अर्जुन सिंह स्मृति व्याख्यान में भारत के राष्ट्रपति का अभिभाषण
नेहरू स्मारक संग्रहालय, नई दिल्ली : 09.04.2016
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1. मैं हमारे राष्ट्र के एक महान नेता तथा सामान्य जन के सुदृढ़ समर्थक स्वर्गीय श्री अर्जुन सिंह की स्मृति में यहां उपस्थित होना तथा प्रमुख संबोधन देना अपना सौभाग्य मानता हूं। सर्वप्रथम मैं,अर्जुन सिंह सद्भावना फाउंडेशन तथा मध्य प्रदेश फाउंडेशन को एक ऐसे व्यक्ति की स्मृति में यह व्याख्यान आयोजित करने के लिए धन्यवाद देता हूं जो निर्धन और शोषितों,पिछड़ों और उपेक्षितों के समर्थक थे।
2. मार्च, 2011में अपनी मृत्यु के बाद अर्जुन सिंहजी प्रशासनिक दक्षता,राजनीतिक नेतृत्व तथा कमजोर वर्गों के संरक्षण में बिताए गए जीवन की एक समृद्ध विरासत छोड़ कर गए। स्वर्गीय श्री अर्जुन सिंहजी के आदर्शों को आगे बढ़ाने के लिए इस वर्ष फरवरी में अर्जुन सिंह सद्भावना फाउंडेशन के रूप में एक संस्थान की स्थापना की गई थी। मुझे बताया गया है कि इस ट्रस्ट का प्रमुख उद्देश्य समाज के कमजोर वर्गों तथा महिला सशक्तीकरण के लिए कार्य करना है। यह विकास के मुख्य साधन के तौर पर शिक्षा को प्रयोग करते हुए,गरीब और जरूरतमंद के उत्थान के लिए कार्य आरंभ करेगा। यह खुशी की बात है कि इसके ट्रस्टियों में सार्वजनिक जीवन के ऐसे विशिष्ट नेता शामिल हैं जिनका अर्जुन सिंहजी के साथ लंबा साहचर्य रहा है। मुझे भी उनके साथ जुड़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। वह अनेक सरकारी और उससे बाहर के क्षेत्र में चार दशक से ज्यादा सार्वजनिक जीवन के सम्मानित सहकर्मी थे।
देवियो और सज्जनो,
3. स्वर्गीय अर्जुन सिंहजी का एक सराहनीय राजनीतिक जीवनवृत्त था जो पांच दशक तक फैला हुआ था। वह1957 में पहली बार राज्य विधान सभा के सदस्य बने और अगले28 वर्ष तक बने रहे। उन्होंने शिक्षा सहित विभिन्न पदों पर अनेक वर्षों तक राज्य के मंत्री के रूप में कार्य किया।1980 में कांग्रेस पार्टी द्वारा विधान सभा चुनावों में पूर्ण बहुमत प्राप्त करने के बाद वह मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। इस प्रकार अर्जुन सिंह जी पार्टी के पदों पर कार्य करते हुए राज्य के सर्वोच्च ओहदे पर पहुंचे। उन्होंने शीघ्र ही एक दक्ष प्रशासक के रूप में एक प्रभाव छोड़ा। 1980से 1985 तक मुख्यमंत्री के रूप में वंचित लोगों के कल्याण के लिए विभिन्न योजनाएं शुरू कीं तथा राज्य के चहुंमुखी विकास के लिए अनेक प्रयोजनाओं का सूत्रपात किया।
