27वीं इंडियन इंजीनियरिंग कांग्रेस के उद्घाटन समारोह के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण
विज्ञान भवन, नई दिल्ली : 14.12.2012
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देवियो और सज्जनो,
इन्स्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स (इंडिया) द्वारा आयोजित 27वीं इंडियन इंजीनियरिंग कांग्रेस के उद्घाटन कार्यक्रम के अवसर पर यहां उपस्थित होकर मुझे वास्तव में बहुत खुशी हो रही है।
इन्स्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स की स्थापना वर्ष 1920 में एक ऐसे संस्थान की जरूरत को देखते हुए की गई थी जो भारत में इंजीनयरिंग और प्रौद्योगिकी की प्रगति के लिए कार्य कर सके। वर्ष 1935 में इसे किंग जॉर्ज-V ने रॉयल चार्टर प्रदान किया था और तभी से इस संस्थान से जुड़े इंजीनियरों को चार्टर्ड इंजीनियर के रूप में जाना जाता है। वर्ष 1987 में, जब अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद को भारत में इंजीनियरिंग और तकनीकी शिक्षा को विनियमित करने की सांविधिक शक्तियां प्रदान की गई, उससे पहले इन्स्टीट्यूटशन ऑफ इंजीनियर्स, रॉयल चार्टर के तहत यह कार्य कर रहा था। इस संस्थान द्वारा, काफी पहले 1928 में ऐसे सेवारत तकनीकी पेशेवरों के लिए इंजीनियरिंग में स्नातक के पाठ्यक्रम के समकक्ष ए एम आई ई की परीक्षा शुरू की गई थी, जो अपने मौजूदा पेशे को जारी रखते हुए आगे पढ़ाई जारी रखना और इंजीनियरिंग की उपाधि प्राप्त करना चाहते थे।
देवियो और सज्जनो, इस कांग्रेस के अगले तीन दिनों के दौरान इसके केंद्रीय विषय ‘सतत् विकास और समावेशी प्रगति के लिए इंजीनियरिंग’ में इंजीनियरिंग के विभिन्न पहलुओं पर व्यापक विचार-विमर्श होगा। वैज्ञानिक तथा तकनीकी बिरादरी इन विचार-विमर्शों से प्राप्त निष्कर्षों का बेसब्री से इंतजार करेगी और मुझे विश्वास है कि इनसे समावेशी विकास को बढ़ावा देने की सरकार की परिकल्पना की ओर बढ़ने की दिशा में बहुत सहयोग मिलेगा।
जैसा कि हम सभी जानते हैं, भारत आर्थिक शक्ति बनने के कगार पर है। खरीद क्षमता की तुलना के आधार पर विश्व में हमारी अर्थव्यवस्था सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान हमारे देश ने जो विकास दर प्राप्त की है, वह दुनिया भर में चीन के बाद दूसरे स्थान पर है। वर्ष 2003-04 से 2010-11 की अवधि के दौरान हमारी वार्षिक विकास दर छह बार 8 प्रतिशत से अधिक रही है। यद्यपि वर्ष 2008 के बाद वैश्विक मंदी के दबाव के चलते यह विकास दर नीची रही परंतु भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया की बाकी प्राय: सभी विकासशील अर्थव्यवस्थाओं से कहीं अधिक लचीली रही है।
बारहवीं पंचवर्षीय योजना अवधि 2012-17 के दौरान 9 प्रतिशत प्रतिवर्ष की विकास दर की परिकल्पना की गई है। आर्थिक विस्तार के इन पैमानों के लिए कई अनुकूल कारकों की जरूरत होती है जिसमें से प्रमुख है शिक्षा। हमने धीरे-धीरे सभी स्तरों की गुणवत्तायुक्त शिक्षा प्रदान करने के लिए अच्छे शैक्षणिक संस्थानों की अवसंरचना का सृजन कर लिया है। उच्च शिक्षा सैक्टर में भारत में 659 उपाधि प्रदान करने वाले संस्थान तथा 33023 कॉलेज मौजूद हैं। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों की संख्या जो वर्ष 2006-07 में सात थी, वह बढ़कर वर्ष 2011-12 में पंद्रह हो गई। देश में उच्च शिक्षा संस्थानों में विद्यार्थियों की संख्या में भी इसी तरह वृद्धि हुई है और वर्ष 2006-07 में जो 1.39 करोड़ थी, वह 2011-12 में बढ़कर 2.18 करोड़ हो गई। वर्ष 2006-07 में कुल विद्यार्थियों में 25 प्रतिशत इंजीनियरिंग के थे। इंजीनियरिंग में भर्ती की विकास दर, जो ग्यारहवीं योजना अवधि में 25 प्रतिशत वार्षिक के करीब थी, अब तक किसी भी अध्ययन क्षेत्र के लिए अधिकतम है।
