काल की एक अन्य उपलब्धि थी।

5. डॉ रेड्डी छोटी आयु में ही भारत की आजादी के लिए कार्य करने के महात्मा गांधी के आह्वान से अत्यंत प्रेरित हुए। 1989 में लिखी अपनी पुस्तक ‘विदाउट फीयर और फेवर’ में उन्होंने लिखा ‘अपने जीवन में मैं जो भी सफलता हासिल कर सका, उसके लिए मैं महात्मा गांधी के नेतृत्व का ऋणी हूं, जो व्यक्ति को धूल से उठाकर इंसान बना सकते थे। मैं अपनी युवावस्था में जवाहरलाल नेहरू की एक टिप्पणी से बहुत प्रभावित हुआ था ‘सफलता उन्हें हासिल होती है जो हिम्मत करते हैं और मेहनत करते हैं।’ वास्तव में यह टिप्पणी मेरे जीवन का ध्येय वाक्य रहा।

6. डॉ. रेड्डी, जुलाई 1929 में महात्मा गांधी की अनंतपुर की यात्रा के बाद सोलह वर्ष की आयु में स्वतंत्रता संघर्ष में शामिल हुए। 18 वर्ष की आयु में उन्होंने राष्ट्रीयता-संघर्ष में भाग लेने के लिए अपनी पढ़ाई छोड़ दी। 1938 में 25 वर्ष की आयु में, डॉ रेड्डी आंध्र प्रदेश प्रांतीय कांग्रेस समिति के सचिव चुने गए और दस वर्ष तक इस पद को संभाले रहे।

7. डॉ. रेड्डी 1940 से 1945 के दौरान भारत छोड़ो आंदोलन सहित अनेक बार जेल गए। उन्होंने टी. प्रकाशम, एस. सत्यमूर्ति, के. कामरान और वी.वी. गिरि जैसी विभूतियों के साथ कार्य किया, जिन्होंने उनके विचारों और भावी कार्यकलापों को प्रभावित भी किया।

8. डॉ. रेड्डी 1946 में मद्रास विधानसभा के लिए निर्वाचित हुए और मद्रास कांग्रेस विधायी दल के सचिव बने। वह भारतीय संविधान सभा के सदस्य भी थे। अप्रैल 1949 से अप्रैल 1951 तक उन्होंने तत्कालीन मद्रास प्रांत के मद्य निषेध, आवास और वन मंत्री के रूप में कार्य किया।

विशिष्ट अतिथिगण,

9. डॉ रेड्डी आधुनिक आंध्र पदेश के मुख्य वास्तुकार थे। 1951 की शुरुआत में वह आंध्र प्रदेश कांग्रेस सचिव कमेटी के अध्यक्ष चुने गए। डॉ संजीव रेड्डी उस दौरान उप मुख्यमंत्री के रूप में आंध्र के भविष्य को दिशा देने के लिए 1952 में मुख्यमंत्री टी प्रकाशम के साथ शामिल हो गए। उन्होंने इस राज्य की स्थापना से उत्पन्न प्रशासनिक और एकीकरण की समस्याओं का समाधान ढूंढने का भार अपने मजबूत कंधों पर ले लिया। इस अनुभव ने उन्हें भाषायी पुनर्गठन के फलस्वरूप तेलंगाना को राज्य में मिलाने के बाद संयुक्त आंध्र प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री के तौर पर प्रभावी नेतृत्व प्रदान करने में सक्षम बनाया। डॉ रेड्डी ने नवम्बर 1956 से जनवरी 1960 तक और पुन: मार्च 1962 से फरवरी 1964 तक पूरे 5 वर्ष तक मंख्यमंत्री के रूप में कार्य किया।

10. डॉ रेड्डी में तीन अलग-अलग गुणों- श्रेष्ठ पार्टी नेता, प्रशासक और सांसद का मिश्रण था। उन्होंने अपनी जीवन का एक बड़ा हिस्सा कांग्रेस संगठन के प्रति समर्पित कर दिया और संगठन से सरकार और सरकार से संगठन तक अथक कार्य किया। इंदिरा गांधी के बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष निर्वाचित होने पर 1960 में अपना मुख्यमंत्री पद त्याग देने में उन्हें कोई हिचक नहीं की। वह 1960 से 1962 तक बंगलौर, भावनगर और पटना अधिवेशन में लगातार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए।

11. आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में, डॉ. रेड्डी ने राज्य के विकास और आधुनिकीकरण तथा इसकी जनता की प्रगति के लिए कठोर परिश्रम किया। उन्हें नागार्जुन सागर, श्रीशैलम परियोजना, श्रीराम सागर तथा वंशधारा परियोजनाओं के निर्माण की योजनाओं को स्वरूप प्रदान करने का श्रेय जाता है, जो इस इलाके के विकास के कुछ अत्यंत महत्वपूर्ण पड़ावों में से है। यदि आंध्र प्रदेश को दक्षिण भारत का अन्नकोष माना जाता है तो इसका श्रेय डॉ. नीलम संजीव रेड्डी को जाता है।

12. डॉ. संजीव रेड्डी, सरकार तथा राजनीति में एक आदर्श मॉडल थे। अपने वचन और कार्य में उनकी गरिमा तथा निर्णय लेने और उन्हें अमल में लाने में दृढ़ इच्छा शक्ति के लिए उनकी प्रशंसा की जाती है। 1964 में बस मार्गों के राष्ट्रीयकरण के मुद्दे पर शपथपत्र जमा न करने पर आंध्र प्रदेश सरकार के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय की प्रतिकूल टिप्पणियों के बाद उन्होंने मुख्यमंत्री के रूप में त्यागपत्र देकर सार्वजनिक जीवन में उच्च मानदंड का प्रदर्शन किया।

13. राष्ट्रपति के रूप में डॉ. रेड्डी का कार्यकाल असाधारण राजनीतिक उथल-पुथल का समय था और उन्होंने मोरारजी देसाई, चरण सिंह और इंदिरा गांधी के नेतृत्व में तीन सरकारों को शपथ दिलवाई। डॉ. रेड्डी ने अनेक अहम मुद्दों पर ऐतिहासिक निर्णय लिए। सार्वजनिक जीवन में अपने लम्बे समय और सभी महत्वपूर्ण वर्गों के नेताओं के साथ घनिष्ठ साहचर्य के आधार पर डॉ. रेड्डी राज्य का शासन भलीभांति चला सके। उनके ज्ञान, मिलनसारता और सुगम्यता ने उन्हें सभी वर्गों के लोगों का प्रिय बना दिया। अपने आदर्शवाद और देशभक्ति से उन्होंने देश के सर्वोच्च पद को गरिमा प्रदान की।

14. डॉ. रेड्डी गरीबों के प्रति बहुत करुणा रखते थे। वह प्राय: इस बात पर चिंता व्यक्त करते थे कि भारत के बहुत से लोगों को पोषाहार, वस्त्र, चिकित्सा, सुविधा तथा शिक्षा के न्यूनतम मानक भी प्राप्त नहीं हैं तथा उन्होंने इन खामियों का समाधान ढूंढने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति से प्रयास करने का आह्वान किया। वह भारत के उन परंपरागत मूल्यों के कमजोर होने पर भी अत्यंत चिंतित रहते थे। जिन्होंने भारत को सदियों से शांति से रहने में सक्षम बनाया है।

15. डॉ. रेड्डी अक्सर कहा करते थे कि स्वतंत्र भारत को एक आधुनिक राष्ट्र बनाने के लिए मिलकर कार्य करना भारतीयों के लिए कितना आवश्यक है। 1978 में स्वतंत्रता दिवस पर अपने प्रसारण में डॉ रेड्डी ने कहा, ‘‘जटिल विविधताओं के बावजूद हमारे लोग एक उल्लेखनीय गतिशीलता और साहस की भावना रखते हैं। धैर्य और लगन, सहिष्णुता और सहृदयता की हमारी सुस्थापित परंपराओं से हमें शक्ति मिलती है... तथा हमें आज स्वयं को इस शाश्वत और अमर भारत के प्रति आज स्वयं को समर्पित कर देना चाहिए’’।

16. डॉ. रेड्डी का संदेश आज भी प्रासंगिक बना हुआ है जब हमारे समाज को कई नई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। वे हमें उस महत्वपूर्ण जिम्मेदारी की याद दिलाते हैं जो हमें भारत के नागरिक के तौर पर पूरी करनी है। हमें अपने-अपने लक्ष्यों की प्राप्ति का प्रयास करते हुए इन प्रेरणादायक वचनों की भावना को अपनाना चाहिए। मैं आशा करता हूं कि अनंतपुरमु की जनता, आंध्र प्रदेश की जनता तथा भारत की जनता उन मूल्यों के प्रति ईमानदार रहकर उनकी याद को सम्मान देगी जिनके लिए वे संघर्षरत रहे।

17. आज इस समापन समारोह में आपके बीच उपस्थित होना मैं अपना सौभाग्य मानता हूं। मैं इस अवसर पर, आप सभी को निरंतर प्रगति और समृद्धि के लिए अपनी शुभकामनाएं देता हूं।

धन्यवाद।

जयहिंद!

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