भारत की राष्ट्रपति ने पुरी के समुद्री तट पर कुछ समय बिताया
राष्ट्रपति भवन : 08.07.2024
भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने वार्षिक रथ यात्रा में भाग लेने के एक दिन पश्चात् आज सुबह 8 जुलाई, 2024 को पवित्र शहर पुरी के समुद्री तट पर कुछ समय बिताया। बाद में उन्होंने प्रकृति के निकट रहने के अनुभव के बारे में अपने विचार लिखे।
उन्होंने एक्स पर पोस्ट किया की: “ऐसे स्थान होते हैं जो हमें जीवन के सारतत्व के करीब लाते हैं और हमें याद दिलाते हैं कि हम प्रकृति के हिस्से हैं। पहाड़, जंगल, नदियाँ और समुद्र तट हमें अंदर से आकर्षित करते हैं। जब मैं आज समुद्र के किनारे चल रही थी तो मुझे आसपास के वातावरण के साथ एक जुड़ाव महसूस हुआ - हल्की मंद हवा, लहरों की गड़गड़ाहट और विशाल जल राशि। यह एक ध्यानभरा अनुभव था।
इससे मुझे गहन आंतरिक शांति मिली, ऐसी ही शांति मुझे तब भी महसूस हुई जब मैंने कल महाप्रभु श्री जगन्नाथजी के दर्शन किए थे। और ऐसा अनुभव मैंने अकेले ने किया है, ऐसा नहीं है; हम सब ऐसा अनुभव कर सकते हैं जब हम किसी ऐसी चीज़ के पास होते हैं जो हमसे कहीं बहुत बड़ी है, हमारा पोषण करती है और जो हमारे जीवन को सार्थक बनाती है।
दैनिक कामकाज की आपाधापी में, हम प्रकृति के साथ इस संबंध को खो देते हैं। मानव, प्रकृति पर अपना अधिकार समझता है और अपने अल्पकालिक लाभों के लिए इसका दोहन करता है और इसका परिणाम हमारे सामने है। इस बार गर्मी में, भारत के कई हिस्सों को बार-बार भयानक लू का सामना करना पड़ा है। हाल के वर्षों में दुनिया भर में खराब मौसम की घटनाएं अधिक हो गई हैं। और अनुमान है की आने वाले दशकों में स्थिति और भी बदतर हो सकती है।
पृथ्वी की सतह का सत्तर प्रतिशत से अधिक भाग पर महासागर है, और ग्लोबल वार्मिंग के कारण पूरे विश्व में समुद्र के स्तर में वृद्धि हो रही है, जिससे तटीय क्षेत्रों के जलमग्न होने का खतरा हो गया है। विभिन्न प्रकार के प्रदूषण के कारण महासागरों और वहां पाई जाने वाली वनस्पतियों और जीवों की समृद्ध विविधता को भारी नुकसान पहुंचा है।
सौभाग्य से, प्रकृति की गोद में रहने वाले लोगों ने वे परंपराएँ कायम रखी हैं जो हमें राह दिखा सकती हैं। उदाहरण के लिए तटीय क्षेत्रों में रहने वाले हवाओं और समुद्र की लहरों की भाषा जानते हैं। अपने पूर्वजों का अनुसरण करते हुए वे समुद्र को देवता के रूप में पूजते हैं।
मेरा मानना है कि पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण की चुनौती से निपटने के दो उपाय हैं; सरकारों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की और से उठाए जाने वाले व्यापक कदम, और छोटे, स्थानीय उपाय जो हम नागरिक के रूप में कर सकते हैं। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। आइए, एक बेहतर कल के लिए व्यक्तिगत और स्थानीय स्तर पर – इस निमित्त जो कुछ भी हम कर सकते हैं, उसे करने का संकल्प लें। ऐसा हमें अपनी भावी पीढ़ी के लिए करना जरूरी है।”