आसियान-भारत विशेष स्मारक शिखर सम्मेलन में भाग लेने वाले राष्ट्राध्यक्षों/शासनाध्यक्षों के सम्मान में आयेजित राज-भोज के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

राष्ट्रपति भवन, नई दिल्ली : 20.12.2012

डाउनलोड : भाषण आसियान-भारत विशेष स्मारक शिखर सम्मेलन में भाग लेने वाले राष्ट्राध्यक्षों/शासनाध्यक्षों के सम्मान में आयेजित राज-भोज के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण(हिन्दी, 235.7 किलोबाइट)

speech

कम्बोडिया के प्रधानमंत्री, महामहिम, सामडेक हुन सेन,

ब्रुनेई दारुस्सलाम के सुल्तान, महामहिम हाजी हसनअल बोलकिया,

आसियान के सदस्य राष्ट्रों के राष्ट्राध्यक्ष एवं शासनाध्यक्ष,

भारत के उपराष्ट्रपति श्री मो. हामिद अंसारी,

भारत के प्रधानमंत्री, डॉ. मनमोहन सिंह,

आसियान के महासिचव, डॉ. सुरिन पित्सुवान,

महामहिमगण, देवियो और सज्जनो,

आसियान-भारत स्मारक शिखर सम्मेलन के समारोह के अवसर पर आप सभी का स्वागत करते हुए मुझे अत्यंत प्रसन्नता हो रही है। इस वर्ष आसियान-भारत विचार-विमर्श भागीदारी अपने एक महत्त्वपूर्ण पड़ाव पर पहुंच गई है। दो दशकों के स्थिर विकास के साथ आसियान-भारत विचार-विमर्श भागीदारी परिपक्व होकर एक कार्यनीतिक भागीदारी में बदल गई है। मेरे ख्याल से यह स्वाभाविक परिपक्वता की निशानी है। यह वास्तव में एक अच्छा अवसर है जब हम अपने रिश्तों के एक नए चरण में प्रवेश कर रहे हैं—जिसमें हम अपने देशों के बीच शांति और समृद्धि के लिए और भी अधिक व्यापक भागीदारी स्थापित करें।

महामहिमगण, भारत में हम आसियान के साथ भागीदारी को विकास तथा आर्थिक प्रगति के लिए संधि के रूप में देखते हैं। हम सभी की शांति एवं स्थाईत्व को बढ़ावा देने की समान परिकल्पना है तथा हम क्षमताओं और अवसरों से भरपूर नए एशिया का भी समान स्वप्न देखते हैं। चुनौतियां सामने आएंगी परंतु हमें अपनी जनता के हित के लिए इनका मिलकर सफलतापूर्वक सामना करने पर भरोसा है।

विशिष्ट अतिथिगण, आसियान तथा भारत की भागीदारी का सार यह है कि यह प्रत्येक भागीदार देश को, सतत् आर्थिक एवं सामाजिक-सांस्कृतिक विकास के लिए तथा विश्व स्तर पर एशिया की बढ़ती प्रासंगिकता में सहयोग देने के लिए, अपने राष्ट्रीय कार्यक्रमों को मजबूत करने में सहायता प्रदान करती है। एशिया-प्रशांत क्षेत्र आज राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा संबंधी मुद्दों पर वैश्विक विचार-विमर्श का केंद्र बन गया है। अत: यह स्वाभाविक ही है कि आसियान और भारत, अपनी भौगोलिक निकटता और एक-दूसरे के लिए अनुपूरक क्षमताओं के कारण, इस क्षेत्र में नए आर्थिक तथा सुरक्षा ढांचे को तय करने के लिए एक साथ खड़े हों। हम इसके लिए मजबूत गठबंधन स्थापित करने के लिए आसियान भागीदारी में शामिल हुए और वर्ष 1992 में सेक्टोरल भागीदार, वर्ष 1996 में पूर्ण विचार-विमर्श भागीदार तथा 2002 में शिखर स्तरीय भागीदार बने। पिछले दशक में जैसे-जैसे हमारी अपनी-अपनी क्षमताओं में वृद्धि हुई, हमारी भागीदारी और भी अधिक प्रासंगिक हुई है। अब हम अपने सहयोग को व्यापक प्रगाढ़ता प्रदान करने के लिए एक ढांचागत व्यवस्था स्थापित करने में सफल हुए हैं; और हमने अपने सामूहिक हित में कई दूरगामी तथा सुव्यवस्थित परियोजनाएं और कार्यक्रम विकसित कर लिए हैं।

