12वें प्रवासी भारतीय दिवस सम्मेलन के दीक्षांत सत्र तथा प्रवासी भारतीय सम्मान पुरस्कार प्रदान करने के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण
विज्ञान भवन, नई दिल्ली : 09.01.2014
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मुझे बारहवें प्रवासी भारतीय दिवस के लिए यहां उपस्थित होकर बहुत खुशी हो रही है। प्रवासी भारतीय दिवस एक ऐतिहासिक अवसर है क्योंकि इस दिन आज तक के सबसे महान प्रवासी और हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भारत लौटे थे। यह नव-वर्ष की शुरुआत भी है जो हममें बेहतर भविष्य के लिए नई उम्मीदें जगाती है। मैं इस अवसर पर सभी को एक खुशगवार और समृद्ध नव-वर्ष की शुभकामनाएं देता हूं।
प्रवासी भारतीय दिवस एक ऐसा अवसर है जब भारत की जनता और सरकार भारतवंशियों के साथ अपने रिश्तों को नवीकृत तथा मजबूत करती है। यह एक ऐसा अवसर भी है जब देश में तथा देश के बाहर रहने वाले भारतीयों के बीच परस्पर लाभदायक रिश्तों को बेहतर बनाया जाता है। हर वर्ष इस दिन, हमारा देश प्रवासी भारतीय सम्मान पुरस्कार प्रदान कर,प्रमुख प्रवासी भारतीयों के अनुकरणीय योगदान को मान्यता प्रदान करता है।
मैं इस वर्ष के सभी प्रवासी भारतीय सम्मान पुरस्कार विजेताओं को बधाई देता हूं। इस समारोह में इन पुरस्कार प्राप्तकर्ताओं की उपस्थिति से हम गौरवान्वित हुए हैं। उन सभी ने अपने द्वारा अपनाए गए देशों में ख्याति अर्जित की है तथा उन समुदायों के कल्याण के लिए कार्य किया है, जहां वह रहते तथा कार्य करते हैं।
जहां तक भारत का संबंध है, यहां प्रवास एक सदियों पुरानी परिघटना है। हमारे दरवाजे सदैव बाहर से आने वालों के लिए खुले रहे हैं तथा हमारे लोग भी हमारे इतिहास के शुरुआत से ही विदेशों में जाते रहे हैं। वास्तव में, विश्व में कुछ ही अन्य देश ऐसे होंगे जहां प्रवासन ने,देश के अंदर और बाहर, उसकी अर्थव्यवस्था तथा समाज में प्रमुख भूमिका निभाई है तथा अभी भी निभा रहा है।
विश्व भर में फैले भारतवंशियों की संख्या तथा उनके महत्त्व,दोनों में ही लगातार वृद्धि हुई है। आज,विदेशों में 25 मिलियन से अधिक भारतीय रहते हैं और वे जीवन के हर क्षेत्र से जुड़े हुए हैं। अपनी सफलता तथा अपने अपनाए गए देशों में अपने योगदान के द्वारा उन्होंने लगातार अपने पूर्वजों के देश का नाम रोशन किया है। यह सभी भारतीयों के लिए गर्व की बात है कि विदेशों में मौजूद भारतीय समुदाय को उनकी कार्य संस्कृति,अनुशासन तथा स्थानीय समुदायों के साथ उनके सफल एकीकरण के लिए सम्मान की नज़र से देखा जाता है।
विदेशों में बसे भारतीय लोगों की सबसे बड़ी पहचान हमारी साझा सांस्कृतिक विरासत के प्रति निष्ठा तथा भारत मां के लिए प्रेम रहा है। वर्षों से सरकार द्वारा उन साझीदारियों और संस्थाओं को मजबूत किया है जो विदेशों में बसे भारतीयों के साथ व्यापक रूप से जुड़ने में भारत की मदद करते हैं तथा जो न केवल भावनात्मक और पारिवारिक रिश्तों को पोषित करते हैं वरन् सांस्कृतिक,सामाजिक तथा आर्थिक हितों को भी बढ़ावा देते हैं। भारतीय समुदाय कल्याण फंड,जो विदेशों में भारतीयों की सहायता के लिए है,इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण