भारत की राष्ट्रपति उत्कलमणि पंडित गोपबंधु दास की 96वीं पुण्यतिथि कार्यक्रम में शामिल हुईं
राष्ट्रपति भवन : 06.07.2024
भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु आज 6 जुलाई, 2024 को भुवनेश्वर, ओडिशा में उत्कलमणि पंडित गोपबंधु दास की 96वीं पुण्यतिथि कार्यक्रम में शामिल हुईं।
इस अवसर पर बोलते हुए, राष्ट्रपति ने कहा कि यह महत्वपूर्ण नहीं है कि कोई व्यक्ति कितने समय तक जीवित रहता है; बल्कि, महत्वपूर्ण है कि वह जीवन को कैसे जीता है। अर्थात किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा का मूल्यांकन उसके समाज और देश के प्रति योगदान के आधार पर ही किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि यह आश्चर्यजनक है कि पंडित गोपबंधु दास ने अपने छोटे-से जीवनकाल में कितने अच्छे कार्य किए। उन्होंने कहा कि समाज सेवा, साहित्य, शिक्षा और पत्रकारिता के क्षेत्र में उनका योगदान अविस्मरणीय है। उन्होंने पंडित गोपबंधु दास को श्रद्धांजलि अर्पित की।
राष्ट्रपति ने कहा कि पंडित गोपबंधु दास अच्छी तरह जानते थे कि कोई भी समाज या राष्ट्र उचित शिक्षा के बिना प्रगति नहीं कर सकता है। इसीलिए उन्होंने पुरी जिले के सत्यबाड़ी में मुक्ताकाश विद्यालय की स्थापना की, जिसे वन विद्यालय भी कहा जाता है। विद्यार्थियों को शुरू से ही प्रकृति से जोड़ने का उनका दृष्टिकोण बहुत महत्व रखता है। पंडित गोपबंधु ने वन विद्यालय के माध्यम से विद्यार्थियों के समग्र विकास पर जोर दिया। उनके विचार में शिक्षा का मतलब केवल किताबी ज्ञान नहीं है, बल्कि शिक्षा से विद्यार्थियों का शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक विकास भी होना चाहिए।
राष्ट्रपति ने कहा कि वर्ष 1919 में पंडित गोपबंधु दास ने ‘समाज’ समाचार-पत्र का प्रकाशन शुरू किया था। इस प्रकाशन के माध्यम से उन्होंने ओडिशा में स्वतंत्रता का संदेश प्रसारित किया। उन्होंने इस अखबार के माध्यम से लोगों की समस्याएं भी उठाईं। ‘समाज’ में उनके संपादकीय ने उड़िया साहित्य को बहुत कुछ दिया है।
राष्ट्रपति ने कहा कि पंडित गोपबंधु दास राष्ट्रवाद और लोकतांत्रिक मूल्यों में विश्वास रखते थे। उनकी कविताएं और गद्य देशभक्ति और विश्व कल्याण की प्रेरणा देते हैं। वे उड़िया गौरव के साथ-साथ भारतीय राष्ट्रवाद को भी समर्पित थे। पंडित गोपबंधु ने लिखा है 'मैं भारत में जहां भी रहूं, वह मेरा घर ही होगा।' राष्ट्रपति ने कहा, हमें गोपबंधु जी की इस सच्ची भारतीय सोच से प्रेरणा लेनी चाहिए।