भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का Sri Sathya Sai Institute of Higher Learning के 42वें दीक्षांत समारोह में सम्बोधन

पुट्टपर्ती : 22.11.2023

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भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का Sri Sathya Sai Institute of Higher Learning के 42वें दीक्षांत समारोह में सम्बोधन

जैसा कि आप सभी जानते हैं कि कल ही, यानी 23 नवंबर को भगवान श्री सत्य साई बाबा की जयंती है। मैं उनकी पावन स्मृति को सादर नमन करती हूं। श्री सत्य साई बाबा के आशीर्वाद से समृद्ध यह क्षेत्र पूरे विश्व के श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है।

प्रशान्ति का अर्थ होता है प्रकृष्ट शांति, अर्थात गहरी आध्यात्मिक शांति। ऐसी आध्यात्मिक शांति की परंपरा से युक्त स्थान होने के कारण इस क्षेत्र को प्रशान्ति निलयम कहना सर्वथा सार्थक है। हमारे यहां यह मान्यता है कि जिस क्षेत्र में महान विभूतियां सक्रिय रहती हैं, वह स्थान सदा के लिए आध्यात्मिक पवित्रता, शांति और ऊर्जा से परिपूर्ण हो जाता है। श्री सत्य साई बाबा के आशीर्वाद से युक्त प्रशान्ति निलयम के इस पावन क्षेत्र में आना मैं अपना सौभाग्य मानती हूं। यहां के आप सभी अध्यापक, विद्यार्थी, प्रबन्धक और कर्मचारी इस पवित्र परिवेश में निरंतर कार्यरत रहते हैं। यह आप सबका परम सौभाग्य है।

आज उपाधि प्राप्त करने वाले सभी विद्यार्थियों को मैं बधाई देती हूं। आज पदक प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों की मैं विशेष सराहना करती हूं।

प्यारे विद्यार्थियो,

आपके विश्वविद्यालय का ध्येय वाक्य है:

‘सत्यं वद धर्मं चर’

अर्थात

सदा सत्य बोलो और धर्म का आचरण करो।

सदा सच बोलने के इस उपदेश में, मन, कर्म और वचन से सत्य के प्रति निष्ठा का संदेश दिया गया है। सत्य की निरंतर खोज करने और उस पर अडिग रहने के आदर्श को हमारी संस्कृति में प्राथमिकता दी गई है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की आत्मकथा का शीर्षक है ‘सत्य के प्रयोग’। वे कहा करते थे कि सत्य का अन्वेषण करना ही उनके जीवन का प्रमुख लक्ष्य था एवं समाज सेवा तथा राजनीतिक गतिविधियां सत्य के उस प्रमुख लक्ष्य को प्राप्त करने के नैतिकता-पूर्ण माध्यम थे।

सत्य की इसी महिमा के कारण श्री सत्य साई बाबा जिनके प्रति अगाध श्रद्धा के साथ हम सब यहां उपस्थित हुए हैं, उनके पवित्र नाम में भी ‘सत्य’ का समावेश है।

‘धर्मं चर’, इस वाक्यांश में धर्म का अर्थ कोई विशेष पंथ नहीं है। यहां धर्म का अभिप्राय उन मूलभूत नैतिक मूल्यों से है जिनके आधार पर सम्पूर्ण मानव समाज का कल्याण होता है।

प्यारे विद्यार्थियो,

आध्यात्मिकता विश्व समुदाय को भारत की अमूल्य भेंट है। हमारे देश में समय-समय पर महान आध्यात्मिक विभूतियों ने सदाचार, करुणा और परोपकार का संदेश प्रसारित किया है। पुट्टपर्ती के इस क्षेत्र को पावन बनाने वाले, श्री सत्य साई बाबा ऐसी ही महान विभूति थे। उनके आशीर्वाद से देश-विदेश के करोड़ों लोग लाभान्वित होते रहे हैं और होते रहेंगे। ऐसी महान विभूतियों की शिक्षा की अवधारणा हमारी महान परम्पराओं को जीवंत बनाती है।

मुझे ओडिशा में अपने पैतृक स्थान रायरंगपुर में Sri Aurobindo Integral Education Centre में कुछ वर्षों के लिए अध्यापन करने का अवसर मिला था। बच्चों के व्यक्तित्व निर्माण में लगे अपने जीवन के उस काल-खंड को मैं विशेष महत्व देती हूं। मेरा निजी अनुभव है कि जीवन-मूल्यों और नैतिकता की शिक्षा देना ही वास्तविक शिक्षा है। जिस तरह भवन के निर्माण के लिए मजबूत नींव जरूरी है उसी तरह जीवन के निर्माण के लिए नैतिकता और जीवन-मूल्यों की आधारशिला भी अनिवार्य है। सत्य, सदाचरण, शांति, स्नेह और अहिंसा के जीवन-मूल्यों को प्रत्येक विद्यार्थी के जीवन में संचारित करने का प्रयास, Integral Education का प्रमुख लक्ष्य होता है।

