भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का श्री वारणा महिला सहकारी उद्योग समूह के स्वर्ण जयंती समारोह में सम्बोधन

वारणानगर, कोल्हापुर : 29.02.0024

डाउनलोड : भाषण भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का श्री वारणा महिला सहकारी उद्योग समूह के स्वर्ण जयंती समारोह में सम्बोधन(हिन्दी, 140.18 किलोबाइट)

आज श्री वारणा समूह के इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम में आप सब को संबोधित करके मुझे हार्दिक प्रसन्नता हो रही है। इस अवसर पर वारणा क्षेत्र के सर्वांगीण विकास में अपना योगदान देने के लिए मैं इस समूह से जुड़े सभी लोगों की सराहना करती हूं। मैं वारणा समूह के संस्थापक श्री विश्वनाथराव कोरे उर्फ तात्यासाहेब कोरे जी को आदर के साथ याद करती हूं जिनकी दूरदर्शिता और मेहनत से वारणा घाटी की बंजर भूमि आज हरी-भरी है। यह बहुत ही खुशी की बात है कि उनके पौत्र श्री विनय विलासराव कोरे जी, तात्यासाहेब के संकल्प को आगे बढ़ा रहे हैं।

देवियो और सज्जनो,

किसी भी समाज के समेकित विकास के लिए उसके सभी सदस्यों का सर्वांगीण विकास आवश्यक है। महिलाएं समाज का अहम हिस्सा हैं। उनकी उपेक्षा करके कोई भी समाज विकसित नहीं हो सकता है। महिलाओं की क्षमता और शक्ति में विश्वास जताते हुए, उनको आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से, 50 वर्ष पहले, तात्यासाहेब जी ने महिला सहकारी उद्योग समूह की स्थापना की थी। आज यहां उपस्थित बेटियों और बहनों को देख कर मैं कह सकती हूं कि उनका विश्वास सही था। इस समूह ने अनेक उद्यमों के द्वारा महिलाओं को आर्थिक और सामाजिक रूप से सशक्त बनाया है।

देवियो और सज्जनो,

भारत में आधुनिक सहकारिता की शुरुआत भले ही बीसवीं शताब्दी में हुई हो, लेकिन पारस्परिक सहायता, सेवा, सामाजिक स्वामित्व, न्याय और एकता तथा भाईचारे जैसे सहकारिता के स्वीकृत सिद्धान्त भारतीय सभ्यता के मूल में रहे हैं। प्राचीन काल में इनकी झलक हमें श्रेणी और गण जैसी व्यापारिक संस्थाओं में मिलती है।

मेरा मानना है कि सहकारिता समाज में निहित शक्ति का सदुपयोग करने का उत्तम माध्यम है। इसके सिद्धान्त संविधान में परिकल्पित न्याय, एकता तथा भाईचारे की भावना के अनुरूप हैं। जब अलग-अलग वर्ग और विचार के लोग सहकार के लिए एकजुट होते हैं तब उन्हें सामाजिक विविधता का लाभ मिलता है। निजी उद्योग और व्यापार ने देश के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है लेकिन सहकारिता का योगदान देश के विकास में अतुलनीय है। अमूल और लिज्जत पापड़ जैसे घर-घर में जाने जाने वाले ब्रांड सहकारिता की ही देन हैं। Modern Management में भी सहकारिता को महत्व दिया जाता है क्योंकि किसी भी संस्था या समाज को सुचारु रूप से कार्य करने के लिए जिसकी जरूरत है वह सहकारिता में निहित है। आज इस वारणा घाटी में जो विकास हुआ है उसके मूल में सहकारिता ही है।

आज भारत विश्व का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश है। इस सफलता में सहकारी समूहों का महत्वपूर्ण योगदान है। प्राय: सभी राज्यों में दुग्ध उत्पाद प्रमुख रूप से सहकारी संस्थाओं द्वारा उत्पादित और वितरित किए जाते हैं। आपका वारणा दूध इसका एक उदाहरण है। केवल दूध ही नहीं उर्वरक, कपास, हैंडलूम, हाउसिंग, खाद्य तेल और चीनी जैसे क्षेत्रों में सहकारी संस्थाएं अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। IFFCO भारत ही नहीं विश्व के अग्रणी सहकारी संस्थानों में से एक है।

सहकारी संस्थानों ने गरीबी दूर करने, खाद्य सुरक्षा और प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन में अहम योगदान दिया है। लेकिन इस तेजी से बदलते हुए समय में सहकारी संस्थाओं को भी अपने-आप को बदलने की आवश्यकता है। उन्हें अधिक से अधिक technology का उपयोग करना चाहिए, साथ ही management को professional बनाना चाहिए।