महामहिमगण, भारत इस क्षेत्र में आसियान की केंद्रीय और प्रमुख भूमिका विकसित होने को निरंतर समर्थन देता रहा है। हम वर्ष 2015 तक आसियान समुदाय, आसियान संबद्धता के लिए मास्टर प्लान, आसियान एकीकरण के लिए पहल तथा क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी के आपके उद्देश्यों का समर्थन करते हैं।

मुझे पिछले वर्ष आसियान और भारत के लोगों के बीच कार्यक्रमों में महत्त्वपूर्ण वृद्धि देखकर खुशी हो रही है। कार रैली में आसियान तथा भारतीय प्रतिभागी हमारे बीच मौजूद स्नेह के प्रगाढ़ संबंधों का प्रतीक हैं। उन्हें अपनी 22 दिनों की 8 आसियान देशों तथा भारत की अपनी यात्रा के दौरान जो स्नेह तथा स्वागत मिला, उससे यह सिद्ध होता है। हमारे 11 देशों ने इस स्मारक कार्यक्रम में उत्साह तथा बहुत प्रत्याशा के साथ भाग लिया है।

देवियो और सज्जनो, आसियान और भारत के बीच भौगोलिक जुड़ाव रणनीतिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। हम अपने दीर्घकालिक समुद्री संबंधों वाले पड़ोसी हैं। हमारे बीच सदियों से विचारों का, बौद्धिकता का, व्यापार का, तथा शिक्षा का संबंध रहा है। अब हम इन संबंधों में ‘डिजिटल’ पहलू भी जोड़ रहे हैं। आसियान-भारत पर रैली तथा आई.एन.एस. सुदर्शिनी नामक प्रशिक्षण जलयान की आसियान देशों की यात्रा से न केवल उस मार्ग में सद्भावना और जागरूकता पैदा हुई है जहां से वे गुजरे हैं बल्कि इससे बहुत बड़ी संख्या में लोग आभासी रूप से एक-दूसरे के संपर्क में आए। ये वे लोग थे जो कि सीधे इन कार्यक्रमों पर नज़र रखे हुए थे और इलैक्ट्रानिक मेल, ब्लाग और ट्विटर के बढ़ते नेटवर्क से एक-दूसरे से बातचीत कर रहे थे।

मैंने यह भी देखा है कि पर्यटन, कृषि, पर्यावरण, नवीकरणीय ऊर्जा, सूचना प्रोद्योगिकी तथा अंतरिक्ष के प्रमुख क्षेत्रों में बढ़ते सहयोग से हमें भावी चुनौतियों का अनुमान लगाने और उनका समाधान निकालने के लिए नवान्वेषी तरीके विकसित करने का अवसर मिलता है। क्षमता तथा तालमेल बनाने, अपनी आपसी संबद्धता में सुधार लाने, और आपस में आर्थिक व्यापार तथा निवेश को प्रोत्साहित करने पर ध्यान केंद्रित करना हमारे मानव संसाधनों के विकास तथा अपनी जनता के लिए स्थाईत्व और समृद्धि लाने के लिए महत्त्वपूर्ण है। हमारा व्यापार हमारी अपेक्षाओं से कहीं अधिक रहा है। अब हम अपने लघु एवं मध्यम उद्यमों और उद्यमिता के सेक्टरों के बीच सहयोग बढ़ाने के रास्ते तलाश रहे हैं। हमें और अधिक महत्त्वाकांक्षी करार करके अपनी आपसी अनुपूरकताओं से पूरा लाभ उठाना चाहिए; हमें निवेशों तथा सामान के आदान-प्रदान को प्रोत्साहन देना चाहिए, और अपने युवाओं की क्षमताओं को एकत्र करना चाहिए; हमें अपने अपने देशों में औद्योगिक सेक्टर के संयुक्त प्रयासों को सुविधा प्रदान करनी चाहिए तथा हमें अपनी जनता की आकांक्षाओं और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए अपने क्षेत्र में अवसंरचनात्मक क्षमता में सुधार लाना चाहिए।