4. 1985 में मध्य प्रदेश के दोबारा मुख्यमंत्री निर्वाचित होने पर भी उन्होंने इस पद से इस्तीफा दे दिया। वह मार्च1985 में पंजाब के राज्यपाल बने। अपने कार्यकाल के दौरान अर्जुन सिंह ी ने पंजाब राज्य में शांति और सौहार्द की बहाली की। वह नवम्बर1985 तक राज्यपाल रहे,उसके बाद वह दिल्ली आ गए। आठवीं लोकसभा में वह दक्षिण दिल्ली निर्वाचन क्षेत्र से चुने गए और उन्हें वाणिज्य मंत्री के रूप में शपथ दिलवाई गई। बाद में उन्होंने अक्तूबर1986 से फरवरी 1988तक संचार मंत्री के रूप में कार्य किया। तदुपरांत,वह 1988-89 में लगभग एक वर्ष के लिए मध्यप्रदेश के दोबारा मुख्यमंत्री बने।
देवियो और सज्जनो,
5. स्वर्गीय अर्जुन सिंहजी ने राष्ट्रीय स्तर पर एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।1991 में दसवीं लोकसभा में निर्वाचित होने पर अर्जुन सिंह जी ने मानव संसाधन विकास मंत्री के रूप में तीन वर्ष तक नरसिम्हा राव मंत्रिमंडल में कार्य किया। इसके बाद वह वर्ष2000 और 2006में दो बार राज्यसभा के लिए चुने गए। वह दोबारा डाक्टर मनमोहन सिंह के मंत्रिमंडल में मानव संसाधन विकास मंत्री बने जिसके अंतर्गत उन्होंने2004 से 2009तक पांच वर्ष के लिए उत्कृष्टता के साथ कार्य किया। अर्जुन सिंह जी का आठ वर्ष का मानव संसाधन विकास मंत्री के रूप में कार्यकाल मौलाना अबुल कलाम आजाद के बाद सबसे लंबा था। यह स्वाभाविक है कि भारत के शिक्षा परिदृश्य पर अर्जुन सिंह जी की नीतियों की गहरी छाप है।
6. मानव संसाधन विकास मंत्री के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान,उच्च शिक्षा क्षेत्र का तीव्र विकास हुआ। ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के प्रस्तावों से केंद्रीय उच्च शिक्षण संस्थानों की संख्या में नए संस्थानों की स्थापना अथवा मौजूदा संस्थानों के उन्नयन के जरिए काफी वृद्धि हुई।2006-07 से 2011-12की योजना अवधि के दौरान केंद्रीय विश्वविद्यालय की संख्या बढ़कर21, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों की8,भारतीय प्रबंधन संस्थानों की 7 तथा राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों की10 हो गई। आज भारत में 730विश्वविद्यालय हैं तथा36,000डिग्री प्रदान करने वाले कॉलेज हैं।
देवियो और सज्जनो,
7. दुर्भाग्यवश हमारे अधिकांश संस्थानों में शिक्षा की गुणवत्ता का स्तर नीचा है। यदि हम अपने अतीत पर गौर करें तो हमें नालंदा,तक्षशिला,विक्रमशिला, सोमपुरा और ओदांतपुरी जैसे उच्च शिक्षा की प्रख्यात पीठों की जानकारी मिल सकती है जिनका ईसा पूर्व छठी शताब्दी से आगे18 शताब्दियों तक विश्व के उच्च शिक्षा तंत्र पर आधिपत्य था। विश्वभर के विद्वान इन ज्ञान केंद्रों में उमड़ा करते थे। आज एक भिन्न परिदृश्य दिखाई देता है। बहुत से मेधावी भारतीय विद्यार्थी विदेशी विश्वविद्यालयों से उच्च शिक्षा प्राप्त करते हैं। नोबेल पुरस्कार विजेता हरगोविंद खुराना,सुब्रमण्यम चंद्रशेखर,डॉ अमर्त्य सेन और डॉ. वेंकटरमन रामकृष्णन ने उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाने से पहले भारतीय विश्वविद्यालयों में स्नातक अथवा स्नातकोत्तर अध्ययन किया था।1930 के बाद से भारतीय विश्वविद्यालय के किसी विद्वान ने भी नोबेल पुरस्कार नहीं जीता है। यह विडंबना है कि हमारा उच्च शिक्षा तंत्र,जो विश्वस्तरीय विद्वान पैदा करने में सक्षम हैं,विदेशी विश्वविद्यालयों से मात खा जाता है।