पहल है। इसने भारतीय कामगारों,खासकर खाड़ी देशों में रहने वाले,को बहुत सहयोग तथा सांत्वना दी है। इसी प्रकार,ई सी आर श्रेणी के कामगारों के प्रव्रजन को बाधारहित बनाने के लिए एक नई ई-माइग्रेट परियोजना शुरू की जा रही है। दिल्ली में एक प्रवासी भारतीय केंद्र भी शीघ्र शुरू होगा और यह व्याख्यानों,संगोष्ठियों, प्रदर्शनियों,अनुसंधान आदि के माध्यम से भारत और विश्व के भारतवंशियों के योगदान को याद करने तथा मनाने का कार्य करेगा। मैं प्रवासी भारतीय कार्य मंत्रालय के माननीय मंत्री,श्री व्यालार रवि को उनके उर्जस्वी नेतृत्व तथा इन महत्त्वपूर्ण पहलों को आगे बढ़ाने के लिए बधाई देता हूं।
इस वर्ष के प्रवासी भारतीय दिवस का विषय ‘‘एन्गेजिंग डायस्पोरा : कनेक्टिंग अक्रोस जेनेरेशन्स’’उपयुक्त तथा सामयिक है। यह सर्वविदित है कि हमारी 50प्रतिशत से अधिक की जनसंख्या 25 वर्ष से कम उम्र की है तथा शीघ्र ही विश्व की कामकाजी जनसंख्या का पांचवां हिस्सा भारत में होगा। हम उम्मीद करते हैं कि इस युवा जनसंख्या के कारण प्राप्त होने वाले जनसंख्या संबंधी लाभ से आने वाले वर्षों में आत्म-आधारित आर्थिक विकास का सर्जन हो पाएगा।
देवियो और सज्जनो,
खरीद क्षमता की समानता के आधार पर भारत की अर्थव्यवस्था विश्व में तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान हमारे देश द्वारा प्राप्त की गई अच्छी विकास दर विश्व भर में केवल चीन के बाद दूसरे स्थान पर है। भारत की अर्थव्यवस्था विश्व की अन्य अधिकतर अर्थव्यवस्थाओं के मुकाबले अधिक सहनशील रही है। यदि हमें बारहवीं पंचवर्षीय योजना अवधि में परिकल्पित,प्रति वर्ष 9 प्रतिशत की विकास दर प्राप्त करनी है तो हमें इसके लिए अनुकूल कारक तैयार करने होंगे जिनमें सबसे महत्त्वपूर्ण शिक्षा है। मेरा मानना है कि शिक्षा वह रसायन विद्या है जो भारत को अगले स्वर्ण युग में ले जा सकती है। हम अपने लोगों को शिक्षित करने में जो सफलता प्राप्त करते हैं,वही यह तय करेगी कि भारत कितनी तेजी से विश्व में अग्रणी देशों की श्रेणी में पहुंच पाता है।
सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों तथा राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों के कुलाध्यक्ष के रूप में देश के एक छोर से दूसरे छोर तक भ्रमण करते हुए मैं यह कहता रहा हूं कि भारत को विश्वस्तरीय विश्वविद्यालयों की जरूरत है और उसने सी.वी. रमन के बाद अभी तक एक भी नोबेल पुरस्कार विजेता तैयार नहीं किया है। मैं अपने शैक्षणिक संस्थानों से अनुसंधान तथा विकास पर और अधिक निवेश करने तथा विदेशी विश्वविद्यालयों के साथ सहयोग करके बेहतर अंतरराष्ट्रीय संबंध बनाने और पूरे विश्व में सर्वोत्तम संकाय सदस्यों को आमंत्रित करके यहां आकर हमारे शैक्षणिक संस्थानों में पढ़ाने के लिए आग्रह करता रहा हूं।