तकनीकी शिक्षा, खासकर इंजीनियरिंग की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए कई कदम उठाए गए हैं। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के लिए विकसित की गई आभासी प्रयोगशालाएं स्थापित की जा रही हैं। सरकार विश्व बैंक की सहायता से तकनीकी शिक्षा गुणवत्ता सुधार के लिए तीन चरणों का कार्यक्रम संचालित कर रही है। जहां वर्ष 2002 से 2009 के दौरान प्रथम चरण में इसे 127 इंजीनियरिंग संस्थानों में संचालित किया गया है, वहीं वर्ष 2010-2014 के दौरान दूसरे चरण में इसे 190 और इंजीनियरिंग संस्थानों में संचालित किया जाएगा।
तथापि, वास्तविक सतत् विकास की प्राप्ति के लिए निर्धनता उन्मूलन अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। निर्धनता तथा पर्यावरण का क्षरण परस्पर बहुत करीब से जुड़े हुए हैं, खासकर, जहां लोग अपनी आजीविका के लिए अपने आसपास के पर्यावरण में मौजूद प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर करते हैं। इसलिए निर्धनता का उन्मूलन पर्यावरण के बचाव की पहली शर्त है। इसलिए समाज के निर्बल वर्ग को राहत पहुंचाने के लिए उपयुक्त जलवायु अनुकूल प्रौद्योगिकियों का होना जरूरी है।
ऐसी बहुत सी परंपरागत परिपाटियां, जो सतत् और पर्यावरण अनुकूल हैं, विकासशील देशों में लोगों के जीवन का नियमित हिस्सा बनी हुई हैं। इनको, अधिक आधुनिक लेकिन अव्यवहार्य परिपाटियों और प्रौद्योगिकियों से बदलने के बजाय, प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। ऐसी प्रौद्योगिकियां मौजूद हैं जिनके द्वारा संसाधनों के उपभोग में काफी कमी संभव है। इन प्रौद्योगिकियों की पहचान, उनका मूल्यांकन तथा उनको शुरू करने तथा उनका उपयोग करने का प्रयास किया जाना चाहिए। भूमि और जल प्रबंधन और परिस्थितिकी प्रणाली के संरक्षण के साथ, खेती का एकीकरण पर्यावरण की सततता तथा कृषि उत्पादन दोनों के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। स्थानीय जीविकोपार्जन में प्राकृतिक संसाधनों की भूमिका को स्वीकार करते हुए, सभी विकास परियोजनाओं के मूल्यांकन का, पर्यावरणीय नजरिए से मार्गदर्शन किया जाना चाहिए।
विकासशील देशों को उचित मूल्य पर अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियां उपलब्ध कराने के लिए भी प्रणाली स्थापित की जानी चाहिए। प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण के दौरान प्राप्तकर्ता समाजों पर इसके सामाजिक, आर्थिक तथा पर्यावरणीय प्रभावों के बारे में भी बताया जाना चाहिए। जहां संभव हो, वहां मौजूद स्थानीय प्रौद्योगिकियों को उच्चीकृत करके अनुकूलित किया जाना चाहिए जिससे वे और अधिक कारगर और उपयोगी हो सकें।
मुझे उम्मीद है कि हमारे देश में इंजीनियरों और प्रौद्योगिकीविदों की सबसे बड़ी संस्था इन्स्टीट्यूटशन ऑफ इंजीनियर्स (इंडिया) सभी स्टेकधारकों से विचार-विमर्श करके इन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए प्रयास करेगी। इन्हीं शब्दों के साथ, मैं 27वीं इंडियन इंजीनियरिंग कांग्रेस का उद्घाटन करता हूं और अच्छे विचार-विमर्श के लिए आप सभी को शुभकामनाएं देता हूं।
जय हिंद!