भारतीय परंपरा में एक महत्वपूर्ण कथन है:

सा विद्या या विमुक्तये

अर्थात

वास्तव में विद्या वही है जो मुक्ति प्रदान करती है। अज्ञान, अहंकार, क्रोध, लोभ, मोह और ईर्ष्या सहित हर प्रकार के विकारों से मुक्ति ही विद्या का वास्तविक परिणाम है। जो सही अर्थों में विद्यावान होता है वह विनयशील होता है, परोपकारी होता है और संवेदनशील होता है। आपके इस संस्थान में मानवीय तथा आध्यात्मिक मूल्यों को आधारभूत महत्व दिया जाता है। इसलिए, यह उच्च शिक्षण संस्थान सही अर्थों में विद्या-मंदिर है, आधुनिक गुरुकुल है। ऐसे संस्थान के विद्यार्थियों से यह अपेक्षा की जाती है कि आप सब सांसारिक और सामाजिक उन्नति के साथ-साथ नैतिक और आध्यात्मिक उत्कर्ष के उदाहरण प्रस्तुत करेंगे।

मैं आपके संस्थान की शिक्षा के प्रति समग्र दृष्टि से बहुत प्रभावित हूं। आपने education के स्थान पर edu-care जैसी बिलकुल नई अवधारणा का प्रयोग किया है। मानवीय मूल्यों पर आधारित Integral Education को edu-care की संज्ञा देना अत्यंत उपयोगी और सारगर्भित है।

आपके संस्थान ने भी Integral Education अथवा Holistic Education का मार्ग अपनाया है। शिक्षा का यही मार्ग भविष्य निर्माण का सही मार्ग है। Holistic Education के लक्ष्य को स्पष्ट करते हुए आपने physical, psychological, intellectual, emotional और spiritual आयामों को शिक्षा प्रक्रिया में समाहित किया है। मुझे विश्वास है कि यहां के आप सभी विद्यार्थी professionally sound, socially responsible और spiritually aware व्यक्तित्व का विकास करने में सफल होंगे। आपके इस संस्थान द्वारा शिक्षा के जो लक्ष्य नियत किए हैं वे वस्तुतः शिक्षा का आदर्श हैं। Self-knowledge अर्थात आत्म-विद्या और self-confidence अर्थात आत्म-विश्वास पर आधारित self-sacrifice अर्थात आत्म-त्याग और self-realization अर्थात आत्म-ज्ञान की प्राप्ति को आप सबने शिक्षा के उद्देश्य के रूप में मान्यता दी है। आपके संस्थान की इस आदर्शवादी सोच की जितनी भी प्रशंसा की जाए वह कम है।

देवियो और सज्जनो,

श्री सत्य साई बाबा ने समाज कल्याण के अनेक कार्य करके सबके सामने आदर्श को यथार्थ का रूप देने के उदाहरण प्रस्तुत किए हैं। उन्होंने अकालग्रस्त गांवों में पानी की व्यवस्था सुनिश्चित की थी। यहां प्रशान्ति निलयम में स्थापित Super-specialty Hospital एक उत्कृष्ट Healthcare Centre के रूप में प्रसिद्ध है। Sri Sathya Sai Central Trust द्वारा healthcare, education, tribal welfare तथा जन-कल्याण के अनेक क्षेत्रों में सराहनीय कार्य किए जा रहे हैं।

भारतीय समाज और आध्यात्मिक परंपरा में महिलाओं तथा शक्ति की अवधारणा को विशेष स्थान और सम्मान दिया गया है। प्राचीन काल में गार्गी, मैत्रेयी, अपाला, रोमशा और लोपामुद्रा से लेकर भारतीय संविधान के निर्माण में अमूल्य योगदान देने वाली हमारी संविधान सभा की 15 सदस्याओं तक विदुषी महिलाओं को अग्रणी स्थान देने की हमारी परंपरा रही है। आज उत्कृष्टता के हर क्षेत्र में, यहां तक कि सेनाओं में भी, हमारी बेटियां अपनी प्रभावशाली पहचान बना रही हैं। मैंने देखा है कि अधिकांश उच्च शिक्षण संस्थानों में पदक तथा उपाधियां प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों में छात्राओं की संख्या छात्रों से अधिक होती है। मैं आशा करती हूं कि इस देशव्यापी विकास धारा को ध्यान में रखकर यहां भी बेटियों को अध्ययन तथा उत्कृष्टता के लिए और अधिक अवसर प्रदान किए जाएंगे।

प्यारे विद्यार्थियो,

मुझे विश्वास है कि Sri Sathya Sai Institute of Higher Learning के आदर्शों के अनुरूप आप शाश्वत जीवन-मूल्यों का प्रसार करेंगे; आप सब आधुनिक प्रगति के साथ-साथ आध्यात्मिक उत्कर्ष के उदाहरण प्रस्तुत करेंगे। आप सबके स्वर्णिम भविष्य की मंगलकामना के साथ मैं अपनी वाणी को विराम देती हूं।

धन्यवाद!  
जय हिन्द!  
जय भारत!

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