अगले पांच वर्षों में भारत के खाद्य उत्पादन को दोगुना करने पर राष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण
विज्ञान भवन, नई दिल्ली : 01.02.2013
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मुझे आज कृषि मंत्रालय तथा कृषि केयर फैडरेशन ऑफ इण्डिया द्वारा ‘‘अगले पांच वर्षों में भारत के खाद्य उत्पाद को दोगुना करने’’ पर आयोजित किए जा रहे सम्मेलन के उद्घाटन के लिए यहां आकर बहुत खुशी हो रही है। मुझे नीति निर्माताओं, एग्रोकैम उद्योग के प्रतिनिधियों तथा प्रख्यात बुद्धिजीवियों और वैज्ञानिकों की इस सभा में शामिल होकर बहुत प्रसन्नता हो रही है।
आर्थिक विकास में समावेशिता के पालन के लिए यह बहुत जरूरी है कि गरीबी उन्मूलन, खाद्य अपर्याप्तता में कमी, ग्रामीण रोजगार सर्जन तथा ग्रामीण अर्थव्यवस्थाओं में वृद्धि जैसे पारस्परिक रूप से जुड़े हुए लक्ष्यों को प्राप्त किया जाए। देश के खाद्य उत्पादन में पर्याप्त वृद्धि से इन लक्ष्यों को प्राप्त करने में बहुत सहायता मिलेगी। इसीलिए सम्मेलन की विषयवस्तु उपयुक्त है और मैं इस विषयगत महत्त्व के मुद्दे को राष्ट्रीय नीति परिचर्चा में सबसे आगे लाने के लिए आयोजकों की प्रशंसा करता हूं।
देवियो और सज्जनो, किसी भी देश का विकास इसकी जनता की उत्पादकता पर निर्भर होता है। जब तक हमारी जनता का स्वास्थ्य सुरक्षित नहीं होगा, तब तक हमने अपने देश के लिए जिस प्रगति की परिकल्पना की है, हम उसे प्राप्त करने में सफल नहीं होंगे। बढ़ती जनसंख्या के मद्देनजर, हमारे सामने केवल यही सुनिश्चित करने की चुनौती नहीं है कि खाद्य सुरक्षा के सूचकांक और न गिरें बल्कि उनमें सुधार भी आना चाहिए। इसलिए खाद्य उत्पादन को हमारे राष्ट्रीय नीति निर्माण के दौरान उच्च प्राथमिकता प्रदान की चाहिए।
हम भोजन की अनुपलब्धता को अब और जारी नहीं रहने दे सकते। गरीब और जरूरतमंदों को और अधिक भोजन उपलब्ध कराए जाने की दिशा में कदम उठाए जाने की जरूरत है। हमारा लोकतंत्र अपने नागरिकों के लिए सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है। हमने अधिकार आधारित पद्धति अपनाई है और अपने नागरिकों को कानूनी हक देकर सशक्त किया है। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम 2005, इसी तरह का एक महत्त्वपूर्ण उदाहरण है। मुझे उम्मीद है कि हमारी जनता को खाद्य सुरक्षा प्रदान करने के लिए प्रावधान करने वाला प्रस्तावित कानून शीघ्र ही वास्तविकता बन जाएगा।
देवियो और सज्जनो, प्रगति के हिसाब से भारत का कृषि सेक्टर अर्थव्यवस्था के अन्य सेक्टरों से पिछड़ गया है। इस कारण धीरे-धीरे देश की राष्ट्रीय आय में कृषि का योगदान घटता गया है। नवीं पंचवर्षीय योजना अवधि में इस सेक्टर का जो हिस्सा 23 प्रतिशत था, वह ग्यारहवीं योजना अवधि के दौरान घटकर लगभग 15 प्रतिशत रह गया है।
परंतु जिस देश में एक तिहाई ग्रामीण जनसंख्या गरीबी की रेखा से नीचे हो वहां ग्रामीण कायाकल्प के लिए कृषि सेक्टर की क्षमता को कम करके नहीं आंका जा सकता। हमारे देश की लगभग आधी जनसंख्या जीवनयापन के लिए कृषि पर निर्भर है। कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि कृषि सेक्टर में एक प्रतिशत का विकास अन्य सेक्टरों में एक प्रतिशत विकास के मुकाबले निर्धनता में दो से तीन गुना से अधिक कमी लाने में कारगर है।
कृषि और संबद्ध सेक्टर में 2010-11 में जो विकास दर 7.00 प्रतिशत थी वह 2011-12 में घटकर 2.8 प्रतिशत और वर्तमान वित्त वर्ष की पहली छमाही में 2.1 प्रतिशत रह गई। संभवत: यह कमी चुनौतीपूर्ण आर्थिक परिदृश्य का प्रतीक है परंतु मुझे इस स्थिति में तेजी से बदलाव का विश्वास है। कृषि को ग्रामीण क्षेत्र में बदलाव का कारगर माध्यम होना चाहिए।