महामहिमगण, आज स्मारक शिखर सम्मेलन की पूर्ण बैठक में आपके विचार-विमर्श ने एक एजेंडा तय कर लिया है तथा आने वाले समय में हमारे सामूहिक प्रयासों के लिए मार्ग दिखा दिया है। इस शिखर सम्मेलन से जो परिकल्पना वक्तव्य सामने आया है। उसमें आसियान-भारत प्रतिष्ठित व्यक्ति समूह के द्वारा की गई कुछ शानदार सिफारिशों को शामिल किया गया है जो कि हमारी भागीदार की पूर्ण क्षमता का उपयेग करने के लिए है। अब यह हमारी सरकारों की जिम्मेदारी है कि वे उन सिफारिशों पर कार्रवाई करने के लिए विशिष्ट प्रस्ताव तैयार करें जिन पर कार्रवाई की सामूहिक सहमति बनी है।

भारत की आसियान के साथ भागीदारी जिस रूप में वृद्धि हुई है वह वृद्धि हमारी सामूहिक क्षमता में, हमारे बढ़ते आर्थिक एकीकरण में तथा एशिया-प्रशांत में बन रहे राजनीतिक-सुरक्षा संदर्भों के अनुरूप है। हमने शांति, प्रगति और साझी समृद्धि के लिए आसियान-भारत भागीदारी (2010-15) को कार्यान्वित करने की कार्य योजना के तहत सहयोग के लिए एक मजबूत ढांचा स्थापित कर लिया है।

महामहिमगण, आसियान देश भारत की लुक ईस्ट नीति के केंद्र में हैं। आसियान, भारत प्रशांत क्षेत्र में हमारा निरंतर स्वाभाविक भागीदार है। मैं इस बात पर जोर देना चाहूंगा कि हमारी भावी प्राथमिकताओं में हमारे ज्ञान तथा दक्षता सेक्टरों में जारी सहयोग को विशेष महत्त्व दिया जाना चाहिए तथा हमारे पेशेवरों, उद्यमियों, विद्यार्थियों तथा पर्यटकों को हमारे देशों के बीच आवागमन को आसान बनाया जाना चाहिए। समुद्री सुरक्षा तथा आतंकवाद विरोधी मुहिमों में हमारी बढ़ती भूमिका इन साझा चुनौतियों का सामना करने के लिए जरूरी है। हमारी सांस्कृतिक निकटता, जिसका एक उदाहरण हमने आज देखा, तथा भौगोलिक निकटता, साझा प्राथमिकताओं के चलते आसियान-भारत संबंध अधिक व्यापक तथा सामरिक प्रकृति के बनते दिखाई दे रहे हैं।

जैसा कि हमने परिकल्पना वक्तव्य में उल्लेख किया है, आसियान और भारत के बीच और नजदीकी एकीकरण उन देशों के लिए आपसी लाभदायक होगा जो आज इसकी ऐतिहासिक शाम को यहां मौजूद हैं।

महामहिमगण, इन्हीं शब्दों के साथ, आइए हम सब आसियान-भारत सामरिक भागीदारी के सुदृढ़ भविष्य के लिए तथा हम सभी की जनता की प्रगति और खुशहाली के लिए तथा हमारी स्थाई मैत्री के लिए कामना करें।

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