पिछले नौ वर्षों के दौरान सरकार ने उच्च शिक्षा को प्राथमिकता दी है तथा अधिक संसाधन देकर इसे सहयोग दिया है। देश में उच्च शिक्षा संस्थानों में प्रवेश,जो 2006-07 में1.39 करोड़ था, 2011-12तक बढ़कर 2.18 करोड़ हो गया। भारत में आज659 उपाधि प्रदान करने वाले संस्थान तथा33023 कॉलेज हैं। तथापि,उच्च शिक्षा के संस्थानों में काफी वृद्धि के बावजूद,हमारे पास विश्व स्तरीय संस्थान कम हैं। परंतु पूर्व में ऐसा नहीं था। प्राचीनकाल में भारत की विश्वविद्यालय प्रणाली का,छठी सदी ईसा पूर्व से नालंदा के पतन के समय, 11वीं सदी ईसवी तक लगभग अठारह सौ वर्षों तक विश्व पर दबदबा रहा है। तक्षशिला,नालंदा, विक्रमशिला,वल्लभी, सोमापुरा तथा ओदांतपुरी जैसे हमारी प्रसिद्ध उच्च शिक्षा पीठें पूरे विश्व के विद्वानों के लिए आकर्षण का केंद्र थी।
जहां तक उच्च शिक्षा का संबंध है, अब समय आ गया है कि हम विश्व में अपनी अग्रणी स्थिति को पुन: प्राप्त करें।‘मात्रा’बढ़ाने के साथ-साथ हमें उतना ही ध्यान ‘गुणवत्ता’बढ़ाने पर देना होगा। हमें अपने संस्थानों को ऐसे सर्वोत्तम संस्थानों के दर्जे में लेकर आना होगा।
मित्रो, प्राकृतिक संसाधनों पर बढ़ते दबावों से पीड़ित विश्व में नवान्वेषण भावी प्रगति की कुंजी होगा। चीन और अमरीका नवान्वेषण में अग्रणी राष्ट्रों में हैं तथा वर्ष2011 में इनमें से प्रत्येक देश द्वारा5 लाख से अधिक पेटेंट आवेदन प्रस्तुत किए गए हैं। इसके मुकाबले,भारत ने केवल 42000 पेटेंट आवेदन प्रस्तुत किए हैं जो कि इन देशों से बहुत पीछे हैं। एक अंतरराष्ट्रीय सर्वेक्षण के अनुसार विश्व की सबसे नवान्वेषी कंपनियों के बीच केवल3 भारतीय कंपनियां हैं।
नवान्वेषण को बढ़ावा देने के लिए हमारे उद्योग तथा उच्च शिक्षा संस्थानों में अनुसंधान पर जोर देने की जरूरत है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में प्रकाशनों के मामले में विश्व के सर्वोच्च20 देशों में भारत का स्थान 12वां है। हमारे पास एक मिलियन लोगों के बीच केवल119 अनुसंधानकर्ता,अनुसंधान एव विकास कार्य से जुड़े हैं,जबकि चीन में यह संस्था 715 तथा अमरीका में 468 है। हमारे राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों में मौजूद7100 विद्यार्थियों के बीच केवल 4000 पीएच.डी. विद्यार्थी हैं। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों में60000 विद्यार्थ्ज्ञियों में से केवल3000 पीएच.डी. विद्यार्थी हैं।
देवियो और सज्जनो,
इस स्थिति में बदलाव आना चाहिए। विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में हमारा नेतृत्व हमारे वैज्ञानिकों,अकादमिशियनों, इंजीनियरों तथा चिकित्सकों की क्षमता के स्तर पर निर्भर होगी। हमारी प्रगति हमारे द्वारा प्राप्त प्रौद्योगिकी के उन्नयन के स्तर पर निर्भर करेगी। हमें उच्च प्राथमिकता से अपने देश की उच्च शिक्षा के स्तर का उच्चीकृत करना होगा। आप जैसे प्रवासी भारतीय,जो आज यहां उपस्थित हैं, इस स्थिति में सुधार के लिए सरकार के प्रयासों में सहायता और सहयोग देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
मुझे यह जानकर खुशी हो रही है कि इस वर्ष की परिचर्चाओं में एक सत्र‘नवान्वेषण तथा प्रौद्योगिकी’पर है। आपको यह जानकर अच्छा लगेगा कि कुलाध्यक्ष के रूप में मैं अपने विश्वविद्यालयों तथा राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों से नवान्वेषण क्लब स्थापित करके जमीनी नवान्वेषकों के साथ संबंध जोड़ने तथा उन्हें अपने नवान्वेषणों का वाणिज्यिक उपयोग करने के लिए जरूरी संस्थागत सहयोग देने का आग्रह करता रहा हूं। राष्ट्रपति भवन प्रतिवर्ष नवान्वेषणों की प्रदर्शनी आयोजित करता है तथा हमने कलाकारों,लेखकों तथा प्रतिभाशाली नवान्वेषकों को राष्ट्रपति भवन में निवास के लिए आमंत्रित करने का एक कार्यक्रम शुरू किया है,जिससे वे नवान्वेषणों के विचारों को आगे बढ़ा सकें और उन्हें मार्गदर्शन और सहयोग मिल सके।
