भारत की राष्ट्रपति हैदराबाद में विश्व आध्यात्मिक महोत्सव में शामिल हुईं

राष्ट्रपति भवन : 15.03.2024

भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु आज 15 मार्च, 2024 को कान्हा शांति वनम्, हैदराबाद में विश्व आध्यात्मिक महोत्सव में शामिल हुईं और सम्मेलन को संबोधित किया।

इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा कि इस विश्व आध्यात्मिक महोत्सव 'आंतरिक शांति से विश्व शांति तक' का संदेश आज के वैश्विक परिवेश में संपूर्ण मानवता के कल्याण हेतु एक अनिवार्य संदेश है। उन्होंने कहा कि विभिन्न पंथों और संप्रदायों में आस्था रखने वाले लोगों के बीच मेल-जोल और आपसी समझ बढ़ाने के उद्देश्य से आयोजित यह महोत्सव मानवता के कल्याण की दिशा में अत्यंत सराहनीय प्रयास है।

राष्ट्रपति ने कहा कि अलग-अलग मतों के अनुयायी एक दूसरे का सम्मान करें और परस्पर सहयोग करें, यह विश्व शांति के लिए सहायक ही नहीं बल्कि आवश्यक भी है। उन्होंने कहा कि चेतना ही आध्यात्मिक चेतना है और इस चेतना में किसी भी प्रकार के भेद-भाव और विभाजन के लिए तनिक भी स्थान नहीं है।

राष्ट्रपति ने कहा कि अध्यात्म पर आधारित हमारी संस्कृति ने विश्व-बंधुत्व की भावना को केंद्र में रखा है। हमारी अनेकानेक परंपराओं में किसी एक ही दर्शन को सही और अन्य सभी को गलत सिद्ध करने से हमने परहेज किया है। हमारी परंपरा में, सत्य तक पहुंचने के सभी मार्गों का आदर किया जाता है। सब को समभाव से देखने वाला व्यक्ति ही योगी माना जाता है। समत्व का यह भाव हमारी आध्यात्मिक परंपरा का आधार है।

राष्ट्रपति ने कहा कि नैतिकता और अध्यात्म पर आधारित जीवन, व्यक्ति और समाज दोनों स्तरों पर हितकारी है। उन्होंने सब से अपना काम-काज नैतिकता के आदर्शों और आध्यात्मिक लक्ष्यों के अनुरूप करने का आग्रह किया जो हमारे पूर्वजों की विरासत रही है। उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति इस विरासत के आधार पर आधुनिक विकास की ओर बढ़ेगा, वह व्यक्ति सफल भी रहेगा और सुखी भी।

राष्ट्रपति ने कहा कि भगवान महावीर, भगवान बुद्ध, जगद्गुरु शंकराचार्य, संत कबीर, संत रविदास और गुरु नानक से लेकर स्वामी विवेकानन्द तक भारत की आध्यात्मिक विभूतियों ने विश्व समुदाय को आध्यात्मिकता की संजीवनी प्रदान की है। राजनीति में भी आध्यात्मिक मूल्यों को आधार बनाने के कारण, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी 'साबरमती के संत' कहलाए।

राष्ट्रपति ने कहा कि वर्तमान में किया गया सत्कर्म ही अच्छे भविष्य का स्वरूप निर्धारित करता है। हमारी सोच ही हमारी नियति का निर्माण करती है, और हमारे राग-द्वेष हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि अपनी नियति का निर्माण करने के लिए हमें अपने मनो-मस्तिष्क पर नियंत्रण रखना होगा और इसके लिए ध्यान- साधना का सहारा लेना होगा।

राष्ट्रपति ने कहा कि हम पहले स्वयं अपने-आप में बदलाव लाएं और उसके बाद ही दूसरे लोगों में परिवर्तन लाने का प्रयास करें।  यदि सभी लोग अपने-अपने सुधार को सुनिश्चित करें और परहित में कार्य करें तो एक दिन ऐसा आएगा जब हम सब मिलकर पूरी मानवता को सही दिशा में ले जा सकेंगे।

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