हमने बारहवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान, कृषि सेक्टर में चार प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से विकास की परिकल्पना की है। ग्यारहवीं योजना अवधि में कृषि संबंधी विकास मुख्यत: बेहतर कृषि मूल्यों के कारण था। क्योंकि बारहवीं पंचवर्षीय योजना अवधि के दौरान प्रमुख फसलों की मांग में कमी आने की संभावना व्यक्त की गई है, इसलिए हमें लक्षित विकास प्राप्त करने के लिए मुख्यत: उत्पादकता में वृद्धि पर निर्भर रहना होगा।
देवियो और सज्जनो, हमारे देश का पूर्वी क्षेत्र प्रचुर प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध है और उसमें अधिक उच्च फसल उत्पादकता प्राप्त करने की क्षमता है। इसी के साथ, पूर्वोत्तर भारत में कृषि की दृष्टि से उन्नत क्षेत्रों में भूमि और जल जैसे प्राकृतिक संसाधनों के अधिक दोहन के कारण चावल का उत्पादन अव्यवहार्य होता जा रहा है।
हमने खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पूर्वोत्तर क्षेत्र पर दबाव कम करते हुए पूर्वी क्षेत्र में उत्पादन एवं उत्पादकता बढ़ाने के लिए एक कार्य योजना तैयार की है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए केन्द्रीय बजट 2010-11 के तहत समावेशी विकास को बढ़ावा देने, ग्रामीण आय में वृद्धि करने तथा खाद्य सुरक्षा बनाए रखने के लिए कृषि उत्पादन,बर्बादी में कमी, ऋण सुविधा तथा खाद्य प्रसंस्करण सेक्टर को प्रोत्साहन सहित एक चार सूत्री कार्य योजना तैयार की गई थी। इस कार्य योजना के तहत असम, बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा तथा पश्चिम बंगाल में, इन राज्यों में चावल आधारित फसल प्रणाली की समस्याओं के समाधान के लिए 2010-11 और 2011-12 में 400 करोड़ रुपए तथा 2012-13 में 1000 करोड़ रुपए के परिव्यय से राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अधीन ‘पूर्वी भारत में हरित क्रांति का सूत्रपात’ नामक योजना को कार्यान्वित करने का निर्णय लिया गया था।
इन पहलों के परिणामस्वरूप चयनित संकुलों के किसानों ने सीधे धान बोने के लिए ड्रम बुआई मशीन, पंक्ति बुआई, धान चिह्नीकरण प्रणाली, धान की अतिवृष्टि रोधी तथा अनावृष्टि रोधी उन्नत किस्मों का प्रयोग जैसी बेहतर कृषि परंपराओं को अपनाया है और शंकर नस्ल की धान प्रौद्योगिकी से प्राप्त उत्पादन से लाभ उठाया है।
मुझे बताया गया है कि पिछले तीन वर्षों के निरंतर प्रयासों से देश में कुल चावल उत्पादन में पूर्वी क्षेत्र के हिस्से में महत्त्वपूर्ण वृद्धि की दृष्टि से बहुत उत्साहजनक परिणाम मिले हैं। 2011-12 में देश में धान के 104 मिलियन टन के कुल उत्पादन में से 55 मिलियन टन का रिकार्ड उत्पादन पूर्वी क्षेत्र द्वारा किया गया था।
मुझे यह जानकर खुशी हो रही है कि इस कार्यक्रम के कार्यान्वयन को गति देने के लिए केन्द्रीय कृषि मंत्री की अध्यक्षता में तथा ‘पूर्वी भारत में हरित क्रांति का सूत्रपात’ से संबंधित राज्यों के मुख्यमंत्रियों की सदस्यता में एक समिति गठित की गई है। मुझे बताया गया है कि समिति ने निर्धन किसानों को समय पर ऋण सुविधा की उपलब्धता सुनिश्चित करने के अलावा 2012-13 में धान की खरीद पर विशेष ध्यान केंद्रित करने का निर्णय लिया है।
यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि पूर्वी क्षेत्र में कृषि विकास के जारी प्रयासों को गति प्रदान करने के लिए प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में पूर्वी भारत के लिए कृषि पर संबंधी शीर्ष समिति का गठन किया गया है। मुझे विश्वास है कि इससे विद्युत, सिंचाई, वित्त, उर्वरक, विपणन तथा सहकारिता जैसे संबद्ध विभागों को चिह्नित संकुलों में अपने प्रयासों में तालमेल बिठाने के लिए एक मंच उपलब्ध होगा ताकि किसानों को इन सेवाओं की एकीकृत उपलब्धता सुनिश्चित की जा सके।
