अंतरराष्ट्रीय गांधी कुष्ठ रोग पुरस्कार-2013 प्रदान किए जाने के अवसर पर, भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण
राष्ट्रपति भवन, नई दिल्ली : 15.02.2014
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देवियो और सज्जनो,
1. मुझे अंतरराष्ट्रीय गांधी कुष्ठ रोग पुरस्कार प्रदान किए जाने के अवसर पर आपके बीच उपस्थित होकर वास्तव में प्रसन्नता हो रही है। मैं वर्ष 2013 के लिए इस पुरस्कार के प्राप्तकर्ताओं -प्रो. गौचेंग झांग तथा डॉ. वी.वी. डोंगरे को हार्दिक बधाई देता हूं जिन्होंने उपचार, प्रशिक्षण और अनुसंधान के माध्यम से कुष्ठ रोग को मिटाने के लिए अपने जीवन के अनेक दशक समर्पित कर दिए। वे मानव हित की सेवा के लिए हमारी भूरि-भूरि प्रशंसा के पात्र हैं। मुझे उम्मीद है कि उनका योगदान बहुत से लोगों को इस सामाजिक बुराई के खिलाफ लड़ाई में शामिल होने तथा कुष्ठ रोग से पीड़ित लोगों को सशक्त बनाने के लिए प्रेरित करेगा।
2. गांधी स्मृति कुष्ठ रोग फाउंडेशन द्वारा अंतरराष्ट्रीय गांधी पुरस्कार कुष्ठ रोग से पीड़ित लोगों के जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाने में व्यक्तियों और संस्थाओं के सराहनीय योगदान का सम्मान करके कुष्ठ रोग के प्रति महात्मा गांधी की सेवा तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण की स्मृति में स्थापित किया गया है।
3. कुष्ठ रोगियों के प्रति महात्मा गांधी की करुणा के बारे में सभी जानते हैं। वह इस रोग के सामाजिक आयामों को जानते थे तथा उन्होंने कुष्ठ रोगियों को सामाजिक मुख्य धारा में शामिल करने के लिए अथक कार्य किया। एक ऐसे समय में, जबकि रोग के बारे में अज्ञानता अपनी चरम सीमा पर थी, उन्होंने उदाहरण प्रस्तुत करते हुए अक्सर व्यक्तिगत रूप से कुष्ठ रोगियों की देखभाल की। कुष्ठ रोगग्रस्त लोगों के सामाजिक बहिष्कार को समाप्त करने के उनके प्रयास रोग के प्रति जागरूकता फैलाने में काफी सफल रहे।
देवियो और सज्जनो,
4. अनेक शताब्दियों तक कुष्ठ रोग एक भयानक और लाइलाज बीमारी बना हुआ था। रोगियों को घृणा से देखा जाता था, उनका बहिष्कार किया जाता था और उनसे अमानवीय व्यवहार किया जाता था। अब वैज्ञानिकों और अनुसंधानकर्ताओं के अनवरत प्रयासों की बदौलत कुष्ठ रोग का धब्बा और उसके खिलाफ संकीर्णता काफी कम हो गई है। हमने इसकी समाप्ति में सफलता प्राप्त कर ली है और अब कुष्ठ रोग के उन्मूलन की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।
5. इस रोग की बहुतायत वाले अधिकांश देशों में, राष्ट्रीय और उपराष्ट्रीय अभियानों तथा इसे एक जन स्वास्थ्य समस्या के रूप में इसके उपचार की सघन कार्यनीतियों के जरिए कुष्ठ रोग नियंत्रण में कफी सुधार हो पाया है। यह सुधार रोग के इलाज के प्रभावी बहु-दवा उपचार की उपलब्धता, जागरूकता बढ़ने तथा प्रौद्योगिकी तक पहुंच से संभव हो पायान है।
6. 1950 में स्थापित गांधी स्मृति कुष्ठ रोग फाउंडेशन ने रोग के उन्मूलन तथा रोग से जुड़े पूर्वाग्रह को मिटाने में अग्रणी कार्य किया है। ऐसे समय में जबकि कुष्ठ रोगियों से नफरत की जाती थी तथा सामाजिक रूप से उनको अलग-थलग कर दिया जाता था, फाउंडेशन ने कुष्ठ रोगियों के सामाजिक मुख्य धारा में एकीकरण को सुनिश्चित करने के लिए कार्य किया।