देवियो और सज्जनो,
8. हमारे किसी भी विश्वविद्यालय में इससे पहले वैश्विक विश्वविद्यालय वरीयताओं में सर्वोच्च200 स्थानों में जगह नहीं बनाई थी। मैं उच्च शिक्षा संस्थानों के साथ अपनी बातचीत में यह दोहराता रहा हूं कि वरीयता प्रक्रियाओं को समुचित महत्व दिया जाना चाहिए। वास्तव में,भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान तथा कुछ अन्य केंद्रीय संस्थानों ने अधिक व्यवस्थित तरीके और सक्रिय दृष्टिकोण के साथ वरीयता एजेंसियों के सम्मुख अपने विवरण प्रस्तुत करने के प्रयास आरंभ कर दिए हैं। मुझे प्रसन्नता है कि बेहतर परिणाम आने लगे हैं। भारतीय संस्थान, एक ने नहीं बल्कि दो ने पहली बार एक प्रतिष्ठित एजेंसी की विश्व वरीयता के200 सर्वोच्च विश्वविद्यालयों में पहली बार स्थान प्राप्त किया है। दो अन्य भारतीय संस्थानों ने एक अन्य अंतरराष्ट्रीय एजेंसी द्वारा विश्व के सर्वोच्च20 लघु विश्वविद्यालयों में स्थान बनाया है। मैं उम्मीद करता हूं कि यह प्रवृत्ति जारी रहेगी और शीघ्र ही हम संपूर्ण विश्व के प्रतिभावान लोगों को आकर्षित कर पाएंगे।
9. भारतीय उच्च शिक्षा संस्थानों को विश्वस्तरीय संस्थान के रूप में उभरने में मदद के लिए हाल ही में एक राष्ट्रीय संस्थागत वरीयता ढांचा आरंभ किया गया है। यह अध्यापन,शिक्षण और संसाधन, अनुसंधान और पेशेवर तरीकों,स्नातक परिणाम, पहुंच और समावेशन तथा अभिज्ञाता जैसे मापदंडों के आधार पर संस्थानों को वरीयता देता है।
10. भारतीय विश्वविद्यालयों में वास्तव में विश्व के अग्रणी संस्थान बनने की क्षमता है बशर्ते कि हम शैक्षिक स्वतंत्रता सुनिश्चित करें। इसके लिए शैक्षिक प्रबंधन में अत्यावश्यक सुधार आवश्यक हैं। हमारे संस्थानों को शैक्षिक कार्यकलाप के प्रत्येक क्षेत्र चाहे वह अध्यापन हो,मूल्यांकन,अनुसंधान हो या परियोजना कार्य हो,में उत्कृष्टता प्राप्त करनी चाहिए। शिक्षण को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए अध्यापन प्रणाली को परिष्कृत किया जाना चाहिए,पाठ्यक्रम का नियमित अद्यतन किया जाए,एक अंतरविधात्मक दृष्टिकोण अपनाया जाए तथा मूल्यांकन तंत्र में सुधार किया जाए। भौतिक ढांचे में सुधार होना चाहिए। उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए मूल क्षमताओं की पहचान करनी होगी तथा उत्कृष्ट केंद्रों को प्रोत्साहन देना होगा। गुणवत्ता के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए प्रत्येक संस्थान का मापदंड तथा प्रत्यायन करना होगा।
देवियो और सज्जनो,