विशिष्ट प्रतिभागीगण, देवियो और सज्जनो, हमें फसलों के विविधीकरण, बीज बदलाव की दर में सुधार, अधिक उपज वाले संकर बीजों को अपनाने तथा जल प्रबंधन प्रक्रियाओं जैसे उत्पादन बढ़ाने वाले उपायों पर अधिक जोर देना चाहिए।
भारत, सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी क्रांति के अग्रणियों में से है। हमें मौसम पूर्वानुमान के लिए उपग्रह संचार का तथा कृषक समुदाय में इसके कारगर प्रसार के लिए सूचना प्रौद्योगिकी का अधिक प्रयोग करना होगा। इन उपायों के अलावा, फसलों के खराब होने से बचाने के लिए हमें प्राकृतिक आपदाओं, कीटों तथा बीमारियों के कारण फसल खराब होने के जोखिम के प्रबंधन के लिए कृषि बीमा जैसी व्यवस्थाओं को मजबूत करना होगा।
छठे दशक के दौरान हरित क्रांति से खाद्य उत्पादन में काफी सुधार हुआ था परंतु रासायनिक खादों के अत्यधिक प्रयोग से अंतत: खाद्यान्न उत्पादकता में कमी आई। अत: कृषि शिक्षा और प्रसार कार्यक्रमों के द्वारा हमारे कृषक समुदाय में उर्वरकों और कीटनाशकों के संतुलित प्रयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
पहली हरित क्रांति का प्रसार भौगोलिक दृष्टि से सीमित क्षेत्र में था। हमें एक ऐसी दूसरी हरित क्रांति शुरू करनी चाहिए जिसका अधिक क्षेत्र में प्रसार हो तथा पूरे देश की कृषि योग्य भूमि पर इसका प्रभाव हो।
देवियो और सज्जनो, देश के खाद्यान्न उत्पादन में 2011-12 के दौरान 12 मिलियन टन की वृद्धि हुई जो कि उससे पहले वर्ष 245 मिलियन टन था। वर्ष 2012-13 में खरीफ की फसल के दौरान खाद्यान्न उत्पादन 117 मिलियन टन होने का अनुमान है जो कि उससे पहले वर्ष की खरीफ की फसल के दौरान 130 मिलियन टन के खाद्यान्न उत्पादन से कम है। मौजूदा उत्पादन स्तर के अनुसार अगले पांच वर्षों में खाद्य उत्पादन में दोगुना वृद्धि करना एक बड़ी चुनौती होगी तथा यह सभी तरह के वृद्धि सहायक उपायों को सफलतापूर्वक प्रयोग करने की हमारी क्षमता की परीक्षा होगी।
खाद्य उत्पादन में बड़ी वृद्धि के कई अनुसंगी लाभ होंगे। इससे भंडारण, प्रसंस्करण, परिवहन तथा पैकेजिंग के लिए अवसंरचना में निवेश को बढ़ावा मिलेगा। इससे कृषि-प्रसंस्करण उद्योग में संभावनाओं को भी बढ़ावा मिलेगा। इससे ग्रामीण सेक्टर में नौकरियां सृजित होंगी। ग्रामीण क्षेत्रों में बेहतर जीवन यापन अवसर प्राप्त होने से शहरी केंद्रों की ओर लोगों के प्रस्थान का दबाव भी कम होगा।
खाद्य उत्पादन में वृद्धि से प्राकृतिक संसाधनों को बचाने में भी सहायता मिलेगी। हमारे पास उपलब्ध प्रौद्योगिकियों की सहायता से, बढ़े हुए खाद्य उत्पादन से जो कृषि अपशिष्ट प्राप्त होगा उसे पशुओं और मत्स्यपालन में भोजन के रूप में प्रयोग करना संभव होगा। इससे जंगलों पर दबाव कम होगा जिनका उपयोग फिलहाल पशुओं की चरागाह के तौर पर किया जाता है।
देश के खाद्य उत्पादन को दोगुना करना एक ऐसी अनिवार्यता है जिसे हम नजरअंदाज नहीं कर सकते। इस लक्ष्य की प्राप्ति के उपायों और साधनों का पता केवल बड़े पैमाने पर विचार-विमर्श से लगाया जा सकेगा। मैं कृषि मंत्रालय तथा क्रॉप केयर फैडरेशन ऑफ इण्डिया को इस बात के लिए बधाई देता हूं कि उन्होंने इस मुद्दे को अधिक अच्छे ढंग से समझने में सहायता के लिए एक सभी स्टेकधारकों को मंच उपलब्ध कराया है। मुझे इस विचार-विमर्श से सार्थक उत्तरों के प्राप्त होने की उम्मीद है। मैं इस सम्मेलन के आयोजन में इसके आयोजकों की सफलता की कामना करता हूं।
जय हिंद!