54वें एनडीसी पाठ्यक्रम के सदस्यों तथा राष्ट्रीय रक्षा कॉलेज के कर्मचारियों द्वारा भेंट के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण
राष्ट्रपति भवन : 12.11.2014
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1.सबसे पहले, मैं राष्ट्रीय रक्षा कॉलेज के54वें एनडीसी पाठ्यक्रम, जिसमें सिविल सेवाओं,सशस्त्र सेनाओं के अधिकारी तथा विदेशी मित्र देशों के अधिकारी शामिल हैं,में भाग ले रहे प्रतिभागियों के साथ अपने कुछ विचार बांटने का अवसर देने के लिए राष्ट्रीय रक्षा कॉलेज के प्रति गहरा आभार प्रकट करता हूं। मैं राष्ट्रपति भवन के ऐतिहासिक दरबार हॉल में आप सभी का स्वागत करता हूं।
2.इसे दोहराने की आवश्यकता नहीं है कि किसी भी राष्ट्र की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि वह कितने प्रभावी ढंग से अपने पास उपलब्ध संसाधनों का प्रयोग करता है,जिसमें मानव संसाधन सबसे प्रमुख है। भारत का राष्ट्रीय रक्षा कॉलेज,जहां न केवल सशस्त्र सेनाओं बल्कि सिविल सेवाओं तथा विदेशी मित्र देशों के वरिष्ठ अधिकारियों को इस कार्यक्षेत्र का ज्ञान प्रदान किया जाता है,प्रभावी ढंग से मानव संसाधनों के विकास का कार्य भी करता है। उनके कौशल को,राष्ट्रीय सुरक्षा मुद्दों से सार्थक ढंग से निपटने के योग्य बनाने के लिए पैना किया जाता है।
3.हमारे जैसी लोकतांत्रिक प्रणाली में, राष्ट्र के अनेक अंगों को राजनीतिक नेतृत्व द्वारा निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति में एक दूसरे का पूरक होना चाहिए। वरिष्ठ सिविल सेवा अधिकारियों को राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित क्षमताओं,चुनौतियों तथा मुद्दों से परिचित होना चाहिए। इसी प्रकार सशस्त्र सेनाओं के अधिकारियों को संवैधानिक ढांचे,जिसके तहत राजनीतिक कार्यपालिका तथा सिविल सेवाएं कार्य करती हैं,के परिप्रेक्ष्य की जानकारी प्राप्त करनी चाहिए। इस संदर्भ में,राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित प्रबुद्ध निर्णय लेने के लिए उन सभी के बीच तालमेल और सहयोग होना चाहिए।
देवियो और सज्जनो,
4.आज वैश्विक वातावरण अपने गतिशील स्वरूप के कारण अनेक चुनौतियां प्रस्तुत कर रहा है। प्रत्येक देश अपने कार्यों में अपने राष्ट्रीय हितों और उद्देश्यों से निर्देशित होता है। शक्ति संबंध निरंतर बदल रहे हैं और जब तक कोई राष्ट्र पैदा हो रहे बदलावों की पूर्ण जानकारी रखकर उसके अनुसार स्वयं को नहीं ढालता है तब तक उनकी अपनी सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है।
5.हम एक राष्ट्र के तौर पर, सभी क्षेत्रों में अन्य देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित करने का निरंतर प्रयास कर रहे हैं। सुरक्षा अंतरराष्ट्रीय सहयोग का एक अहम पहलू है। इसलिए यह उस परंपरागत नजरिए से कि एक राष्ट्र की सशस्त्र सेनाओं का संबंध राष्ट्र की क्षेत्रीय अखंडता और संघर्ष से है, से आगे निकल जाती है। आज इसकी भूमिका में अर्थव्यवस्था, ऊर्जा,खाद्य, स्वास्थ्य,पर्यावरण तथा बहुत सी अन्य बातें शामिल हैं।
6.किसी राष्ट्र की प्रतिष्ठा और शक्ति अपनी सैन्य क्षमताओं से काफी प्रभावित होती है जिसे सुरक्षा चुनौतियों का मुकाबला करने में कारगर होना चाहिए।
7.आज, एक राष्ट्र के तौर पर हम अनेक चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। इनमें अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद की बुराई शामिल है। इस समस्या को ऐसे गैर-राष्ट्रीय तत्व और बढ़ा देते हैं जिन्हें प्राय: देशों द्वारा प्रायोजित धन प्राप्त होता है और उन्हें हथियारबंद किया जाता है। इस चुनौतियों का सामना करने के लिए न केवल हमारी सशस्त्र सेनाएं बल्कि अन्य शांतिप्रिय राष्ट्रों को भी तत्पर रहना चाहिए।
8.जटिल सुरक्षा खतरों का सामना करने के लिए, हमारी रक्षा सेनाएं आधुनिक और उन्न्नत हथियारों से लैस होनी चाहिए।