देवियो और सज्जनो,

आज हमारे देश में साढ़े आठ लाख से अधिक सहकारी संस्थाएं काम कर रही हैं। महाराष्ट्र और गुजरात में तो सहकारिता की जड़ें बहुत ही मजबूत हैं। लेकिन सहकारिता की पूरी क्षमता का अभी भी उपयोग नहीं हुआ है। कई सहकारी संस्थाएं पूंजी और संसाधन की कमी, गवर्नेंस और मैनेजमेंट तथा कम भागीदारी जैसी समस्याओं से जूझ रही हैं। मेरा मानना है कि अधिक से अधिक युवाओं को सहकारिता से जोड़ना इस दिशा में महत्वपूर्ण हो सकता है। युवा governance और management में technology का समावेशन कर उन संस्थाओं का कायाकल्प कर सकते हैं। सहकारी संस्थाओं को नए-नए क्षेत्रों जैसे organic farming, storage capacity building, eco-tourism में भी आगे आने का प्रयास करना चाहिए।

भारत सरकार का मानना है कि देश में ‘सहकार से समृद्धि’ आएगी। सहकारी आंदोलन को मजबूत करने के लिए वर्ष 2021 में सहकारिता मंत्रालय का गठन किया गया है। इस वर्ष के बजट में भी सहकारिता क्षेत्र के सुव्यवस्थित और सर्वांगीण विकास के लिए National Cooperation Policy लाने का प्रस्ताव रखा गया है। प्राथमिक से लेकर शीर्ष स्‍तर की सहकारी समितियों में सहकारी आंदोलन को सशक्‍त और मजबूत करने के लिए और भी अनेक प्रयास किए जा रहे हैं। विभिन्न योजनाओं के तहत सहकारी संस्थाओं को वित्तीय, तकनीकी और प्रशिक्षण संबंधी सहायता दी जा रही है  सभी संस्थानों को इन योजनाओं का अधिक से अधिक लाभ लेना चाहिए।

किसी भी उद्यम का आम लोगों से जुड़ाव उसकी सफलता का असली राज होता है। लोकतान्त्रिक व्यवस्था और पारदर्शिता सहकारिता की सफलता के लिए महत्वपूर्ण हैं। सहकारी संस्थाओं में उनके सदस्यों का हित सर्वोपरि होना चाहिए। यह सदैव ध्यान रखना चाहिए कि कोई भी सहकारी संस्था किसी के व्यक्तिगत हित और लाभ कमाने का साधन बन कर न रह जाए नहीं तो cooperative का उद्देश्य ही समाप्त हो जाएगा। Cooperative में real cooperation होना चाहिए, किसी की monopoly नहीं। गांधी जी का मानना था कि हम सहकारिता आंदोलन की सफलता को सहकारी समितियों की संख्या से नहीं, बल्कि सहकारी समितियों की नैतिक स्थिति से मापेंगे। मुझे खुशी है कि वारणा समूह अपने हितधारकों के न केवल आर्थिक बल्कि शिक्षा और चिकित्सा की जरूरतों को भी पूरा कर रहा है।

देवियो और सज्जनो,

आपलोग इतनी बड़ी संख्या में यहां आए हैं इसलिए मैं आपसे कुछ बातें व्यक्तिगत जीवन में अपनाने का अनुरोध करना चाहती हूं:

 आप शिक्षा के महत्व को समझें और अपने बच्चों को अच्छी से अच्छी शिक्षा देने का प्रयास करें। अच्छी और नैतिकतापूर्ण शिक्षा जीवन में सकारात्मक बदलाव लाएगी।

 नई Technology को सीखने और अपनाने में आगे रहें। ये न केवल आपके जीवन को सुविधाजनक बनाएंगे बल्कि आपको इसके दुरुपयोग के बारे में भी जागरूक करेंगे।

 पर्यावरण संरक्षण को अपने दैनिक जीवन में अहम स्थान दें क्योंकि आपके छोटे-छोटे प्रयास धरती मां और इसके बच्चों को बचाने में अहम होंगे।

 अपने से कमजोर लोगों की यथासंभव मदद करें और उनको भी साथ ले कर चलने का प्रयास करें।

 देश के विकास में योगदान करने के लिए सदैव तत्पर रहें। हमारे व्यक्तिगत और सामूहिक प्रयास भारत को विश्व पटल पर ऊंचा स्थान दिलाएंगे।

मेरी शुभकामनाएं सदैव आपके साथ हैं।

धन्यवाद!  
जय हिन्द!  
जय भारत!  
जय महाराष्ट्र!

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