इसी प्रकार पिछले वर्ष बेल्जियम और तुर्की की मेरी यात्रा के दौरान,मैं अपने साथ केंद्रीय विश्वविद्यालयों के कुलपतियों तथा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष सहित एक शिष्टमंडल लेकर गया था। संभवत: यह पहली बार हुआ कि विश्वविद्यालयों के कुलपति,राष्ट्राध्यक्ष के साथ विदेशी यात्रा पर गए। इरादा था,विदेशी वार्ताकारों तथा अपने देश के स्टेकधारकों को यह बताना कि भारत अपने उच्च शिक्षा को विश्व स्तरीय मानकों के अनुरूप उन्नत करना चाहता है। इस यात्रा के दौरान,कुलपतियों ने अपने विदेशी समकक्षों के साथ विचार विमर्श किया तथा इन दोनों देशों के प्रमुख संस्थानों के साथ भावी सहयोग के लिए समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए।
मित्रो, प्रवासी भारतीय,भारत के शिक्षण संस्थानों को विश्व स्तरीय दर्जा प्राप्त करने में अत्यंत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं जिनमें से अधिकतर उनकी मातृ संस्थाएं हैं। वह भारत के उच्च शिक्षण संस्थानों के रूपांतर में तथा उनमें उत्कृष्टता की संस्कृति तथा नवान्वेषण के ज़जबे का समावेश करने में उत्प्रेरक भी बन सकते हैं। मैं आपसे इस कार्य में दत्तचित्त होकर लगने का आह्वान करता हूं।
अंत में मैं यह दोहराना चाहूंगा कि आप में से हर व्यक्ति एक भारत की प्रगति और विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। चाहे आप विद्यार्थी हों,वैज्ञानिक हों, पेशेवर हों,व्यवसायी हों अथवा कामगार हों, आपमें विदेशों में अपने जीवन से प्राप्त अनुभव,कौशल और ज्ञान है और वह भारत के लिए अत्यंत उपयोगी हो सकता है। आपमें से बहुत से लोग अधिक विदेशी प्रत्यक्ष निवेश को भारत में भेजने तथा विदेशों में अपने सहयोगियों और मित्रों को भारत में मौजूद व्यापारिक अवसरों के बारे में जानकारी देने में भूमिका निभा सकते हैं। जैसा कि कल प्रधानमंत्री ने कहा था,हमारे आर्थिक बुनियादी तत्त्व मजबूत हैं तथा भारत फिर से आकर्षक निवेश गंतव्य बनने जा रहा है। मुझे विश्वास है कि आपको हमारे लोगों की अंतर्निहित सहनशक्ति में तथा हमारी अर्थव्वस्था की उर्जस्विता में विश्वास है जिनमें अस्थाई मतंदी से उभरने की योग्यता है।
मुझे उम्मीद है कि इस वर्ष का प्रवासी भारतीय दिवस विभिन्न पारस्परिक रूप से लाभदायक कार्यक्रमों को सुदृढ़ करने के लिए नई पहलों की शुरुआत करेगा। सरकार भी प्रवासी भारतीय समुदाय से सक्रिय रूप से संबद्धता बनाए रखेगी तथा एक मजबूत तथा समृद्ध भारत के निर्माण में उन्हें महत्त्वपूर्ण साझीदार बनाने के लिए सभी संभावित अवसरों का उपयोग करेगी।
मैं आप सभी को अपने जीवन में तथा भावी प्रयासों में सफलता की कामना करता हूं। भारत आपकी और प्रेम,गर्व, संतोष तथा उम्मीदों से देखता है।
धन्यवाद,
जय हिंद!