9.दुर्भाग्यवश, हमारी सेनाएं आयातित साजो-सामान पर अत्यधिक निर्भर हैं। आज हमारी पूंजीगत आवश्यकता के संदर्भ में हमारी निर्भरता तकरीबन70 प्रतिशत है। परंतु निर्भरता का यह उच्च स्तर हमारी सशस्त्र सेनाओं के लिए खतरों से भरा हुआ है। महत्वपूर्ण क्षेत्रों में प्रौद्योगिकी प्रतिबंध तथा महत्वपूर्ण समय में जरूरी कलपुर्जों और सहयोग की उपलब्धता हमारी सुरक्षा सेनाओं के लिए गंभीर चुनौतियां पेश कर सकती है। निर्भरता के इस स्तर में काफी कमी लानी होगा।
10.स्वदेशी सैन्य औद्योगिक परिसर के विकास पर खास बल देते हुए एक सुविचारित कार्यनीति अतिशीघ्र कार्यान्वित की जानी चाहिए। ऐसे मामलों में,सुरक्षा संबंधी मंत्रिमंडल समिति को विशिष्ट मामले के अनुरूप निर्णय लेना होगा।
11.हमने हाल ही में रक्षा में, विदेशी प्रत्यक्ष निवेश सीमा को26 से 49 प्रतिशत तक बढ़ा दिया है। यह सीमा वहां बाधा नहीं बनेगी जहां अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी शामिल है। इस उपाय से स्वदेशी रक्षा उद्योग के सुदृढ़ होने की उम्मीद है।
देवियो और सज्जनो,
12.राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक बहुआयामी और व्यवस्थित तथा समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है। इसके लिए विविध विषयों में गहन अनुसंधान की जरूरत है। इसी प्रकार,विभिन्न विषयों का पृथक रूप से अध्ययन नहीं किया जाना चाहिए। परस्पर संबद्धता बनाए रखते हुए विश्लेषण पर बल देना होगा।
13.कौटिल्य ने राजनीति पर अपने प्रसिद्ध ग्रंथ ‘अर्थशास्त्र’में बहुविधात्मक दृष्टिकोण को अत्यंत महत्व दिया है। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने1960 में राष्ट्रीय रक्षा कॉलेज का उद्घाटन करते हुए अपने विचार प्रकट किए थे, ‘‘रक्षा एक अलग-अलग विषय नहीं है। यह देश के आर्थिक औद्योगिक तथा अन्य पहलुओं के साथ घनिष्ठता से जुड़ा हुआ है और यह सर्वसमावेशी है।’’
14.मुझे बताया गया है कि राष्ट्रीय रक्षा कॉलेज पाठ्यचर्या में छह विषय शामिल हैं। सामाजिक-राजनीतिक अध्ययन का उद्देश्य आपको भारतीय समाज और राजव्यवस्था की मुख्य विशेषताओं को समझाना तथा उन मुद्दों का आकलन है जिनका राष्ट्रीय सुरक्षा पर प्रभाव पड़ता है। अर्थशास्त्र, विज्ञान और प्रौद्योगिकी अध्ययन आर्थिक प्रवृत्तियों को आकार देने वाले सिद्धांतों और प्रक्रियाओं तथा मुख्यत: राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रभावित करने वाले क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने हेतु विज्ञान और प्रौद्योगिकी के प्रभाव को समझने के लिए निर्मित किया गया है। अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा परिवेश,वैश्विक मुद्दों तथा भारत के रणनीतिक पड़ोस पर अध्ययन, अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा वातावरण तथा भारत की विदेश नीति पर इसके प्रभाव पर केंद्रित है। राष्ट्रीय सुरक्षा की रणनीतियां और ढांचों पर अध्ययन उन सभी का मिश्रण है जिसे आपने इस पाठ्यक्रम के दौरान सीखा और अनुभव किया है।
देवियो और सज्जनो,
15.सैन्य मामलों में क्रांतिकारी बदलावों तथा वैश्वीकरण के कारण सैन्य बलों की भूमिका का विस्तार हो गया है। यह स्पष्ट है कि जटिल रक्षा और सुरक्षा माहौल में भावी संघर्षों के लिए एक अधिक समेकित बहुराष्ट्रीय एवं बहु-एजेंसी दृष्टिकोण की आवश्यकता होगी। भावी सुरक्षा वातावरण से निपटने के लिए सैन्य प्रमुखों, पुलिस अधिकारियों तथा सिविल सेवाओं की तैयारी पर समग्र और व्यापक तरीके से ध्यान देना होगा। मुझे विश्वास है कि राष्ट्रीय रक्षा कॉलेज पाठ्यक्रम इन अधिकारियों को सुरक्षा मुद्दों के बारे में विवेकपूर्ण और तर्कसंगत निर्णय लेने में सक्षम बनाएगा। मैं,प्रत्येक वर्ष उत्साहपूर्वक इस पाठ्यक्रम को संचालित करने के लिए राष्ट्रीय रक्षा कॉलेज को बधाई देता हूं।
16.मैं एक बार पुन: आपके भावी प्रयासों की सफलता के लिए शुभकामनाएं देता हूं तथा उम्मीद करता हूं कि आप सभी राष्ट्रीय रक्षा कॉलेज तथा अपने देश के लिए ख्याति अर्जित करेंगे।
धन्यवाद!
जयहिन्द!