11. पाठ्यक्रम निर्माण और परियोजना मार्गदर्शन में उद्योग कर्मियों की भागीदारी,अध्यक्ष पदों के प्रायोजन तथा विकास केंद्रों और प्रयोगशालाओं की स्थापना के संबंध में उद्योग के साथ उपयुक्त संयोजन से उच्च शिक्षा संस्थानों को लाभ मिल सकता है। उद्योग-संयोजन कक्ष की स्थापना इन कार्यकलापों को तेज कर सकती है।
देवियो और सज्जनो,
12. अनुसंधान और नवान्वेषण देश की उत्पादन क्षमता को बढ़ाने के आधार हैं। हमारा भावी विकास मौजूदा प्रौद्योगिकी के साथ हमारे संसाधनों के प्रयोग से नहीं बल्कि अधिक उन्नत प्रौद्योगिकी के माध्यम से इनके बेहतर प्रयोग से होगा। दुर्भाग्यवश हमारे देश के अनुसंधान में निवेश कम हो रहा है। अनुसंधान और विकास सकल घरेलू उत्पाद का मात्र0.8 प्रतिशत है। इसकी तुलना में जापान का3.6 प्रतिशत का अमरीका का 2.7 प्रतिशत तथा चीन का 2.0प्रतिशत है। उच्च शिक्षा और अनुसंधान संस्थानों को अनुसंधान कार्य के प्रमुख स्थान बनाना होगा। एक सुदृढ़ अनुसंधान तंत्र के निर्माण के लिए सहयोगात्मक साझेदारी जैसे उपाय तथा अनुसंधान प्रतिभाओं को आकर्षित और उन्हें बनाए रखने के लिए बेहतर वित्तीय प्रोत्साहन की जरूरत है। विद्यार्थियों में वैज्ञानिक प्रवृत्ति तथा जिज्ञासा की भावना पैदा करने के लिए स्नातक स्तर पर अनुसंधान को बढ़ावा देना चाहिए।
13. भारत जैसे देश को नवीकरणीय ऊर्जा,जलवायु परिवर्तन,पेयजल,स्वच्छता तथा शहरीकरण जैसे मुद्दों के लिए नवान्वेषी समाधानों की आवश्यकता है। इन विकास चुनौतियों के लिए उच्च शिक्षा प्रणाली की ओर से प्रेरणादायी रुचि की आवश्यकता है। पिछले वर्ष नवम्बर में एक अखिल भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान तथा भारतीय विज्ञान शिक्षा संस्थान की पहल-इंप्रिंट इंडिया कार्यक्रम में 10विषयों की पहचान की गई है जिनसे राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों द्वारा किए गए अनुसंधान को समाज की तात्कालिक आवश्यकताओं के साथ जोड़ा जाएगा।
14. शिक्षण संस्थानों की भूमिका अध्यापन और कक्षाओं से भी आगे है। उनका विद्यार्थियों को जिम्मेदार व्यक्ति बनाने का दायित्व है। उन्हें विद्यार्थियों में मातृभूमि के प्रति प्रेम,कर्तव्य निर्वहन, सभी के प्रति सहृदयता,बहुलवाद के प्रति सहनशीलता,महिलाओं का सम्मान, जीवन में ईमानदारी,आचरण में संयम, कार्य के प्रति दायित्व तथा अनुशासन जैसे सभ्यतागत मूल्यों का संचार करना होगा।
देवियो और सज्जनो,
15. एक बहुलवादी लोकतंत्र में नागरिकों,विशेषकर युवाओं में सहिष्णुता, असहमतिपूर्ण विचारों के प्रति सम्मान तथा धैर्य के मूल्य पैदा करने आवश्यक हैं। इस प्रमुख दर्शन को निरंतर जारी रखना होगा। भारत की शक्ति इसकी अनेकता में निहित है।