7. 2012-13 में, भारत में प्रति 10000 की जनसंख्या पर 0.68 की दर से लगभग 83000 कुष्ठ के मामले दर्ज किए गए। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि पहली अप्रैल, 2012 तक 33 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने प्रति 10000 लोगों पर एक मामले से कम कुष्ठ निवारण का स्तर हासिल किया गया था। 640 में से 542 जिलों में भी मार्च, 2012 तक इसका उन्मूलन हो चुका था।
8. इसके बावजूद, यह चिंता का विषय है कि निरंतर नए मामले सामने आ रहे हैं तथा रोग के उच्च सघनता वाले क्षेत्र अभी मौजूद हैं। छत्तीसगढ़ राज्य और केंद्र शासित दादर और नगर हवेली में अभी भी प्रति 10000 लोगों की तुलना पर 2 और 4 के बीच दर मौजूद है। बिहार, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल जहां पहले इसका उन्मूलन हो चुका था, वहां वर्तमान वर्ष में कुष्ट के मामलों में थोड़ी वृद्धि दिखाई दी है। मैं समझता हूं कि 2102-13 में 209 उच्च सघनता वाले जिलों की पहचान की गई है जिन पर हमें ध्यान देने की जरूरत है।
9. आज जरूरत है कि हम कुष्ठ रोग के मामलों का शीघ्र पता लगाने, समुचित उपचार की समतापूर्ण पहुंच उपलब्ध कराने तथा निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में एकीकृत कुष्ठ निदान सेवाएं उपलब्ध करने की दिशा में अपने प्रयासों में तेजी लाएं। वर्षों से कुष्ठ रोग मानवता पर एक धब्बे के समान बना हुआ है। चिकित्सकीय स्थिति से कहीं अधिक इस बीमारी के साथ जुड़ी सामाजिक वर्जना चिंता का विषय है। समर्थन तथा सूचना के प्रसार द्वारा उन लोगों का सशक्तीकरण करने की जरूरत है जिनके साथ कुष्ठ रोग के कारण सामाजिक भेदभाव किया गया है। कुष्ठ रोग के लिए सामाजिक चुनौतियां अभी बनी हुई हैं, परंतु इसी के साथ यह देखकर खुशी होती है कि संयुक्त राष्ट्र ने कुष्ठ रोग से ग्रस्त लोगों के साथ भेदभाव के विरुद्ध संकल्प पारित किया है तथा यह प्रयास किए जा रहे हैं कि ऐसे कानूनों को समाप्त किया जाए जो कुष्ठ रोग से ग्रस्त व्यक्तियों को समाज में योगदान देने से रोकते हैं।
देवियो और सज्जनो,
10. प्रत्येक वर्ष लगभग 250000 कुष्ठ रोग के नए मामलों का पता चलता है, जिनमें से लगभग 60 प्रतिशत भारत में हैं। कुष्ठ नियंत्रण गतिविधियों की प्रमुख चुनौती विशेषकर निम्न संसाधन के माहौल पर विशेष ध्यान और समर्पण की है, जहां पहुंच की समानता एक मुद्दा बना हुआ है। यह आवश्यक है, अन्यथा कुष्ठ नियंत्रण के सम्बन्ध में जो उपलब्धियां हासिल की गई हैं, वे बेकार हो जाएंगी। कुष्ठ की विशेषज्ञ सेवाएं अब सतत या किफायती नहीं हैं। अब कुष्ट रोग का जल्दी से पता लगाने तथा उपचार करने के लिए सामान्य स्वास्थ्य सेवा प्रणाली के सभी पहलुओं को सतर्क करने की जिम्मेदारी है ताकि सामान्य स्वास्थ्य सेवाओं के अंतर्गत कुष्ठग्रस्त लोगों की देखभाल हो सके।
11. विश्व स्वास्थ्य संगठन की विशेषज्ञ समिति ने कुष्ठ रोग के कारण नए रोगियों की निशक्तता की दर को वर्ष 2020 तक घटाकर एक मिलियन प्रति एक व्यक्ति करने की चुनौती निर्धारित की है। इस चुनौती को केवल बहुपक्षीय तथा एकीकृत तरीके से पूरा किया जा सकता है। इस अवसर पर, मैं सभी भागीदारों से आग्रह करता हूं कि एकजुट होकर कुष्ठ रोग के संपूर्ण उन्मूलन के लिए समन्वित प्रयास करें। मैं गांधी स्मृति कुष्ठ रोग फाउंडेशन तथा इस महती कार्य से जुड़े सभी लोगों को उनके प्रयासों के सफल होने की शुभकामनाएं देता हूं।
धन्यवाद,
जय हिंद!