भारत की राष्ट्रपति विश्वभारती के दीक्षांत समारोह में शामिल हुईं
राष्ट्रपति भवन : 28.03.2023
भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु आज 28 मार्च, 2023 को शांतिनिकेतन में विश्वभारती के दीक्षांत समारोह में शामिल हुईं और उसे संबोधित किया।
इस अवसर पर बोलते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने 20वीं शताब्दी की शुरुआत में पूर्वी गोलार्ध का सबसे महत्वपूर्ण शहर छोड़ दिया और शांतिनिकेतन आ गए। शांतिनिकेतन उन दिनों एक दूरस्थ क्षेत्र में आता था। इसमें सभी के लिए, विशेषकर युवा छात्रों के लिए एक संदेश छिपा है। गुरुदेव जैसे पथ-प्रदर्शक बड़े उद्देश्यों के लिए आराम छोडकर कठिनाइयों का चयन करते हैं। विश्वभारती के युवा छात्रों को गुरुदेव के जीवन की इस सीख पर ध्यान देना होगा कि बदलाव लाने के लिए व्यक्ति को अपने कम्फर्ट जोन से बाहर आना होगा।
राष्ट्रपति ने कहा कि गुरुदेव का यह विश्वास कि प्रकृति सबसे बड़ी शिक्षक है, इस संस्था को जिस तरह से डिजाइन किया गया है, उसमें परिलक्षित होता है। वह पश्चिम से उधार ली गई पारंपरिक प्रणालियों की शिक्षा प्रक्रिया को सीमाओं से मुक्त करना चाहते थे। वह ऐसी कठोर संरचनाओं और तरीकों का विरोध करते थे जिनमें छात्र निष्क्रिय रहते थे और सीखने में वे सक्रिय भागीदार नहीं थे। विश्वभारती के माध्यम से उन्होंने हमें प्रकृति से जुड़ी सीखने की प्रणाली का उपहार दिया है, जो आध्यात्मिकता और आधुनिक विज्ञान, नैतिकता और उत्कृष्टता, परंपरा और आधुनिकता को जोड़कर रखती है। गुरुदेव विद्या अध्ययन को असीम और बंधन रहित मानते थे।
राष्ट्रपति ने कहा कि गुरुदेव चाहते थे कि शिक्षा रचनात्मकता और व्यक्तित्व को बढ़ावा देने वाली हो न कि रूढ़िवादिता और करियरवादी बढ़ाने वाली। उन्हें यह जानकर प्रसन्नता हुई कि विश्वभारती ने गुरुदेव के शिक्षा दर्शन का पालन किया है और कई प्रसिद्ध कलाकार और रचनात्मक व्यक्तित्व तैयार किए हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि गुरुदेव को भारतीय ज्ञान परंपरा पर गर्व था। हमारी परंपरा में कहा जाता है - 'केवल वही विद्या सार्थक है जो मुक्त करे'। उन्होंने कहा कि अज्ञानता, संकीर्णता, पूर्वाग्रह, नकारात्मकता, लोभ और ऐसी अन्य बाधाओं आदि से मुक्ति ही शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि विश्वभारती के छात्र जहाँ भी कार्य करने के लिए जाएंगे वहीं समाज को बेहतर बनाने में मदद करेंगे।