16. भारत 1.3बिलियन लोगों, 122 भाषाओं, 1600बोलियों और 7 पंथों वाला एक बहुआयामी राष्ट्र है। पंडित जवाहर लाल नेहरू के शब्दों में, ‘यह देश मजबूत परंतु अदृश्य सूत्रों से एकताबद्ध है।’हमारे देश की अनेकता एक सच्चाई है। इसे कुछ लोगों की सनक और मनमानी के कारण कल्पना में नहीं बदला जा सकता। हमारे समाज की बहुलता सदियों के दौरान विचारों के आत्मसात्करण के माध्यम से पैदा हुई है। संस्कृति,आस्था और भाषा की अनेकता ने भारत को विशिष्ट बना दिया है। हम सहिष्णुता से शक्ति ग्रहण करते हैं। यह शताब्दियों से हमारी सामूहिक चेतना का भाग रही है। यह कारगर है और हमारे लिए एकमात्र हितकारी रास्ता है। सार्वजनिक विचारों में विविधताएं होती हैं। हम बहस कर सकते हैं। हम सहमत नहीं हो सकते हैं। परंतु हम विचारों की विविधता के अत्यावश्यक अस्तित्व को नहीं नकार सकते हैं। अन्यथा हमारे विचार प्रक्रिया का प्रमुख स्वरूप छिन्न-भिन्न हो जाएगा।
देवियो और सज्जनो,
17. गांधीजी ने कहा है, ‘धर्म एकता की शक्ति है;हम इसे संघर्ष का विषय नहीं बना सकते।’भारत में आस्थाओं की समरसता उस विश्व के सम्मुख एक महत्वपूर्ण नैतिक उदाहरण के रूप में उपस्थित है जहां अनेक क्षेत्रों को सांप्रदायिक संघर्षों ने नष्ट कर दिया है। हमें विभिन्न समुदायों के बीच निरंतर सद्भावना को बनाए रखने के लिए काम करना होगा। यदा-कदा सांप्रदायिक सौहार्द की निहित स्वार्थी तत्वों द्वारा परीक्षा ली जाएगी। इसलिए हमें कहीं भी अपना घृणात्मक रूप दिखाने वाले सांप्रदायिक संघर्ष के प्रति सचेत रहना होगा। विधि शासन किसी भी चुनौतिपूर्ण स्थिति से निपटने का एकमात्र आधार होना चाहिए। यह हमारा लोकतांत्रिक आधार है जो हमेशा विद्यमान रहना चाहिए।
18. लोकतंत्र का अर्थ संख्या ही नहीं है बल्कि सर्वसम्मति निर्माण भी है। हाल के समय में यह देखा गया है कि जनसाधारण राष्ट्र के मामलों से जुड़ा हुआ है। हमें अराजकता को कोई स्थान नहीं देना है,कुशल लोकतंत्र में ठोस नीतियों के निर्माण के लिए जनमत को ग्रहण करने के साधन और माध्यम होने चाहिए।
देवियो और सज्जनो,
19. श्री अर्जुन सिंहजी ऐसा नेता थे जिनका दिल और दिमाग जमीन से जुड़ा हुआ था। उन्होंने सत्ता के समक्ष अपनी सरलता कभी नहीं छोड़ी ना ही उन्होंने जनसाधारण के प्रति चिंता का त्याग किया। उन्होंने स्वयं को धर्मनिरपेक्ष और लोकतंत्र के उन मूल्यों पर आधारित एक सशक्त राष्ट्र निर्माण के प्रति समर्पित कर दिया जिनसे वह अत्यंत प्रेम करते थे। उन्होंने कांग्रेस पार्टी के महत्वपूर्ण पद संभाले तथा वह एक योग्य राजनीतिक संयोजक थे। उन्हें राजनीतिक मुद्दों और उनके प्रभाव की गहरी समझ थी जो किसी भी राजनीतिक स्थिति से निपटने का एक गुण था।
20. मैं उम्मीद करता हूं कि श्री अर्जुन सिंहजी की स्मृति में स्थापित यह फाउंडेशन उनके द्वारा समर्थित कार्यों को आगे बढ़ाएगा और उनके संजोए हुए आदर्शों पर खरा उतरेगा। यह उनके कार्य के प्रति सबसे उपयुक्त श्रद्धांजलि होगी। मैं इस पहल के लिए श्रीमती अर्जुन सिंह (सरोज कुमारी) की सराहना करता हूं। फाउंडेशन की स्थापना में शामिल परिवार और हितैषियों को मेरी शुभकामनाएं।
धन्यवाद।
जयहिन्द।